कर्नाटक में सत्ता की जंग सीधे अखाड़े में पहुंच चुकी है. विधानसभा स्पीकर फिलहाल इस रस्साकशी में रिंग मास्टर के रोल में नजर आ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस्तीफा देने वाले विधायकों को व्हिप के दायरे से बाहर करने वाली रूलिंग दी जरूर है, लेकिन फैसले लेने की समय सीमा को भी स्पीकर के विवेकाधिकार पर छोड़ दिया है. संवैधानिक शक्तियों के चलते स्पीकर केआर रमेश के पास राजनीतिक फैसले भी ले सकने का पूरा अधिकार है.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने राज्य के मौजूदा राजनीतिक संकट के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया है. साथ ही, कुमारस्वामी विश्वासमत में जीत हासिल कर लेने का दावा भी कर रहे हैं.
नंबर गेम के हिसाब से कुमारस्वामी सरकार के विश्वासमत जीतने के कम ही आसार हैं, ऐसे में सवाल यही है कि पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा विश्वासमत को जल्दी समेटने की हड़बड़ी में क्यों हैं?
बगैर नंबर की लड़ाई में कुमारस्वामी का एकल संघर्ष
जेडीएस और कांग्रेस के गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ऐसी लड़ाई लड़ रहे हैं जिसके बारे में हर कोई नतीजे का पहले से ही आकलन कर ले रहा है. ये कोई '5 ट्रिलियन इकनॉमी' के लक्ष्य को हासिल करने जैसी लड़ाई नहीं है जिसे, बकौल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 'आशा, आकांक्षा और विश्वास' से हासिल किया जा सकता है. ये सिर्फ और सिर्फ नंबर का खेल है. बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा के इस बार हद से ज्यादा सक्रिय होने की पक्की वजह भी यही है. नंबर लगातार कुमारस्वामी के खिलाफ हैं और वो घटने या ठहरने की जगह बढ़ता ही जा रहा है.
कर्नाटक में फ्लोर टेस्ट चल रहा है और 19 विधायक विधानसभा नहीं पहुंचे हैं - एसटी सोमशेखर, रमेश झारकीहोली, रोशन बेग, बैरती बसवराज, मुनिरत्ना, श्रीमंत पाटिल, आनंद सिंह, बी नागेंद्र, आर शंकर, के गोपलय्या, नारायण गौड़ा, एमटीबी बसवराज, बीसी पाटिल, एच विश्वनाथ, महेश कुमताहल्ली, प्रताप गौड़ा पाटिल, डॉ सुधाकर, शिवराम हेब्बार और एन मेहश.
ऐसा तब हो रहा है जब स्पीकर ने पहले ही साफ कर दिया था...
कर्नाटक में सत्ता की जंग सीधे अखाड़े में पहुंच चुकी है. विधानसभा स्पीकर फिलहाल इस रस्साकशी में रिंग मास्टर के रोल में नजर आ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस्तीफा देने वाले विधायकों को व्हिप के दायरे से बाहर करने वाली रूलिंग दी जरूर है, लेकिन फैसले लेने की समय सीमा को भी स्पीकर के विवेकाधिकार पर छोड़ दिया है. संवैधानिक शक्तियों के चलते स्पीकर केआर रमेश के पास राजनीतिक फैसले भी ले सकने का पूरा अधिकार है.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने राज्य के मौजूदा राजनीतिक संकट के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया है. साथ ही, कुमारस्वामी विश्वासमत में जीत हासिल कर लेने का दावा भी कर रहे हैं.
नंबर गेम के हिसाब से कुमारस्वामी सरकार के विश्वासमत जीतने के कम ही आसार हैं, ऐसे में सवाल यही है कि पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा विश्वासमत को जल्दी समेटने की हड़बड़ी में क्यों हैं?
