आंखों से झरते आंसू, आगे आने वाले भविष्य की चिंता ... इस विचार के साथ एक छोर पर पति के पैर थामे पत्नी. दूसरे पैर को तेज तेज रगड़ता भाई या बेटा. दूसरे छोर पर अपनी पूरी ऊर्जा के साथ पिता के हाथों को मलता दूसरा पुत्र... तीनों का उद्देश्य बस ये कि, वो चौथा शख्स, जो कंबल ओढ़ कर अस्पताल की उस बेड पर लेटा ज़िंदगी और मौत की जंग लड़ रहा है, उसके शरीर को कुछ गर्मी मिल जाए. कोई चमत्कार हो और वो होश में आ जाए. लेकिन क्या उस चौथे ने, जो सीमा पर घायल किसी शहीद की तरह इन तीनों से अपनी सेवा करवा रहा है. उसने शराब का गिलास उठाने से पहले क्या अपने परिवार के बारे में, उनकी खुशियों के बारे में, उनके दुःख दर्द के बारे में, उस पीड़ा के बारे में सोचा जो परिजनों को तब मिलती है जब शराब किसी की मौत की वजह बनती है. तर्क कुछ भी हो सकते हैं. बातें तमाम हो सकती हैं लेकिन जवाब है नहीं. वो जो जहरीली शराब पीने के चलते मौत के दरवाजे पर खड़ा है, कोई कुछ कह ले वो स्वार्थी है और बेशर्म है और ऐसे लोगों के प्रति सहानुभूति रखना किसी पाप से कम नहीं है.
बिहार में शराबियों और उनकी मौत पर जो कुछ भी नीतीश ने कहा है उनका पूर्व समर्थन होना चाहिए
जो आदमी सब कुछ जानते, बुझते, समझते और बिना किसी की परवाह किये. अपने फायदे के लिए अपने भौतिक सुखों के लिए अगर मौत के मुंह में जा रहा है. तो उसे कोई हक़ नहीं है कि समाज उसे रहम की निगाह से देखे. ऐसे लोगों के लिए हमारा भी संदेश वही है जो बिहार विधानसभा में सूबे के मुखिया नीतीश कुमार ने दिया है. ध्यान रहे जहरीली शराब से हुई मौत मामले में विधानसभा में बोलते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि शराब पीयोगे तो मरोगे ही.
बयान के बाद एक बड़ा वर्ग नीतीश के विरोध में सामने आया है और उनकी कही हुई बातों को अमानवीय बता रहा है. आलोचनों का दौर जारी है. शराबियों और उनकी मौत पर जो रुख बिहार के मुखिया ने रखा है कोई उस पर कुछ कह ले लेकिन न्याय संगत यही है कि हमें उन तमाम लोगों को, जिनकी मौत शराब पीने से हुई उन्हें अपराधी मानना चाहिए और नीतीश कुमार और उनकी बातों को समर्थन देना चाहिए.
गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने कहा था कि जहरीली शराब पीना ठीक नहीं है, जहरीली शराब पीकर मरने वाले परिवार को कोई मुआवजा नहीं मिलेगा. वहीं उन्होंने ये भी कहा था कि जो पिएगा वो मरेगा ही. नीतीश द्वारा इस बयान को देना भर था बवाल मच गया है. विपक्ष द्वारा लगातार कई आरोप बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर लगा दिए गए हैं. ऐसे में वो तमाम लोग जो बयान पर नीतीश कुमार को कोस रहे हैं अपने दिल पर हाथ रखें और एक बार ठंडे दिमाग से बताएं कि क्या ही गलत कहा है मुख्यमंत्री ने.
इस विषय पर कोई कुछ कह ले लेकिन हम मुआवजे से जुड़ा एक सवाल जरूर पूछना चाहेंगे. कोई हमें बताएं कि अपनों और अपने परिवार की खुशियों को भूल नशे की गिरफ्त में डूबे इन नशेड़ियों ने ऐसा कौन सा काम किया था जो इनकी मौत पर सरकार को इन्हें टैक्स पेयर्स के पैसे देकर अपनी जिम्मेदारी को पूरा करना चाहिए? हम तो कहेंगे कि वो तमाम लोग जो इनके लिए मुआवजे की मांग कर रहे हैं, सामने आएं और इनके खिलाफ केस दर्ज करने की मांग करें.
बिहार में अवैध शराब को लेकर सरकार क्या कर रही है? कोर्ट का इस मामले में क्या कहना है? कैसे अवैध बिक्री प्रशासन और पुलिस की नाक के नीचे हो रही है? इन सारे पहलुओं पर चर्चा फिर कभी लेकिन अभी जिस विषय पर बात होनी चाहिए वो है ऐसे लोगों के प्रति सहानुभूति जो किसी भी हाल में उसे डिजर्व नहीं करते. और जब ये सहानुभूति के लायक नहीं हैं तो फिर ऐसे लोगों की मौत पर मुआवजा तो दूर की कौड़ी है ही.
मामले के तहत बात सरकार, सीएम और उसके शासनकाल में बने नियम की नहीं है. जब चोरी छिपे या खुलकर शराब पीने वाले इंसान को उस व्यक्ति की फ़िक्र नहीं है जिसकी पूरी जिम्मेदारी उसके कंधों पर है. ऐसे में अगर शराबी व्यक्ति अपनी शराब पीने की जिद के चलते मर जाए तो उसपर दया तो दिखानी ही नहीं चाहिए हमें.
इस लेख की शुरुआत एक बेहद मार्मिक तस्वीर से हुई है तो जब हम तस्वीर को देखते हैं तो कई विचार हमारे जेहन में आते हैं. तस्वीर देखकर हम एक साथ कई इमोशंस से होकर गुजरते हैं. हमें महसूस होता है कि ये जानते हुए कि शराब बुरी चीज है और उसपर भी नकली शराब इंसान के जीवन को लील लेती है यदि कोई पी रहा है. बार बार लगातार पी रहा है तो जाहिर है कि वो अपनी अय्याशियों से अपने घरवालों को दुनिया को चुनौती दे रहा है.
हो सकता है ये सुनने में थोड़ा अजीब लगे लेकिन ऐसे लोग जब जहरीली शराब की चपेट में आने के बाद अस्पताल लाएं जाएं वो वहां उन्हें ड्रिप में ग्लूकोस न चढ़ाया जाए. किसी तरह की कोई दवाई न दी जाए बल्कि उन्हें शराब पिलाई जाए और उन्हें तिल तिल मरने के लिए छोड़ दिया जाए. इनका अंत ऐसे ही होना चाहिए और ऐसा सिर्फ इसलिए होना चाहिए कि ये शराबी स्वार्थी हैं और स्वार्थी इंसान के लिए किसी के दिल में न तो हमदर्दी होती है और न ही उनका स्वाभाव बदलने की नीयत.
अंत में हम बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि कोई जब अपने एजेंडे को दरकिनार कर ठंडे दिमाग से इनकी करतूतों पर नजर डालेंगे. तो उन्हें इन शराबियों पर तरस नहीं गुस्सा आएगा और तब उसे भी हमारी तरह नीतीश कुमार और उनकी बातें खरी और पूर्णतः सही लगेंगी.
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