प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के गृहराज्य गुजरात में मुख्यमंत्री बदलने का कार्यक्रम हमेशा की तरह बिना किसी नाराजगी के संपन्न हो गया. वो अलग बात है कि डिप्टी सीएम नितिन पटेल का दर्द छलक कर शब्दों के सहारे बाहर आया. लेकिन, वो भी पार्टी में रहकर जनता की सेवा करने की बात कहने से ऊपर नहीं जा सके. खैर, कहा तो ये भी जा रहा है कि गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के पसंदीदा उम्मीदवारों को साइडलाइन करते हुए नरेंद्र मोदी ने भूपेंद्र पटेल के तौर पर एक ऐसे भाजपा कार्यकर्ता (BJP) को मुख्यमंत्री बना दिया, जो पहली बार विधायक बना है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो नरेंद्र मोदी ने ये संदेश दिया है कि भाजपा में अंतिम फैसला उनका ही होगा. एक मजबूत शीर्ष नेतृत्व के लिहाज से ये एक अच्छा संकेत कहा जा सकता है. क्योंकि, इस मामले में भाजपा के सामने खड़े हो रहे साझा विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस (Congress) मजबूत होना तो दूर अभी भी नेतृत्व के संकट से ही जूझ रही है.
वैसे, भूपेंद्र पटेल (Bhupendra Patel) ने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है. जल्द ही उनकी कैबिनेट भी बना दी जाएगी, जो निश्चित तौर पर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ही तय करेगा. इन सबसे इतर भूपेंद्र पटेल के शपथ ग्रहण समारोह में एक बात थोड़ी अलग थी. इस कार्यक्रम में गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) समेत भाजपा के कई कद्दावर नेता मौजूद थे. लेकिन, इन नेताओं के साथ भाजपा शासित प्रदेशों के तीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan), मनोहर लाल खट्टर (Manohar lal Khattar) और प्रमोद सावंत (Pramod Sawant) की मौजूदगी थोड़ी चौंकाने वाली थी. भूपेंद्र पटेल को शुभकामनाएं देना जरूरी था, तो ये मुख्यमंत्री ट्विटर के सहारे भी बधाई भेज सकते थे. जैसे उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने भेजी थीं.
सामान्य तौर पर ऐसे कार्यक्रमों में भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी होती ही है. लेकिन, बीते कुछ महीनों में उत्तराखंड,...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के गृहराज्य गुजरात में मुख्यमंत्री बदलने का कार्यक्रम हमेशा की तरह बिना किसी नाराजगी के संपन्न हो गया. वो अलग बात है कि डिप्टी सीएम नितिन पटेल का दर्द छलक कर शब्दों के सहारे बाहर आया. लेकिन, वो भी पार्टी में रहकर जनता की सेवा करने की बात कहने से ऊपर नहीं जा सके. खैर, कहा तो ये भी जा रहा है कि गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के पसंदीदा उम्मीदवारों को साइडलाइन करते हुए नरेंद्र मोदी ने भूपेंद्र पटेल के तौर पर एक ऐसे भाजपा कार्यकर्ता (BJP) को मुख्यमंत्री बना दिया, जो पहली बार विधायक बना है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो नरेंद्र मोदी ने ये संदेश दिया है कि भाजपा में अंतिम फैसला उनका ही होगा. एक मजबूत शीर्ष नेतृत्व के लिहाज से ये एक अच्छा संकेत कहा जा सकता है. क्योंकि, इस मामले में भाजपा के सामने खड़े हो रहे साझा विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस (Congress) मजबूत होना तो दूर अभी भी नेतृत्व के संकट से ही जूझ रही है.
वैसे, भूपेंद्र पटेल (Bhupendra Patel) ने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है. जल्द ही उनकी कैबिनेट भी बना दी जाएगी, जो निश्चित तौर पर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ही तय करेगा. इन सबसे इतर भूपेंद्र पटेल के शपथ ग्रहण समारोह में एक बात थोड़ी अलग थी. इस कार्यक्रम में गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) समेत भाजपा के कई कद्दावर नेता मौजूद थे. लेकिन, इन नेताओं के साथ भाजपा शासित प्रदेशों के तीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan), मनोहर लाल खट्टर (Manohar lal Khattar) और प्रमोद सावंत (Pramod Sawant) की मौजूदगी थोड़ी चौंकाने वाली थी. भूपेंद्र पटेल को शुभकामनाएं देना जरूरी था, तो ये मुख्यमंत्री ट्विटर के सहारे भी बधाई भेज सकते थे. जैसे उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने भेजी थीं.
