दलितों के मुद्दे पर केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी दल कांग्रेस में फिर से जोरदार जंग छिड़ी है. दोनों ही रोहित वेमुला और उनकी मां को सियासी टूल के तौर पर भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं.
बीजेपी जहां विपक्ष पर रोहित वेमुला परिवार के बेजा इस्तेमाल का आरोप लगा रही है, वहीं कांग्रेस का इल्जाम है - 'दलितों का हर रोज अपमान करना मोदी सरकार का डीएनए बन चुका है.'
स्थिति ये है कि दलितों के मुद्दे ने संघ को भी हिला कर रख दिया है. संघ को आशंका है कि अगर बीजेपी और मोदी सरकार ने इसका सही तरीके से हैंडल और राजनीतिक रूप से काउंटर नहीं किया तो 2019 में बीजेपी को बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है.
दलितों को लेकर बीजेपी पर विपक्ष के हमले को संघ ने गंभीरता से लिया है - और इस दुष्प्रचार से निपटने की सलाह दी है. हाल ही में सूरजकुंड में हुई बीजेपी की मीटिंग में जम्मू-कश्मीर, 2019 और दूसरे मुद्दों के अलावा दलितों के मुद्दे पर बीजेपी के पिछड़ने को लेकर भी लंबी चर्चा हुई.
बीजेपी को लेकर 2019 के लिए संघ का सबसे बड़ा डर
सूरजकुंड में बीजेपी नेताओं की संघ नेताओं के साथ मैराथन बैठक 14 से 18 जून तक हुई थी- जिनमें कई सत्र 12-12 घंटे तक के रहे. बाकी मसलों के साथ ही दलितों के मुद्दे पर संघ की ओर से बीजेपी को साफ कर दिया गया कि हर हाल में वो विपक्ष के दुष्प्रचार से सिर्फ बचे नहीं, आगे बढ़ कर उसे काउंटर करे.
मीडिया के जरिये आई खबरों के मुताबिक संघ ने माना कि पूरा विपक्ष मिलकर मुहिम चला रहा है कि बीजेपी दलितों के खिलाफ है - और वो आरक्षण को खत्म करने जा रही है. फिर संघ की ओर से सलाह दी गयी कि सरकार को हर हाल में इस मुसीबत से निबटना होगा.
आपको याद होगा एससी-एसटी एक्ट पर जब सुप्रीम...
दलितों के मुद्दे पर केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी दल कांग्रेस में फिर से जोरदार जंग छिड़ी है. दोनों ही रोहित वेमुला और उनकी मां को सियासी टूल के तौर पर भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं.
बीजेपी जहां विपक्ष पर रोहित वेमुला परिवार के बेजा इस्तेमाल का आरोप लगा रही है, वहीं कांग्रेस का इल्जाम है - 'दलितों का हर रोज अपमान करना मोदी सरकार का डीएनए बन चुका है.'
स्थिति ये है कि दलितों के मुद्दे ने संघ को भी हिला कर रख दिया है. संघ को आशंका है कि अगर बीजेपी और मोदी सरकार ने इसका सही तरीके से हैंडल और राजनीतिक रूप से काउंटर नहीं किया तो 2019 में बीजेपी को बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है.
दलितों को लेकर बीजेपी पर विपक्ष के हमले को संघ ने गंभीरता से लिया है - और इस दुष्प्रचार से निपटने की सलाह दी है. हाल ही में सूरजकुंड में हुई बीजेपी की मीटिंग में जम्मू-कश्मीर, 2019 और दूसरे मुद्दों के अलावा दलितों के मुद्दे पर बीजेपी के पिछड़ने को लेकर भी लंबी चर्चा हुई.
बीजेपी को लेकर 2019 के लिए संघ का सबसे बड़ा डर
सूरजकुंड में बीजेपी नेताओं की संघ नेताओं के साथ मैराथन बैठक 14 से 18 जून तक हुई थी- जिनमें कई सत्र 12-12 घंटे तक के रहे. बाकी मसलों के साथ ही दलितों के मुद्दे पर संघ की ओर से बीजेपी को साफ कर दिया गया कि हर हाल में वो विपक्ष के दुष्प्रचार से सिर्फ बचे नहीं, आगे बढ़ कर उसे काउंटर करे.
