बाद में जो भी हो, मुकुल रॉय की बीजेपी में अभी जो स्थिति है उससे बेहतर तो तृणमूल में तब भी रही होगी जब वो छोड़ने की घोषणा कर चुके होंगे. बीजेपी ज्वाइन करने का फायदा बस इतना ही हुआ है कि उन्हें वाय कैटेगरी की सुरक्षा मिल गयी है - और भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर जवाब देने की जरूरत नहीं रही - न तो सीबीआई को, न मीडिया को और न किसी राजनीतिक विरोधी को. वैसे भी तृणमूल तो ऐसे सवाल पूछने से रही.
रैली तो होनी ही थी
अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण को लेकर ममता बनर्जी को घेरने के लिए बीजेपी ने महीने भर पहले ही कोलकाता में रैली का फैसला किया था. तारीख और जगह भी तय थी - मुकुल रॉय तो बस ऐड-ऑन फीचर के तौर पर जुड़ गये हैं. रैली में किसी केंद्रीय मंत्री के अलावा असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनवाल के भी शामिल होने की चर्चा है. बदले हालात में भी रैली में भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी प्रदेश नेतृत्व की ही है. चूंकि मुकुल रॉय की नये रोल में पहली रैली है इसलिए आलाकमान की ओर से खास हिदायत मिली हुई है.
वैसे तो 11, अशोका रोड में प्रेस कांफ्रेंस में ही मुकुल रॉय ने अपने इरादे जाहिर कर दिये थे, लेकिन उनका कहना है कि रैली में वो बहुत कुछ बोलने वाले हैं. प्रेस कांफ्रेंस में मुकुल रॉय ने मौजूदा टीएमसी सरकार की तुलना वाम मोर्चे की पुरानी सरकार से की. मुकुल का कहना रहा कि जिस तरह लेफ्ट सरकार अपने आखिर के दिनों में काम करती थी और लोग उससे निजात पाना चाहते थे वैसा ही दौर एक बार फिर हो गया है. मुकुल का दावा रहा कि बंगाल के लोग जल्द से जल्द मौजूदा शासन से छुटकारा चाहते हैं.
मुकुल पर पहली जिम्मेदारी तो लोक सभा उपचुनाव और आने वाले दिनों में पंचायत चुनाव ही हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मुकुल 13-14 नवंबर से...
बाद में जो भी हो, मुकुल रॉय की बीजेपी में अभी जो स्थिति है उससे बेहतर तो तृणमूल में तब भी रही होगी जब वो छोड़ने की घोषणा कर चुके होंगे. बीजेपी ज्वाइन करने का फायदा बस इतना ही हुआ है कि उन्हें वाय कैटेगरी की सुरक्षा मिल गयी है - और भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर जवाब देने की जरूरत नहीं रही - न तो सीबीआई को, न मीडिया को और न किसी राजनीतिक विरोधी को. वैसे भी तृणमूल तो ऐसे सवाल पूछने से रही.
रैली तो होनी ही थी
अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण को लेकर ममता बनर्जी को घेरने के लिए बीजेपी ने महीने भर पहले ही कोलकाता में रैली का फैसला किया था. तारीख और जगह भी तय थी - मुकुल रॉय तो बस ऐड-ऑन फीचर के तौर पर जुड़ गये हैं. रैली में किसी केंद्रीय मंत्री के अलावा असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनवाल के भी शामिल होने की चर्चा है. बदले हालात में भी रैली में भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी प्रदेश नेतृत्व की ही है. चूंकि मुकुल रॉय की नये रोल में पहली रैली है इसलिए आलाकमान की ओर से खास हिदायत मिली हुई है.
वैसे तो 11, अशोका रोड में प्रेस कांफ्रेंस में ही मुकुल रॉय ने अपने इरादे जाहिर कर दिये थे, लेकिन उनका कहना है कि रैली में वो बहुत कुछ बोलने वाले हैं. प्रेस कांफ्रेंस में मुकुल रॉय ने मौजूदा टीएमसी सरकार की तुलना वाम मोर्चे की पुरानी सरकार से की. मुकुल का कहना रहा कि जिस तरह लेफ्ट सरकार अपने आखिर के दिनों में काम करती थी और लोग उससे निजात पाना चाहते थे वैसा ही दौर एक बार फिर हो गया है. मुकुल का दावा रहा कि बंगाल के लोग जल्द से जल्द मौजूदा शासन से छुटकारा चाहते हैं.
मुकुल पर पहली जिम्मेदारी तो लोक सभा उपचुनाव और आने वाले दिनों में पंचायत चुनाव ही हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मुकुल 13-14 नवंबर से नक्सलबाड़ी से अपनी मुहिम शुरू कर सकते हैं.
परिवर्तन लाने के नाम पर ही ममता बनर्जी सत्ता में आयीं - और अब मुकुल रॉय भी परिवर्तन की ही बात कर रहे हैं. मुकुल का कहना है कि तृणमूल के गठन के वक्त जो सपने उन्होंने देखे थे वे अधूरे रह गये हैं और बीजेपी के साथ वो उसे ही पूरा करने में जुटे हैं.
मुकुल जो सोच रहे हैं वो क्या इतना आसान है? मुकुल की सबसे बड़ी मुश्किल तो यही है कि उन्हें पश्चिम बंगाल बीजेपी पर केंद्रीय नेतृत्व ने थोप दिया है.
कब तक चटनी बने रहेंगे मुकुल
मुकुल रॉय के बीजेपी ज्वाइन करने की बात पर पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप घोष ने चुटकी लेते हुए उन्हें 'चटनी' की तरह बताया था. दिलीप घोष ने कुछ ऐसे समझाया कि चावल दाल के तो पूरे इंतजाम हैं, जैसे चटनी, पापड़ और खीर के इंतजाम होने से जायका बढ़ जाता है बात वैसी ही है. दिलीप घोष ने तो यहां तक कहा कि अगर कोई ये सोचता है कि मुकुल रॉय बीजेपी को बंगाल में विजयी बना देंगे तो वो गलत सोच रहा है.
मुकुल को भी मालूम है कि राज्य के नेता और कार्यकर्ता उन्हें जरा भी पसंद नहीं कर रहे. चूंकि केंद्रीय नेतृत्व का हुक्म है इसलिए बर्दाश्त कर ले रहे हैं. बड़ी वजह यही है कि मुकुल कह रहे हैं कि वो दो-दो कप्तानों के लिए काम करेंगे. एक कप्तान अमित शाह है तो दूसरे दिलीप घोष. ज्वाइन करने के फौरन बाद मुकुल ने बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष के अलावा दिल्ली में पार्टी के सीनियर नेताओं से संपर्क किया ताकि जब भी कुछ ऊंच नीच हो तो वे इमरजेंसी में संभाल सकें.
मुकुल को बीजेपी से और बीजेपी को मुकुल से तभी कोई फायदा हो सकता है जब दोनों एक दूसरे को जल्द से जल्द अपना लें. मुकुल की असली ताकत है उनका ममता का सबसे बड़ा राजदार होना है. पश्चिम बंगाल की सियासत में ये राज किस नतीजे पर पहुंचता है देखना होगा. फिलहाल तो रैली में मुकुल के सरप्राइज का इंतजार है.
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