बिहार चुनाव 2020 (Bihar Election 2020) में बहुत सी चीजें पहली बार देखने को मिलने वाली हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा (CEC Sunil Arora) जब तैयारियों के बारे में बता रहे थे तो सुन कर लग रहा था जैसे चुनाव नहीं बल्कि कोविड 19 से मुकाबले के इंतजाम किये जा रहे हैं. वैसे भी कोविड 19 ने जो हाल कर रखा है, मतदानकर्मी भी तो कोरोना वॉरियर्स बन कर ही ड्यूटी करने जा रहे हैं. चुनाव आयोग (Election Commission) के मुताबिक, मतदानकर्मियों के लिए 7 लाख सैनिटाइजर, 46 लाख मास्क, 6 लाख फेस शील्ड और 23 लाख हैंड ग्लव्स के साथ साथ वोटर के लिए सिंगल यूज वाले 7.2 करोड़ ग्लव्स के इंतजाम किये गये हैं. अगर आप ये जानकर हैरान होते हैं कि देश के चुनावी इतिहास में बूथ कैप्चरिंग की पहली घटना बिहार के नाम ही दर्ज है तो ये भी नहीं भूलना चाहिये कि 15 साल पहले चुनाव पर्यवेक्षक केजे राव ने बिहार में ही इसे अंतिम आहूति भी दी थी - और सजायाफ्ता नेताओं में संसद सदस्यता जाने की घटना भी बिहार में ही देखने को मिली जब चारा घोटाले की सजा के चलते लालू प्रसाद यादव सदस्यता गंवाने के साथ साथ चुनाव लड़ने के अयोग्य भी हो गये.
बिहार चुनाव और बूथ कैप्चरिंग
देश में दूसरा आम चुनाव 1957 में हुआ था और तभी बूथ कैप्चरिंग की पहली घटना दर्ज की गयी - ये घटना बिहार के बेगूसराय जिले के रचियारी गांव में हुई थी. बेगूसराय के कछारी टोला बूथ पर इलाके के लोगों ने कब्जा कर लिया था - और फिर तो बरसों बरस ये सिलसिला चलता रहा. थमा भी तभी जब चुनाव आयोग ने विशेष सक्रियता दिखायी. भागलपुर में बूथ कैप्चरिंग पर नलिनी सिंह की डॉक्युमेंट्री ने तो जैसे सबको हैरत में ही डाल दिया था. पहली बार कैमरे पर बूथ के लुटेरे वैसे ही दिखे थे जैसे अब स्टिंग ऑपरेशनों में अक्सर नयी चीजें देखने को मिलती हैं.
- 1971 के लोक सभा चुनाव में बूथ लूटने की शिकायतों पर देश के 63 बूथों पर दोबारा मतदान कराये गये थे - और उनमें से 53 बूथ सिर्फ बिहार के थे. मतलब, बाकी हिस्सों से सिर्फ 10 बूथ.
- 1984 के आम चुनाव...
बिहार चुनाव 2020 (Bihar Election 2020) में बहुत सी चीजें पहली बार देखने को मिलने वाली हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा (CEC Sunil Arora) जब तैयारियों के बारे में बता रहे थे तो सुन कर लग रहा था जैसे चुनाव नहीं बल्कि कोविड 19 से मुकाबले के इंतजाम किये जा रहे हैं. वैसे भी कोविड 19 ने जो हाल कर रखा है, मतदानकर्मी भी तो कोरोना वॉरियर्स बन कर ही ड्यूटी करने जा रहे हैं. चुनाव आयोग (Election Commission) के मुताबिक, मतदानकर्मियों के लिए 7 लाख सैनिटाइजर, 46 लाख मास्क, 6 लाख फेस शील्ड और 23 लाख हैंड ग्लव्स के साथ साथ वोटर के लिए सिंगल यूज वाले 7.2 करोड़ ग्लव्स के इंतजाम किये गये हैं. अगर आप ये जानकर हैरान होते हैं कि देश के चुनावी इतिहास में बूथ कैप्चरिंग की पहली घटना बिहार के नाम ही दर्ज है तो ये भी नहीं भूलना चाहिये कि 15 साल पहले चुनाव पर्यवेक्षक केजे राव ने बिहार में ही इसे अंतिम आहूति भी दी थी - और सजायाफ्ता नेताओं में संसद सदस्यता जाने की घटना भी बिहार में ही देखने को मिली जब चारा घोटाले की सजा के चलते लालू प्रसाद यादव सदस्यता गंवाने के साथ साथ चुनाव लड़ने के अयोग्य भी हो गये.
