जब हर तरफ से विरोध के स्वर फूट रहे हों, किसी कोने से निकले तारीफ बड़ा सहारा होते हैं. ये शब्द भले ही राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लिए तिनके के सहारे जैसे हों - और ये भी जरूरी नहीं है कि ये सब डूबने से बचा पाएंगे भी या नहीं? लेकिन कुछ देर के लिए राहत तो दे ही सकते हैं.
यात्रा के अलावा भी थोड़ी थकान तो मिटा ही सकते हैं. सफर पर नये सिरे से फिर से उठ कर चलने का हौसला तो दे ही सकते हैं.
राहुल गांधी के लिए चंपत राय (Champat Rai) की बातें करीब करीब उतनी ही मायने रखती हैं, जितनी संजय राउत की तरफ से दिल खोल कर की गयी तारीफ. लेकिन भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) को लेकर रामलला मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास की राहुल गांधी को शुभकामनाएं, अखिलेश यादव के मजबूर होकर शुक्रिया अदा करने जैसी तो नहीं ही लगती हैं.
राहुल गांधी जिस सफर पर निकले हैं, उसमें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से लेकर बिहार के सीएम नीतीश कुमार तक सभी के रिएक्शन बहुत मायने रखते हैं. समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव से लेकर बीएसपी नेता मायावती तक सभी की प्रतिक्रिया भी वैसे ही मायने रखती है - और उससे भी ज्यादा अहम है भारत जोड़ो यात्रा से जुड़ी चीजों को देखने का राहुल गांधी का अपना नजरिया, और ऐसे हर मुद्दे पर प्रेस कांफ्रेंस करके अपना पक्ष रखना भी.
सड़क पर उतर कर तीन महीने की मशक्कत से राहुल गांधी ने ये तो साफ कर ही दिया है कि कोई उनसे प्यार करे या नफरत - राहुल गांधी को इग्नोर भले ही किया जाये, लेकिन कांग्रेस को ज्यादा दिन तक नजरअंदाज नहीं किया जा सकेगा.
क्षेत्रीय दलों की विचारधारा को लेकर राहुल गांधी की टिप्पणी के बावजूद, प्रेस कांफ्रेंस में नाम लेकर समाजवादी पार्टी को डाउनप्ले करने के बाद भी अगर अखिलेश यादव अपने स्टैंड से यू टर्न लेते हैं, और चिट्ठी लिख कर राहुल गांधी को शुक्रिया कहते हैं तो इसे राहुल गांधी और कांग्रेस की उपलब्धियों में ही दर्ज किया जाएगा.
2022 के आखिरी तीन महीने में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के...
जब हर तरफ से विरोध के स्वर फूट रहे हों, किसी कोने से निकले तारीफ बड़ा सहारा होते हैं. ये शब्द भले ही राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लिए तिनके के सहारे जैसे हों - और ये भी जरूरी नहीं है कि ये सब डूबने से बचा पाएंगे भी या नहीं? लेकिन कुछ देर के लिए राहत तो दे ही सकते हैं.
यात्रा के अलावा भी थोड़ी थकान तो मिटा ही सकते हैं. सफर पर नये सिरे से फिर से उठ कर चलने का हौसला तो दे ही सकते हैं.
राहुल गांधी के लिए चंपत राय (Champat Rai) की बातें करीब करीब उतनी ही मायने रखती हैं, जितनी संजय राउत की तरफ से दिल खोल कर की गयी तारीफ. लेकिन भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) को लेकर रामलला मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास की राहुल गांधी को शुभकामनाएं, अखिलेश यादव के मजबूर होकर शुक्रिया अदा करने जैसी तो नहीं ही लगती हैं.
राहुल गांधी जिस सफर पर निकले हैं, उसमें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से लेकर बिहार के सीएम नीतीश कुमार तक सभी के रिएक्शन बहुत मायने रखते हैं. समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव से लेकर बीएसपी नेता मायावती तक सभी की प्रतिक्रिया भी वैसे ही मायने रखती है - और उससे भी ज्यादा अहम है भारत जोड़ो यात्रा से जुड़ी चीजों को देखने का राहुल गांधी का अपना नजरिया, और ऐसे हर मुद्दे पर प्रेस कांफ्रेंस करके अपना पक्ष रखना भी.
