अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने फोन कर जन्म दिन की बधाई दी, जबकि अपने बर्थडे पर वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक ट्वीट तक का इंतजार करते ही रह गये. सुर्खियां भी बनीं. जब खबर विस्तार से आयी तो मालूम हुआ - असल में प्रधानमंत्री मोदी ने योगी के अवतरण दिवस आने से पहले से ही इस परंपरा की प्रॉविजनल पूर्णाहूति कर रखी है.
अखिलेश यादव के प्रबल राजनीतिक विरोधी होने के बावजूद बर्थडे विश करना शिष्टाचार का हिस्सा तो है ही, बीजेपी चाहती भी नहीं कि लोगों में ये मैसेज जाये कि वो समाजवादी पार्टी को दुश्मन नंबर 1 मानती भी है. ऐसा मानने का मतलब हुआ, राजनीतिक विरोधी की ताकत को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करना.
मायावती (Mayawati) के विरोधों का कुछ दिनों से बीजेपी के लिए तो कोई मतलब भी नहीं बनता, लेकिन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के हमलों का काउंटर करने के लिए योगी आदित्यनाथ या उनकी टीम को मोर्चे पर आना ही पड़ता है.
प्रियंका गांधी तो मायावती को बीजेपी का अघोषित प्रवक्ता ही मानती हैं, लेकिन बीएसपी नेता तो राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अंबेडकर स्मारक के शिलान्यास करने को चुनावी स्टंट बताने लगी है - लेकिन बीजेपी को इससे क्या फर्क पड़ने वाला है?
अखिलेश यादव के मुकाबले मुद्दों को लेकर प्रियंका गांधी वैसे भी बीजेपी के खिलाफ काफी समय से कुछ ज्यादा ही आक्रामक नजर आयी हैं. बीजेपी की तरफ से प्रियंका गांधी के बयानों पर रिएक्ट करना भी समर्थकों के लिए संदेश होता है - और विरोधी दलों के समर्थकों के लिए भी कुछ न कुछ मैसेज तो होता ही है.
बीजेपी नेता प्रियंका गांधी के बयानों और ट्वीट पर रिएक्ट कर कांग्रेस को बड़ा दुश्मन बताने की कोशिश करते हैं, जिसका एक मकसद ये समझाना भी होता है कि सपा-बसपा तो कहीं मुकाबले में हैं ही नहीं. सच तो ये है कि सपा और बसपा के मुकाबले कांग्रेस अब भी कहीं नहीं टिकती नजर आयी है.
यूपी में तो हालचाल ठीक ठाक ही है!
बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश की...
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने फोन कर जन्म दिन की बधाई दी, जबकि अपने बर्थडे पर वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक ट्वीट तक का इंतजार करते ही रह गये. सुर्खियां भी बनीं. जब खबर विस्तार से आयी तो मालूम हुआ - असल में प्रधानमंत्री मोदी ने योगी के अवतरण दिवस आने से पहले से ही इस परंपरा की प्रॉविजनल पूर्णाहूति कर रखी है.
अखिलेश यादव के प्रबल राजनीतिक विरोधी होने के बावजूद बर्थडे विश करना शिष्टाचार का हिस्सा तो है ही, बीजेपी चाहती भी नहीं कि लोगों में ये मैसेज जाये कि वो समाजवादी पार्टी को दुश्मन नंबर 1 मानती भी है. ऐसा मानने का मतलब हुआ, राजनीतिक विरोधी की ताकत को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करना.
मायावती (Mayawati) के विरोधों का कुछ दिनों से बीजेपी के लिए तो कोई मतलब भी नहीं बनता, लेकिन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के हमलों का काउंटर करने के लिए योगी आदित्यनाथ या उनकी टीम को मोर्चे पर आना ही पड़ता है.
प्रियंका गांधी तो मायावती को बीजेपी का अघोषित प्रवक्ता ही मानती हैं, लेकिन बीएसपी नेता तो राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अंबेडकर स्मारक के शिलान्यास करने को चुनावी स्टंट बताने लगी है - लेकिन बीजेपी को इससे क्या फर्क पड़ने वाला है?
अखिलेश यादव के मुकाबले मुद्दों को लेकर प्रियंका गांधी वैसे भी बीजेपी के खिलाफ काफी समय से कुछ ज्यादा ही आक्रामक नजर आयी हैं. बीजेपी की तरफ से प्रियंका गांधी के बयानों पर रिएक्ट करना भी समर्थकों के लिए संदेश होता है - और विरोधी दलों के समर्थकों के लिए भी कुछ न कुछ मैसेज तो होता ही है.
बीजेपी नेता प्रियंका गांधी के बयानों और ट्वीट पर रिएक्ट कर कांग्रेस को बड़ा दुश्मन बताने की कोशिश करते हैं, जिसका एक मकसद ये समझाना भी होता है कि सपा-बसपा तो कहीं मुकाबले में हैं ही नहीं. सच तो ये है कि सपा और बसपा के मुकाबले कांग्रेस अब भी कहीं नहीं टिकती नजर आयी है.
यूपी में तो हालचाल ठीक ठाक ही है!
बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश की राजनीतिक परिस्थिति पश्चिम बंगाल के बिलकुल उलट है. बंगाल की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी बीजेपी को लगता था कि वो अपने पॉलिटिकल पावर का इस्तेमाल करते हुए, 2019 में बंगाल की आधी जीती बाजी को 2021 में पूरे में आसानी से तब्दील कर लेगी. अफसोस ऐसा नहीं हो सका और बीजेपी मन मसोस कर रह गयी.
बंगाल के मुकाबले देखें तो उत्तर प्रदेश की राजनीति हर तरीके से बीजेपी के लिए फेवरेबल है, लेकिन लगने तो ऐसा लगा है जैसे बीजेपी को सबसे ज्यादा यूपी की ही फिक्र हो - तैयारी तो बीजेपी पांचों राज्यों में विधानसभा चुनावों की कर रही है, लेकिन पूरा फोकस यूपी पर ही है.
बंगाल चुनावों की समीक्षा के क्रम में हुई बीजेपी नेताओं की एक मीटिंग में अध्यक्ष जेपी नड्डा ने समझाया भी था कि कुछ भी हो जाये, यूपी को लेकर कोई चूक नहीं होनी चाहिये क्योंकि यूपी का मामला सिर्फ 2022 तक ही सीमित नहीं है - 2024 के आम चुनाव का भी दारोमदार यूपी पर ही है. बाकी राज्यों में नतीजे अपेक्षा के अनुरूप नहीं भी आये तो यूपी में नंबर इतना जरूर होना चाहिये कि सब कवर कर ले.
बीजेपी नेतृत्व ने तो योगी आदित्यनाथ की नाराजगी मोल लेने का जोखिम भी नहीं उठाया. नौकरशाह से नेता बने बीजेपी एमएलसी अरविंद शर्मा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अत्यंत भरोसेमंद होने के बावजूद बीजेपी नेता अमित शाह, जेपी नड्डा और स्वतंत्र देव सिंह ने संगठन में ही एडजस्ट करने का फैसला किया.
बीजेपी में अंदर की लड़ाई जीत लेने के बाद योगी आदित्यनाथ के सामने जो भी बची खुची चुनौती है वो बाहर ही है, लेकिन राजनीतिक विरोधियों के बंटे होने के चलते लड़ाई फिलहाल तो बहुत मुश्किल नजर नहीं ही आ रही है. जब तक सपा-बसपा गठबंधन था, योगी आदित्यनाथ की नींद हराम किये रहा. आम चुनाव में गोरखपुर और फूलपुर की सीटों के साथ साथ कैराना में भी भगवा फहरा कर योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव और मायावती से उपचुनावों की हार का बदला तो ले ही लिया था.
आम चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने कांग्रेस को भले ही दो सीट से एक पर पहुंचा दिया, लेकिन तब बने सपा-बसपा गठबंधन ने तो 15 सीटें जीत ही ली. अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को 5 ही सीटें मिलीं, जबकि मायावती की बीएसपी को 10. नतीजे अखिलेश यादव के लिए कांग्रेस जैसे ही दुखदायी रहे क्योंकि उनकी पत्नी डिंपल यादव अपनी सीट नहीं बचा पायीं. कांग्रेस को भी स्मृति ईरानी के हाथों अमेठी गंवानी ही पड़ी.
लंबे अरसे से या तो खामोश या कांग्रेस के खिलाफ हमलावर रहीं बीएसपी नेता मायावती के तेवर बीजेपी के खिलाफ थोड़े सख्त देखने को जरूर मिले हैं. मायावती ने योगी सरकार पर पंचायत चुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का इल्जाम तो लगाया ही है, मोदी सरकार को भी निशाना बनाया है. मायावती विधानसभा चुनावों के ऐन पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के 'भारत रत्न डॉक्टर भीमराव आंबेडकर स्मारक एवं सांस्कृतिक केंद्र' के उद्घाटन से खफा हो गयी हैं - और इसे लेकर बीजेपी की मंशा पर सवाल उठाते हुए अपने वोट बैंक के लिए छलावा करार दिया है.
मायावती का कहना है कि उनकी पार्टी बीएसपी डॉक्टर अंबेडकर के नाम पर किसी तरह के स्मारक बनाने के खिलाफ नहीं है, लेकिन 'चुनावी स्वार्थ के लिए ये सब करना घोर छलावा है.'
मायावती कह रही हैं, 'यूपी सरकार अगर यह काम पहले कर लेती तो मानवीय राष्ट्रपति जी आज इस केन्द्र का शिलान्यास नहीं बल्कि उद्घाटन कर रहे होते तो बेहतर होता.'
मायावती का चिंतित होना अनायास भी नहीं लगता. 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी ने राष्ट्रपति चुनाव में तब बिहार के राज्यपाल रहे रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाया था - वो तो चुनाव जीते ही, बीजेपी ने तो लंबे वनवास के बाद भी यूपी में सरकार बनाने मे सफल रही. अब एक बार फिर यूपी विधानसभा चुनावों के पहले राष्ट्रपति कोविंद अपने कानपुर पहुंचे हैं और सिर्फ अंबेडकर मेमोरियल का शिलान्यास ही क्यों - राष्ट्रपति के अपनी तनख्वाह और टैक्स का जिक्र करना भी तो बीजेपी के लिए फायदेमंद ही होने वाला है.
