फौरी तौर पर दिलासा ही सही, कांग्रेस के लिए एक राहतभरी खबर एक एग्जिट पोल से आ रही है - हालांकि, इस खबर की उम्र अब 24 घंटे से भी कम बची है. 24 अक्टूबर को हरियाणा और महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव के लिए वोटों की गिनती होने वाली है. फिर सच सामने आ जाएगा.
हरियाणा चुनावों से पहले सूबे की कांग्रेस में वैसा ही बदलाव हुआ जैसा 2017 में पंजाब में हुआ था. पंजाब का प्रयोग तो पूरी तरह सफल रहा. इंडिया टुडे-एग्सिस माय इंडिया एग्जिट पोल के मुताबिक तो यही लग रहा है कि हरियाणा में भी पंजाब का इतिहास दोहराया जाने वाला है.
तात्कालिक तौर पर ही सही, ऐसा लग रहा है जैसे हरियाणा में जाट नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा को CM चेहरा और साथ में दलित फेस कुमारी शैलजा को सूबे की कमान सौंप कर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कोई गलती नहीं की, बल्कि, राहुल गांधी की तमाम गलतियों में से एक और सुधार किया है.
क्या हुड्डा 'कैप्टन' बनने वाले हैं?
90 सदस्यों वाली हरियाणा विधानसभा में बहुमत के लिए जादुई नंबर है - 46. 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने हरियाणा में 47 सीटें हासिल कर सरकार बनायी थी. तब तीसरे नंबर पर रही कांग्रेस को महज 15 सीटें मिल पायी थीं, लेकिन इस बार इसमें दो-गुणा या तीन-गुणा से कुछ कम इजाफा हो सकता है. ऐसा सिर्फ एक एग्जिट पोल का अनुमान है.
हरियाणा में कांग्रेस के मुख्यमंत्री उम्मीदवार भूपिंदर सिंह हुड्डा चाहें तो असली नतीजे आने तक पटाखे भी फोड़ सकते हैं - ध्यान रहे सिर्फ हरे वाले. एग्जिट पोल से पहले हुए जन की बात के ओपिनियन पोल में कांग्रेस को पिछली बार के आस पास सीटें मिलने का अंदाजा जताया गया था. ये नंबर भी कांग्रेस में मची उठापटक और बीजेपी के बढ़ते दबदबे के बीच कम नहीं समझा गया.
जहां तक एग्जिट पोल का सवाल है तो, जन की बात के मुताबिक, ताजा चुनाव में बीजेपी को 57, कांग्रेस को 17 और बाकियों को 16 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है. इस हिसाब से तो अब तक लगाये जा रहे अनुमान सही सिद्ध होने वाले लगते हैं...
फौरी तौर पर दिलासा ही सही, कांग्रेस के लिए एक राहतभरी खबर एक एग्जिट पोल से आ रही है - हालांकि, इस खबर की उम्र अब 24 घंटे से भी कम बची है. 24 अक्टूबर को हरियाणा और महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव के लिए वोटों की गिनती होने वाली है. फिर सच सामने आ जाएगा.
हरियाणा चुनावों से पहले सूबे की कांग्रेस में वैसा ही बदलाव हुआ जैसा 2017 में पंजाब में हुआ था. पंजाब का प्रयोग तो पूरी तरह सफल रहा. इंडिया टुडे-एग्सिस माय इंडिया एग्जिट पोल के मुताबिक तो यही लग रहा है कि हरियाणा में भी पंजाब का इतिहास दोहराया जाने वाला है.
तात्कालिक तौर पर ही सही, ऐसा लग रहा है जैसे हरियाणा में जाट नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा को CM चेहरा और साथ में दलित फेस कुमारी शैलजा को सूबे की कमान सौंप कर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कोई गलती नहीं की, बल्कि, राहुल गांधी की तमाम गलतियों में से एक और सुधार किया है.
क्या हुड्डा 'कैप्टन' बनने वाले हैं?
90 सदस्यों वाली हरियाणा विधानसभा में बहुमत के लिए जादुई नंबर है - 46. 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने हरियाणा में 47 सीटें हासिल कर सरकार बनायी थी. तब तीसरे नंबर पर रही कांग्रेस को महज 15 सीटें मिल पायी थीं, लेकिन इस बार इसमें दो-गुणा या तीन-गुणा से कुछ कम इजाफा हो सकता है. ऐसा सिर्फ एक एग्जिट पोल का अनुमान है.
हरियाणा में कांग्रेस के मुख्यमंत्री उम्मीदवार भूपिंदर सिंह हुड्डा चाहें तो असली नतीजे आने तक पटाखे भी फोड़ सकते हैं - ध्यान रहे सिर्फ हरे वाले. एग्जिट पोल से पहले हुए जन की बात के ओपिनियन पोल में कांग्रेस को पिछली बार के आस पास सीटें मिलने का अंदाजा जताया गया था. ये नंबर भी कांग्रेस में मची उठापटक और बीजेपी के बढ़ते दबदबे के बीच कम नहीं समझा गया.
