राजनीति और चुनाव प्रक्रिया में भी बदलाव तो होना ही था, कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते दुनिया जो बदल चुकी है. बिहार चुनाव को लेकर चुनाव आयोग ने जो गाइडलाइन (Election Commission Guidelies) जारी की है उससे तो यही लगता है कि अब न तो चुनाव प्रचार में पुराने जमाने की तरह रैलियां होने वाली हैं और न ही पोलिंग बूथ पर वोट डालने वालों की लंबी कतारें.
चुनाव आयोग ने गाइडलाइन जारी कर साफ कर दिया है कि बिहार में विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2020) समय पर ही होंगे. 28 नवंबर को बिहार विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है और नियमों के तहत चुनाव की प्रक्रिया उससे पहले पूरी हो जानी चाहिये. ऐसा न होने की सूरत में राष्ट्रपति शासन आवश्यक हो जाता है.
चुनाव को लेकर गाइडलाइन ऐसे वक्त आयी है जब बिहार में कोविड संक्रमण तेजी से देखने को मिल रहा है और देश के जिन इलाकों में नये संक्रमितों की ज्यादा तादाद सामने आ रही है उनमें बिहार भी शुमार है. यही वजह है कि चुनाव आयोग की गाइडलाइन जितनी भी चीजों का जिक्र है उनमें से ज्यादातर को कोविड गाइडलाइन के दायरे में ही रखा गया है.
आयोग की गाइडलाइन में पूरे चुनाव के दौरान कोविड गाइडलाइन के अनुपालन पर सबसे ज्यादा जोर दिखता है - चुनाव प्रक्रिया के दौरान सोशल डिस्टेसिंग का पालन करना होगा और ऐसा नहीं करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की जा सकती है.
वोट डालने के लिए आयोग ने जिस तरह के इंतजामों की बात बतायी है वे सभी लोगों की सुरक्षा के हिसाब से तैयार किये गये लगते हैं और ज्यादातर वैसे ही हैं जो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कोविड को लेकर गाइडलाइन में शामिल किया है - मसलन, पोलिंग बूथों का वोटिंग के पहले से ही सैनिटाइजेशन और मतदाताओं के लिए मास्क और ग्लव्स के इंतजाम होंगे. मतदान कर्मी भी कोविड को लेकर सुरक्षा इंतजामों से लैस होंगे.
बाकी सब तो ठीक है लेकिन राजनीतिक दलों के लिए जो नियम बनाये गये हैं वे नीतीश कुमार और बीजेपी के लिए तो कम, लेकिन विपक्षी दलों (Opposition Politics) पर बहुत ज्यादा भारी पड़ने वाले...
राजनीति और चुनाव प्रक्रिया में भी बदलाव तो होना ही था, कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते दुनिया जो बदल चुकी है. बिहार चुनाव को लेकर चुनाव आयोग ने जो गाइडलाइन (Election Commission Guidelies) जारी की है उससे तो यही लगता है कि अब न तो चुनाव प्रचार में पुराने जमाने की तरह रैलियां होने वाली हैं और न ही पोलिंग बूथ पर वोट डालने वालों की लंबी कतारें.
चुनाव आयोग ने गाइडलाइन जारी कर साफ कर दिया है कि बिहार में विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2020) समय पर ही होंगे. 28 नवंबर को बिहार विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है और नियमों के तहत चुनाव की प्रक्रिया उससे पहले पूरी हो जानी चाहिये. ऐसा न होने की सूरत में राष्ट्रपति शासन आवश्यक हो जाता है.
चुनाव को लेकर गाइडलाइन ऐसे वक्त आयी है जब बिहार में कोविड संक्रमण तेजी से देखने को मिल रहा है और देश के जिन इलाकों में नये संक्रमितों की ज्यादा तादाद सामने आ रही है उनमें बिहार भी शुमार है. यही वजह है कि चुनाव आयोग की गाइडलाइन जितनी भी चीजों का जिक्र है उनमें से ज्यादातर को कोविड गाइडलाइन के दायरे में ही रखा गया है.