बगैर नंबर की लड़ाई में कुमारस्वामी का एकल संघर्ष
जेडीएस और कांग्रेस के गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ऐसी लड़ाई लड़ रहे हैं जिसके बारे में हर कोई नतीजे का पहले से ही आकलन कर ले रहा है. ये कोई '5 ट्रिलियन इकनॉमी' के लक्ष्य को हासिल करने जैसी लड़ाई नहीं है जिसे, बकौल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 'आशा, आकांक्षा और विश्वास' से हासिल किया जा सकता है. ये सिर्फ और सिर्फ नंबर का खेल है. बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा के इस बार हद से ज्यादा सक्रिय होने की पक्की वजह भी यही है. नंबर लगातार कुमारस्वामी के खिलाफ हैं और वो घटने या ठहरने की जगह बढ़ता ही जा रहा है.
कर्नाटक में फ्लोर टेस्ट चल रहा है और 19 विधायक विधानसभा नहीं पहुंचे हैं - एसटी सोमशेखर, रमेश झारकीहोली, रोशन बेग, बैरती बसवराज, मुनिरत्ना, श्रीमंत पाटिल, आनंद सिंह, बी नागेंद्र, आर शंकर, के गोपलय्या, नारायण गौड़ा, एमटीबी बसवराज, बीसी पाटिल, एच विश्वनाथ, महेश कुमताहल्ली, प्रताप गौड़ा पाटिल, डॉ सुधाकर, शिवराम हेब्बार और एन मेहश.
ऐसा तब हो रहा है जब स्पीकर ने पहले ही साफ कर दिया था कि कोई भी बगैर उनसे अनुमति लिए विधानसभा से गैरहाजिर नहीं रह सकता. सदन से गैरहाजिर रहने वालों में शामिल कांग्रेस विधायक श्रीमंत पाटिल तो सीधे अस्पताल में बरामद हुए हैं. सीने में दर्द की शिकायत के बाद वो मुंबई के अस्पताल में भर्ती हैं. बीएसपी विधायक एन. महेश ने तो पहले ही बता दिया था कि वो बाहर ही रहेंगे. बीएसपी विधायक का कहना है कि चूंकि कांग्रेस-जेडीएस सरकार की ओर से उनकी नेता मायावती से इस बारे में संपर्क नहीं किया गया है इसलिए वो अपने इलाके में ही रहेंगे.
कुमारस्वामी पूरी तरह अकेले पड़ चुके हैं. ऊपर से दोहरी लड़ाई भी लड़ रहे हैं. वो ऐसे कि कहने को तो कांग्रेस नेता सिद्धारमैया सरकार बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन इस्तीफा देने वाले विधायकों ज्यादातर उन्हीं के समर्थक हैं. ये कुमारस्वामी के लिए दोहरी चुनौती है जो सिद्धारमैया के साथ पुरानी दुश्मनी के बदले मिल रही है.
ले देकर कुमारस्वामी को अब स्पीकर केआर रमेश से ही उम्मीद जो कुछ भी है बची हुई है. कुमारस्वामी का कहना है कि स्पीकर की भूमिका को खराब करने की कोशिश की जा रही है.
कुमारस्वामी ने कर्नाटक के विकास के लिए काम करने की अपील की है, लेकिन क्या वास्तव में सूबे के विकास के लिए किसी को फिक्र है. कर्नाटक के कई जिले सूखे की चपेट में हैं - और विधानसभा में सरकार बचाने और गिराने का खेल चल रहा है. हैरानी की बात तो ये है कि ये तब हो रहा है जब दिल्ली में कृषि को लेकर नीति आयोग में मुख्यमंत्री की पहली बैठक चल रही है.
कुमारस्वामी मुख्यमंत्री तो हैं लेकिन अभी सरकार बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. ऐसे में नीति आयोग की बैठक में जायें तो कैसे जायें?
सिद्धारमैया मुख्यमंत्री नहीं हैं इसलिए नीति आयोग की बैठक कृषि पर हो या किसी और मुद्दे पर उन्हें क्या?
येदियुरप्पा अभी मुख्यमंत्री बन नहीं पाये हैं इसलिए नीति आयोग की बैठक से क्या मतलब. जब कुर्सी मिल जाएगी तो सिर्फ कृषि क्या नीति आयोग की सभी बैठकों में हिस्सा लेंगे.
