Bharat Bandh 2020 हां तो भइया कृषि बिल 2020 को लेकर मचा सियासी घमासान अपने नेक्स्ट लेवल पर आ गया है. भारत बंद के रूप में वो घड़ी आ ही गई जिसका अंदाजा देश को उसी वक़्त लग गया था जब किसानों ने सरकार के ख़िलाफ़ (Farmers Opposing Farm Bill 2020) इस विद्रोह की शुरुआत की थी. मामला कुछ इस हद तक टिपिकल है कि सरकार और किसान एक दूसरे के आमने सामने हैं और दोनों में से कोई भी एक झुकने को तैयार नहीं है. कृषि बिल पर सरकार का रुख स्पष्ट है पीएम मोदी और उनके अंत्री मंत्री पहले ही इस बात को कह चुके हैं कि कानून वापस नहीं लिया जाएगा हां अलबत्ता अगर बातचीत हुई तो इस कानून में आवश्यक संशोधन अवश्य किये जा सकते हैं. बंद हम देख चुके हैं और इस बंद पर जैसा जनता का रुख है जो कथित राष्ट्रवादी हैं वो तो सरकार और मोदी के साथ हैं वहीं जो विरोधी हैं उनका एजेंडा तो हम देख ही रहे हैं. इनकी अपनी तख्ती है. अपने बैनर पोस्टर हैं और देश और देश की सरकार को नीचा दिखाने के लिए आगे क्या करना है इसपर रणनीति बनाई जा रही है. 'भारत बंद' देखकर जो सबसे पहला सवाल दिमाग में आता है वो ये कि, 'तो क्या ये बंद सफल हुआ?' जवाब है भारत बंद उतना ही कामयाब है जितना 70 सालों तक देश में शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी (Congress Party on Bharat Bandh).
टेंशन काहे का. जिसको जो चाहिए था वो मिला मतलब जो पान और गुटखे का शौक़ीन था उसे पान की दुकान खुली मिली. जिसे बच्चों के लिए दूध पिलाना था उसने गाड़ी उठाई आराम से बच्चों के लिएदूध के पैकेट खरीदे. किसी और का क्या कहें मैं खुद घूमते हुए बाजार गया 10 रुपए की धनिया ली 5 रुपए के हरी मिर्चें और पूरा पाव भर नींबू तौलाया. सच कहूं तो बाजार में उतनी ही...
Bharat Bandh 2020 हां तो भइया कृषि बिल 2020 को लेकर मचा सियासी घमासान अपने नेक्स्ट लेवल पर आ गया है. भारत बंद के रूप में वो घड़ी आ ही गई जिसका अंदाजा देश को उसी वक़्त लग गया था जब किसानों ने सरकार के ख़िलाफ़ (Farmers Opposing Farm Bill 2020) इस विद्रोह की शुरुआत की थी. मामला कुछ इस हद तक टिपिकल है कि सरकार और किसान एक दूसरे के आमने सामने हैं और दोनों में से कोई भी एक झुकने को तैयार नहीं है. कृषि बिल पर सरकार का रुख स्पष्ट है पीएम मोदी और उनके अंत्री मंत्री पहले ही इस बात को कह चुके हैं कि कानून वापस नहीं लिया जाएगा हां अलबत्ता अगर बातचीत हुई तो इस कानून में आवश्यक संशोधन अवश्य किये जा सकते हैं. बंद हम देख चुके हैं और इस बंद पर जैसा जनता का रुख है जो कथित राष्ट्रवादी हैं वो तो सरकार और मोदी के साथ हैं वहीं जो विरोधी हैं उनका एजेंडा तो हम देख ही रहे हैं. इनकी अपनी तख्ती है. अपने बैनर पोस्टर हैं और देश और देश की सरकार को नीचा दिखाने के लिए आगे क्या करना है इसपर रणनीति बनाई जा रही है. 'भारत बंद' देखकर जो सबसे पहला सवाल दिमाग में आता है वो ये कि, 'तो क्या ये बंद सफल हुआ?' जवाब है भारत बंद उतना ही कामयाब है जितना 70 सालों तक देश में शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी (Congress Party on Bharat Bandh).
टेंशन काहे का. जिसको जो चाहिए था वो मिला मतलब जो पान और गुटखे का शौक़ीन था उसे पान की दुकान खुली मिली. जिसे बच्चों के लिए दूध पिलाना था उसने गाड़ी उठाई आराम से बच्चों के लिएदूध के पैकेट खरीदे. किसी और का क्या कहें मैं खुद घूमते हुए बाजार गया 10 रुपए की धनिया ली 5 रुपए के हरी मिर्चें और पूरा पाव भर नींबू तौलाया. सच कहूं तो बाजार में उतनी ही रौनक थी जितनी आम दिनों में रहती है. चाय की दुकानों पर बूढ़े बैठे पेपर पढ़ रहे थे तो वहीं उन बुड्ढों से बचते हुए देश का भविष्य यानी युवा सिगरेट के छल्ले बना रहा था.