आयोग की गाइडलाइन में पूरे चुनाव के दौरान कोविड गाइडलाइन के अनुपालन पर सबसे ज्यादा जोर दिखता है - चुनाव प्रक्रिया के दौरान सोशल डिस्टेसिंग का पालन करना होगा और ऐसा नहीं करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की जा सकती है.
वोट डालने के लिए आयोग ने जिस तरह के इंतजामों की बात बतायी है वे सभी लोगों की सुरक्षा के हिसाब से तैयार किये गये लगते हैं और ज्यादातर वैसे ही हैं जो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कोविड को लेकर गाइडलाइन में शामिल किया है - मसलन, पोलिंग बूथों का वोटिंग के पहले से ही सैनिटाइजेशन और मतदाताओं के लिए मास्क और ग्लव्स के इंतजाम होंगे. मतदान कर्मी भी कोविड को लेकर सुरक्षा इंतजामों से लैस होंगे.
बाकी सब तो ठीक है लेकिन राजनीतिक दलों के लिए जो नियम बनाये गये हैं वे नीतीश कुमार और बीजेपी के लिए तो कम, लेकिन विपक्षी दलों (Opposition Politics) पर बहुत ज्यादा भारी पड़ने वाले हैं.
विपक्ष भी तैयार है क्या
तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल को देखते हुए चुनाव प्रक्रिया में भी जमाने के हिसाब से चीजें तो बदलनी ही थीं, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से ये सब इतनी जल्दी हो जाएगा किसी ने सोचा नहीं था - कोरोना वायरस ने चुनौतियां तो सबकी बढ़ा दी हैं, लेकिन सत्ता पक्ष के मुकाबले विपक्ष के सामने मुश्किलें ज्यादा हैं.
आइये, चुनाव आयोग की गाइडलाइन को विपक्ष के नजरिये से समझने की कोशिश करते हैं - सवाल ये भी है कि क्या विपक्षी राजनीतिक दल हालात के मुताबिक ढलने को तैयार भी हैं?
1. नामांकन भी पहले जैसा नहीं होगा: बिहार चुनाव में आयोग ऑनलाइन नॉमिनेशन की व्यवस्था करने जा रहा है. जमानत राशि भी ऑनलाइन जमा की जा सकती है.
साथ ही, आयोग ने फीजिकल नॉमिनेशन का भी विकल्प रखा हुआ है, लेकिन उसके लिए भी नियम बना दिया है. अब भी अगर पहले की तरह कोई उम्मीदवार नामांकन करना चाहता है तो उसके लिए सिर्फ दो लोग ही जा सकेंगे और साथ में वे दो ज्यादा गाड़ियां नहीं ले जा सकते - अब इसे कोई जुलूस समझे या कुछ और.
चुनाव प्रक्रिया तो आचार संहिता लागू होने के साथ ही शुरू हो जाती है, लेकिन उम्मीदवारों के लिए नामांकन चुनावों में एक बड़ा इवेंट होता है. नामांकन हर उम्मीदवार के लिए शक्ति प्रदर्शन का बेहतरीन मौका होता है. नामांकन जुलूस भी चुनाव प्रचार का ही हिस्सा रहा है जिसकी बदौलत उम्मीदवार लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने और खुद की ताकत का नमूना पेश करने की कोशिश करते हैं.
लॉकडाउन के चलते सत्ता पक्ष तो लोगों की मदद और कोरोना संकट में जरूरी सरकारी इंतजामों के कारण लगातार एक्टिव और किसी न किसी माध्यम से सक्रिय रहा है, लेकिन विपक्ष ज्यादा से ज्यादा मीडिया और सोशल मीडिया के जरिये कनेक्ट होने की कोशिश करता रहा है - ऐसे में विपक्षी उम्मीदवारों के लिए चुनौती तो नामांकन से ही शुरू हो जाती है.
