मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) गुजरात चुनाव के समय से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पर हमलावर हैं. न तो वो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से इस मामले में कम लगते हैं, न ही मणि शंकर अय्यर से ज्यादा - लेकिन अपनी बातों पर वो लगातार टिके हुए हैं और उनको चुप कराना बीजेपी नेताओं के लिए मुश्किल हो रहा है.
मल्लिकार्जुन खड़गे भी वैसी ही बातें कर रहे हैं जिन्हें कुछ दिनों से राजनीतिक बयानबाजी गिरते स्तर से जोड़ कर देखा रहा है. कभी कभार ऐसी बातों पर चिंता भी जतायी जाती है - लेकिन तभी मामला ऐसा मोड़ लेता है कि बहस बदल जाती है. हाल के चुनाव तो बीत चुके हैं और आगे के चुनावों में अभी वक्त भी, लेकिन बहस खत्म नहीं हो रही है.
प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी को लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे चुनावी रैली से शुरू कर भारत जोड़ो यात्रा के बीच से गुजरते हुए, 'रावण' से लेकर 'कुत्ता' और 'चूहा' जैसी उपमायें देते आये हैं, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी नेताओं के लिए खड़गे को चुप कराना मुश्किल हो रहा है.
हालत ये हो चली है कि माफी मांगने की कौन कहे, मल्लिकार्जुन खड़गे को जैसे जैसे घेरने की कोशिश हो रही है वो बीजेपी को ही पलट कर घेर लेते हैं. और फिर जैसे तैसे मामला बेनतीजा ही खत्म होने जैसा भी लगता है - और तभी मल्लिकार्जुन खड़गे और मोदी के ठहाकों के बीच लंच करने की तस्वीर भी सामने आ जाती है. फिर तो राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ का ये कहना भी समझ में नहीं आता कि 'लोग हम पर हंस रहे हैं... ' बेशक लोग हंस तो रहे हैं, लेकिन क्या उसी बात पर जिस पर सभापति यानी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को लगता या फिर वो समझाने की कोशिश करते हैं?
मल्लिकार्जुन खड़गे को मणिशंकर अय्यर की तरह हिंदी की कम जानकारी बता कर कदम पीछे खींचने की भी जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि दक्षिण का होकर भी उनको हिंदी से परहेज नहीं है और पूरा भाषण हिंदी में देते हैं - और राहुल गांधी की तरह कभी दक्षिण और उत्तर भारत के लोगों की राजनीतिक समझ पर सवाल भी नहीं...
मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) गुजरात चुनाव के समय से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पर हमलावर हैं. न तो वो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से इस मामले में कम लगते हैं, न ही मणि शंकर अय्यर से ज्यादा - लेकिन अपनी बातों पर वो लगातार टिके हुए हैं और उनको चुप कराना बीजेपी नेताओं के लिए मुश्किल हो रहा है.
मल्लिकार्जुन खड़गे भी वैसी ही बातें कर रहे हैं जिन्हें कुछ दिनों से राजनीतिक बयानबाजी गिरते स्तर से जोड़ कर देखा रहा है. कभी कभार ऐसी बातों पर चिंता भी जतायी जाती है - लेकिन तभी मामला ऐसा मोड़ लेता है कि बहस बदल जाती है. हाल के चुनाव तो बीत चुके हैं और आगे के चुनावों में अभी वक्त भी, लेकिन बहस खत्म नहीं हो रही है.
प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी को लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे चुनावी रैली से शुरू कर भारत जोड़ो यात्रा के बीच से गुजरते हुए, 'रावण' से लेकर 'कुत्ता' और 'चूहा' जैसी उपमायें देते आये हैं, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी नेताओं के लिए खड़गे को चुप कराना मुश्किल हो रहा है.
