पाकिस्तान एक ऐसा देश है जहां पर इमरान खान को एक भारतीय सैनिक को वापस करने के लिए नोबेल पुरुस्कार के लिए नामांकित करने की मांग उठने लगती है जबकि भारत का सैनिक वापस करना पकिस्तान की मजबूरी थी. और पाकिस्तान एक ऐसा देश भी है जहां एक आतंकवादी (मसूद अजहर) खुद कहता है कि वो पाकिस्तान में ही है और पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ये बयान देते हैं कि जैश ए मोहम्मद तो उनके देश में है ही नहीं.
खैर, पाकिस्तान से ही दो नामी लोगों ने इमरान के नोबेल और जैश की असलियत का भांडा फोड़ दिया है. सबसे पहले बात करते हैं इमरान के नोबेल पुरुस्कार की. जी हां, वो पुरुस्कार जो इमरान खान को शांति के लिए दिया जाना चाहिए था (पाकिस्तानी जनता के अनुसार). पाकिस्तान में #NobelPrizeForImran हैशटैग बहुत ट्रेंड करने लगा था.
इस हैशटैग के बाद पाकिस्तानी संसद में भी ये बात शुरू हुई थी कि इमरान खान को तो नोबेल पुरुस्कार के लिए नामांकित करना ही चाहिए. पर ये लोग ये बात भूल गए कि पाकिस्तान की मजबूरी थी विंग कमांडर अभिनंदन को छोड़ना क्योंकि न ही वो जंग के कैदी थे और न ही आधिकारिक तौर पर उन्होंने पाकिस्तान का कोई नुकसान पहुंचाया था. और साथ ही पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ये सबूत भी देना होता कि उन्होंने विंग कमांडर अभिनंदन को आखिर क्यों कैद कर रखा है.
पर इमरान की जनता को तो उनमें सफेद कबूतर ही नजर आ रहा था और उनके शांति दूत होने की बात भी कर रहे थे. पर इस बात की असलियत खुद पाकिस्तानी संसद में ही दिखा दे गई जब पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के चीफ बिलावल भुट्टो जरदारी ने इमरान खान के नोबेल के सपने की धज्जियां उड़ा दीं.
बिलावल अली भुट्टो ने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री के...
पाकिस्तान एक ऐसा देश है जहां पर इमरान खान को एक भारतीय सैनिक को वापस करने के लिए नोबेल पुरुस्कार के लिए नामांकित करने की मांग उठने लगती है जबकि भारत का सैनिक वापस करना पकिस्तान की मजबूरी थी. और पाकिस्तान एक ऐसा देश भी है जहां एक आतंकवादी (मसूद अजहर) खुद कहता है कि वो पाकिस्तान में ही है और पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ये बयान देते हैं कि जैश ए मोहम्मद तो उनके देश में है ही नहीं.
खैर, पाकिस्तान से ही दो नामी लोगों ने इमरान के नोबेल और जैश की असलियत का भांडा फोड़ दिया है. सबसे पहले बात करते हैं इमरान के नोबेल पुरुस्कार की. जी हां, वो पुरुस्कार जो इमरान खान को शांति के लिए दिया जाना चाहिए था (पाकिस्तानी जनता के अनुसार). पाकिस्तान में #NobelPrizeForImran हैशटैग बहुत ट्रेंड करने लगा था.
इस हैशटैग के बाद पाकिस्तानी संसद में भी ये बात शुरू हुई थी कि इमरान खान को तो नोबेल पुरुस्कार के लिए नामांकित करना ही चाहिए. पर ये लोग ये बात भूल गए कि पाकिस्तान की मजबूरी थी विंग कमांडर अभिनंदन को छोड़ना क्योंकि न ही वो जंग के कैदी थे और न ही आधिकारिक तौर पर उन्होंने पाकिस्तान का कोई नुकसान पहुंचाया था. और साथ ही पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ये सबूत भी देना होता कि उन्होंने विंग कमांडर अभिनंदन को आखिर क्यों कैद कर रखा है.
पर इमरान की जनता को तो उनमें सफेद कबूतर ही नजर आ रहा था और उनके शांति दूत होने की बात भी कर रहे थे. पर इस बात की असलियत खुद पाकिस्तानी संसद में ही दिखा दे गई जब पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के चीफ बिलावल भुट्टो जरदारी ने इमरान खान के नोबेल के सपने की धज्जियां उड़ा दीं.
