बिहार में रामनवमी जुलूस पर पथराव वाली खबर पर एक डिबेट कल चलते-फिरते दिखी. राजद वाले का वही घिसा पिटा राग था कि ये भाजपा वाले नफरत फैलाने का प्रयास कर रहे हैं. पूरे समय वह पथराव की आलोचना से बचे. ये बात मैंने पहले भी लिखी कि जब तक विपक्षी हर गलत को गलत कहना शुरू नहीं करेंगे, चाहे वह किसी भी तरफ का हो तब तक उनके लिये मोदी सरकार से पार पाना कठिन है.
रामनवमी के जुलूस पर पथराव में आप बचाव करेंगे और मुसलमानों पर किसी हमले में 'लोकतंत्र खतरे में है' चिल्लाएंगे तो एक वक्त के बाद वोटर आपको छोड़ेगा. आतंकियों को जो समर्थन मानवीयता के नाम पर मनमोहन सिंह सरकार के समय शुरू हुआ, वह भी एक बड़ा कारण है भाजपा के पक्ष वोट शिफ्ट होने का.
सीख इन्हें अब भी नहीं मिली क्योंकि इनका एक सवाल एकदम सोशल मीडिया स्टाइल में था कि फलाने समय में जब मुसलमानों पर हमला हुआ था तो कहां थे? एंकर ने सुंदर जवाब दिया कि जब उन पर हमला हुआ तो उनकी बात की, आज रामनवमी जुलूस पर हमला हुआ है तो इनकी बात कर रहे हैं, इसलिए इस पर जवाब दीजिए.
इस देश का आम हिंदू धार्मिक है मगर कट्टर नहीं. तब कहां थे जैसे सवाल असल में अभी के अपराधों को बचाने का जरिया है, चाहे जो पूछे... और ये सवाल आम नागरिक की सोच को धीरे-धीरे कट्टर में बदलते हैं.
राजद वाले पुरानी बात पूछने की बजाय यह जो घटना हुई उसकी आलोचना करते तो विश्वसनीयता बचा पाते. राहुल के बाद लगता है अब राजद भी भाजपा की सरकार बनाने में सहयोग करेगी. बिहार की बाकी बातें बाद में, अभी तो मेरे दूसरे होम स्टेट राजस्थान में जो राजनैतिक गर्मी बढ़ी है उसकी बातों का दौर है.
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