मीडिया के जरिये आई खबरों के मुताबिक संघ ने माना कि पूरा विपक्ष मिलकर मुहिम चला रहा है कि बीजेपी दलितों के खिलाफ है - और वो आरक्षण को खत्म करने जा रही है. फिर संघ की ओर से सलाह दी गयी कि सरकार को हर हाल में इस मुसीबत से निबटना होगा.
आपको याद होगा एससी-एसटी एक्ट पर जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया, उन दिनों कर्नाटक में विधानसभा चुनाव प्रचार चल रहा था. राहुल गांधी ने इस मौके को दोनों हाथ से लपक लिया और इसका विरोध शुरू कर दिया. तभी दलितों ने एक दिन का भारत बंद रखा और हिंसा में कई लोग मारे भी गये. राहुल गांधी ने दलितों के लिए 9 अप्रैल को राजघाट पर एक दिन का उपवास भी रखा, हालांकि, सुर्खियां कांग्रेस नेताओं के छोले भटूरे की वायरल तस्वीरों पर फोकस हो गयीं. फिर एनडीए के दलित नेताओं ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल कर इसके खिलाफ अध्यादेश लाने की गुजारिश की. दबाव बढ़ता देख मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पेटिशन भी दाखिल किया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट आदेश पर अड़ा हुआ है.
ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार इस चुनौती से बेखबर है. ये प्रधानमंत्री मोदी की ही पहल रही कि अंबेडकर जयंती से लेकर दो हफ्ते तक केंद्रीय मंत्रियों, बीजेपी सांसदों और नेताओं को उन इलाकों में भेजा गया जहां दलितों की आबादी 50 फीसदी या उससे अधिक है. ये बात अलग है कि इसमें प्रचार से ज्यादा विवाद हुए - कभी आधी रात को बाहर से खाना मंगाकर दलित के घर धावा बोल खाने को लेकर, तो कभी किसी बीजेपी नेता के बयान के कारण.
सिर्फ बाहर से ही नहीं, बीजेपी को अंदरूनी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है. यूपी के दलित सांसदों ने प्रधानमंत्री मोदी को दलितों के खिलाफ अत्याचार का मसला उठाते हुए चिट्ठी भी लिखी. बाद में खुद दखल देकर मोदी ने मामला शांत कराया.
वेमुला पर बीजेपी-कांग्रेस में तकरार
हाल ही में कुछ खबरें आई थीं जिससे पता चला कि राजनीतिक दलों ने रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला से वादे तो खूब किये लेकिन पूरा करने से पीछे हट गये. बीजेपी ने इसी मामले को आगे बढ़ाते हुए राहुल गांधी से माफी मांगने की मांग कर डाली. रोहित वेमुला हैदराबाद यूनिवर्सिटी के शोध छात्र थे और विश्वविद्यालय प्रशासन पर सरकार के दबाव में भेदभाव करने का आरोप लगाते रोहित ने हुए 17 जनवरी 2016 को आत्महत्या कर ली थी.
कांग्रेस पर राधिका वेमुला की भावनाओं के इस्तेमाल का आरोप लगाते हुए केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने आरोप लगाया, "राधिका वेमुला ने केरल के राजनीति दल इंडियन मुस्लिम लीग पर वादे के मुताबिक उन्हें ₹ 20 लाख नहीं देने का आरोप लगाया है. राधिका वेमुला को राजनीतिक रैलियों में शामिल होने के लिए ऐसा वादा किया गया था, जहां बीजेपी के खिलाफ आरोप भी लगाये गये थे."
पीयूष गोयल ने सवाल उठाया कि राजनीतिक फायदे के लिए विपक्षी दल आखिर कब तक ऐसे हथकंडों का इस्तेमाल करते रहेंगे. पीयूष गोयल ने राहुल गांधी पर भी राधिका वेमुला के साथ मंच शेयर करने का आरोल लगाया और मांग की कि इस बात का भी पता लगाया जाना चाहिये कि रोहित की मां को क्या प्रलोभन दिया गया.
पीयूष गोयल के इस बयान के बाद राधिका वेमुला भी सामने आयीं और ये तो माना कि इंडियन मुस्लिम लीग ने उन्हें पैसे देनी की बात कही थी लेकिन अपने राजनीतिक फायदे के लिए कभी इस्तेमाल नहीं किया.
