''मायावती एक वेश्या से भी बदतर हैं". शब्द लिखने के लिए माफ़ी चाहता हूँ. ये शब्द हैं भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी (नेता) दयाशंकर सिंह के, जो उन्होंने बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए कहे. उनके इस बयान के खिलाफ संसद से लेकर लखनऊ तक आवाज बुलंद हुई और इससे भी कहीं दूर तक इसकी गूंज सुनाई दे रही है. गूंज सुनाई भी देनी चाहिये, कयोंकि इस साल के अंत में या अगले साल के शुरुआत में उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं.
मायावती चाहती है दयाशंकर सिंह की गिरफ्तारी |
अब राजनीति से अहम यह मामला है नारी भाव के सम्मान का. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः आज मायावती हैं, कल कोई और होगा आखिर कब तक? क्या इस राजनैतिक भाषा का कोई राजनैतिक या कानूनी हल है? जो चाहे जब चाहे महिलाओं की लिए अनाप-सनाप भाषा का इस्तेमाल करता रहे. क्या राजनैतिक पार्टियों को इसके लिए कोई मापदंड नहीं तैयार करना चाहिए?
इसे भी पढ़ें: 'अखंड भारत': 'अलगाव' और 'एकता' के विभ्रम
खैर दयाशंकर सिंह के बयान के बाद पार्टी का प्रबुद्ध वर्ग समय की नजाकत को समझते हुए दयाशंकर सिंह की ओर झपट पड़ा और चुनावी हवा के मद्देनजर उन्हें मक्खी की तरह दूध में से बाहर निकाल फेंका. यह पहला मामला नहीं है जब किसी पार्टी के नेता ने भाषा की मर्यादा को तोड़ा हो, इससे पहले भी इस प्रकार के मामले सामने आए हैं.
आम आदमी पार्टी की सांसद अलका लांबा को लेकर दिल्ली बीजेपी विधायक...
''मायावती एक वेश्या से भी बदतर हैं". शब्द लिखने के लिए माफ़ी चाहता हूँ. ये शब्द हैं भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी (नेता) दयाशंकर सिंह के, जो उन्होंने बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए कहे. उनके इस बयान के खिलाफ संसद से लेकर लखनऊ तक आवाज बुलंद हुई और इससे भी कहीं दूर तक इसकी गूंज सुनाई दे रही है. गूंज सुनाई भी देनी चाहिये, कयोंकि इस साल के अंत में या अगले साल के शुरुआत में उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं.
मायावती चाहती है दयाशंकर सिंह की गिरफ्तारी |
अब राजनीति से अहम यह मामला है नारी भाव के सम्मान का. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः आज मायावती हैं, कल कोई और होगा आखिर कब तक? क्या इस राजनैतिक भाषा का कोई राजनैतिक या कानूनी हल है? जो चाहे जब चाहे महिलाओं की लिए अनाप-सनाप भाषा का इस्तेमाल करता रहे. क्या राजनैतिक पार्टियों को इसके लिए कोई मापदंड नहीं तैयार करना चाहिए?
इसे भी पढ़ें: 'अखंड भारत': 'अलगाव' और 'एकता' के विभ्रम
खैर दयाशंकर सिंह के बयान के बाद पार्टी का प्रबुद्ध वर्ग समय की नजाकत को समझते हुए दयाशंकर सिंह की ओर झपट पड़ा और चुनावी हवा के मद्देनजर उन्हें मक्खी की तरह दूध में से बाहर निकाल फेंका. यह पहला मामला नहीं है जब किसी पार्टी के नेता ने भाषा की मर्यादा को तोड़ा हो, इससे पहले भी इस प्रकार के मामले सामने आए हैं.
आम आदमी पार्टी की सांसद अलका लांबा को लेकर दिल्ली बीजेपी विधायक ओपी शर्मा ने सदन में अलका लांबा को 'रातभर घूमने वाली औरत' कहा था.
इसे भी पढ़ें: संन्यास के साथ सब खत्म, न कोई ब्राह्मण न कोई दलित
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रमुख के एस सुदर्शन ने भोपाल में सोनिया गांधी पर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या का षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया था. सुदर्शन ने सोनिया को ‘सीआईए की एजेंट’ और ‘अवैध संतान’ भी कह दिया था.
प्रमोद महाजन ने सोनिया गांधी की तुलना 'मोनिका लेविंस्की' से की थी.
गुजरात में कुपोषित बच्चों के मामले पर इंटरव्यू के दौरान तत्कालीन गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मिडिल क्लास परिवारों की लड़कियों को सेहत से ज्यादा खूबसूरत दिखने की फ्रिक होती है. उन्होंने कहा था कि अच्छे फिगर की चाहत में लड़कियां कम खाती हैं. उनके इस बयान पर भी काफी विवाद हुआ था.
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पुत्र और जंगीपुर से कांग्रेस के सांसद अभिजीत मुखर्जी ने दामिनी गैंगरेप के खिलाफ दिल्ली में चल रहे विरोध प्रदर्शन को लेकर कहा था कि हर मुद्दे पर कैंडल मार्च करने का फैशन चल पड़ा है. अभिजीत ने कहा था कि महिलाएं दिन में सज-धजकर कैंडल मार्च निकालती हैं और रात में डिस्को और पब में जाती हैं.
इसे भी पढ़ें: जाति की राजनीति के सियासी गिद्ध!
सीपीएम के सीनियर नेता और पश्चिम बंगाल के पूर्वमंत्री अनीसुर रहमान ने पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनावों से पहले मर्यादा की सारी हदें तोड़ दी थीं. उन्होंने कहा था कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी रेप करने का कितना चार्ज लेंगी. हालांकि, इस पर बवाल होने के बाद उन्होंने माफी मांग ली और कहा कि भूलवश उन्होंने ऐसी बात कह दी थी.
तत्कालीन कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने एक सभा में महिलाओं पर आपत्तिजनक बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि शादी जैसे-जैसे पुरानी होती है उसका मजा कम होता जाता है.
मुंबई में आतंकी हमले के बाद बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी नारेबाजी कर रहीं कुछ महिलाओं को लेकर कहा था कि ये लिपस्टिक-पाउडर लगाकर क्या विरोध करेंगी?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.