बिहार चुनाव और बूथ कैप्चरिंग
देश में दूसरा आम चुनाव 1957 में हुआ था और तभी बूथ कैप्चरिंग की पहली घटना दर्ज की गयी - ये घटना बिहार के बेगूसराय जिले के रचियारी गांव में हुई थी. बेगूसराय के कछारी टोला बूथ पर इलाके के लोगों ने कब्जा कर लिया था - और फिर तो बरसों बरस ये सिलसिला चलता रहा. थमा भी तभी जब चुनाव आयोग ने विशेष सक्रियता दिखायी. भागलपुर में बूथ कैप्चरिंग पर नलिनी सिंह की डॉक्युमेंट्री ने तो जैसे सबको हैरत में ही डाल दिया था. पहली बार कैमरे पर बूथ के लुटेरे वैसे ही दिखे थे जैसे अब स्टिंग ऑपरेशनों में अक्सर नयी चीजें देखने को मिलती हैं.
- 1971 के लोक सभा चुनाव में बूथ लूटने की शिकायतों पर देश के 63 बूथों पर दोबारा मतदान कराये गये थे - और उनमें से 53 बूथ सिर्फ बिहार के थे. मतलब, बाकी हिस्सों से सिर्फ 10 बूथ.
- 1984 के आम चुनाव में देश भर के 264 बूथों पर दोबारा मतदान कराये गये और उनमें भी 159 बूथ बिहार के थे.
चुनावों के दौरान बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं आयोग के लिए सिरदर्द साबित हो रही थीं. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने जो सख्ती की नींव रखी वही आगे चल कर 2005 में बिहार में इतिहास रचने में काम आयी. जब चुनाव आयोग को बिहार में चुनावों के दौरान गड़बड़ी की आशंका हुई तो वक्त रहते एक बड़े ही सख्त और नियमों के पक्के अफसर केजे राव को चुनाव पर्यवेक्षक बना कर बिहार भेज दिया - और ये प्रयोग रंग भी लाया.
केजे राव को लेकर कई किस्से हैं. ऐसा ही एक किस्सा पटना की एक मीटिंग का है. चुनाव तैयारियों को लेकर अफसरों की एक मीटिंग चल रही थी और सभी उसी अंदाज में शामिल हुए जैसे अरसे से चलता आया था. मीटिंग में मौजूद केजे राव ने अपने पास पड़ी फाइल से एक कागज उठाया और लिस्ट से एक एसएचओ का नाम लेकर पूछा - आपके यहां NBW का क्या स्टेटस है? दारोगा को तो जैसे होश ही फाख्ता हो गये क्योंकि नियमों के मुताबिक उसने अपने क्षेत्र के ऐसे अपराधियों को जिन पर गड़बड़ी फैलाने की आशंका थी, गिरफ्तार कर जेल भेजा ही नहीं था. केजे राव समझ चुके थे कि कानून व्यवस्था के हिसाब से नाजुक मामलों में स्थानीय पुलिस के भरोसे रहना ठीक नहीं होगा. गया जिले के टेकारी थाने से खबर मिली कि इलाके के दबंग आरजेडी नेता सुरेंद्र यादव मतदाताओं को गलत तरीके से वोट डालने के लिए प्रभावित कर रहा है. केजे राव ने टेकारी सहित सभी संवेदनशील थानों पर अर्धसैनिक बलों को भेज दिया. जैसे ही सुरेंद्र यादव की गतिविधियों की सूचना मिली अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी गयी और थाने उठा लायी. आरजेडी नेता ने पहले तो हमेशा की तरह अपने रुतबे और हैसियत के नाम पर प्रभाव जमाने की कोशिश की, लेकिन जब पैरा मिलिट्री फोर्स के जवानों ने सख्ती दिखायी तब मालूम हुआ कि वे इलाके के पुलिस वाले नहीं हैं - और ये सब उस दुबले पतले लंबे अफसर केजे राव का असर है.