बीजेपी के खिलाफ बयान देने को लेकर राधिका वेमुला ने साफ तौर पर कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ उन्होंने बयान जरूर दिया क्योंकि वही उनके बेटे की मौत के लिए जिम्मेदार हैं. राधिका ने जोर देकर कहा कि आगे भी जो कोई भी बीजेपी के खिलाफ लड़ाई लड़ेगा वो उसका सपोर्ट करती रहेंगी. साथ ही, राधिका वेमुला ने ये भी बताया कि इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की ओर से उन्हें ₹ 2.5 लाख के दो चेक दिये गये थे जिनमें से एक बाउंस हो गया. जब राधिका वेमुला ने इस बात के लिए इत्तला किया तो उन्हें भरोसा दिलाया गया कि वो रकम सीधे उन्हें मुहैया करायी जाएगी ताकि वो घर खरीद सकें.
अब तक तो संघ की सारी कोशिशें नाकाम ही रही हैं
देखा जाये तो मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बयानबाजी से हिंदू कुछ हद तक एकजुट तो हो जाते हैं, लेकिन बीजेपी को हर बार फायदा नहीं मिल पाता. ऐसा होने की एक बड़ी वजह हिंदुओं में जातीय भेदभाव वाली सदियों पुरानी डिफॉल्ट वर्ण व्यवस्था है.
हिंदुओं को एकजुट रखने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अरसे से एक अभियान चला रहा है - 'एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान'. मुश्किल ये है कि स्लोगन से आगे ये मामला बढ़ ही नहीं पाता.
कभी दलित भोज, तो कभी दलित स्नान और कभी दलित रक्षा बंधन. जैसे ही संघ इस अभियान को आगे बढ़ाता है, तभी किसी दलित को घोड़ी पर चढ़ने, तो कभी राजपूत युवकों द्वारा पहने जाने वाले जूतों के ब्रांड को पहनने तो कभी ऊना यातना के वीडियो वायरल हो जाते हैं. मजे की बात ये कि ऐसी ज्यादातर घटनाओं की खबरें उन्हीं राज्यों से आती हैं जहां सत्ता में बीजेपी है. यूपी में भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर रावण के खिलाफ पुलिस एक्शन के लिए भी विपक्ष योगी आदित्यनाथ सरकार को ही जिम्मेदार ठहराता है. एक अरसे से जेल में बंद चंद्रशेखर ने चिट्ठी लिख कर लोगों से बीजेपी के खिलाफ कैराना में विपक्षी उम्मीदवार को वोट देने की अपील की थी. विपक्ष के एकजुट होने के चलते बीजेपी को कैराना में हार का मुंह देखना पड़ा था. कई बार तो खुद संघ नेताओं की बयानबाजी ही बीजेपी पर भारी पड़ती है और ऐसी बातें कभी खुद मोहन भागवत कर देते हैं तो कभी जयपुर लिटफेस्ट के मंच से संघ का कोई नेता - आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिये. जब तक बीजेपी लोगों को नेताओं के निजी बयान के तौर समझा पाती, खेल हो चुका होता है.
दलितों के मुद्दे पर संघ और बीजेपी वैसे ही डरे हुए लगते हैं जैसे कांग्रेस मुस्लिम वोट को लेकर. कांग्रेस नेता इस बात से बहुत परेशान रहे हैं कि विरोधियों ने उन्हें मुस्लिम विरोधी पार्टी के तौर पर स्थापित कर दिया है. हाल के दिनों में राहुल गांधी के मंदिर दर्शन कार्यक्रम के प्रसंग में खुद सोनिया गांधी का कहना रहा, "हम मंदिर जाने का प्रचार नहीं करते... लेकिन कांग्रेस को बीजेपी मुस्लिम पार्टी की तरह पेश करती है."
दरअसल, बीजेपी और कांग्रेस के बीच शुरू से लड़ाई का मुख्य मुद्दा यही रहा है. कांग्रेस बीजेपी पर सांप्रदायिक होने और हिंदू-मुस्लिम विवाद पैदा कर वोटों के ध्रुवीकरण का इल्जाम लगाती है - और बीजेपी भी कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही है. मोदी के शमशान बनाम कब्रिस्तान और हाल ही में कैराना में विपक्ष के जिन्ना बना गन्ना वाली बहस इसी का नतीजा है. दिलचस्प बात ये है कि दोनों ही दल अपने अपने तरीके से बारी बारी इसका फायदा उठाते रहे हैं. फिलहाल मामला गंभीर है इसलिए लग रहा है, क्योंकि संघ नेतृत्व भी दलितों के मुद्दे पर वैसे ही भयाक्रांत है, जैसे सोनिया गांधी.
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