हरियाणा में बीजेपी के चूक जाने की स्थिति में भूपिंदर सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री बनने के लिए जोड़ तोड़ में जुटे हुए हैं. हुड्डा कैंप की ओर से ये भी कहा गया कि निर्दलीय विधायकों को अधिकारी धमका रहे हैं. हुड्डा ने जाटों के नाम पर भी समर्थन जुटाने की पूरी कोशिश की है.
रुझानों और नतीजों में तस्वीर साफ होने के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एक ट्वीट किया है. वैसे तो अमित शाह ने ट्वीट के जरिये हरियाणा के लोगों को शुक्रिया कहा है, लेकिन लगे हाथ एक मैसेज भी दिया है जिसके चलते सरकार बनाने के कयासों के नये दौर शुरू हो गये हैं.
अमित शाह के ट्वीट में इशारा
हरियाणा चुनाव के नतीजे आने के बाद बहस चल रही है कि सत्ता की चाबी JJP नेता दुष्यंत चौटाला के हाथ लगी है. दरअसल, चौटाला परिवार की नयी नवेली पार्टी ने दस सीटों पर बढ़त बनाकर सुबह से ही सनसनी फैला दी थी. यही वजह रही कि पूरे दिन दुष्यंत चौटाला में कर्नाटक के कुमारस्वामी की छवि देखी जाने लगी थी. परदे के पीछे सौदेबाजी जब आगे बढ़ी तो समीकरण भी बदलने लगे.
जैसे ही मालूम हुआ कि हरियाणा में बीजेपी स्पष्ट बहुमत से पिछड़ रही है, दिल्ली में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गयीं. कांग्रेस में सोनिया गांधी ने सक्रियता दिखायी तो बीजेपी आलाकमान भी एक्टिव हो गये. अमित शाह ने तो अपने कई कार्यक्रम पहले ही रद्द कर दिये थे.
तभी खबर आयी कि मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने राज्यपाल सत्य नारायण आर्य से मुलाकात का वक्त मांगा है. जैसी हालत रही उसमें मुलाकात के वक्त मांगने के भी डबल मतलब देखे गये. संभव था खट्टर इस्तीफा देने के लिए वक्त मांगे हों या फिर मुलाकात का मकसद सरकार बनाने का दावा पेश करना भी हो सकता था. ज्यादा देर न लगी, अमित शाह ने एक ट्वीट कर ये संशय भी दूर कर ही दिया.
अमित शाह ने अपने ट्वीट में हरियाणा की जनता का आभार तो जताया ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और हरियाणा बीजेपी अध्यक्ष के पद से इस्तीफे की पेशकश कर चुके सुभाष बराला को बधाई दी.
अमित शाह के ट्वीट की एक लाइन में एक संदेश भी साफ साफ नजर आ रहा था - 'भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बनाकर पुनः सेवा का मौका देने के लिए जनता का अभिनंदन...'
फिर तो शक की कोई गुंजाइश नहीं बची है. ये तो यही बता रहा है कि अमित शाह हरियाणा में बीजेपी की सरकार बनवाने में पूरी तरह जुट गये हैं. अब सिर्फ जरूरी इंतजामों पर काम बाकी है.
बीजेपी के सरकार बनाने के आधार
1. सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते : हरियाणा में बीजेपी बहुमत तो नहीं हासिल कर पायी लेकिन सबसे बड़ी पार्टी बन कर जरूर उभरी है. सबसे बड़ी वजह तो यही है कि वो सरकार बनाने की पहली दावेदार बन जाती है.
हालांकि, ये जरूरी नहीं कि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद सरकार बनाने का दावा करे ही. 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी, लेकिन जोड़ तोड़ करके सरकार नहीं बनाने का फैसला किया. खास वजह ये भी रही कि तब अमित शाह का जमाना नहीं था. वरना, 2017 में सबसे बड़ी पार्टी न होकर भी बीजेपी ने गोवा और मणिपुर में सरकार तो बना ही ली. हां, कर्नाटक में ये फॉर्मला गड़बड़ा गया और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद भी बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा और दोबारा कुर्सी हासिल करने में करीब सवा साल का समय लग गया.
