2019 का चुनावी बिगुल अभी बजा नहीं है लेकिन भाजपा की तरफ से तैयारी शुरू हो चुकी है. पार्टी प्रमुख अमित शाह का राज्यों का दौरा शुरू हो चुका है. वो पार्टी कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं, जनता की नब्ज समझने की कोशिश कर रहे हैं और नए घटक दल ढूंढ़ रहे हैं. अभी कुछ दिन पहले ही एक इंटरव्यू में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य स्तर पर चुनावी गठबंधन की बात की थी. उन्होंने राज्य स्तर पर माइक्रो अलायन्स की तरफ इशारा किया था. ममता बनर्जी का मानना है कि जब देश की 75 लोकसभा सीटों पर विपक्ष के बीच स्पष्ट तालमेल नहीं होता, मोदी को हराया नहीं जा सकता. मोदी की इलेक्शन मशीन अजेय रहेगी. लेकिन अब लगता है कि ममता का यह विचार भाजपा के चुनावी थिंक टैंक की नजर से बच नहीं पाया. और विरोधियों की ऐसी कोई मुहिम शुरू होने से पहले ही सत्तारुढ़ दल बीजेपी ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है.
रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी के मुखिया ने सारी राज्य इकाइयों को संभावित घटक दलों की लिस्ट तैयार करने को कहा है. पार्टी प्रमुख अपने दौरे के समय राज्य के नेताओं से इस बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे. वैसे यह स्ट्रेटेजी भाजपा के लिए नई नहीं है. 2014 के लोक सभा चुनाव के दौरान भी पार्टी ने छोटे लेकिन कारगर आंचलिक दलों से हाथ मिलाया था. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और अपना दल ने तो उत्तर प्रदेश और बिहार में भाजपा को अभूतपूर्व सफलता दिलाई थी. 2014 के लोक सभा चुनाव से पहले भाजपा ने कुछ 28 दलों से हाथ मिलाया था. उसके बाद विधान सभा चुनाव में भी यही रणनीति अपनाई थी. उसका नतीजा असम और त्रिपुरा में सबको नजर आया.
इस रणनीति के तहत ऐसे छोटे दलों के साथ गठबंधन किया जाता है जिनकी शायद पूरे...
2019 का चुनावी बिगुल अभी बजा नहीं है लेकिन भाजपा की तरफ से तैयारी शुरू हो चुकी है. पार्टी प्रमुख अमित शाह का राज्यों का दौरा शुरू हो चुका है. वो पार्टी कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं, जनता की नब्ज समझने की कोशिश कर रहे हैं और नए घटक दल ढूंढ़ रहे हैं. अभी कुछ दिन पहले ही एक इंटरव्यू में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य स्तर पर चुनावी गठबंधन की बात की थी. उन्होंने राज्य स्तर पर माइक्रो अलायन्स की तरफ इशारा किया था. ममता बनर्जी का मानना है कि जब देश की 75 लोकसभा सीटों पर विपक्ष के बीच स्पष्ट तालमेल नहीं होता, मोदी को हराया नहीं जा सकता. मोदी की इलेक्शन मशीन अजेय रहेगी. लेकिन अब लगता है कि ममता का यह विचार भाजपा के चुनावी थिंक टैंक की नजर से बच नहीं पाया. और विरोधियों की ऐसी कोई मुहिम शुरू होने से पहले ही सत्तारुढ़ दल बीजेपी ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है.
रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी के मुखिया ने सारी राज्य इकाइयों को संभावित घटक दलों की लिस्ट तैयार करने को कहा है. पार्टी प्रमुख अपने दौरे के समय राज्य के नेताओं से इस बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे. वैसे यह स्ट्रेटेजी भाजपा के लिए नई नहीं है. 2014 के लोक सभा चुनाव के दौरान भी पार्टी ने छोटे लेकिन कारगर आंचलिक दलों से हाथ मिलाया था. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और अपना दल ने तो उत्तर प्रदेश और बिहार में भाजपा को अभूतपूर्व सफलता दिलाई थी. 2014 के लोक सभा चुनाव से पहले भाजपा ने कुछ 28 दलों से हाथ मिलाया था. उसके बाद विधान सभा चुनाव में भी यही रणनीति अपनाई थी. उसका नतीजा असम और त्रिपुरा में सबको नजर आया.
इस रणनीति के तहत ऐसे छोटे दलों के साथ गठबंधन किया जाता है जिनकी शायद पूरे राज्य में अच्छी पकड़ न हो, लेकिन किसी सामाजिक इकाई में काफी वोट है. यह भी एक तरह की सोशल इंजीनियरिंग है, स्ट्रेटेजी नई नहीं है पर अलग है. और जिस तर्ज पर भाजपा 2019 के चुनाव से पहले यह गठबंधन करने जा रही होगी उस तर्ज पे इस तरह की सोशल इंजीनियरिंग देश में शायद ही कभी हुई होगी.
बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की छोटी पार्टियों पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं. सीटों पर भी नए सिरे से चर्चा शुरू हो गई है. सुहेलदेव पार्टी और अपना दल तो एनडीए के पुराने साथी हैं. बीजेपी की यही कवायद बिहार में भी है. अमित शाह और नीतीश कुमार की मुलाकात इसी रणनीति का हिस्सा है. इसके अलावा भाजपा जितन राम मांझी के पार्टी के भीतर भी घुसपैठ करना चाहती है.
इस स्ट्रेटेजी से भजपा शायद दो फायदे उठाना चाहती है- पहला, अपना वोट बैंक मजबूत करना. क्योंकि 2019 में कुछ एंटी इंकम्बेंसी तो होगी ही, और जिन राज्यों में भाजपा सत्तारूढ़ है वहां तो दोगुनी एंटी इंकम्बेंसी से पार्टी को जूझना पढ़ेगा. तो नए गठबंधन से कुछ एंटी इंकम्बेंसी पर काबू पाने की कोशिश है. दूसरा, राज्य स्तर पर अगर विरोधी दलों का चुनावी समझौता हो भी जाए तो उससे होने वाले नुकसान को कम किया जा सके. अब देखना है कि विरोधी पार्टियों की तरफ से इससे निपटने की कोशिश कैसे की जाएगी.
ये भी पढ़ें-
इमरान खान जानते हैं पाकिस्तान चुनाव में 'मोदी' का जिक्र किस तरह फायदा देगा
यूपी में विपक्षी एकता से बड़ा खतरा तो बीजेपी के भीतर छुपा है
2019 चुनाव में तीसरा मोर्चा न हुआ तो विकल्प बेल-गाड़ी या जेल-गाड़ी
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.