बात सिर्फ इतनी है कि कर्नाटक के मौजूदा राजनीतिक संकट में ये ही तीन नेता मुख्य हिस्सेदार हैं और सत्ता में होने पर नेतृत्व भी करते हैं - लेकिन जब अपनी सत्ता नहीं तो 'विकास तो गांडो थयो छे' का नारा सिर्फ गुजरात ही क्यों कर्नाटक में भी तो लगाया जा सकता है. है कि नहीं?
फ्लोर टेस्ट में घड़ी पर टिकी निगाहें
कर्नाटक विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के लिए मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ज्यादा से ज्यादा वक्त लेना चाहते हैं, तो बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा विश्वासमत को जल्दी समेटना चाहते हैं. बीएस येदियुरप्पा चाहते थे कि विश्वास मत पर चर्चा के लिए समय निर्धारित हो. ऐसा न हो कि चर्चा लंबी चले और विश्वासमत तक पहुंचने में काफी देर हो जाये.
विश्वासमत पर चर्चा के दौरान कुमारस्वामी ने पूछा है - 'आखिर बीएस येदियुरप्पा इतनी जल्दीबाजी में क्यों हैं? मैं पूछना चाहता हूं कि हमारी सरकार को अस्थिर करने के पीछे कौन हैं?'
विश्वास मत के वक्त को लेकर दोनों ही पक्षों के फिक्र का बिंदु एक ही है. विधायकों को होटल में आखिर कब तक संभाल कर रखा जा सकता है? जाहिर है बीजेपी को भी विधायकों के मन बदल जाने का डर लग रहा होगा. जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन भी विधायकों को उन्हीं शर्तों पर मनाने की कोशिश में जुटा जिसके चलते वे रूठ कर दूसरी तरफ जा मिले हैं. यही वो सबसे बड़ी वजह है जिसने दोनों ही पक्षों की निगाह घड़ी पर टिका दी है.
फ्लोर टेस्ट में रणनीतिक चालें
फ्लोर टेस्ट पर चर्चा के लिए पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया बोलने लगे तो भाषण थोड़ा लंबा होने लगा. वो संविधान के नियमों का जिक्र कर रहे थे ताकि विधानसभा स्पीकर को मिले अधिकारों की ओर ध्यान दिला सकें. सिद्धारमैया के भाषण पर बीजेपी विधायकों ने शोर भी मचाया. सिद्धारमैया ने कहा, 'यहां ऐसे विधायक भी हैं जो एक दिन में तीन तीन पार्टियां बदल रहे हैं. देश का राजनीतिक माहौल दूषित हो गया है.'
चर्चा के दौरान कई बार कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार और बीजेपी विधायकों के बीच कई बार तीखी नोकझोंक भी हुई. येदियुरप्पा के बारे में डीके शिवकुमार ने यहां तक कह डाला, 'एक पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष का नेता होने के बावजूद वो राष्ट्र और कोर्ट को गुमराह कर रहे हैं.' कर्नाटक विधायकों के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने राज्य सभा में हंगामा किया जिससे सदन को स्थगित करना पड़ा.
कांग्रेस नेता एचए पाटिल ने उस मसले को उठाया जिस पर बात इतनी बढ़ आयी है - 'विश्वास मत लेने से पहले ये फैसला करना चाहिये कि बागी सदन के सदस्य हैं या नहीं?' पाटिल ने कहा कि बागी विधायक इस्तीफा देने की बात कर रहे हैं लेकिन वो स्वीकार नहीं हुआ है. पाटिल बोले, 'इसलिए हमें इस मुद्दे पर चीजें साफ करने के लिए समय चाहिये.'
विधानसभा में स्पीकर ने विधायकों के मामले सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग की दुहाई देते हुए कुछ बातें स्पष्ट करने की कोशिश जरूर की है.
1. "ये सदन सुप्रीम कोर्ट का सबसे ज्यादा सम्मान करता है. मैं कांग्रेस के नेताओं को साफ कर देना चाहता हूं कि ये सदन आपको आपके अधिकारों का इस्तेमाल करने से रोक नहीं रहा है. उसमें मेरी कोई भूमिका नहीं है."
