हाथ में तिरंगा, दिल में जोश ज़बान पर नारे गणतंत्र दिवस के आस पास ऐसी तस्वीरें आम है नहीं? लेकिन बिहार के युवाओं के समूह की तस्वीर गणतंत्र के उत्सव की तस्वीर नहीं थी क्योंकि इन लहराते तिरंगों के पीछे जलती हुई ट्रेन का धुआं भी नज़र आ रहा था. छात्र आंदोलन में हिंसा- जहानाबाद पुलिस पर पथ्थरबाज़ी और भागलपुर के पास ट्रेन की बोगियों में आग. पिछले तीन दिनों में इन खबरों पर चर्चा भी होनी थी और इसे सुलझाने का तरीका भी निकाला जाना चाहिए था. हिंसा के बाद आनन फानन में हुच निर्णय लिए गए.
रेलवे मिनिस्टर ने फ़िलहाल सभी भर्तियों पर रोक लगा दी है और जाँच के आदेश भी दे दिए हैं लेकिन बेरोज़गारी का मुद्दा तब तक नज़र में क्यों नहीं आता जब तक छात्र हिंसा के रस्ते पर नहीं पहुंच जाते.
अच्छी तकनीक के बावजूद परीक्षा में खामियां
रेलवे के परीक्षा में ऊंचनीच की खबर अक्सर आती है. 2021 -2022 में भी हम रेलवे या अन्य सरकारी परीक्षाओं में इस तरह की उलझनों मे फंसते हैं इसकी दो वजहें हो सकती है. पहली हम तकनीक के मामले इतनी बड़ी परीक्षा करवाने में असमर्थ हैं. यह बात सही नहीं हो सकती क्योंकि भारत में हर साल 12 -15 लाख की तादात में छात्र , जेईई और नीट की परीक्षाएं देते है. लाखों छात्र बोर्ड की परीक्षा भी देते हैं जिनके परीक्षा फल में कभी कोई ऐसी बहस नहीं होती.
फिर?
इन परीक्षाओं में केवल फल नहीं नौकरी छिपी है. और इस नौकरी के नाम पर भ्रष्टाचार होने की गुंजाईश कहीं ज़्यादा है. शायद इसी वजह से ऐसी हर परीक्षा में धांधली होने की खबरे आती रहती है. इन परीक्षाओं में राजनितिक हस्तक्षेप भी होता है इसे पुख्ता सबूत भले न हो लेकिन, 'चाचा विधायक हैं', ऐसा डायलॉग बदकिस्मती से यूपी बिहार में...
हाथ में तिरंगा, दिल में जोश ज़बान पर नारे गणतंत्र दिवस के आस पास ऐसी तस्वीरें आम है नहीं? लेकिन बिहार के युवाओं के समूह की तस्वीर गणतंत्र के उत्सव की तस्वीर नहीं थी क्योंकि इन लहराते तिरंगों के पीछे जलती हुई ट्रेन का धुआं भी नज़र आ रहा था. छात्र आंदोलन में हिंसा- जहानाबाद पुलिस पर पथ्थरबाज़ी और भागलपुर के पास ट्रेन की बोगियों में आग. पिछले तीन दिनों में इन खबरों पर चर्चा भी होनी थी और इसे सुलझाने का तरीका भी निकाला जाना चाहिए था. हिंसा के बाद आनन फानन में हुच निर्णय लिए गए.
रेलवे मिनिस्टर ने फ़िलहाल सभी भर्तियों पर रोक लगा दी है और जाँच के आदेश भी दे दिए हैं लेकिन बेरोज़गारी का मुद्दा तब तक नज़र में क्यों नहीं आता जब तक छात्र हिंसा के रस्ते पर नहीं पहुंच जाते.