सामान्य तौर पर ऐसे कार्यक्रमों में भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी होती ही है. लेकिन, बीते कुछ महीनों में उत्तराखंड, कर्नाटक, असम में मुख्यमंत्रियों को बदलने की प्रक्रिया के बाद गुजरात का नाम भी इसी लिस्ट में जुड़ जाने से थोड़ी-बहुत हलचल होना तो स्वाभाविक नजर आता है. 2014 से पहले विधानसभा चुनावों से पहले मुख्यमंत्री बदलने की परंपरा कुछ ही राज्यों तक सीमित थी. लेकिन, 2014 के बाद भाजपा ने तेजी से राज्यों में सरकार बनाई, तो सत्ता बनाए रखने के लिए समय-समय पर बदलाव किए जाने लगे. कहा जाए कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अब मुख्यमंत्रियों का बदलाव अपरिहार्य लगने लगा है, तो गलत नहीं होगा. लेकिन, इन सबके बीच बड़ा सवाल ये है कि भूपेंद्र पटेल को सीएम बनने की बधाई देने के लिए शिवराज सिंह चौहान, मनोहर लाल खट्टर और प्रमोद सावंत को ही विशेष रूप से क्यों आमंत्रित किया गया? क्या इन मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी कोई इशारा है?
क्या भाजपा ने चेतावनी देने का तरीका बदल दिया?
माना जा रहा है कि राज्यों में नेतृत्व बदलाव कर भाजपा 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले खुद को मजबूत करने की कोशिश कर रही है. संभावनाएं जताई जा रही हैं कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व राज्यों में मुख्यमंत्री के तौर पर उन चेहरों को लाना चाहता है, जो अगले आम चुनाव के दौरान पार्टी को लोकसभा सीटें जिताने में कामयाब हो सकें. असम में हुए नेतृत्व परिवर्तन को देखकर तो काफी हद तक यही माना जा सकता है. पूर्वोत्तर के राज्यों में अच्छी-खासी पकड़ रखने वाले हिमंता बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने केवल अन्य पार्टियों के असंतुष्टों के लिए अपने दरवाजे ही नहीं खोले हैं. ये भी बताया है कि संघ की विचारधारा से जुड़ा व्यक्ति ही मुख्यमंत्री बन सकता है की बात एक मिथक है. वहीं, उत्तराखंड में दूसरे बदलाव के बाद युवा पुष्कर धामी को मुख्यमंत्री बनाकर ये संदेश दे दिया है कि जरूरी नहीं कि पार्टी का चेहरा वरिष्ठ ही हो, कोई युवा भी हो सकता है. वहीं, कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा को हटाकर बसवराज बोम्मई को सीएम बनाकर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने ये साबित करने की कोशिश की है कि किसी सुमदाय पर एक चेहरे का प्रभाव नहीं होता है. इन सभी बदलावों में एक अहम बात ये भी है कि इन नेताओं को काफी समय पहले से ही इस फैसले की खबर थी.
राज्यों में नेतृत्व के लिए दिल्ली में 'नर्सरी'
कहा जाता है कि मोदी कैबिनेट में राज्यों की नेतृत्व के लिए नई पौध भी उगाई जा रही है. अनुराग ठाकुर, मनसुख मंडाविया, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कई नेताओं का नाम इस लिस्ट में शामिल है. राजस्थान में वसुंधरा राजे की ओर से बनाए जा रहे दबाव को दरकिनार करते हुए राज्य से लेकर केंद्रीय स्तर तक नेतृत्व के लिए संभावनाएं खोजी जा रही हैं. राजस्थान में बीते साल गहलोत सरकार के खिलाफ की गई सचिन पायलट की बगावत को भी भाजपा के एक लिटमस टेस्ट के तौर पर देखा गया था. कुल मिलाकर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व हर चुनाव जिताने में एक्सपर्ट और जातीय से लेकर धार्मिक समीकरणों के साथ पार्टी की विचारधारा को बेबाक तरीके से बढ़ाने वाले नेताओं पर ही दांव खेलने का मन बना चुका है.
