समाजवादी पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट पर 5 दिसंबर को उपचुनाव होना है. मैनपुरी लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव के नाम का बोलबाला रहा है. और, अब मैनपुरी लोकसभा सीट पर जीत के साथ समाजवादी पार्टी के सामने अपनी विरासत बचाने की चुनौती मुंह बाए खड़ी है. दरअसल, कुछ समय पहले मुलायम सिंह की छोटी बहू और भाजपा नेता अपर्णा यादव ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. जिसके बाद सियासी गलियारों में अटकलें लगाई जाने लगीं कि भाजपा मैनपुरी लोकसभा सीट पर अपर्णा यादव को उम्मीदवार के तौर पर उतार सकती है.
वहीं, हाल ही में गोला गोकर्णनाथ में हुए विधानसभा उपचुनाव और इससे पहले आजमगढ़ व रामपुर में हुए लोकसभा उपचुनावों में मिली हार से समाजवादी पार्टी की सियासी क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है. दरअसल, गोला गोकर्णनाथ विधानसभा सीट पर उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों को न उतारने का फैसला लिया था. जिसके बाद समाजवादी पार्टी की भाजपा से सीधी टक्कर थी. इसके बावजूद समाजवादी पार्टी यहां कोई कमाल नहीं कर सकी. वैसे, माना जा सकता है कि बीते महीने मुलायम सिंह यादव के निधन की वजह से अखिलेश यादव इस उपचुनाव को लेकर ज्यादा मुखर नहीं हो सके. लेकिन, आजमगढ़ और रामपुर के उपचुनाव में ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी.
समाजवादी पार्टी ने आजमगढ़ और रामपुर की लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में पूरी ताकत झोंक दी थी. यहां पर भी कांग्रेस ने दोनों ही सीटों पर प्रत्याशी नहीं उतारे थे. वहीं, बसपा सुप्रीमो मायावती ने आजमगढ़ में प्रत्याशी उतारा. लेकिन, रामपुर उपचुनाव से दूर रहने का फैसला लिया. इसके बावजूद आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटों पर भाजपा ने समाजवादी पार्टी को पटखनी दे दी. जबकि, ये दोनों ही सीटें समाजवादी पार्टी का गढ़ रही हैं. अब ऐसी ही कुछ स्थितियां और परिस्थितियां मैनपुरी लोकसभा सीट पर भी अखिलेश यादव के सामने बनती नजर आ रही है. इस स्थिति में सबसे बड़ा सवाल यही है कि मैनपुरी लोकसभा सीट...
समाजवादी पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट पर 5 दिसंबर को उपचुनाव होना है. मैनपुरी लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव के नाम का बोलबाला रहा है. और, अब मैनपुरी लोकसभा सीट पर जीत के साथ समाजवादी पार्टी के सामने अपनी विरासत बचाने की चुनौती मुंह बाए खड़ी है. दरअसल, कुछ समय पहले मुलायम सिंह की छोटी बहू और भाजपा नेता अपर्णा यादव ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. जिसके बाद सियासी गलियारों में अटकलें लगाई जाने लगीं कि भाजपा मैनपुरी लोकसभा सीट पर अपर्णा यादव को उम्मीदवार के तौर पर उतार सकती है.
वहीं, हाल ही में गोला गोकर्णनाथ में हुए विधानसभा उपचुनाव और इससे पहले आजमगढ़ व रामपुर में हुए लोकसभा उपचुनावों में मिली हार से समाजवादी पार्टी की सियासी क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है. दरअसल, गोला गोकर्णनाथ विधानसभा सीट पर उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों को न उतारने का फैसला लिया था. जिसके बाद समाजवादी पार्टी की भाजपा से सीधी टक्कर थी. इसके बावजूद समाजवादी पार्टी यहां कोई कमाल नहीं कर सकी. वैसे, माना जा सकता है कि बीते महीने मुलायम सिंह यादव के निधन की वजह से अखिलेश यादव इस उपचुनाव को लेकर ज्यादा मुखर नहीं हो सके. लेकिन, आजमगढ़ और रामपुर के उपचुनाव में ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी.
