18 दिसंबर को एक ट्वीट में चिराग पासवान ने बिहार में एनडीए को 'नाजुक मोड़' से गुजरते हुए देखा था. अब तो लगता है बिहार में एनडीए को आईसीयू से तो छुट्टी मिल गयी है, लेकिन अस्पताल से नहीं - अलग अलग सीटों का बंटवारा बाकी है.
बीजेपी और जेडीयू के बीच तो 50-50 समझौता पहले से ही हो चुका था, झगड़ा सिर्फ बाकी बची सीटों पर रहा. अब अमित शाह, नीतीश कुमार और पासवान पिता पुत्र ने मिल जुल कर झगड़ा सुलझा लिया है. देखा जाये तो बीजेपी को रामविलास पासवान की सभी मांगें माननी पड़ी हैं. क्या ये पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हारने का नतीजा है?
पासवान परिवार के दबाव का असर
उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए छोड़ने के बाद रामविलास पासवान की नजर उनके हिस्से की सीटों पर लगी होगी. बीजेपी और जेडीयू के बीच 17-17 सीटें आपस में बांटे जाने की खबरें जब आईं तो माना गया कि रामविलास पासवान की एलजेपी के हिस्से में चार कुशवाहा को अधिकतम दो सीटें मिल सकती हैं.
कुशवाहा के महागठबंधन में पहुंच जाने के बाद पासवान को लगा कि कहीं बीजेपी और जेडीयू ने आपस में बांट लिया तो क्या होगा?
चिराग पासवान ने एक ट्वीट कर सीट बंटवारे पर सार्वजनिक बहस छेड़ दी. अपने ट्वीट में चिराग पासवान ने बीजेपी के लिए मैसेज भी छोड़ दिया था - 'समय रहते बात नहीं बनी तो इससे नुकसान भी हो सकता है.'
इतना ही नहीं चिराग पासवान ने नोटबंदी का मुद्दा भी उठाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिख कर चिराग पासवान ने पूछा कि इसके फायदे बता दीजिए. एलजेपी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष होने के नाते बीजेपी के लिए इसे खिलवाड़ समझना भी ठीक नहीं था. वैसे चिराग पासवान ने ये कह कर जानकारी मांगी थी कि अपने इलाके के लोगों को वो बताना चाहते हैं कि नोटबंदी से क्या नफा-नुकसान हुआ.
बाकी कसर रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस ने बीजेपी को 31 दिसंबर तक अल्टीमेटम देकर पूरी कर दी. एलजेपी नेता पशुपति पारस का कहना रहा कि बीजेपी को बिहार में तय तारीख तक लोक सभा सीटों पर फैसला कर लेना चाहिये. साथ ही, पशुपति पारस ने अपनी डिमांड भी रख दी, हम चाहते हैं कि हमें 2014 जितनी ही सात सीटें दी जाएं.'
लोक जनशक्ति पार्टी की मांगें पूरी
2014 में बीजेपी की अगुवाई में एनडीए को 40 में से 31 सीटें मिली थीं. तब 31 सीटों में बीजेपी हिस्से में 22, एलजेपी के खाते में 6 और 3 सीटों पर उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को मिली थी. अब एनडीए के नेता दावा कर रहे हैं कि 2019 में पहले से ज्यादा सीटें मिलेंगी. सीटों पर हुए समझौते के बाद अमित शाह ने रामविलास पासवान और चिराग पासवान के साथ एक साझा प्रेस कांफ्रेंस की. उनके साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मौजूद रहे.
रंग लाती है दबाव की राजनीति भी बशर्ते मौका भी माकूल हो...
अमित शाह ने कहा, 'तीनों पार्टियों ने सोचा है कि 2019 में 2014 से भी ज्यादा सीटें बिहार में एनडीए का गठबंधन जीतेगा और फिर से नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनेगी. इस विषय पर तीनों पार्टियों के नेताओं ने अपनी श्रद्धा व्यक्त की है. आने वाले दिनों में कौन सी सीट कौन सी पार्टी लड़ेगी. इस पर भी हम बैठकर चर्चा करेंगे और इस विषय को हम थोड़े समय में फाइनल करेंगे.'
2014 में एलजेपी ने सात सीटों पर चुनाव लड़ा था और उनमें से 6 जीतने में कामयाब रही. 6 में से तीन सीटों पर हाजीपुर से रामविलास पासवान, जमुई से उनके बेटे चिराग पासवान और समस्तीपुर से उनके भाई रामचंद्र पासवान चुनाव जीते थे.
एलजेपी को लोक सभा की तो 6 सीटें ही मिली हैं, लेकिन बीजेपी ने रामविलास पासवान को राज्यसभा में भेजने का वादा किया है. अमित शाह ने इस बात की भी घोषणा की कि देश में जहां कहीं भी सबसे पहले राज्य सभा के लिए चुनाव होंगे, रामविलास पासवान एनडीए के उम्मीदवार होंगे.
इस तरह एलजेपी को लोक सभा की छह और राज्य सभा की एक सीट मिलाकर कुल सात सीटें हो ही गयीं - यही तो पासवान परिवार और पार्टी की मांग थी.
क्या बीजेपी के लिए पासवान की नाराजगी महंगा सौदा होता
आगे की रणनीति के बारे में भी अमित शाह ने बताया - 'एक साझा कैंपेन किस तरह बिहार में चले, जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पासवान और चिराग, हमारे उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी, इन सब ने बैठकर एक कच्चा खाका बनाया है, उसको भी आने वाले दिनों में हम फाइनल एजेंडा लेकर बिहार की जनता के बीच में जाएंगे.'
रामविलास पासवान ने एलजेपी के एनडीए में शामिल होने के फैसले का क्रेडिट बेटे चिराग पासवान को दिया. 11 दिसंबर को पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आये और उसके एक दिन पहले ही उपेंद्र कुशवाहा एलजेपी को अलविदा कह गये थे. चिराग पासवान ने लगता है मौके को ठीक से समझा और दबाव बनाने की कोशिश की.
चुनावों में कांग्रेस की जीत को लेकर चिराग पासवान ने राहुल गांधी की भी तारीफ की थी. उपेंद्र कुशवाहा के जाने के बाद चिराग पासवान का ये बयान बीजेपी के लिए ही था. वो बताना चाह रहे थे कि उनके हिसाब से सम्मानजनक सीटें दो वरना महागठबंधन बहुत दूर नहीं है. बीजेपी-जेडीयू और एलजेपी के बीच सीटों पर समझौते के बाद तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर इसे नोटबंदी पर सवाल पूछने का नतीजा बताया है.
जब एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया तब भी रामविलास पासवान ने दलितों के लिए फैसले पर एक्शन के लिए सरकार पर दबाव बनाया था. पासवान के साथ साथ एनडीए के सारे सांसद एक सुर में बोलने लगे थे.
रामविलास पासवान को एनडीए में बनाये रखना बीजेपी की मजबूरी रही. नया पार्टनर खोजने से जरूरी था कि बीजेपी पुराने साथी को तो साथ बनाये रखे. अभी नये का क्या कहा जाये मिलेगा भी या नहीं कौन कह सकता है?
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