शिवराज के सितारे नहीं दे रहे साथ
2018 में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने का फैसला किया था. हालांकि, आरएसएस की ओर से चुनाव से पहले एक सर्वे में कई मंत्रियों और नेताओं के टिकट काटने की बात कही गई थी. कहा जाता है कि शिवराज सिंह चौहान ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हुए थे. वहीं, कुछ समय बाद ये लिस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी. खैर, विधानसभा चुनाव के नतीजे आने पर मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी. भाजपा की हार का ठीकरा शिवराज सिंह चौहान के अड़ियल रुख पर फोड़ा गया. हालांकि, ऑपरेशन लोटस के सहारे ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में लाकर मध्य प्रदेश में सरकार बना ली गई. लेकिन, इसके बाद ये अब तक माना जा रहा है कि शिवराज सिंह चौहान के तलवार लटक रही है.
कहना गलत नहीं होगा कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जीत के बाद कमलनाथ को सीएम जरूर बना दिया गया हो. लेकिन, राज्य में कमलनाथ से ज्यादा चर्चा ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ही बटोरी थी. माना भी यही जा रहा था कि सिंधिया ही सीएम घोषित किए जाएंगे. लेकिन, ऐन मौके पर कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व से झटका मिल गया. इस झटके पर भाजपा ने मलहम लगाया और मोदी सरकार के कैबिनेट विस्तार में केंद्रीय मंत्री बना दिया. इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगले विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान को साइडलाइन कर ज्योतिरादित्य सिंधिया को सीएम बना दिया जाए. और, शिवराज को बिहार के सुशील कुमार मोदी की तरह ही केंद्र की राजनीति में बुला लिया जाए.
संघ से करीबी पर मिला खट्टर को आखिरी मौका
हरियाणा में भाजपा की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री पद के लिए मनोहर लाल खट्टर के तौर पर चौंकाने वाला नाम सामने आया था. लंबे समय तक संघ से जुड़े रहे मनोहर लाल खट्टर को सीएम की कुर्सी मिलने की बड़ी वजह उनकी आरएसएस नेताओं से नजदीकियां ही मानी जाती रही हैं. लेकिन, 2019 के अंत में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में मनोहर लाल खट्टर अपने दम पर भाजपा सरकार बनवाने में कामयाब नहीं हो सके थे. भाजपा और जेजेपी गठबंधन से सरकार तो बन गई, लेकिन माना जा रहा था कि मनोहर लाल खट्टर की कुर्सी जाना तय है.
हालांकि, खट्टर को संघ से करीबी का फायदा अभयदान के रूप में मिला. लेकिन, बीते साल से शुरू हुए किसान आंदोलन में हरियाणा किसानों का एक मजबूत गढ़ बन गया है. मनोहर लाल खट्टर इस विरोध को शांत नहीं कर पाए हैं, तो बहुत हद तक संभव है कि हरियाणा में भी नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाएं बन जाएं.
प्रमोद सावंत से नहीं संभल रहा गोवा
40 विधानसभा सीटों वाले राज्य गोवा में लंबे अरसे के बाद मनोहर पर्रिकर ने भाजपा को सत्ता दिलाई थी. गोवा में छोटे-छोटे दलों के सहारे ही सरकार बनाना संभव है. लेकिन, प्रमोद सावंत गोवा की समन्वय राजनीति में कुछ खास प्रभाव नहीं छोड़ पा रहे हैं. इससे इतर उनके बयान भी भाजपा की छवि को नुकसान पहुंचाते रहे हैं. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान इस राज्य में भी हालात भयावह हुए थे.
वहीं, कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए विश्वजीत राणे को लेकर भी चर्चाओं का दौर जारी है. गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह राणे के बेटे विश्वजीत भी सीएम बनने की लाइन में हैं. माना जा रहा है कि अगले साल होने वाले गोवा विधानसभा चुनाव से पहले यहां भी नेतृत्व परिवर्तन की आहट सुनाई दे सकती है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.