इजरायल फिलिस्तीन संघर्ष पर दुनिया भर की नजरें टिकी हैं. जैसा गतिरोध दोनों मुल्कों के बीच है, चर्चाओं का बाजार गर्म है. माना जा रहा है कि भले ही इजरायल ने हमास के साथ सीजफायर कर लिया हो लेकिन आने वाले दिनों में कोई बड़ी खबर आ सकती है और ऐसा बहुत कुछ हो सकता है जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो. मगर अब जबकि 12 साल बाद पीएम बेंजामिन नेतन्याहू अपने पद से हट रहे हैं और नेफ्ताली बेनेट के पीएम बनने की खबरें जोरों पर हैं तो अंतरराष्ट्रीय राजनीति को समझने वाले राजनीतिक पंडितों का कयास यही है कि अब फिलिस्तीन के प्रति इजरायल और ज्यादा सख्त रवैया अपनाएगा. बात सीधी और साफ है इजरायल में लोगों के बीच राष्ट्रवाद की भावना इतनी प्रबल है कि सत्ता शीर्ष पर जो भी बैठेगा, फिलिस्तीन और हमास के लिए उनका इशारा एक ही होगा. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. वो तमाम लोग जिनका मानना है कि इजरायल का अगला प्रधानमंत्र फिलिस्तीन के प्रति 'लिबरल' होगा और दो मुल्कों के बीच जारी विवाद और तमाम तरह के गतोरोध को मेज पर बैठकर हल करेगा उन्हें अपने विचार बदलने की जरूरत है. बताते चलें कि इजरायल का अगला प्रधाननमंत्री कहीं से भी नर्म रुख नहीं अपनाएगा.
हमारे द्वारा कही ये तमाम बातें तब और प्रबल साबित होती हैं जब हम उस इशारे का अवलोकन करते हैं जो इजरायल के लीडर ऑफ अपोजीशन येर लापिद ने दिया है. येर लापिद में राष्ट्रपति रूवेन रिवलिन के सामने तर्क पेश किया है और कहा है कि उनके पास गठबंधन सरकार बनाने के लिए पर्याप्त समर्थन है. लापिद ने अभी से ये भी स्पष्ट कर दिया है कि अगले प्रधानमंत्री नेफ्ताली बेनेट होंगे जिनकी फिलिस्तीन और हमास के प्रति नीति ईंट का जवाब पत्थर से देने वाली...
इजरायल फिलिस्तीन संघर्ष पर दुनिया भर की नजरें टिकी हैं. जैसा गतिरोध दोनों मुल्कों के बीच है, चर्चाओं का बाजार गर्म है. माना जा रहा है कि भले ही इजरायल ने हमास के साथ सीजफायर कर लिया हो लेकिन आने वाले दिनों में कोई बड़ी खबर आ सकती है और ऐसा बहुत कुछ हो सकता है जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो. मगर अब जबकि 12 साल बाद पीएम बेंजामिन नेतन्याहू अपने पद से हट रहे हैं और नेफ्ताली बेनेट के पीएम बनने की खबरें जोरों पर हैं तो अंतरराष्ट्रीय राजनीति को समझने वाले राजनीतिक पंडितों का कयास यही है कि अब फिलिस्तीन के प्रति इजरायल और ज्यादा सख्त रवैया अपनाएगा. बात सीधी और साफ है इजरायल में लोगों के बीच राष्ट्रवाद की भावना इतनी प्रबल है कि सत्ता शीर्ष पर जो भी बैठेगा, फिलिस्तीन और हमास के लिए उनका इशारा एक ही होगा. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. वो तमाम लोग जिनका मानना है कि इजरायल का अगला प्रधानमंत्र फिलिस्तीन के प्रति 'लिबरल' होगा और दो मुल्कों के बीच जारी विवाद और तमाम तरह के गतोरोध को मेज पर बैठकर हल करेगा उन्हें अपने विचार बदलने की जरूरत है. बताते चलें कि इजरायल का अगला प्रधाननमंत्री कहीं से भी नर्म रुख नहीं अपनाएगा.
हमारे द्वारा कही ये तमाम बातें तब और प्रबल साबित होती हैं जब हम उस इशारे का अवलोकन करते हैं जो इजरायल के लीडर ऑफ अपोजीशन येर लापिद ने दिया है. येर लापिद में राष्ट्रपति रूवेन रिवलिन के सामने तर्क पेश किया है और कहा है कि उनके पास गठबंधन सरकार बनाने के लिए पर्याप्त समर्थन है. लापिद ने अभी से ये भी स्पष्ट कर दिया है कि अगले प्रधानमंत्री नेफ्ताली बेनेट होंगे जिनकी फिलिस्तीन और हमास के प्रति नीति ईंट का जवाब पत्थर से देने वाली होगी.
गौरतलब है कि इजरायल में मार्च में हुए चुनाव में बेंजामिन नेतन्याहू की पार्टी बहुमत के आंकड़े को नहीं छू पाई थी. उसके बाद से ही विपक्षी पार्टियों के बीच सत्ता को लेकर घमासान चल रहा था. सबसे बड़ी पार्टी के नेता होने के नाते नेतन्याहू को प्रधनमंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी. हालांकि, वे बहुमत साबित नहीं कर पाए थे. अब विपक्षी पार्टियों में सहमति बन जाने के कारण उनका जाना लगभग तय हो गया है.
नेतन्याहू अब तक क्यों थे सत्ता पर काबिज
एक लंबे समय तक क्यों बेंजामिन नेतन्याहू रहे? यूं तो इसपर तमाम तरह के तर्क दिए जा सकते हैं. मगर सत्ता संभालने की जो सबसे बड़ी वजह उनके पीछे रही, वो थी उनका वो रवैया जो फिलिस्तीन और मिडिल ईस्ट के प्रति था. जैसे पूर्व के चुनावों में नेतन्याहू और उनकी पार्टी को सफलता मिली इजरायल के लोगों में एक विश्वास पैदा हो गया था कि नेतन्याहू ही वो राजनेता हैं जो इजरायल को फिलिस्तीन और मिडिल ईस्ट को महफूज रख सकते हैं.
जैसी कार्यप्रणाली नेतन्याहू की थी वो अपने लोगों की उम्मीदों पर खरे भी उतरे. फिलिस्तीन को लेकर कोई भी शांति समझौता हुआ हो उस दौरान नेतान्याहू ने इजरायल की सुरक्षा को सर्वोपरि माना और हमेशा ही फिलिस्तीन पर सख्त रहे.
हमास से सीजफायर के फौरन बाद इजरायल की सत्ता की कमान अब चूंकि नेफ्ताली बेनेट के पास जाएगी इसलिए बताते चलें कि नेफ्ताली बेनेट एक पूर्व टेक उद्यमी रह चुके हैं. साथ गई इनका शुमार इजरायल के रईसों में होता है मगर इन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत नेतन्याहू के साथ ही की. ध्यान रहे कि नेफ्ताली का शुमार इजरायल के घोर दक्षिणपंथी राजनेताओं में है जो हमेशा से ही वेस्ट बैंक पर पूर्ण कब्जे के पक्षधर रहे हैं.
बेनेट ने नेतन्याहू के साथ 2006 और 2008 के बीच एक वरिष्ठ सहयोगी के रूप में काम किया. बाद में उनके आपसी रिश्ते खराब हो गए और उन्होंने नेतन्याहू का साथ छोड़ दिया. बेनेट दक्षिणपंथी राष्ट्रीय धार्मिक ‘यहूदी होम पार्टी’ में शामिल हुए और 2013 में बेनेट यहूदी होम पार्टी’ के प्रतिनिधि के रूप में संसद में पहुंचे.
नेतन्याहू से ज्यादा कट्टर हैं बेनेट
बात सोच की हो तो घोर दक्षिणपंथी होने के कारण बेनेट को नेतन्याहू से कहीं ज्यादा कट्टर और राष्ट्रवादी समझा जाता है. बेनेट का मानना है कि वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम और गोलान हाइट्स यहूदियों का है जिसे हर सूरत में इजरायल में किया जाना चाहिए. इजरायल फिलिस्तीन गतिरोध जोरों पर है तो इस बात को भी समझ लेना चाहिए कि उन्होंने हमेशा ही फिलिस्तीनी कट्टरपंथियों पर सख्त रुख रखा है. बेनेट का मानना है कि फिलिस्तीनी कट्टरपंथियों के लिए बस एक सजा है और वो केवल और केवल मौत है.
माना जा रहा है कि बेनेट के पीएम बनने के बाद इजरायल फिलिस्तीन के मद्देनजर शांति की गुंजाइश कम रहेगी और टकराव जोरों पर होगा.
बहरहाल बेनेट के पीएम बनने के बाद इजरायल फिलिस्तीन का टकराव कम होता है या इसे हम और उग्र रूप में देखेंगे इसका जवाब वक़्त देगा लेकिन जो वर्तमान है और जैसा रवैया बयानों के जरिये बेनेट का फिलिस्तीन और हमास के प्रति रहा है कहना गलत नहीं है कि यदि नेतन्याहू उन्नीस थे तो बेनेट इजरायल में 20 ही साबित होंगे.
अंत में बस इतना ही कि कल अगर हम इजरायल और फिलिस्तीन के बीच फिर युद्ध की स्थिति बनते देख लें और हमास का खात्मा हो जाए तो हमें बिल्कुल भी हैरत नहीं करनी चाहिए.
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