जहां तक जोड़ तोड़ से सरकार बनाने के मौके का सवाल है, बीजेपी 2018 में मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी प्रयास तो कर ही सकती थी लेकिन सिर पर आम चुनाव होने के कारण सार्वजनिक तौर पर ऐसा कोई काम करने से बचने का फैसला किया जिसका गलत मैसेज जाये.
महाराष्ट्र जैसी जीत हरियाणा में भी मान रही है बीजेपी
ट्वीट के बाद बीजेपी दफ्तर में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए भी अमित शाह ने बार बार जोर देकर कहा कि दोनों राज्यों में पार्टी की विजय हुई है. हरियाणा के नतीजे को अमित शाह ने नये तरीके से पेश किया. अमित शाह ने कहा कि हरियाणा में 2014 के मुकाबले बीजेपी को मिले वोटों में तीन फीसदी का इजाफा हुआ है - और बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है.
बीजेपी कार्यकार्ताओं की नारेबाजी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हरियाणा की जनता को जितनी भी बधाई दूं कम है.
2. हुड्डा की राह बहुत मुश्किल : भूपिंदर सिंह के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी तब शायद करीब समझी जा सकती थी जब कांग्रेस की सीटें भी बीजेपी के बराबर या बिलकुल पास होतीं. चुनाव में हुड्डा ने जाट पॉलिटिक्स तो की लेकिन बीजेपी के खिलाफ जाट वोट एकजुट होकर नहीं पड़ा. अब हुड्डा जाट नेताओं को साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं - लेकिन सबके अपने अपने गुरूर हैं, महात्वाकांक्षा है और मजबूरियां भी हैं.
हुड्डा के पास एक विकल्प निर्दलीय विधायकों के साथ लाने का जरूर है. कुछ एमएलए जननायक जनता पार्टी से तोड़ने की भी उनकी ओर से कोशिश की चर्चा रही, लेकिन उसमें भी सफलता मिलने के आसार कम ही रहे.
हुड्डा के साथ दुष्यंत चौटाला एक ही सूरत में हाथ मिलाने को तैयार दिखे, बशर्ते मुख्यमंत्री की कुर्सी जेजेपी को मिले. हुड्डा को ये कतई मंजूर नहीं होता, लिहाजा दुष्यंत चौटाला ने भी लगता है नये रास्ते पर चलने का फैसला किया. वैसे भी हुड्डा जिस तरह से जांच एजेंसियों के मामलों में फंसे हुए हैं निर्दलीय विधायकों के भी हाथ मिलाने के लिए दो बार सोचना पड़ता.
3. दुष्यंत चौटाला की चुनौतियां : दुष्यंत चौटाला के लिए भी कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी के साथ हाथ मिलाना फायदे का सौदा है. अगर कांग्रेस भी मुख्यमंत्री पद देने को राजी न हो तो भला उसके साथ जाने से क्या फायदा.
दुष्यंत चौटाला अगर कांग्रेस के साथ जाते तो हो सकता है देर सवेर उन्हें भी किसी न किसी मोड़ पर जांच एजेंसियों के निशाने पर आने की आशंका होती. बीजेपी के साथ कम से कम इस मामले में तो सब सुरक्षित होगा ये तय है. ऊपर से दुष्यंत चौटाला के पिता अजय चौटाला और उनके दादा ओम प्रकाश चौटाला एक घोटाले में जेल की सजा काट रहे हैं. वैसे तो दुष्यंत चौटाला को उनके दादा की पार्टी INLD से पहले ही बेदखल कर दिया गया था, लेकिन पिता के मामले में केंद्र के सत्ताधारी दल के साथ होना कुछ तो सुविधाजनक होगा ही.
वैसे अब तक ये बात तो साफ हो ही चुकी है कि चुनाव निशान चाबी होने से सत्ता की चाबी किसी के हाथ नहीं लगती - ये संयोग ही है कि हरियाणा की जननायक जनता पार्टी का चुनाव निशान चाबी है.
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