समाजवादी पार्टी ने आजमगढ़ और रामपुर की लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में पूरी ताकत झोंक दी थी. यहां पर भी कांग्रेस ने दोनों ही सीटों पर प्रत्याशी नहीं उतारे थे. वहीं, बसपा सुप्रीमो मायावती ने आजमगढ़ में प्रत्याशी उतारा. लेकिन, रामपुर उपचुनाव से दूर रहने का फैसला लिया. इसके बावजूद आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटों पर भाजपा ने समाजवादी पार्टी को पटखनी दे दी. जबकि, ये दोनों ही सीटें समाजवादी पार्टी का गढ़ रही हैं. अब ऐसी ही कुछ स्थितियां और परिस्थितियां मैनपुरी लोकसभा सीट पर भी अखिलेश यादव के सामने बनती नजर आ रही है. इस स्थिति में सबसे बड़ा सवाल यही है कि मैनपुरी लोकसभा सीट पर मुलायम सिंह यादव की विरासत को बचाए रखने में क्या समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव कामयाब हो पाएंगे? आइए सपा के सामने उपजने वाली चुनौतियों पर एक नजर डालते हैं...
मुलायम के बिना परिवार को एक कौन रखेगा?
मैनपुरी लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने का दावा प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नेता और अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव भी कर चुके हैं. हालांकि, समाजवादी पार्टी शायद ही शिवपाल यादव की इस इच्छा को कोई तवज्जो देगी. लेकिन, शिवपाल यादव को क्या अखिलेश इतनी आसानी से मना लेंगे? क्योंकि, अगर ऐसा नहीं हुआ, तो समाजवादी पार्टी को बहुत ज्यादा न सही. लेकिन, शिवपाल समर्थकों के वोट का नुकसान तो हो ही जाएगा. वहीं, अगर मैनपुरी लोकसभा सीट पर अपर्णा यादव को भाजपा अपना प्रत्याशी बनाती है. तो, अखिलेश के सामने ये अलग ही तरह की समस्या हो जाएगी. दरअसल, शिवपाल सिंह यादव से लेकर अपर्णा यादव तक को लंबे समय तक यादव कुनबे में बनाए रखने और पार्टी के खिलाफ खुलकर काम करने से रोकने के लिए मुलायम सिंह यादव का चेहरा ही काफी होता था. लेकिन, अब अखिलेश के पास मुलायम का सहारा नहीं है.
बसपा और कांग्रेस के वोट कैसे अपने खाते में लाएंगे?
माना जा रहा है कि मैनपुरी लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस और बसपा फिर से उम्मीदवार नहीं उतारेंगे. और, बसपा सुप्रीमो मायावती ने तो मैनपुरी उपचुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी की सियासी क्षमता पर सवाल खड़ा कर दिया है. मायावती ने ट्वीट कर लिखा है कि 'गोला गोकर्णनाथ विधानसभा उपचुनाव भाजपा की जीत से ज्यादा सपा की करारी हार के लिए चर्चा में है. बीएसपी जब अधिकांशतः उपचुनाव नहीं लड़ती है और यहां भी चुनाव मैदान में नहीं थी. तो, अब सपा अपनी इस हार के लिए कौन सा नया बहाना बनाएगी? अब अगले महीने मैनपुरी लोकसभा व रामपुर विधानसभा के लिए उपचुनाव में, आजमगढ़ की तरह ही, सपा के सामने अपनी इन पुरानी सीटों को बचाने की चुनौती है. देखना होगा कि क्या सपा ये सीटें भाजपा को हराकर पुनः जीत पाएगी या फिर वह भाजपा को हराने में सक्षम नहीं है, यह पुनः साबित होगा.'
वैसे, मायावती की बात सही भी नजर आती है. क्योंकि, इन तमाम सीटों पर बसपा और कांग्रेस के प्रत्याशी न होने के बावजूद समाजवादी पार्टी इन दोनों ही पार्टियों के मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने में कामयाब नहीं हो सकी थी. और, समाजवादी पार्टी ये भी नहीं कह सकती है कि उसे वोटों का बंटवारा होने की वजह से हार का सामना करना पड़ा. अगर यही स्थिति मैनपुरी में अपर्णा यादव के भाजपा का उम्मीदवार रहते बनती है. तो, समाजवादी पार्टी के लिए जीत की राह आसान नहीं होने वाली है. और, समाजवादी पार्टी के इस गढ़ में सेंध लगाने के लिए भाजपा कोई भी दांव खेलने से नहीं चूकेगी. हालांकि, अखिलेश यादव के लिए यहां राहत की बात ये है कि समाजवादी पार्टी को सहानुभूति वोट मिलने की संभावना ज्यादा है. लेकिन, लगातार उपचुनावों में जीत रही भाजपा के उत्साह के आगे क्या सपा टिकेगी?
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