दरअसल, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी मिलते ही केजे राव ने चैलेंज के तौर पर लिया और तत्काल प्रभाव से काम में जुट गये. पटना पहुंच कर सबसे पहले तो उन बूथों की सूची तैयार की जहां पिछले चुनावों में गड़बड़ी की रिपोर्ट मिली थी. उसके बाद जहां भी ऐसी आशंका रही भारी संख्या में अर्धसैनिक बलों को तैनात कर दिया गया.
चुनाव आयोग की तरफ से लोगों से अपील की गयी कि वे निडर होकर निकलें और बगैर किसी दबाव में आये अपने मन से अपने अपने मताधिकार का इस्तेमाल करें. लोगों को भरोसा हुआ और फिर तो बढ़ चढ़ कर वोट देने की होड़ ही लग गयी. केजे राव को चुनावी राजनीति में नये हीरो की तरह देखा गया - और जब भी ऐसी चर्चा होती है राव का नाम लिये बगैर किस्सा अधूरा ही रहता है.
खबरदार जो कुछ भी छिपाये तो
22 अगस्त, 2020 को चुनाव आयोग ने बिहार चुनाव को लेकर गाइडलाइन जारी की थी - और कहा था कि सारी प्रक्रिया कोविड 19 प्रोटोकॉल के तहत होगी. कोविड के चलते ही मतदान की अवधि एक घंटे बढ़ा दी गयी है. पहले मतदान सुबह 7 बजे शुरू होकर 5 बजे खत्म हो जाती थी, लेकिन इस बार समय बढ़ा कर 6 बजे तक कर दिया गया है. साथ ही, बूथों पर 1500 की जगह एक हजार लोगों के वोट डालने के इंतजाम होंगे.
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ऐसे इंतजाम और एहतियाती उपाय तो अपनी जगह हैं ही, राजनीति और अपराध के चले आ रहे गठजोड़ पर भी चुनाव आयोग ने जोरदार प्रहार किया है. पहले तो चुनाव आयोग का आदेश रहा कि उम्मीदवारों और उन्हें टिकट देने वाले दलों को निर्देश दिया था कि चुनाव प्रचार के दौरान कम से कम तीन बार अखबारों में और टीवी पर आपराधिक पृष्ठभूमि के विज्ञापन प्रकाशित किये जायें - अब तो इसके लिए टाइमलाइन भी निर्धारित कर दिया गया है.
फरवरी, 2020 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से ये स्पष्ट करने को कह दिया था कि वे बतायें कि चुनाव लड़ने के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का चयन क्यों किया? चुनाव आयोग की तरफ से आये एक बयान में कहा गया था - ‘ये समय सीमा मतदाताओं को और ज्यादा जानकारी देने के साथ उन्हें अपनी पसंद के उम्मीदवार चुनने में मदद करेगी.’
28 अक्टूबर से शुरू हो रहे चुनाव के दौरान पहली बार सभी राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के से जुड़ी सारी जानकारियां सार्वजनिक करनी होगी. ये भी बताना होगा कि बिना आपराधिक पृष्ठभूमि वाले दूसरे लोग बतौर उम्मीदवार क्यों नहीं चुने जा सके?
चुनाव आयोग के अनुसार, स्थानीय भाषा के एक अखबार के अलावा एक राष्ट्रीय अखबार में भी ये जानकारियां प्रकाशित करानी होंगी. साथ ही, राजनीतिक दलों को अपने आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी इन्हें अनिवार्य रूप से शेयर करना होगा.
चुनाव आयोग ने साफ कर दिया है कि आपराधिक रिकॉर्ड की पहली जानकारी उम्मीदवारी वापस लेने की अंतिम तारीख के शुरुआती चार दिन के भीतर देनी होगी. दूसरी बार नाम वापसी की अंतिम तारीख से पांचवें और आठवें दिन के भीतर और तीसरा यानी आखिरी जारकारी नौंवे दिन से लेकर वोटिंग के दो दिन पहले यानी चुनाव प्रचार खत्म होते होते भी देनी होगी.
अब तक तो जो कुछ ऐसा वैसा रहा होगा वो तो अलग है, अब तो आरजेडी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव, उनके भाई तेज प्रताप यादव और पप्पू यादव के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रतिबंधित क्षेत्र में ट्रैक्टर के साथ प्रदर्शन के लिए IPC की धारा 188 और 353 के तहत FIR दर्ज करायी गयी है - जाहिर है जो कुछ बताना है ये भी उसी में जुड़ने वाला है.
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