इस बात में कोई शंका नहीं है कि 2014 के बाद भारतीय जनता पार्टी ने जीत का डंका बजाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. राज्य-दर-राज्य अपनी सरकार बनाती जा रही है. जब मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार नहीं बन पायी तो ज्योतिराज सिंधिया के साथ दो दर्जन विधायकों को कांग्रेस से तोड़ कर अपनी पार्टी में खींच लिया. कांग्रेस के विधायकों से इस्तीफा दिलाया और भाजपा ने अपना बहुमत साबित किया. परिणाम स्वरूप शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बन गये. हाल ही में देखें तो महाराष्ट्र में बीजेपी ने उद्धव ठाकरे की सरकार को गिराकर एकनाथ शिंदे की सरकार बनवा दी.
भले ही एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने लेकिन, पार्टी ने भगवा फिर से लहरा दिया. इन घटनाक्रम ने भले ही भाजपा को सत्ता-सुख के मद्देनजर एक बड़ी बढ़त दी और ताकतवर बना दिया. लेकिन, क्षेत्रीय पार्टियां इस प्रकरण के बाद भयभीत हो गयी. जदयू तो भाजपा के साथ ऐसी बनी हुई थी कि बाघ के पंजे में कोई फंसा हो. ऐसे में जदयू को हर वक्त डर था कि कहीं जदयू के विधायक को तोड़कर एकाएक भाजपा अपना मुख्यमंत्री न घोषित कर दे.
आरसीपी सिंह प्रकरण के बाद नीतीश कुमार का दिमाग डोला और राजनीति शिल्पी रहे नीतीश कुमार ने भी अपनी गणित धीमे-धीमे बिठानी प्रारंभ कर दी. पर्दे के पीछे तो यह खेल लंबे समय से चल रहा था. जिसका संकेत रमजान के दौरान इफ्तार पार्टी में नीतीश का पैदल पांव जाना और उसी अंदाज में तेजस्वी का भी नीतीश के यहां आना था. बहरहाल, खांटी समाजवादी रहे नीतीश कुमार का समाजवाद आंदोलन से ही प्रकट हुए लालू परिवार से जुगलबंदी बनाने में किसी प्रकार की असहजता नहीं हुई.
जैसा देखा जा रहा है कि यह सरकार अपना पूरा कार्यकाल ठीक-ठाक ढंग से पूरी कर...
इस बात में कोई शंका नहीं है कि 2014 के बाद भारतीय जनता पार्टी ने जीत का डंका बजाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. राज्य-दर-राज्य अपनी सरकार बनाती जा रही है. जब मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार नहीं बन पायी तो ज्योतिराज सिंधिया के साथ दो दर्जन विधायकों को कांग्रेस से तोड़ कर अपनी पार्टी में खींच लिया. कांग्रेस के विधायकों से इस्तीफा दिलाया और भाजपा ने अपना बहुमत साबित किया. परिणाम स्वरूप शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बन गये. हाल ही में देखें तो महाराष्ट्र में बीजेपी ने उद्धव ठाकरे की सरकार को गिराकर एकनाथ शिंदे की सरकार बनवा दी.
भले ही एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने लेकिन, पार्टी ने भगवा फिर से लहरा दिया. इन घटनाक्रम ने भले ही भाजपा को सत्ता-सुख के मद्देनजर एक बड़ी बढ़त दी और ताकतवर बना दिया. लेकिन, क्षेत्रीय पार्टियां इस प्रकरण के बाद भयभीत हो गयी. जदयू तो भाजपा के साथ ऐसी बनी हुई थी कि बाघ के पंजे में कोई फंसा हो. ऐसे में जदयू को हर वक्त डर था कि कहीं जदयू के विधायक को तोड़कर एकाएक भाजपा अपना मुख्यमंत्री न घोषित कर दे.
आरसीपी सिंह प्रकरण के बाद नीतीश कुमार का दिमाग डोला और राजनीति शिल्पी रहे नीतीश कुमार ने भी अपनी गणित धीमे-धीमे बिठानी प्रारंभ कर दी. पर्दे के पीछे तो यह खेल लंबे समय से चल रहा था. जिसका संकेत रमजान के दौरान इफ्तार पार्टी में नीतीश का पैदल पांव जाना और उसी अंदाज में तेजस्वी का भी नीतीश के यहां आना था. बहरहाल, खांटी समाजवादी रहे नीतीश कुमार का समाजवाद आंदोलन से ही प्रकट हुए लालू परिवार से जुगलबंदी बनाने में किसी प्रकार की असहजता नहीं हुई.
जैसा देखा जा रहा है कि यह सरकार अपना पूरा कार्यकाल ठीक-ठाक ढंग से पूरी कर लेगी. लोकसभा चुनाव में मजबूत दिख सकता महागठबंधन बिहार हिंदी पट्टी का सियासी क्षेत्र है. यहां जातीय समीकरण की बदौलत ही सियासत की सत्ता साधी जा सकती है. अभी की स्थिति देखें तो महागठबंधन काफी मजबूत है और यह मजबूती आगामी लोकसभा चुनाव में भी दिख सकती है.
दरअसल, भाजपा को अगर बिहार में कोई सत्ता में आने से रोक सकता था तो यह राजद थी. भाजपा की मजबूरी थी की वह अकेले दम पर नहीं आ पा रही थी तो जदयू को साथ लिया. ताकि, जदयू का कैडर वोट उसके साथ हो और वह गठबंधन की सरकार में रहे. अब ऐसे में जब दो बड़े कैडरों का वोट सीधे आपस में मिल जायेगा यानी राजद-जदयू तो निश्चित रूप से महागठबंधन भारी पड़ सकती है.
चूंकि, तेजस्वी के साथ एम व्हाई समीकरण है तो जदयू के साथ अति पिछड़ा खासकर कोयरी, कुर्मी व दलितों का एक बड़ा वर्ग हमेशा नीतीश कुमार पर भरोसा जताते आ रहा है. ऐसे में भाजपा को अब जमीनी स्तर पर अधिक काम करना होगा तभी लोकसभा चुनाव में वह टिक पायेगी. दरअसल, जितनी मेहनत भाजपा को करनी होगी, उससे आधी मेहनत में महागठबंधन का काम बन सकता है.
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