सड़क पर उतर कर तीन महीने की मशक्कत से राहुल गांधी ने ये तो साफ कर ही दिया है कि कोई उनसे प्यार करे या नफरत - राहुल गांधी को इग्नोर भले ही किया जाये, लेकिन कांग्रेस को ज्यादा दिन तक नजरअंदाज नहीं किया जा सकेगा.
क्षेत्रीय दलों की विचारधारा को लेकर राहुल गांधी की टिप्पणी के बावजूद, प्रेस कांफ्रेंस में नाम लेकर समाजवादी पार्टी को डाउनप्ले करने के बाद भी अगर अखिलेश यादव अपने स्टैंड से यू टर्न लेते हैं, और चिट्ठी लिख कर राहुल गांधी को शुक्रिया कहते हैं तो इसे राहुल गांधी और कांग्रेस की उपलब्धियों में ही दर्ज किया जाएगा.
2022 के आखिरी तीन महीने में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के जरिये जो फसल बोयी है, 2023 में ही उसे काट भी सकते हैं. इसी साल नौ राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं. त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय को छोड़ भी दें तो कांग्रेस के लिए कर्नाटक और साल के आखिर में होने वाले राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव ज्यादा महत्वपूर्ण हैं.
लेकिन अभी से ये नहीं मान कर चला जा सकता कि राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के जरिये 2024 के आम चुनाव के लिए भी सारे बंदोबस्त कर दिये हैं. या कोई पुख्ता इंतजाम कर चुके हैं. हिमाचल प्रदेश चुनाव के नतीजे खुश होने के गालिब ख्याल से ज्यादा कुछ नहीं हैं. जैसे बीजेपी गुजरात की जीत पर ज्यादा फोकस कर हिमाचल प्रदेश की हार से ध्यान हटाने की कोशिश कर रही है, कांग्रेस भी चाहे तो हिमाचल प्रदेश की जीत का बार बार जिक्र कर, बीते दिनों की हार का गम भुलाने की कोशिश कर सकती है - और ऐसा करके राहुल गांधी कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नये सिरे से जोश भर सकते हैं.
भारत जोड़ो यात्रा के जरिये राहुल गांधी ने अब तक जो कुछ पाया है, ऐसे तो नहीं कहा जा सकता कि थोड़ा है, और थोड़े की जरूरत है. राहुल गांधी के केस में ये कहना ही बेहतर होगा कि थोड़ा तो मिल गया है, लेकिन ज्यादा मिलना बाकी है.
और ये यूं ही नहीं मिलने वाला है, ये पाने के लिए अभी बहुत पापड़ बेलने पड़ेंगे - संतोष की बात ये तो है ही कि राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए नया साल नयी उम्मीदें लेकर जरूर आया है. बल्कि ये कहें कि राहुल गांधी ने नये साल में राजनीति के प्रति खुद के गंभीर न होने की धारणा को बदलने की कुछ न कुछ कोशिश तो की ही है.
लेकिन भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी ने जो सबसे बड़ी बात सीखी है, वो है - हेडलाइन मैनेजमेंट. राहुल गांधी अक्सर कह भी रहे हैं, और ये कोशिश भी है कि ऐसी कोई हेडलाइन न बन सके जो पूरी तरह खिलाफ जाती हो. टी-शर्ट के मुद्दे को हैंडल किया जाना ऐसा ही एक उदाहरण है. टी शर्ट का जिक्र तो नहीं खत्म हुआ है, लेकिन ये तो है ही कि पहले की तरह विवाद तो नहीं ही हो रहा है.
एक महत्वपूर्ण बात और, राहुल गांधी मीडिया को मसाल देना भी काफी हद तक सीख चुके लगते हैं - क्योंकि भारत जोड़ो यात्रा में अगर वो किसी से गले मिलते हैं तो पलट कर किसी और से मुखातिब होते हुए आंख नहीं मारते!
चंपत राय की बातों को राहुल गांधी कैसे लेते हैं
विपक्षी खेमे के ज्यादातर नेता भारत जोड़ो यात्रा से दूर ही रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी को लेकर कुछ विपक्षी नेताओं का नजरिया बदला जरूर है - और दूसरी छोर से रामलला मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास के बाद चंपत राय की राय तो एक पल के लिए ज्यादा ही मायने रखती है.