जहां तक एग्जिट पोल का सवाल है तो, जन की बात के मुताबिक, ताजा चुनाव में बीजेपी को 57, कांग्रेस को 17 और बाकियों को 16 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है. इस हिसाब से तो अब तक लगाये जा रहे अनुमान सही सिद्ध होने वाले लगते हैं और मनोहरलाल खट्टर पहले से भी ज्यादा सीटें जीत कर सत्ता में वापसी कर रहे हैं. टाइम्स नाउ और न्यूज एक्स पोलस्टार्ट तो बीजेपी की सीटें उसके स्लोगन 'अबकी बार 75' के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं. टाइम्स नाउ के अनुसार, हरियाणा में बीजेपी को 71, कांग्रेस को 11 और बाकियों को महज 8 सीटें मिलने वाली हैं. न्यूज एक्स पोलस्टार्ट के आंकड़े देखें तो बीजेपी 77 और कांग्रेस के खाते में सिर्फ 11 सीटें आ रही हैं. टीवी 9 भारतवर्ष बीजेपी को इस बार भी 2014 की तरह 47 सीटें मिलने की बात कर रहा है, लेकिन कांग्रेस को 23 और अन्य दलों को 20 सीटें मिलती नजर रही हैं.
इंडिया टुडे-एग्सिस माय इंडिया एग्जिट पोल के अनुसार, मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई वाली बीजेपी को 32 से 44 के बीच सीटें मिल सकती हैं. ये नंबर पिछली बार से भी तीन कम और बहुमत के आंकड़े से भी दो ही कदम दूर है.
सबसे ज्यादा चौंकाने वाला नंबर कांग्रेस को मिल रहा है - 30 से 42 सीटें. मतलब, बीजेपी और कांग्रेस में कम से कम और अधिक से अधिक सीटें मिलने की सूरत में भी फासला महज दो सीटों का ही होने वाला लगता है. जेजेपी के हिस्से में 6 से 10 सीटें आने के अनुमान लगाये जा रहे हैं.
सवाल है कि अगर नतीजे 'इंडिया टुडे-एग्सिस माय इंडिया एग्जिट पोल' के अनुमान के मुताबकि आते हैं तो इसके कौन कौन से कारण हो सकते हैं?
1. मोदी बनाम खट्टर सरकार : पहली वजह तो मनोहर लाल खट्टर सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी फैक्टर भी हो सकता है. माना जाने लगा है कि हरियाणा के लोग केंद्र की मोदी सरकार से तो पूरी तरह खुश हैं, लेकिन खट्टर सरकार को लेकर वे नाराज बताये जा रहे हैं.
2. राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाना : सत्ता विरोधी लहर से वाकिफ तो बीजेपी के रणनीतिकार भी रहे ही और यही वजह रही कि आम चुनाव का कामयाब नुस्खा फिर से आजमाने का फैसला किया गया. बीजेपी नेतृत्व शुरू से ही अनुच्छेद 370, PoK और राष्ट्रीय सुरक्षा के मसला उठाता रहा, लेकिन हो सकता है लोक सभा चुनाव के उलट हरियाणा के लोगों ने स्थानीय मुद्दों और जाति फैक्टर को तरजीह दे डाली हो.
3. जाट फैक्टर कितना असरदार : बीजेपी ने पिछली बार से ही जाट राजनीतिक को हाशिये पर रखने की कोशिश की. कांग्रेस तो जाट राजनीति के बूते ही चुनाव मैदान में कूदी थी. हालांकि, दोनों दलों के टिकट बंटवारे में वैसा कोई बड़ा फासला नहीं रहा. बीजेपी ने महज 20 जाट उम्मीदवार मैदान में उतारे थे तो कांग्रेस ने 29 नेताओं को प्रत्याशी बनाया था.
4. 'इंडिया शाइनिंग' रिटर्न्स : एक वजह कार्यकर्ताओं का अति-आत्मविश्वास भी हो सकता है. लोक सभा चुनाव में सारी सीटें हथिया लेने के बाद बीजेपी कार्यकर्ता शायद थोड़े ठंडे पड़ गये हों, जैसे 2004 के आम चुनाव इंडिया शाइनिंग के दौर में हुआ था. वोट डाले के लिए पहले के मुकाबले कम लोगों का घर से निकलना भी तो इसी ओर इशारा करता है.
2014 के मुकाबले हुई कम वोटिंग. 2014 के विधानसभा चुनाव में हरियाणा में 76.13 फीसदी वोटिंग हुई थी जबकि इस बार हरियाणा में 65.57 फीसदी लोगों ने वोट डाले. 2009 में ये आंकड़ा 72.3 फीसदी रहा जिसमें 2014 में चार फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया.
