मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पुनः मुख्यमंत्री बनना कोई सरप्राइज की बात नहीं है. बिहार में सियासी उलटफेर के जरिये वे कई बार ऐसा कर चुके हैं. लेकिन, तेजस्वी का लगातार विपक्ष नेता के तौर पर हमलावर रहते हुए अपनी पार्टी को मजबूत करने के साथ विपक्ष में रहते हुए उप मुख्यमंत्री बन जाना जरुर बड़ी बात है. लिहाजा, देखा जाए तो तेजस्वी यादव का उप मुख्यमंत्री बनना तो उनकी सियासी परीक्षा का एक इम्हातेहान पास करना भर है. दरअसल, उनकी नजर बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है. यानी एक तरह से देखा जाए तो तेजस्वी महागठबंधन की सरकार में आकर मुख्यमंत्री के सफर पर निकल चुके हैं.
दरअसल, 1990 से 2005 तक बिहार में लालू-राबड़ी की हुकूमत रही. लालू-राबड़ी के राज में अपहरण, लूट, फिरौती, जंगलराज जैसे तथाकथित आरोप भी लगे. अलबत्ता, नीतीश कुमार मूल रुप से लालू-राबड़ी के विरोध में ही उभरे और मुख्यमंत्री बन गये. इसके साथ ही राजद की सत्ता चली गयी. अब जब महागठबंधन की नयी सरकार बनी है और नीतीश कुमार ने मंत्रीमंडल का विस्तार कर लिया है तब नीतीश कुमार से अधिक जिम्मेदारी तेजस्वी के उपर है.
चूंकि, तेजस्वी नौजवान हैं. राजनीति के लिए उनके पास काफी लंबा समय है. जबकि, नीतीश कुमार की उम्र अब अधिक दिन तक सियासत संभालने योग्य नहीं मालूम देती है. बहरहाल, तेजस्वी के पास अब खुद को व पार्टी को उभारने का बढ़िया मौका है. मंत्रीमंडल विस्तार के बाद तेजस्वी उपमुख्यमंत्री के साथ स्वास्थ्य, पथ निर्माण, ग्रामीण कार्य जैसे अहम मंत्रालय लिये हैं. यह मंत्रालय ऐसा है जिससे किया गया काम सीधे जनता की नजरों में आयेगा.
खासकर सड़क की जरुरत आज के दौर में अहम मानी जाती है....
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पुनः मुख्यमंत्री बनना कोई सरप्राइज की बात नहीं है. बिहार में सियासी उलटफेर के जरिये वे कई बार ऐसा कर चुके हैं. लेकिन, तेजस्वी का लगातार विपक्ष नेता के तौर पर हमलावर रहते हुए अपनी पार्टी को मजबूत करने के साथ विपक्ष में रहते हुए उप मुख्यमंत्री बन जाना जरुर बड़ी बात है. लिहाजा, देखा जाए तो तेजस्वी यादव का उप मुख्यमंत्री बनना तो उनकी सियासी परीक्षा का एक इम्हातेहान पास करना भर है. दरअसल, उनकी नजर बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है. यानी एक तरह से देखा जाए तो तेजस्वी महागठबंधन की सरकार में आकर मुख्यमंत्री के सफर पर निकल चुके हैं.
दरअसल, 1990 से 2005 तक बिहार में लालू-राबड़ी की हुकूमत रही. लालू-राबड़ी के राज में अपहरण, लूट, फिरौती, जंगलराज जैसे तथाकथित आरोप भी लगे. अलबत्ता, नीतीश कुमार मूल रुप से लालू-राबड़ी के विरोध में ही उभरे और मुख्यमंत्री बन गये. इसके साथ ही राजद की सत्ता चली गयी. अब जब महागठबंधन की नयी सरकार बनी है और नीतीश कुमार ने मंत्रीमंडल का विस्तार कर लिया है तब नीतीश कुमार से अधिक जिम्मेदारी तेजस्वी के उपर है.
चूंकि, तेजस्वी नौजवान हैं. राजनीति के लिए उनके पास काफी लंबा समय है. जबकि, नीतीश कुमार की उम्र अब अधिक दिन तक सियासत संभालने योग्य नहीं मालूम देती है. बहरहाल, तेजस्वी के पास अब खुद को व पार्टी को उभारने का बढ़िया मौका है. मंत्रीमंडल विस्तार के बाद तेजस्वी उपमुख्यमंत्री के साथ स्वास्थ्य, पथ निर्माण, ग्रामीण कार्य जैसे अहम मंत्रालय लिये हैं. यह मंत्रालय ऐसा है जिससे किया गया काम सीधे जनता की नजरों में आयेगा.
खासकर सड़क की जरुरत आज के दौर में अहम मानी जाती है. स्वास्थ्य की भी जिम्मेदारी मूलभूत बुनियादी सुविधाओं में प्रमुख है. ऐसे में तेजस्वी अगर धरातल पर अपनी योजनाओं को मूर्त रुप देते हैं और गुणवत्ता पूर्ण सुधारात्मक नीति को लागू बनाए रखने में कामयाब होते हैं तो निश्चित रुप से बिहार का चेहरा बन सकते हैं. आगे वे मुख्यमंत्री के प्रबल दाबेदार तो बन ही गये हैं, लेकिन कलात्मक काम और जमीन से जुड़ने के बाद वह इतना लोकप्रिय बन सकते हैं, जिससे मुख्यमंत्री की कुर्सी का फासला तेजी से कम हो सके.
उप मुख्यमंत्री बन सामाजिक समीकरण की कमान ली अपने हाथ में लालू-राबड़ी की सत्ता एम व्हाय समीकरण के बलबूते पर थी. लेकिन, नीतीश कुमार की भी ऐसी छवि थी की मुस्लिम वर्ग का हिस्सा वोट न दें लेकिन विश्वास जरुर करता है. पिछड़ा व दलित वर्ग के भरोसे के चेहरे नीतीश अभी भी हैं.
लेकिन, अब तेजस्वी न केवल एम व्हाय समीकरण पर बल्कि सूबे के कमोबेश सभी सामाजिक समीकरण पर की कमान ले सकते हैं. इसके लिए उन्हें एम-व्हाइ समीकरण के साथ सभी जातीय समीकरण को अपने विधायक व संगठन के जरिये साधने का पूरा विकल्प खुला हुआ मिल गया है.
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