अपना बर्थडे मना रहे समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने एक ट्वीट में कहा है कि अगले साल उत्तर प्रदेश में चुनाव नहीं बल्कि लोकतांत्रिक क्रांति होगी. अखिलेश यादव का दावा है कि समाजवादी पार्टी यूपी की 403 सीटों में से कम से कम 350 पर जीत हासिल करेगी. मायावती की ही तरह अखिलेश यादव ने भी विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की बात कही है, लेकिन गठबंधन से परहेज सिर्फ कांग्रेस और बीएसपी जैसी पार्टियों से ही है, छोटे छोटे दलों के साथ मिल कर चुनाव लड़ने की तैयारी समाजवादी पार्टी भी कर रही है.
फिक्र भी तो कम बड़ी नहीं है!
उत्तर प्रदेश में चुनाव से ऐन पहले बीजेपी अपना सबसे बड़ा काम कर रही है - अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की पूरी क्रेडिट लेने की तैयारी. प्रधानमंत्री मोदी खुद मंदिर निर्माण को मॉनिटर कर रहे हैं और दिल्ली दौरे में अमित शाह से मिले मार्गदर्शन के मुताबिक योगी आदित्यनाथ मंदिर निर्माण को अपनी प्राथमिकताओं की सूची में सबसे ऊपर रखे हुए हैं.
अयोध्या में मंदिर निर्माण के काम के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार राम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट बना तो दिया गया है, लेकिन अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से भैयाजी जोशी बतौर केयरटेकर निर्माण कार्य की प्रगति पर खास नजर रखेंगे - और वो भी अयोध्या में डेरा लंबे वक्त के लिए डेरा जमाने वाले हैं.
भैयाजी जोशी की जगह संघ के सहकार्यवाह बनाये गये दत्तात्रेय होसबले तो फिर से यूपी का रुख कर ही चुके हैं. योगी आदित्यनाथ सरकार को लेकर फीडबैक लेने तो गये ही थे, जब मुख्यमंत्री डिप्टी सीएम केशव मौर्य के घर पहुंचे थे तो उस वक्त भी दत्तात्रेय होसबले को मौजूद रहे - तस्वीरें तो ऐसा ही बता रही थीं.
पश्चिम बंगाल चुनाव को लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत को काफी एक्टिव देखा गया था. भागवत ने न सिर्फ बंगाल का कई बार दौरा किया बल्कि मिथुन चक्रवर्ती के घर पहुंच कर मुलाकात भी की थी जो अपनेआप में एक मिसाल रही. अब तो भैयाजी जोशी और दत्तात्रेय होसबले दोनों ने ही एक तरीके से यूपी में डेरा जमाने की तैयारी कर डाली है - और यूपी विधानसभा चुनाव तो एक पड़ाव भर है, ये डेरा तो बताते हैं कि 2024 के चलते जमाया जा रहा है. संघ की सक्रियता यूपी में योगी आदित्यनाथ और बीजेपी नेतृत्व के बीच टकराव और मंदिर निर्माण के लिए खरीदी गयी जमीन पर विवाद के चलते ज्यादा समझ आ रही है.
केंद्र और यूपी में सत्ताधारी बीजेपी की मुश्किलें दूर करने के लिए ही संघ ने आगे बढ़ कर मोर्चा संभाल लिया है. 9 जुलाई को चित्रकूट में संघ की एक बैठक होने जा रही है - उसी बैठक के बाद संघ कैसे और क्या क्या करने वाला है, तस्वीर साफ हो सकेगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण के साथ साथ अयोध्या के विकास के कामों को लेकर हाल ही में एक वर्चुअल मीटिंग में समीक्षा की थी जिसमें योगी आदित्यनाथ के साथ साथ वीएचपी नेता भी मौजूद रहे - और फिर प्रधानमंत्री मोदी ने उम्मीद जाहिर की कि पूरी अयोध्या ऐसे तैयार की जाये कि हर हिंदू जीवन में एक बार वहां जाना जरूर चाहे.
थोड़ा पीछे चल कर देखें तो गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव हार जाने के बाद योगी आदित्यनाथ का कहना था कि वो सपा और बसपा के गठबंधन को हल्के में ले लिये थे और उसी के चलते बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा था - बीजेपी का 'इंडिया शाइनिंग' का कंसेप्ट भी करीब करीब ऐसी ही सोच के चलते चारों खाने चित्त हो गया था, जो सबसे बड़ी मिसाल है और सबक भी. शायद इसीलिए बीजेपी अब छाछ भी फूंक फूंक कर ही पीती है और पश्चिम बंगाल की शिकस्त के बाद तो ये बनता भी है - हो सकता है सब कुछ फेवर में नजर आने के बावजूद बीजेपी की फिक्र यूपी को लेकर खत्म नहीं हो रही है.
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