मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विपक्षी एकता का अभियान धीमे ही सही एक सशक्त दिशा में बढ़ रहा है. कम से कम विपक्षी दलों में एक सहमति तो जरुर बनती जा रही है कि भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकीकरण अति आवश्यक है. बिहार के संदर्भ में बात करें तो भाजपा की चिंता यहां लोकसभा चुनाव के बाद यहां होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर है. दरअसल, यहां जदयू, राजद, वामदल, हम के साथ बड़ी राष्टीªय पार्टी कांग्रेस ने मिलकर महागठबंधन तैयार किया है, जिसे भेद पाना भाजपा के लिए मौजूदा समय में बहुत कठिन है.
इन पार्टियों में क्षेत्रीय और जातीय धुव्रीकरण है. भाजपा इनके मुकाबले यहां काफी पीछे है. बहरहाल, भाजपा भी कम रणनीतिकार नहीं है. पार्टी में भी कई चाणक्य हैं जो मुद्दों के सहारे वैतरणी पार कराने की क्षमता रखते हैं. लेकिन, यह मुद्दा बिहार में कहां तक प्रभावी हो पायेगा वह देखने की बात होगी. लेकिन, भाजपा के लिए सबसे बड़ी चिंता बिहार में सीएम चेहरा को लेकर है. इस चेहरे की तलाश कल भी था और आज भी है. जो चेहरे अभी मौजूद हैं, वह पूरी तरह खांटी जमीन नेता के तौर पर खुद को स्थापित नहीं कर पाए हैं.
उनमें जनाधार को समेटने का प्रभाव नहीं है. वैसे नेता नहीं है जिसे देखने के लिए लोग कड़ी धूप में मैदान में डटे रहे. कुछ तो दिल्ली से बिहार में बैठा दिये गये हैं और कुछ अन्य पार्टियों से लिये हुए चेहरे हैं. आप अगर रविशंकर प्रसाद को ही ले लें वह अच्छे वक्ता हैं, सांसद हैं, अधिकतर दिल्ली में नजर आते रहे हैं, उनके साथ जनाधार नहीं है. सुशील मोदी साइड लाइन हैं. शहनवाज हुसैन का भी दिनोदिन कद और भी छोटा किया जा रहा है. विजय सिन्हा जैसे नेता केवल बयानबाजी ही करते हैं जमीनी स्तर पर किसी प्रकार कोई जनाधार नहीं है.
अगर पार्टी टिकट न दे तो चुनाव में जीतना तो कतई संभव नहीं है. सम्राट चैधरी बीजेपी के अध्यक्ष...
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विपक्षी एकता का अभियान धीमे ही सही एक सशक्त दिशा में बढ़ रहा है. कम से कम विपक्षी दलों में एक सहमति तो जरुर बनती जा रही है कि भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकीकरण अति आवश्यक है. बिहार के संदर्भ में बात करें तो भाजपा की चिंता यहां लोकसभा चुनाव के बाद यहां होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर है. दरअसल, यहां जदयू, राजद, वामदल, हम के साथ बड़ी राष्टीªय पार्टी कांग्रेस ने मिलकर महागठबंधन तैयार किया है, जिसे भेद पाना भाजपा के लिए मौजूदा समय में बहुत कठिन है.
इन पार्टियों में क्षेत्रीय और जातीय धुव्रीकरण है. भाजपा इनके मुकाबले यहां काफी पीछे है. बहरहाल, भाजपा भी कम रणनीतिकार नहीं है. पार्टी में भी कई चाणक्य हैं जो मुद्दों के सहारे वैतरणी पार कराने की क्षमता रखते हैं. लेकिन, यह मुद्दा बिहार में कहां तक प्रभावी हो पायेगा वह देखने की बात होगी. लेकिन, भाजपा के लिए सबसे बड़ी चिंता बिहार में सीएम चेहरा को लेकर है. इस चेहरे की तलाश कल भी था और आज भी है. जो चेहरे अभी मौजूद हैं, वह पूरी तरह खांटी जमीन नेता के तौर पर खुद को स्थापित नहीं कर पाए हैं.
उनमें जनाधार को समेटने का प्रभाव नहीं है. वैसे नेता नहीं है जिसे देखने के लिए लोग कड़ी धूप में मैदान में डटे रहे. कुछ तो दिल्ली से बिहार में बैठा दिये गये हैं और कुछ अन्य पार्टियों से लिये हुए चेहरे हैं. आप अगर रविशंकर प्रसाद को ही ले लें वह अच्छे वक्ता हैं, सांसद हैं, अधिकतर दिल्ली में नजर आते रहे हैं, उनके साथ जनाधार नहीं है. सुशील मोदी साइड लाइन हैं. शहनवाज हुसैन का भी दिनोदिन कद और भी छोटा किया जा रहा है. विजय सिन्हा जैसे नेता केवल बयानबाजी ही करते हैं जमीनी स्तर पर किसी प्रकार कोई जनाधार नहीं है.
अगर पार्टी टिकट न दे तो चुनाव में जीतना तो कतई संभव नहीं है. सम्राट चैधरी बीजेपी के अध्यक्ष बनाये गए हैं. चैधरी जी ने राजद में ही राजनीति का ककहरा पढ़ा है. बाद में जदयू और हम होते हुए भाजपा में शामिल हुए. स्वजात में उनकी पकड़ हो सकती है लेकिन, जनाधार के मामले में ये अभी वह फेस नहीं बन पाए हैं जो बिहार में भाजपा को सत्ता पर बैठा दे और यह तब जब महागठबंधन इतनी मजबूत हो.
वहीं इससे इतर महागठबंधन में सबसे बड़ा चेहरा नीतीश कुमार हैं, उसके बाद तेजस्वी यादव भी जातीय जनाधार ही सही लेकिन उन्होंने इतनी लोकप्रियता जरुर हासिल कर ली है कि वह आराम से सीएम बन सकते हैं. राजद सुप्रीमो लालू यादव जैसे नेता भी हैं जो वाक-पटुता से किसी को मोह ले. जबकि, बीजेपी ऐसे नेताओं को दिल्ली से लाकर घुमा रही है जो केवल मनोरंजन कर सकते हैं पार्टी का वोट नहीं जोड़ सकते हैं.
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