कयासों और अटकलों की हवा निकल चुकी है, ये तय है कि आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही भाजपा का चुनावी चेहरा होंगे. इस बीच भाजपा से मुकाबले के लिए तैयार समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव को अगड़ा वर्सेज पिछड़ा बनाने की कोशिश कर सकती है. पिछले चुनावों की तरह इस बार भी भाजपा पिछड़ी जातियों के कुछ छोटे दलों के साथ गठबंधन बनाकर पिछले और अति पिछड़े वर्ग की जातियों पर विश्वास बरकरार रखने की रणनीति तय कर रही है. लेकिन सपा भाजपा के मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर ये जाहिर करेगी की वो पिछड़े, अति पिछड़े और दलित वर्ग से झूठी हमदर्दी जता कर वोट लेकर उन्हें धोखा दे चुकी है, और मुख्यमंत्री सवर्ण वर्ग का बनाती है. सपा इस बार अपने पारम्परिक वोट बैंक की वापसी करवाने और उन्हें विश्वास जताने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी. इन तमाम कोशिशों में सपा अध्यक्षअध्यक्ष अखिलेश यादव भी भाजपा के पैटर्न पर रालोद के अतिरिक्त पिछड़ी जातियों के जनाधार पर आधारित कुछ छोटे दलों का गठबंधन बनाने का एलान कर चुके हैं. संभावना यही है कि भाजपा और सपा चुनाव में आमने सामने होंगे. ये भी तय है कि ये दोनों दल किसी बड़े दल से गठबंधन न करके चुनावी रण में पिछड़ी जातियों के छोटे दलों के गठबंधन की ताकत से अपने-अपने तरकशों को सजाएंगे. दूसरी तरफ ये भी संभावना है कि कांग्रेस और बसपा का भी किसी बड़े दल के साथ गठबंधन नहीं होगा.
भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे यूपी के चार बड़े दलों के बयानों, तेवरों और संकेतों से इनके रुख देखकर प्रतीत होने लगा है कि कौन किसके साथ चुनाव लड़ेगा, कौन अकेला लड़ेगा और किसकी किसके साथ मिलीभगत होगी. बसपा का भाजपा से अप्रत्यक्ष रूप से दोस्ताना रिश्ता बन सकता है. भाजपा से सपा की...
कयासों और अटकलों की हवा निकल चुकी है, ये तय है कि आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही भाजपा का चुनावी चेहरा होंगे. इस बीच भाजपा से मुकाबले के लिए तैयार समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव को अगड़ा वर्सेज पिछड़ा बनाने की कोशिश कर सकती है. पिछले चुनावों की तरह इस बार भी भाजपा पिछड़ी जातियों के कुछ छोटे दलों के साथ गठबंधन बनाकर पिछले और अति पिछड़े वर्ग की जातियों पर विश्वास बरकरार रखने की रणनीति तय कर रही है. लेकिन सपा भाजपा के मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर ये जाहिर करेगी की वो पिछड़े, अति पिछड़े और दलित वर्ग से झूठी हमदर्दी जता कर वोट लेकर उन्हें धोखा दे चुकी है, और मुख्यमंत्री सवर्ण वर्ग का बनाती है. सपा इस बार अपने पारम्परिक वोट बैंक की वापसी करवाने और उन्हें विश्वास जताने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी. इन तमाम कोशिशों में सपा अध्यक्षअध्यक्ष अखिलेश यादव भी भाजपा के पैटर्न पर रालोद के अतिरिक्त पिछड़ी जातियों के जनाधार पर आधारित कुछ छोटे दलों का गठबंधन बनाने का एलान कर चुके हैं. संभावना यही है कि भाजपा और सपा चुनाव में आमने सामने होंगे. ये भी तय है कि ये दोनों दल किसी बड़े दल से गठबंधन न करके चुनावी रण में पिछड़ी जातियों के छोटे दलों के गठबंधन की ताकत से अपने-अपने तरकशों को सजाएंगे. दूसरी तरफ ये भी संभावना है कि कांग्रेस और बसपा का भी किसी बड़े दल के साथ गठबंधन नहीं होगा.
भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे यूपी के चार बड़े दलों के बयानों, तेवरों और संकेतों से इनके रुख देखकर प्रतीत होने लगा है कि कौन किसके साथ चुनाव लड़ेगा, कौन अकेला लड़ेगा और किसकी किसके साथ मिलीभगत होगी. बसपा का भाजपा से अप्रत्यक्ष रूप से दोस्ताना रिश्ता बन सकता है. भाजपा से सपा की सीधी लड़ाई में अनुमान है कि बसपा सपा को कमजोर और भाजपा को मजबूत करने की भूमिका निभाए.
कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि भाजपा से बसपा की मिलीभगत में बसपा असदुद्दीन ओवेसी यानी एआईएमआईएम के साथ गठबंधन कर ले. जिससे कि सपा को नुकसान और भाजपा को फायदा पंहुच सकता है. दूसरी तरफ ये भी संभावना है कि भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आज़ाद रावण को सपा के अखिलेश यादव अपने गठबंधन में शामिल करके बसपा को झटका दें.
बसपा यदि एआईएमआईएम के साथ मुस्लिम-दलित जैसी सोशल इंजीनियरिंग की केमिस्ट्री का प्रयोग नहीं भी करती हैं तो ये तय है कि भाजपा के रास्ते आसान और सपा के लिए मुश्किल खड़ी करने के लिए मायावती उन विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम उम्मीदवार खड़े कर सकती हैं जहां सपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हों.
बताया जाता है कि सपा इन तमाम खतरें से बचने और भाजपा को टक्कर देने के लिए चुनाव को अगड़ा वर्सेज पिछड़ा बनाने का प्रयास करेंगे. जिससे ये चुनाव हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के बजाय जातिगत आधार पर केंद्रित हो जाए. यही कारण है कि सपा ने बसपा के विधायकों से रिश्ता कायम किया और विभिन्न जातियों के छोटे दलों के साथ गठबंधन का एलान किया है. साथ ही अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव के प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को भी सपा के गठबंधन में शामिल होने की दावत दी है.
कृषि कानून से नाराज किसानों की भाजपा से नाराजगी का फायदा उठाते हुए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों में पकड़ रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल के लिए सपा पिछली बार की अपेक्षा इस बार ज्यादा सीटें छोड़ेगी. सूत्रों के अनुसार आम आदमी पार्टी के सांसद और यूपी प्रभारी संजय सिंह से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की बातचीत हुई है.
हो सकता है कि दिल्ली से जुड़े यूपी के विधासभा क्षेत्र और संजय सिंह के गृह जनपद इत्यादि में सपा चंद सीटें आप के लिए भी छोड़े. और आप भी सपा के गठबंधन मे शामिल हो. इस गठबंधन के तहत सपा की चुनावी सभाओं में आप के बड़े नेता शामिल हो सकते हैं. चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा सरकार से असंतुष्ट भाजपा समर्थकों को यदि भाजपा का कोई विकल्प चुनना पड़े तो वो आप को प्राथमिकता दे सकते हैं.
ये भी पढ़ें -
क्या चिराग की गलती सिर्फ यही है कि स्पीकर से पहले वो मीडिया में चले गये?
राहुल गांधी अगर कोई HOPE हैं - तो उम्मीद की इंतेहा भी होती है
नवीन जिंदल के भाजपा में शामिल होने की अटकलों में है कितना दम, जानिए...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.