जैसा अब तक देखने को मिला है किसी भी राज्य का विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election Result) हो दोपहर या फिर शाम शुरू होते होते चुनावों के परिणाम घोषित हो जाते हैं. ऐसे में जब हम बिहार विधानसभा चुनावों के परिणामों पर नज़र डालें तो वहां मामला थोड़ा अलग रहा. दोपहर 2 बजे तक मात्र 20 से 25 प्रतिशत मतों की काउंटिंग हुई. ध्यान रहे कि बिहार विधानसभा चुनाव तीन चरणों मे हुए थे इसलिए कहा जा रहा था कि चुनाव परिणाम भी जल्द से जल्द आएंगे. अब चूंकि ऐसा नहीं हुआ है और बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम आने में ठीक ठाक वक़्त लगा तो हमें इसके पीछे के कारणों को समझना होगा. साथ ही उन वजहों पर भी बात करनी होगी जिनको जानने के बाद हमारे लिए देरी की वजह समझने में आसानी होगी.
क्या हैं इस देरी के कारण
चूंकि देश कोरोना की चपेट में है तो इसका असर हमें बिहार विधानसभा चुनावों में देखने को मिला है. बता दें कि जिस समय चुनाव के लिए मतदान हुआ एक पोलिंग बूथ में मत डालने वालों की संख्या को घटाकर 1500 से 1000 कर दिया गया. इसका असर पोलिंग बूथ पर पड़ा और उनकी संख्या में इजाफा देखने को मिला. चुनाव में क्योंकि बूथों की संख्या ज्यादा रही इसलिए पोलिंग भी इन जगहों पर करीब 45 प्रतिशत के आस पास हुई.
बात अगर 2015 बिहार विधानसभा चुनावों की हो तो 2015 में हुए चुनावों में पोलिंग बूथों की कुल संख्या 73,000 रही वहीं बात अगर 2020 के इस चुनाव की हो तो इस बार ये संख्या 1.06 लाख के आस पास है. ये बात गौर करने वाली है कि इस बार पोलिंग बूथों की संख्या ज्यादा है इसलिए ईवीएम भी ज्यादा लगीं. और ऐसा होने का असर ये हुआ कि काउंटिंग में डिले देखने को मिला.
कोरोना प्रोटोकॉल को नकारना भी बड़ी...
जैसा अब तक देखने को मिला है किसी भी राज्य का विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election Result) हो दोपहर या फिर शाम शुरू होते होते चुनावों के परिणाम घोषित हो जाते हैं. ऐसे में जब हम बिहार विधानसभा चुनावों के परिणामों पर नज़र डालें तो वहां मामला थोड़ा अलग रहा. दोपहर 2 बजे तक मात्र 20 से 25 प्रतिशत मतों की काउंटिंग हुई. ध्यान रहे कि बिहार विधानसभा चुनाव तीन चरणों मे हुए थे इसलिए कहा जा रहा था कि चुनाव परिणाम भी जल्द से जल्द आएंगे. अब चूंकि ऐसा नहीं हुआ है और बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम आने में ठीक ठाक वक़्त लगा तो हमें इसके पीछे के कारणों को समझना होगा. साथ ही उन वजहों पर भी बात करनी होगी जिनको जानने के बाद हमारे लिए देरी की वजह समझने में आसानी होगी.
क्या हैं इस देरी के कारण
चूंकि देश कोरोना की चपेट में है तो इसका असर हमें बिहार विधानसभा चुनावों में देखने को मिला है. बता दें कि जिस समय चुनाव के लिए मतदान हुआ एक पोलिंग बूथ में मत डालने वालों की संख्या को घटाकर 1500 से 1000 कर दिया गया. इसका असर पोलिंग बूथ पर पड़ा और उनकी संख्या में इजाफा देखने को मिला. चुनाव में क्योंकि बूथों की संख्या ज्यादा रही इसलिए पोलिंग भी इन जगहों पर करीब 45 प्रतिशत के आस पास हुई.
बात अगर 2015 बिहार विधानसभा चुनावों की हो तो 2015 में हुए चुनावों में पोलिंग बूथों की कुल संख्या 73,000 रही वहीं बात अगर 2020 के इस चुनाव की हो तो इस बार ये संख्या 1.06 लाख के आस पास है. ये बात गौर करने वाली है कि इस बार पोलिंग बूथों की संख्या ज्यादा है इसलिए ईवीएम भी ज्यादा लगीं. और ऐसा होने का असर ये हुआ कि काउंटिंग में डिले देखने को मिला.
कोरोना प्रोटोकॉल को नकारना भी बड़ी भूल
डिले की एक बड़ी वजह कोरोना प्रोटोकॉल भी है जिसमें गिनती के दौरान फिजिकल डिस्टेंसिंग भी है. बिहार चुनाव में मतगणना की धीमी प्रक्रिया का मतलब है कि राजद के तेजस्वी यादव की अगुवाई में विपक्षी महागठबंधन को अपनी जीत की उम्मीदें बरक़रार रखनी चाहिए. कह सकते हैं कि एनडीए में भाजपा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू को थोड़ा लम्बा इंतजार करना होगा.
बिहार के सभी 38 जिलों के 55 मतगणना केंद्रों पर नवीनतम मतगणना के अनुसार, महागठबंधन के मुकाबले एनडीए कहीं आगे चल रही है. यह 127 सीटों से आगे चल रही थी, जबकि राजद नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला विपक्षी गठबंधन 105 सीटों से आगे था.
हालांकि, मतगणना केंद्रों के जैसे रुझान सामने आए हैं हर तीन सीटों में से एक पर 1,000 से कम वोटों का अंतर दर्ज किया गया है. ऐसी परिस्थितियों में, 20 से अधिक सीटें ऐसी हैं जिनमें वोटों की अंतिम गिनती तक 500 से कम वोटों का मार्जिन था.
बहरहाल, बिहार विधानसभा चुनावों के मद्देनजर ऊंट किस करवट बैठेगा? थोड़ा इन्तजार करना है हमें पता चल जाएगा. लेकिन जैसे समीकरण बिहार में स्थापित हुए हैं उनसे एक बात तो साफ़ हो गई है कि बिहार के राजनीतिक समीकरण बहुत पेचीदा हैं. जैसे रुझान अब तक की काउंटिंग में सामने आए हैं ऐसा बहुत कुछ हम देख रहे हैं जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो. कई स्थान ऐसे हैं जहां लड़ाई कांटे की है कहीं एनडीए बढ़त बनाए है तो कहीं पर महागठबंधन भारी है.
अंत में हम बस ये कहकर अपनी बात को विराम देंगे कि बिहार में मुख्यमंत्री कोई भी बने लेकिन इस देरी से कहीं न कहीं जनता अपने को ठगा महसूस कर रही है. जनता ने अपना वोट दिया था उसे अपने मुख्यमंत्री का इंतजार था जिसे लेकर अब तक सस्पेंस बना हुआ है.
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