2. जन-संपर्क अभियान: सभी चुनावों में घर घर जनसंपर्क वोट हासिल करने का बड़ा ही कारगर उपाय होता है, लेकिन इसके लिए भी इस बार सिर्फ पांच लोगों को ही अनुमति होगी. कोविड की वजह से ये सब जरूरी तो है, लेकिन जो विपक्षी नेता महीनों पहले से ही अपने लोगों से कटे हुए हैं - वे उनके करीब जाकर भी प्रभाव छोड़ पाएंगे कहना मुश्किल है.
3. अनुमति को लेकर टकराव के आसार: चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों के लिए रैली या रोड शो पर कोई पाबंदी तो नहीं लगायी है, लेकिन इसके लिए गृह मंत्रालय के कोविड सुरक्षा से जुड़ी प्रोटोकॉल के हिसाब से चलना होगा. वैसे तो किसी भी चुनावी रैली या रोड शो के लिए सामान्य दिनों में भी स्थानीय प्रशासन से अनुमति तो लेनी ही पड़ती है, लेकिन अभी की विशेष परिस्थितियों में चीजें स्पष्ट नहीं होने के चलते बार बार टकराव के आसार लगते हैं.
4. पब्लिक रैली के नियम: चुनावी रैलियों में लोगों की भीड़ और खर्च पर पर आयोग के पर्यवेक्षकों की कड़ी नजर तो रहती ही है, इस बार स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी नजर रखने वाले हैं.
अब तो उम्मीदवारों को ये भी बताना होगा कि रैली में कितने लोग आएंगे - कम हो गये तो कोई बात नहीं, लेकिन ज्यादा हो गये तो आचार संहिता के उल्लंघन के लिए आयोग की तरफ से नोटिस जारी किया जा सकता है.
सभी चुनावी रैलियों में सोशल डिस्टैंसिंग का सख्ती से पालन करना होगा - और ये अलग से चैलेंज होगा हर उम्मीदवार के लिए.
विपक्षी दलों ने कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के चलते चुनाव आयोग से चुनाव टालने की गुजारिश की थी. ऐसा करने वालों में बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान भी शामिल थे. हालांकि, जब आयोग ने सभी राजनीतिक दलों की मीटिंग बुलायी थी तो, खबरों के मुताबिक, किसी ने भी चुनाव टालने को लेकर कोई बात नहीं कही थी. बाद में खबर आयी कि विपक्षी नेताओं ने चुनाव आयोग की तरफ से मांगी गयी सलाह में चुनाव टाल देने की सलाह जरूर दी थी.
दिल्ली विधानसभा चुनाव खत्म होने के फौरन बाद ही बिहार में चुनावी माहौल जोर पकड़ने लगा था. तब जेडीयू के पूर्व उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने 'बात बिहार की' मुहिम शुरू की थी, लेकिन कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन लागू होते ही मुहिम को डिजिटल प्लेटफॉर्म तक सीमित करना पड़ा. प्रशांत किशोर के मैदान में उतरने से पहले सीपीआई नेता कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव भी बिहार दौरे पर निकले थे, लेकिन जल्द ही उन दोनों को भी सब समेटना पड़ा. एक इंटरव्यू में कन्हैया कुमार ने कहा भी था कि लॉकडाउन के बाद परंपरागत राजनीति में कुछ करने को तो बचा भी नहीं है.
देखना दिलचस्प होगा कि अब तक ट्विटर तक अपनी राजनीति को सीमित रखने वाले विपक्ष के नेता चुनाव में कैसे उतरते हैं और नयी चुनौतियों का कैसे सामना करते हैं.
इन्हें भी पढ़ें :
Bihar Election से पहले नीतीश कुमार ने लालू परिवार में सेंध लगा दी!
बिहार चुनाव में सुशांत केस को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने पर आम सहमति लगती है
Bihar Elections: बिहार की राजनीति में क्या चिराग नया 'चिराग' जला पाएंगे?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.