बिलावल अली भुट्टो ने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री के लिए नोबेल पुरुस्कार की बात हो रही है. और अच्छा हुआ कि इस संसद ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया. क्योंकि अगर नहीं करते तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की बहुत बेइज्जती होती. ये वो दौर है जब फाइटर प्लेन आसमान से गिर रहे हैं, पाकिस्तान न्यूक्लियर युद्ध के मुहाने में खड़ा है, हमारे सैनिक शहीद हो रहे हैं उस समय इनको नोबेल पुरुस्कार चाहिए.
इसी के साथ, बिलावल अली भुट्टो ने ये भी कहा कि पाकिस्तान आतंकी संगठनों पर लगाम लगा पाने में असमर्थ है. ये एक ऐसा देश है जहां चुने हुए प्रधानमंत्री को सूली पर चढ़ा दिया जाता है और यहां आतंकी संगठनों को हर तरीके की सुविधा प्राप्त है.
ये बिलावल अली भुट्टो की स्पीच के कुछ हिस्से थे जिसमें उन्होंने इमरान खान की स्थिति भी समझा दी. और ये सही भी है. जब पाकिस्तान आतंकी संगठनों पर लगाम नहीं लगा सकता, जब पाकिस्तान अपनी सेना को नहीं संभाल सकता और शहीदों की गिनती भी नहीं कर सकता तो फिर क्यों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को नोबेल पुरुस्कार के लिए नामांकित हों? ये तो सच्चाई है पाकिस्तान की जो पाकिस्तानी सरकार दुनिया के सामने नहीं लाना चाहती.
जहां एक ओर पाकिस्तानी सरकार के झूठ की बात चल ही रही है तो हम क्यों न उस झूठ की बात करें तो हाल ही में बहुत ज्यादा बार पाकिस्तान की तरफ से दोहराया गया है. वो ये कि जैश और आतंकी हमलों में पाकिस्तान का कोई हाथ नहीं और पाकिस्तानी सरकार एकदम पाक साफ है. पर इस बात का सबूत तो परवेज मुशर्रफ ने ही दे दिया जो कहते हैं कि पाकिस्तान ने आतंकी संगठनों के खिलाफ इसलिए कोई कार्यवाई नहीं की क्योंकि उनकी मदद से भारत में बम ब्लास्ट करवाए जा रहे थे. इसलिए न ही आर्मी ने न ही उनकी सरकार ने इसका कोई लोड लिया.
परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान के हम न्यूज को दिए एक टेलिफोनिक इंटरव्यू में ये बात कही. उन्होंने जैश के खिलाफ पाकिस्तान के ऑपरेशन को सही कहा उसकी तारीफ की और साथ ही ये भी कहा कि जैश-ए-मोहम्मद ने उन्हें मारने की कोशिश की थी.
उस समय ये भी सवाल किया गया कि आखिर क्यों परवेज जी ने खुद बड़ी पोस्ट पर होने के बाद भी इस तरह के संगठनों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया उनका कहना था कि 1999-2008 के बीच का समय अलग था.
ये खुलासा बताता है कि पाकिस्तानी सरकार शुरू से ही भारत के खिलाफ आतंकी साजिशों में इन संगठनों का साथ देती रही है. पाकिस्तान में न जाने कितने ऐसे आतंकी संगठन हैं जिन्हें दुनिया की नजर में तो बैन कर दिया गया है, लेकिन असलियत में उन संगठनों के नाम बदलकर उन्हें आतंक के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
इस तरह के खुलासे खुद पाकिस्तानी नागरिक ही कर रहे हैं और फिर भी पाकिस्तान कहता है कि अब वो बदल गया है और अब वहां आतंकवाद नहीं है. इससे बड़ा झूठ शायद ही पाकिस्तान की तरफ से कभी सुनने को मिला हो. पाकिस्तान में जहां सिरे से इस बात को नकारा जा रहा है कि वहां जैश का अस्तित्व ही नहीं है वहां परवेज मुशर्रफ का ये बयान साबित करता है कि इस तरह के आतंकी संगठन सरकार द्वारा पाले हुए हैं.
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