अच्छी तकनीक के बावजूद परीक्षा में खामियां
रेलवे के परीक्षा में ऊंचनीच की खबर अक्सर आती है. 2021 -2022 में भी हम रेलवे या अन्य सरकारी परीक्षाओं में इस तरह की उलझनों मे फंसते हैं इसकी दो वजहें हो सकती है. पहली हम तकनीक के मामले इतनी बड़ी परीक्षा करवाने में असमर्थ हैं. यह बात सही नहीं हो सकती क्योंकि भारत में हर साल 12 -15 लाख की तादात में छात्र , जेईई और नीट की परीक्षाएं देते है. लाखों छात्र बोर्ड की परीक्षा भी देते हैं जिनके परीक्षा फल में कभी कोई ऐसी बहस नहीं होती.
फिर?
इन परीक्षाओं में केवल फल नहीं नौकरी छिपी है. और इस नौकरी के नाम पर भ्रष्टाचार होने की गुंजाईश कहीं ज़्यादा है. शायद इसी वजह से ऐसी हर परीक्षा में धांधली होने की खबरे आती रहती है. इन परीक्षाओं में राजनितिक हस्तक्षेप भी होता है इसे पुख्ता सबूत भले न हो लेकिन, 'चाचा विधायक हैं', ऐसा डायलॉग बदकिस्मती से यूपी बिहार में केवल डायलॉग नहीं बल्कि दबंगई की सच्चाई भी है.
छात्र पढ़ने के अलावा सब करते हैं
जब भी कोई छात्र आंदोलन शुरू होता है उसे सबसे पहले यह कह कर नकारा जाता है की आज के छात्र पढ़ने के अलावा सब कुछ करते हैं. इस बात का ताल्लुक शायद इसी से है कि हम सवाल पूछने को द्रोह मानते हैं. किसी भी सवाल को उठाने वाले युवा को अक्सर, बिगडा या भटका हुआ मान लिया जाना नया नहीं है. यही वजह है की छात्रों से संबंधित कोई भी मुद्दा लोगो की निगाह में नहीं आता.
अपनी बात शांति से कहने की कोशिश में सोशल मिडिया पर कैम्पेन, संबंधित अफसरों अधिकारीयों से बात चीत अपनी बात, नई सोच ,अपने सवाल रखने की कोशिश भी होती है लेकिन अक्सर निराशा हाथ लगती है. और फिर ये निराशा आक्रोश में बदलती है आक्रोश आंदोलन में और इस रोष का इस्तेमाल अक्सर अराजक तत्व अपने लिए करते हैं और फिर वही होता है जो हुआ.
छात्र आंदोलन में हिंसा, क्या वाकई छात्र की वजह से ही होती है?
वो छात्र जो अपनी नौकरी के लिए मेहनत कर परीक्षा देने गया है और उस परीक्षाफल के इंतज़ार में बैठा है, जिसे पता है की आज हिंसा करने वालों के घर पर नुकसान का बिल पहुंचा दिया जाता है जो की यकीनन सही है ऐसे में हिंसा की हिम्मत कहां से आती है?
आम छात्र कैसे क्यों पब्लिक प्रॉपर्टी यानि आम जनमानस के इस्तेमाल में आने वाले यातायात के साधन को तोड़फोड़ जला कर अपना रोष प्रकट करते हैं. क्या वो पढ़ालिखा छात्र ये भूल जाता है की ये पैसे उसके या हमारे परिवार की जेब से ही जायेंगे?
ये वो बातें हैं जिन्हे सोचना और उलझे हुए धागों को सुलझाने की कोशिश की जानी बहुत ज़रूरी है. छात्र देश का भविष्य है और भविष्य को भ्र्ष्टाचार की बलि नहीं चढ़ाया जा सकता. परीक्षा छात्र के समझ और उसकी काबिलियत की होती है लेकिन जब ऐसी परीक्षा छात्र को उम्मीद की जगह अस्थिर भविष्य दे तो आंदोलन का बीज पड़ता है जो फलते फूलते गणतंत्र के लिए अच्छा सूचक नहीं है.
हां, इन छात्रों को केवल भटका हुआ युवा मत मानिये. जिस संविधान का मोटी पुस्तक के बीच दम घुट रहा होता है उसे यही युवा हाथ में ले कर अमल में लाने की शपथ भी लेता है और वाजिब सवाल पूछ कर जनतंत्र को ज़िंदा भी रखता है.
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