स्पीकर के बयान को देखें तो कहने का मतलब तो यही हुआ कि सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद कांग्रेस के पास व्हिप का अधिकार सुरक्षित है और जो व्हिप जारी हुआ है - वो लागू रहेगा.
2. "जब एक सदस्य नहीं आने का फैसला करता है तो हमारे अटेंडेंट उन्हें अटेंडेंस रजिस्टर में साइन करने नहीं देंगे."
इस तरह स्पीकर ने समझाया कि सदन में उपस्थित रहने पर सदस्यों को जो भत्ता मिलता है वो तो मिलने से रहा. साथ ही, ऐसा होने पर सदन की कार्यवाही से दूर रहने वाले विधायक गैरहाजिर माने जाएंगे. ये सब तब की बात है जब न तो विधायकों का इस्तीफा स्वीकार हुआ है और न ही कांग्रेस और जेडीएस की ओर उनकी अयोग्यता को दी गयी अर्जी पर ही कोई फैसला हुआ है.
वैसे येदियुरप्पा को जिस बात की आशंका रही वो साफ साफ होती हुई भी दिख रही है. पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कंफ्यूजन की स्थिति हो गयी है. सिद्धारमैया की सलाह है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश पर स्पष्टीकरण नहीं मिल जाता, तब तक इस सत्र में फ्लोर टेस्ट लेना उचित नहीं है.'
स्पीकर केआर रमेश का बीजेपी खेमे में कितना हौव्वा है इसे एक नेता के बयान से आसानी से समझा जा सकता है. बीजेपी नेता सुरेश कुमार बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, 'वो किसी भी पक्ष की वकालत कर सकते हैं. राजनीतिक कारणों के लिए वो किसी भी नियम की व्याख्या करने में सक्षम हैं. उसके लिए वो कोई भी मिसाल कायम कर सकते हैं.'
बतौर कांग्रेस नेता केआर रमेश अरसे से बीजेपी की राजनीतिक का विरोध करते आये हैं. इस बार भी वो कांग्रेस के टिकट पर ही चुनाव जीते हैं. बीजेपी नेता येदियुरप्पा जानते हैं कि केआर रमेश उन्हें सत्ता में आने से रोकने का कोई भी नुस्खा आजमाने से नहीं चूकने वाले हैं. केआर रमेश के साथ एक दिलचस्प बात ये भी जुड़ी है कि जब एचडी देवगौड़ा कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे तो वो पहली बार स्पीकर बने थे और उनके फैसलों से जुड़े तब के किस्से आज भी याद किये जाते हैं. सदन ही नहीं, अपने इलाके में भी केआर रमेश दबंग नेता माने जाते हैं - येदियुरप्पा की फिक्र यूं ही नहीं है.
हारने की हालत में भी हार नहीं मानते डीके
अंदर से जो भी हो रहा हो, लेकिन फ्रंट पर कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार जिस तरीके से लड़ाई लड़ रहे हैं, उस हिसाब से तो मुख्यमंत्री कुमारस्वामी भी पीछे नजर आ रहे हैं. वैसे भी कर्नाटक में कांग्रेस को हर संकट से उबारने वाले डीके शिवकुमार अकेले नेता हैं.
फ्लोर टेस्ट और सरकार बचाने की जोर आजमाइश के बीच डीके शिवकुमार की एक ऐसी तस्वीर आयी है जिसमें थोड़ी भी हकीकत है तो वो बाजी पलटने की क्षमता रखते हैं. ये तस्वीर है बीजेपी विधायक बी. श्रीरामुलु कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार के बीच के बातचीत की.
एक मीडिया रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि क्या डीके शिवकुमार बीजेपी नेता श्रीरामुलु को कर्नाटक के डिप्टी सीएम की पोस्ट ऑफर कर रहे हैं?
इन्हें भी पढ़ें :
कर्नाटक में फेंका जा रहा है सियासी सुपरओवर
सुप्रीम कोर्ट के दखल से कर्नाटक में इस बार बीजेपी की बल्ले बल्ले
6 वजहें, कर्नाटक सरकार तो गिरनी ही चाहिए
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.