हालत ये हो चली है कि माफी मांगने की कौन कहे, मल्लिकार्जुन खड़गे को जैसे जैसे घेरने की कोशिश हो रही है वो बीजेपी को ही पलट कर घेर लेते हैं. और फिर जैसे तैसे मामला बेनतीजा ही खत्म होने जैसा भी लगता है - और तभी मल्लिकार्जुन खड़गे और मोदी के ठहाकों के बीच लंच करने की तस्वीर भी सामने आ जाती है. फिर तो राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ का ये कहना भी समझ में नहीं आता कि 'लोग हम पर हंस रहे हैं... ' बेशक लोग हंस तो रहे हैं, लेकिन क्या उसी बात पर जिस पर सभापति यानी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को लगता या फिर वो समझाने की कोशिश करते हैं?
मल्लिकार्जुन खड़गे को मणिशंकर अय्यर की तरह हिंदी की कम जानकारी बता कर कदम पीछे खींचने की भी जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि दक्षिण का होकर भी उनको हिंदी से परहेज नहीं है और पूरा भाषण हिंदी में देते हैं - और राहुल गांधी की तरह कभी दक्षिण और उत्तर भारत के लोगों की राजनीतिक समझ पर सवाल भी नहीं उठाते.
राहुल गांधी तो शुरू से ही बीजेपी के लिए आसान शिकार रहे हैं, यहां तक कि उत्तर प्रदेश सहित कई जगहों पर प्रियंका गांधी को भी घेरना बीजेपी के लिए कई बार मुश्किल लगता है. तब भी जब अक्सर चुनावों से पहले प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा की गिरफ्तारी की आशंका जतायी जाने लगती है.
मल्लिकार्जुन खड़गे को भी कठघरे में खड़ा करना बीजेपी के लिए थोड़ा मुश्किल लग रहा है. स्वाभाविक रूप से खड़गे में कुछ खासियत भी ऐसी ही हैं, जाहिर है कांग्रेस के लिए अध्यक्ष पद के लिए अघोषित अधिकृत उम्मीदवार तय करने में भी यही सब आधार बना होगा. अब तो मल्लिकार्जुन खड़गे गांधी परिवार के संभावित पैमानों पर खरे उतरते भी कहे जा सकते हैं.
जैसे बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी को नीचे से उठ कर आने का प्रचार करती रही है, मल्लिकार्जुन खड़गे भी तो वैसे ही जमीन से उठ कर आये हैं. अगर मोदी बीजेपी का सबसे बड़ा ओबीसी चेहरा हैं, तो खड़गे अब कांग्रेस का सबसे बड़ा दलित चेहरा बन गये हैं. लगातार चुनाव भी जीतने का उनका रिकॉर्ड है, बस एक बार 2019 में निजी वजहों से गड़बड़ हो गया - और उसी को लेकर कांग्रेस नेता शशि थरूर बार बार याद भी दिलाते रहे.
मल्लिकार्जुन खड़गे का लंबा राजनीतिक अनुभव रहा है और वो जानते हैं कि कब और कहां, और कितना बोला जा सकता है - राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे में एक बड़ा फर्क यही है. वैसे हाल के एक प्रेस कांफ्रेंस में 2024 के आम चुनाव को लेकर पूछे गये सवाल पर राहुल गांधी ने खुद ही बताया था कि अब वो काफी समझदार हो गये हैं. मतलब, अब ऐसा नहीं होगा कि बातों में फंसाकर कोई उनसे ऐसी साउंडबाइट ले ले जो हेडलाइन बन सके. ऐसा लगता है ये सब भी राहुल गांधी की तरफ से मल्लिकार्जुन खड़गे को हैंडओवर कर दिया गया है.
कुछ मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि कांग्रेस के कुछ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के आक्रामक रुख से थोड़े परेशान भी हैं. खासकर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ उनके निजी हमलों को लेकर, लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे ये भी जानते हैं कि अगर ये सब राहुल गांधी को पसंद है तो बाकियों से क्या फर्क पड़ता है? हो ये रहा है कि बीजेपी नेताओं के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे को निजी तौर पर निशाना बनाना मुश्किल हो रहा है - और वो तो जैसे बेलगाम ही हुए जा रहे हैं.
राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच अभी तो बुनियादी फर्क ऐसे ही समझा जा सकता है कि महात्मा गांधी की हत्या के मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बयान देकर मुकदमा लड़ रहे हैं, लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे से जब बीजेपी नेता पीयूष गोयल माफी मांगने को कहते हैं तो अलग ही धमकाने लगते हैं - और थोड़ी देर के लिए सदन शोर मचाने से ज्यादा कोई उपाय पीयूष गोयल और उनके साथी बीजेपी नेताओं को भी नहीं सूझ रहा है.
माफी के नाम पर महाभारत
मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष के साथ साथ अभी राज्य सभा में विपक्ष के नेता भी हैं - और जब केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल संसद के बाहर उनके बयान के लिए अंदर मांगी मांगे जाने की डिमांड पेश करते हैं.
राज्य सभा में सदन के नेता कहते हैं, आजादी के बाद गांधी जी ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी को समाप्त कर देना चाहिये... और मल्लिकार्जुन खड़गे उसके जीते-जागते प्रतीक हैं... शायद गांधी जी ने सही कहा था. वो देश को दिखा रहे हैं कि वो ऐसी पार्टी के अध्यक्ष हैं... जिन्हें भाषण देने तक नहीं आता... मल्लिकार्जुन खड़गे जब तक माफी नहीं मांगते हैं, सदन में आने का उनको कोई हक नहीं है.'
लेकिन पीयूष गोयल की मांग तत्काल प्रभाव से खारिज कर देते हैं. ऊपर से धमकाते भी हैं, लेकिन वैसे तो बिलकुल नहीं जैसे राहुल गांधी कहा करते थे कि बोलूंगा तो भूकंप आ जाएगा. कहते हैं, बाहर जो कहा... अगर वो यहां पर बोल देंगे तो इन लोगों के लिए बड़ी दिक्क्त हो जाएगी.
और फिर समझाते हैं, ऐसा क्यों हो सकता है. मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना होता है, आजादी के वक्त माफी मांगने वाले लोग उन लोगों से माफी मांगने को कह रहे हैं जो आजादी के लिए लड़े हैं.
फिर पूछ भी लेते हैं, जो कहा वो क्या सच नहीं है? मल्लिकार्जुन खड़गे को पता है, बाहर कुछ भी कहो, सदन में वे शब्द असंसदीय हो जाएंगे. अगर बोल पड़े तो रिकॉर्ड से तो हटा ही दिये जाएंगे - और हो सकता है माफी मांगने को मजबूर भी होना पड़े.
मल्लिकार्जुन खड़गे को भी मालूम है कि झारखंड की चुनावी रैली में 'रेप इन इंडिया' बोल कर राहुल गांधी के बच जाने - और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के नाथूराम गोडसे को देशभक्त बता कर माफी मांगने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
पूरी चतुराई से मल्लिकार्जुन खड़गे कहते हैं, अलवर में ये बात आई कि देश में एकता के लिए कांग्रेस पार्टी जो यात्रा निकाल रही है... बीजेपी उसे 'भारत तोड़ो यात्रा' कह रही है... तब मैंने ये कहा कि कांग्रेस पार्टी हमेशा देश को जोड़ने की बात करती है... इसके लिए इंदिरा गांधी जी ने अपनी जान दी, राजीव गांधी जी ने अपनी जान दी.
और बीजेपी सांसदों को संबोधित करते हुए पूछते हैं, आप लोगों में किसने इस देश की एकता के लिए अपनी जान दी है... मैंने ये जो कहा क्या ये सच नहीं है?
भाव वही रहता है, लेकिन शब्द बदल जाते हैं. अलवर और राज्य सभा के भाषण में कोई खास फर्क नहीं है, सिवा कुछ खास शब्दों के. अलवर में मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना था, 'क्या आपका एक कुत्ता भी देश के लिए मरा था?
पूरे रौ में बहे जा रहे मल्लिकार्जुन खड़गे हद से ज्यादा झल्लाये हुए से बोले, 'बाहर तो शेर की तरह बात करते हैं... लेकिन उनका जो चलना है वो चूहे के जैसा है... आपके घर में देश के लिए कोई कुत्ता भी मरा है?'
एजेंडा कौन सेट कर रहा है?