फैजाबाद सर्किट हाउस में मीडिया ने जब श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय से भारत जोड़ो यात्रा पर उनकी राय जाननी चाही, तो जो कुछ सुनने को मिला उसकी शायद ही किसी को उम्मीद रही हो.
सवाल सुनते ही चंपत राय कहने लगे, 'देश में पैदल चल रहे एक युवक का मैं आभार व्यक्त करता हूं... मैं उसके इस कदम की सराहना करता हूं... इसमें कुछ भी गलत नहीं है.'
निश्चित तौर पर चंपत राय का रिएक्शन, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया जैसा तो नहीं रहा. मनसुख मांडविया की चिट्ठी को कांग्रेस ने जहां भारत जोड़ो यात्रा को रोकने की कोशिश के तौर पर बताया गया, चंपत राय की बातें तो कांग्रेस के रणनीतिकारों का हौसला ही बढ़ाने वाली हैं. भले ही हिंदू संगठनों या विश्व हिंदू परिषद की तरफ से चंपत राय की बातों को निजी विचारों के दायरे में डाल दिया जाये, लेकिन लोगों के लिए एक बार सोचने से तो नहीं ही रोका जा सकता.
और लगे हाथ चंपत राय की तरफ से ये कहा जाना कि जिनके प्रति राहुल गांधी लगातार हमलावर हैं, उनमें से किसी ने भारत जोड़ो यात्रा की आलोचना तो की नहीं है. चंपत राय कहते हैं, 'मैं आरएसएस का कार्यकर्ता हूं और आरएसएस कभी भी भारत जोड़ो यात्रा की निंदा नहीं करता.' ऐसी ही बात चंपत राय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर भी कही है.
चंपत राय की तारीफ का एक पक्ष ये भी है कि राहुल गांधी को वो एक तरीके से सोचने पर मजबूर भी कर रहे हैं. अगर संघ या मोदी भारत जोड़ो यात्रा पर रिएक्ट नहीं कर रहे हैं, तो इसका मतलब ये नहीं हुआ कि वे मन ही मन सपोर्ट कर रहे हों. ऐसा भी तो हो सकता है कि वे प्रतिक्रिया देकर मान्यता नहीं देना चाहते.
अदानी ग्रुप के मुखिया गौतम अदानी ने भी राहुल गांधी की बातों पर ऐसे ही रिएक्ट किया है. राहुल गांधी के हमलों के बीच गौतम अदानी ने राजीव गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक की दिल खोल कर तारीफ की है. गौतम अदानी का कहना है कि ये ही वे रहे जिनकी नीतियों की बदौलन उनके कारोबार की नींव पड़ी.
और बदले में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा कह रही हैं कि उनका भाई योद्धा है. जब प्रियंका गांधी ये कहती हैं कि राहुल गांधी को अंबानी और अदानी खरीद नहीं सके, तो वो कांग्रेस के राजनीतिक विरोधियों के लिए कह रही हैं कि दोनों उद्योगपतियों ने सबको खरीद लिया है. इंडिया टुडे साथ इंटरव्यू में गौतम अदानी एनडीटीवी में लक्ष्मण रेखा की भी बात कर चुके हैं, लेकिन प्रियंका गांधी का इल्जाम है कि वो मीडिया को भी खरीद चुके हैं.
अब सवाल ये है कि राहुल गांधी आखिर चंपत राय की बातों को कैसे ले रहे होंगे. राजनीतिक तौर पर न सही, क्या निजी तौर पर भी राहुल गांधी को चंपत राय की बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता?
चंपत राय की ही तरह श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष गोविंद देव गिरी ने भी भारत जोड़ो यात्रा को स्वागत योग्य बताया है. कहते हैं, भारत माता का नाम लेकर जो भी कुछ करता है... कोई भी हो, हम उसकी सराहना करेंगे... यात्रा से भारत जुड़ रहा है या नहीं - ये तो नहीं पता, लेकिन राष्ट्र को जोड़ना चाहिये.'
मतलब, गोविंद देव गिरी भी भारत को जोड़ने की जरूरत महसूस कर रहे हैं. मतलब ये कि राहुल गांधी सही रास्ते पर चल रहे हैं. मतलब ये कि राहुल गांथी की बातों का कहीं न कहीं, किसी न किसी पर असर तो हो ही रहा है.