अगर मई में हुए आम चुनाव को देखें तो हरियाणा में 12 मई को 70.34 फीसदी वोट डाले गये थे जो 2014 के मुकाबले दो फीसदी कम रहे.
हुड्डा ने सोनिया गांधी को बड़ी राहत दी है
अगर हुड्डा के पक्ष में आये एग्जिट पोल के अनुमान सही साबित होते हैं तो कांग्रेस के लिए सोने में सुगंध जैसे हैं - फर्ज कीजिये ऐसा न भी हो और हुड्डा कांग्रेस को पहले के मुकाबले ज्यादा सीटें दिलाने में भी कामयाब हो जाते हैं तो भी ये धनतेरस पर तोहफे में सोना मिलने जैसा ही समझा जाएगा. हाल फिलहाल कांग्रेस का जो हाल रहा है वो देश के किसी भी कोने से सोनिया गांधी को जरा सी भी राहत देने वाला नहीं रहा है. हरियाणा में ऐन चुनावों के बीच हुड्डा से ठीक पहले तक कांग्रेस की कमान संभाल रहे अशोक तंवर ने कांग्रेस छोड़ दिया. सिर्फ छोड़ा होता तो और बात होती, जाते जाते कांग्रेस में पांच करोड़ में टिकट बेचे जाने तक का इल्जाम लगा डाला. यूपी में सोनिया गांधी के रायबरेली से आने वाली अदिति सिंह की बगावत भी इसी कालखंड की कहानी का हिस्सा है. अशोक तंवर जहां राहुल गांधी के खास रहे वहीं अदिति सिंह को प्रियंका गांधी वाड्रा का करीबी माना जाता रहा है. महाराष्ट्र से भी संजय निरूपम की आवाज दिल्ली तक पहुंच रही थी. बड़ी बात ये रही कि ये सारे बागी नेता कांग्रेस नेतृत्व को ही कठघरे में खड़ा कर रहे थे. बस बात थोड़ी अलग इतनी ही रही कि सारे नेता नेतृत्व के इर्द-गिर्द मंडराते सलाहकारों को ही सीधे सीधे दोषी ठहरा रहे थे. संकेत तो साफ था - नेतृत्व कान का कच्चा है.
चुनावों से पहले भूपिंदर सिंह हुड्डा ने भी वही रास्ता अख्तियार किया जो 2017 में पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनाया था. कैप्टन की ही तरह हुड्डा ने भी नेतृत्व पर दबाव बनाया कि अगर उनकी मांगें नजरअंदाज की गयीं तो पार्टी टूट जाएगी. हुड्डा ने इसके लिए रोहतक में रैली की और सोनिया गांधी से मुलाकात में अपनी बात तरीके से समझायी. सोनिया गांधी ने कैप्टन की तरह हुड्डा के सामने खेल का खुला मैदान तो नहीं छोड़ा लेकिन मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर जरूर प्रोजेक्ट कर दिया. कैप्टन अमरिंदर सिंह को तब प्रताप सिंह बाजवा को हटाकर अध्यक्ष भी बना दिया गया था, लेकिन इस बार सोनिया गांधी ने नया PCC अध्यक्ष कुमारी शैलजा को बनाया. माना जा सकता है कि सोनिया गांधी का जाट-दलित कॉम्बो सफल साबित होने की ओर बढ़ रहा है. अगर हुड्डा खुद को हरियाणा का कैप्टन और सोनिया गांधी के फैसले को सही साबित कर रहे हैं, फिर तो साफ है कि राहुल गांधी के फैसले गलत रहे - और उनकी कप्तानी में कांग्रेस को फायदा तो दूर नुकसान ही हुए.
वैसे हुड्डा के मामले में फर्क ये रहा कि कैप्टन के मुकाबले फील्ड में काम करने के लिए उनको काफी कम वक्त मिला - क्योंकि मन से फैसले लेने की खुली छूट हुड्डा को चुनावों की तारीख आने से मुश्किल से दो हफ्ते पहले ही मिल पायी थी. हरियाणा में टिकट बंटवारे में भी हुड्डा की ही चली और कांग्रेस प्रत्याशियों के चयन से लेकर चुनाव से जुड़े सारे फैसले हुड्डा के ही रहे. हुड्डा ने मैदान में खुद को खट्टर के विकल्प के तौर पर पेश किया और बीजेपी के राष्ट्रवाद की जगह स्थानीय मुद्दों पर फोकस बनाये रखा.
हुड्डा कांग्रेस की सरकार बनाने में सफल होंगे या नहीं, लेकिन एक बार चर्चा में तो ला ही दिया है - और कांग्रेस नेतृत्व के लिए ये फिलहाल मामूली बात तो नहीं है. रही बात इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल के अनुमानों की तो 2019 के आम चुनाव और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव की भविष्यवाणी में तो वो सही साबित हो ही चुका है.
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