मुद्दे की बात ये है कि बीजेपी नेताओं में वैसी आक्रामता नहीं नजर आ रही है, जो 2013 में कांग्रेस नेताओं की तरफ से देखी गयी थी. वो भी तब जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही थी - और अरविंद केजरीवाल वाले अन्ना हजारे आंदोलन के बाद बीजेपी दिल्ली की तरफ तेजी से बढ़ने लगी थी.
तब भी एक राजनीतिक बयान में कुत्ते का जिक्र आया था, लेकिन तब कुत्ते के बच्चे की बात हुई थी - और ये बयान तब बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी का ही रहा.
तभी न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने मोदी से पूछा था, क्या जो हुआ उसका उन्हें पछतावा है? ये सवाल गुजरात में हुए 2002 के दंगों को लेकर था. हाल के गुजरात चुनाव में भी गुजरात दंगे का जिक्र आया था, और किसी और की तरफ से नहीं बल्कि अमित शाह ने खुद दंगे की याद दिलाते हुए कहा था कि बीजेपी सरकार ने दंगाइयों को सबक सिखाया था.
मोदी का कहना रहा, 'अगर आप कार में जा रहे हों... और चाहे आप कार न चला रहे हों, तो भी... अगर कार के नीचे कुत्ते का एक बच्चा आ जाता है तो आपको दुख होता है. इंसान होने के नाते कुछ गलत होता है तो दुख होता है.'
तब रायटर्स का ये भी सवाल था कि क्या 2002 में आपने जो किया वो सही था? मोदी ने तब जो कहा था, गुजरात चुनाव में अमित शाह उसी बात की याद दिला रहे थे, 'ऊपर वाले में हमें जो बुद्धि दी है... मुझे जितना अनुभव है... और उस परिस्थिति में जितना संभव था... जो किया गया बिल्कुल सही था... और एसआईटी ने जांच में यही पाया.'
गुजरात चुनाव के दौरान मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना रावण से कर डाली थी, जिस पर बाकी बीजेपी नेताओं के साथ साथ प्रधानमंत्री मोदी ने भी रिएक्ट किया था - और कई बार जिक्र भी किया था, लेकिन महत्वपूर्ण बात ये रही कि मोदी ने भी उस बयान के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे को दोषी नहीं बताया था.
प्रधानमंत्री मोदी ने खुद की तुलना रावण से किये जाने बावजूद, मल्लिकार्जुन खड़गे नहीं बल्कि गांधी परिवार पर ही तोहमत जड़ी थी. मोदी का कहना रहा कि जो कुछ उनसे बोला जाएगा, वो तो वहीं कहेंगे ना.
ये वो मामला नहीं लगता जिसमें किसी को संदेह का लाभ दिये जाने की बात होती है, बल्कि ये तो बाइज्जत बरी करने जैसा है और किसी और को दोषी बताने जैसा ही है - फिर तो साफ है, मल्लिकार्जुन खड़गे को सामने लाकर कांग्रेस पूरा फायदा उठा रही है, और बीजेपी को बच बचाकर काउंटर करना पड़ रहा है. यहां तक कि राजनीति में तेजधार हमलों के लिए माहिर मोदी को भी राजनीतिक बयान देकर काम चलाना पड़ रहा है.
कांग्रेस के सब कुछ राहुल गांधी महाराष्ट्र जाकर सावरकर के माफी को मुद्दा बनाते हुए जानबूछ कर बेमौसम बहस शुरू कराते हैं. और अगले दिन मीडिया को कागज भी दिखाते हैं - और खूब बवाल होता है, लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे साफ बच कर निकल जाते हैं.
ये तो ऐसा लगता है जैसे बीजेपी एजेंडा सेट करना चाहती है, लेकिन जो तरीके अपना रही है, बैकफायर कर रहा है - और मल्लिकार्जुन खड़गे को देखें तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी से बेहतर ढंग से बीजेपी को घेर रहे हैं. धीरे धीरे संजीदगी के साथ एक दायरे में रख कर सब कुछ कह दे रहे हैं - और बड़े आराम से बच कर निकलते भी लग रहे हैं.
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