अयोध्या में रामलला मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास तो भारत जोड़ो यात्रा के जरिये राहुल गांधी के लिए सफलता की कामना ही करने लगे हैं, 'मेरी शुभकामना है कि आपकी भारत जोड़ो यात्रा मंगलमय हो... आपका जो देश जोड़ने का ख्वाब है, वो पूर्ण हो... जिस लक्ष्य को लेकर आप चल रहे हैं, उसमें आपको सफलता मिले... देश हित में जो भी कार्य कर रहे हैं, वो सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय है.'
क्या राहुल गांधी के प्रति धारणा बदल रही है
अव्वल तो जिस शिवसेना में संजय राउत हैं, वो खुद ही लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर है, लेकिन राहुल गांधी को लेकर उनकी बातें यूं ही दरकिनार नहीं की जा सकतीं - ये बातें भी वैसे ही हैं जैसे नीतीश कुमार जैसे विपक्ष के कुछ नेताओं के बयान और अखिलेश यादव का बदला स्टैंड.
पहले तो यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ये कह कर ताना मारा था कि कांग्रेस और बीजेपी एक जैसी ही हैं - और राहुल गांधी के साथ यात्रा में शामिल होने पर सवाल उठाया था कि बीजेपी को हटाएगा कौन?
राहुल गांधी ने अखिलेश यादव की बातों को काफी गंभीरता से लिया और भारत जोड़ो यात्रा की प्रेस कांफ्रेंस में नाम लेकर यहां तक कह दिया कि ये समाजवादी पार्टी जैसे दलों के वश की बात तो बिलकुल नहीं है - बीजेपी को हटाने का काम सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है, क्योंकि बाकियों के पास राष्ट्रीय विचारधारा नहीं है.
राहुल गांधी की बातों तो अखिलेश यादव को जोरदार पलटवार करना चाहिये था, लेकिन वो तो चिट्ठी लिख कर थैंक यू बोलने लगे हैं, और ये गांधीगिरी जैसा तो बिलकुल नहीं लगता है. चिट्ठी में अखिलेश ने लिखा है, 'प्रिय राहुल जी... भारत जोड़ो यात्रा में निमंत्रण के लिए धन्यवाद और भारत जोड़ो की मुहिम की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं.'
भला और क्या चाहिये, लेकिन अखिलेश यादव उतने पर ही नहीं रुकते. लिखते हैं, 'भारत... भौगोलिक विस्तार से अधिक एक भाव है, जिसमें प्रेम, अहिंसा, करूणा, सहयोग और सौहार्द्र ही वो सकारात्मक तत्व हैं, जो भारत को जोड़ते हैं... आशा है ये यात्रा हमारे देश की इसी समावेशी संस्कृति के संरक्षण के उद्देश्य से अपने लक्ष्य को प्राप्त करेगी.'
शुरुआती ऐंठन को छोड़ दीजिये तो अखिलेश यादव की बातें भी एमके स्टालिन जैसी ही लगने लगी हैं. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन का हाल ही में कहना था कि उनको नहीं लगता कि कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रासंगिकता या अहमियत खो दी है. साथ ही, एमके स्टालिन ने 2024 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी का मुकाबला करने के लिए एक राष्ट्रीय गठबंधन की जरूरत भी बतायी है. स्टालिन की नजर में कांग्रेस पटरी पर लौट रही है, जिसकी देश को जरूरत है - हालांकि, स्टालिन ने पहली बार ऐसा नहीं कहा है, एक अरसे से स्टालिन को राहुल गांधी के मजबूत सपोर्टर के तौर पर देखा जाता रहा है. करीब करीब वैसे ही जैसे सीताराम येचुरी की राहुल गांधी से दोस्ती की बातें की जाती हैं.
और मजबूरी में ही सही, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का साफ तौर पर ये कहना कि उनको राहुल गांधी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार होने से कोई दिक्कत नहीं है - ये सही है कि नीतीश कुमार या जेडीयू की तरफ से कोई भी भारत जोड़ो यात्रा में शामिल नहीं हो रहा है, लेकिन वो खुद भी तो समाधान यात्रा पर निकल रहे हैं.
राहुल गांधी के प्रति विपक्षी खेमे में नेताओं की बदलती धारणा के संकेत के तौर पर ही देखा जाना चाहिये - लेकिन ये बात पक्की तब समझ में आएगी जब एनसीपी नेता शरद पवार और तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी भी ऐसी ही बातें करें.
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