भले ही भारत बंद के नाम पर छुटपुट हिंसा हुई हो. पुलिस को हल्के फुल्के बल का प्रयोग करना पड़ा हो मगर जो ये कहें कि बन्द सफल रहा तो By God की कसम वो या तो बहुत क्यूट है या फिर हद दर्जे का मूर्ख. उपरोक्त पंक्तियों में पहला पैरा फिर से पढ़िए. हमने इस बंद की तुलना कांग्रेस पार्टी से की है और ये सब यूं ही नहीं है न इसके पीछे कोई लफ्फाजी है.
वो राहुल गांधी जो अभी कुछ दिन पहले तक पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ महंगे सोफे जड़े ट्रेक्टर से किसान आंदोलन के नाम पर सैर सपाटा कर रहे थे गायब हैं. इसी तरह प्रियंका गांधी भी अज्ञातवास में हैं. वहीं जब बात कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी की हो तो वो भी सन्नाटे में हैं. मतलब ख़ुद सोचिए कहां जा रही है देश की सियासत? एक ऐसे समय में जब कांग्रेस को किसान आंदोलन के रूप में पका पकाया खाना थाली में सजाकर मिला हो और कांग्रेस को सिर्फ उसे खाना हो जिसे खाने में वो नाकाम साबित हुई हो तो फिर क्या ही कहा जाएगा.
नहीं साहब ऐसे थोड़े ही न राजनीति होती है. इतना बड़ा मुद्दा था अगर राहुल गांधी ने ढंग से कैश किया होता तो 24 नहीं तो फिर उसके बाद वाले आम चुनाव में तो पीएम बन ही जाते.
जैसा कि हमने कहा इस बंद को लोगों ने वैसे ही लिया जैसे कांग्रेस को. खुद सवाल करिये अपने आप से कि आखिर कहां कहां है कांग्रेस पार्टी की सरकार? जवाब आएगा कि इक्का दुक्का राज्यों में. अरे तो मेरे भाई इस बन्द का भी तो कुछ ऐसा ही सीन है. अगर कामयाब हुआ भी तो इक्का दुक्का जगहों पर. वो भी ऐसी जगहें जहां के लिए इंटरेस्ट न तो देश के नेताओं को है और न ही सोशल मीडिया पर बैठे ट्विटर और फेसबुक के वीरों को.
देखिए बात बहुत सीधी और एकदम साफ है. न तो हम देश के प्रदर्शनकारी किसानों के समर्थन में हैं और न ही उनके विरोध में. मगर इस तरह बंद के नाम पर देश और देश की जनता को प्रभावित और प्रताड़ित करना भी जस्टिफाई नहीं किया जा सकता. जिन जगहों पर भी ये बंद बकौल प्रदर्शनकारी सफल हुआ, उन उन स्थानों पर आप जनता से पूछिए की उन्हें किन दुश्वारियों का सामना करना पड़ा पचासों बातें होंगी जो निकल कर बाहर आएंगी जो ये साबित करने के लिए पर्याप्त होंगी कि ये बंद टोटल टाइम वेस्ट था. कुल मिलाकर हमारी आपत्ति का सबब ये बंद ही है. अगर भारत बंद हो रहा है तो बंद का समर्थन करने वाले लोग सबसे पहले तो अपने आप में ये काबिलियत लाएं कि ये बंद लोगों को एकजुट करे. ये क्या बात हुई कि कहीं पर आदमी पानी पूरी खा रहा है तो कहीं पर उसे मामूली से सिर दर्द की गोली नहीं मिल रही.
जिस हिसाब से ये 8 दिसंबर 2020 का बंद रहा है तमाम कमियां हैं जो इसमें दिख रही हैं. लोग वैसे ही एकजुट नहीं हुए, जैसे राहुल गांधी के चलते कांग्रेस पार्टी लोगों को एकजुट नहीं कर पा रही है. इसके अलावा ये बंद दिशाहीन रहा. दिशाहीन से याद आया कि 19 के आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने भी कई अलग अलग मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ा और नतीजा क्या हुआ वो न आपसे छिपा है न हमसे.
बहरहाल सरकार कृषि बिल के साथ क्या करती है? किसान इस मुद्दे पर अभी आगे और क्या करते हैं? सवाल तो कई हैं जिनके जवाब जानने के लिए हमें समय पर नजर रखनी होगी। समय ही हमें ये बताएगा कि इस बार ऊंट किस करवट बैठेगा? बैठेगा भी या फिर वो बैठने से साफ़ मना कर देगा. बस थोड़ा सा इंतजार जवाब सारे ही मिलेंगे.
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