ऊना में जश्न-ए-आजादी को दलित समुदाय के लोग ज्यादा देर तक याद भी नहीं कर पाये. हमले के महीने भर बाद जश्न मना कर लौटते वक्त दलितों पर फिर से हमला हुआ.
दलितों पर हो रहे ये हमले बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ा रहे हैं. डैमेज कंट्रोल के लिए अब संघ प्रमुख मोहन भागवत को खुद आगे आना पड़ा है.
ऊना का आगरा कनेक्शन
ऊना में दलितों पर लगातार दो हमलों ने हिंदुओं को एकजुट रखने की संघ की अब तक की सारी रणनीतियां ध्वस्त कर दी हैं. संघ का एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान का फॉर्मूला भी फेल हो चुका है.
इसे भी पढ़ें: ऊना क्रांति के पीछे की असली सियासत
संघ प्रमुख मोहन भागवत के लिए आगरा में दलित लंच का आयोजन इसी कड़ी में ताजा कोशिश है. इससे पहले बीजेपी अध्यक्ष दलित स्नान और दलित लंच कर चुके हैं - लेकिन बात बनती नहीं नजर आ रही, सिवा बीएसपी छोड़ कर स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी ज्वाइन करने के.
भागवत के लंच के लिए आगरा शहर का चुना जाना भी दिलचस्प लगता है. 31 जुलाई को धम्म चक्र यात्रा के बीच आगरा में दलितों की रैली कराई जानी थी, लेकिन ऊना से उपजे उनके गुस्से को देखते हुए आखिरी वक्त में उसे रद्द करना पड़ा. लगता है उसी की भरपाई के लिए संघ प्रमुख के दलित लंच के लिए आगरा शहर चुना गया.
भागवत के लिए जिस दलित का घर सेलेक्ट हुआ उसका आगरा में जूते का कारखाना है. भागवत के होस्ट, राजेंद्र चौधरी खुद भी आरएसएस कार्यकर्ता हैं.
बीजेपी की मुश्किल से संघ की फिक्र... ऊना में जश्न-ए-आजादी को दलित समुदाय के लोग ज्यादा देर तक याद भी नहीं कर पाये. हमले के महीने भर बाद जश्न मना कर लौटते वक्त दलितों पर फिर से हमला हुआ. दलितों पर हो रहे ये हमले बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ा रहे हैं. डैमेज कंट्रोल के लिए अब संघ प्रमुख मोहन भागवत को खुद आगे आना पड़ा है. ऊना का आगरा कनेक्शन ऊना में दलितों पर लगातार दो हमलों ने हिंदुओं को एकजुट रखने की संघ की अब तक की सारी रणनीतियां ध्वस्त कर दी हैं. संघ का एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान का फॉर्मूला भी फेल हो चुका है. इसे भी पढ़ें: ऊना क्रांति के पीछे की असली सियासत संघ प्रमुख मोहन भागवत के लिए आगरा में दलित लंच का आयोजन इसी कड़ी में ताजा कोशिश है. इससे पहले बीजेपी अध्यक्ष दलित स्नान और दलित लंच कर चुके हैं - लेकिन बात बनती नहीं नजर आ रही, सिवा बीएसपी छोड़ कर स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी ज्वाइन करने के. भागवत के लंच के लिए आगरा शहर का चुना जाना भी दिलचस्प लगता है. 31 जुलाई को धम्म चक्र यात्रा के बीच आगरा में दलितों की रैली कराई जानी थी, लेकिन ऊना से उपजे उनके गुस्से को देखते हुए आखिरी वक्त में उसे रद्द करना पड़ा. लगता है उसी की भरपाई के लिए संघ प्रमुख के दलित लंच के लिए आगरा शहर चुना गया. भागवत के लिए जिस दलित का घर सेलेक्ट हुआ उसका आगरा में जूते का कारखाना है. भागवत के होस्ट, राजेंद्र चौधरी खुद भी आरएसएस कार्यकर्ता हैं.
यूपी चुनाव के लिए बीजेपी दलितों से जुड़ने के सारे तिकड़म अपना रही है. इससे पहले अमित शाह ने भी बनारस में एक दलित के घर लंच किया था, लेकिन खाने से ज्यादा उनके पानी की चर्चा हो गयी. ये भूल सुधार तो नहीं अंबेडकर हिंदू समाज को एक मिथक के तौर पर देखते थे, क्योंकि उनकी नजर में हिंदू तभी एकजुट होते हैं जब उन्हें मुसलमानों से लड़ना होता है. ध्रुवीकरण की राजनीति में ये ऑब्जर्वेशन आज भी फिट बैठता है. इसे भी पढ़ें: टक्कर मुलायम से और बीजेपी सेंध लगा रही मायावती के वोट बैंक में! क्या हो जब ध्रुवीकरण का फॉर्मूला भी फेल हो जाये? न वोट मिले, न धर्मांतरण रुके - और घर वापसी में भी नतीजे कम और बदनामी ज्यादा मिले. बिहार चुनाव के दौरान जब दादरी पर बवाल मचा था तभी संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात कर दी. बीजेपी ने इससे दूरी बनाने की कोशिश की लेकिन तब तक काम लग चुका था. ऐसे में जबकि विरोधी बीजेपी को दलित विरोधी ठहरा रहे हैं, ऊना मार्च से लौट रहे दलितों पर दोबारा हमला उसके लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है. अमित शाह के दलित स्नान और दलित राखी के बाद दलित लंच के लिए भागवत का खुद आगे आना भूल सुधार की कोशिश लगती है. भूल सुधार बहुत अच्छी बात है, शर्त सिर्फ इतनी है कि उसके पीछे मंशा थोड़ी साफ हो - क्योंकि हर किसी को केजरीवाल की तरह माफी नहीं मिलती. इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |