हर गुजरते दिन के साथ महाराष्ट्र में सियासी हलचल तेज होती जा रही है. आने वाले दिनों में ये हलचल और भी तेज होगी, कम से कम 9 नवंबर (Last day of making government in maharashtra) तक. अगर तब तक भी महाराष्ट्र में कोई पार्टी सरकार नहीं बना सकी तो राष्ट्रपति शासन (President Rule in Maharashtra) लगेगा. जब महाराष्ट्र (Maharashtra Assembly Election) और हरियाणा विधानसभा के चुनाव (Haryana Assembly Election) हुए तो हरियाणा में कांग्रेस-भाजपा में तगड़ी टक्कर देखने को मिली, जबकि महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना (BJP-Shiv Sena Alliance) के गठबंधन ने बहुमत हासिल कर के कांग्रेस-एनसीपी (Congress-NCP) के गठबंधन को हरा दिया. यूं लगा कि सरकार बनाने में दिक्कतें सिर्फ हरियाणा में होंगी, लेकिन हुआ सब कुछ उल्टा. हरियाणा में तो चंद दिनों में ही तस्वीर साफ हो गई और भाजपा ने मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री पद पर नियुक्त करते हुए सरकार बना ली, लेकिन महाराष्ट्र में पेंच फंस गया. शिवसेना चाहती है कि 50-50 फॉर्मूला (50-50 Formula) अपनाते हुए आधे समय यानी ढाई साल शिवसेना का मुख्यमंत्री (Maharashtra CM) रहे, जबकि भाजपा मुख्यमंत्री पद के साथ कोई समझौता करने को तैयार नहीं है. महाराष्ट्र चुनाव नतीजे आने के बाद ये पहला मौका होगा, जब भाजपा को शिवसेना के साथ गठबंधन करने पर अफसोस हुआ होगा. लेकिन ऐसा नहीं है कि भाजपा को ये अफसोस सिर्फ एक बार हुआ होगा, बल्कि शिवसेना ने बार-बार ये जताया है कि भाजपा ने ये गठबंधन कर के बहुत बड़ी गलती की है.
हर कुछ दिन में शिवसेना करती है हमला
महाराष्ट्र में पिछली सरकार में रहते हुए भी शिवसेना ने अक्सर ही भाजपा के खिलाफ बयानबाजी की. बल्कि...
हर गुजरते दिन के साथ महाराष्ट्र में सियासी हलचल तेज होती जा रही है. आने वाले दिनों में ये हलचल और भी तेज होगी, कम से कम 9 नवंबर (Last day of making government in maharashtra) तक. अगर तब तक भी महाराष्ट्र में कोई पार्टी सरकार नहीं बना सकी तो राष्ट्रपति शासन (President Rule in Maharashtra) लगेगा. जब महाराष्ट्र (Maharashtra Assembly Election) और हरियाणा विधानसभा के चुनाव (Haryana Assembly Election) हुए तो हरियाणा में कांग्रेस-भाजपा में तगड़ी टक्कर देखने को मिली, जबकि महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना (BJP-Shiv Sena Alliance) के गठबंधन ने बहुमत हासिल कर के कांग्रेस-एनसीपी (Congress-NCP) के गठबंधन को हरा दिया. यूं लगा कि सरकार बनाने में दिक्कतें सिर्फ हरियाणा में होंगी, लेकिन हुआ सब कुछ उल्टा. हरियाणा में तो चंद दिनों में ही तस्वीर साफ हो गई और भाजपा ने मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री पद पर नियुक्त करते हुए सरकार बना ली, लेकिन महाराष्ट्र में पेंच फंस गया. शिवसेना चाहती है कि 50-50 फॉर्मूला (50-50 Formula) अपनाते हुए आधे समय यानी ढाई साल शिवसेना का मुख्यमंत्री (Maharashtra CM) रहे, जबकि भाजपा मुख्यमंत्री पद के साथ कोई समझौता करने को तैयार नहीं है. महाराष्ट्र चुनाव नतीजे आने के बाद ये पहला मौका होगा, जब भाजपा को शिवसेना के साथ गठबंधन करने पर अफसोस हुआ होगा. लेकिन ऐसा नहीं है कि भाजपा को ये अफसोस सिर्फ एक बार हुआ होगा, बल्कि शिवसेना ने बार-बार ये जताया है कि भाजपा ने ये गठबंधन कर के बहुत बड़ी गलती की है.
हर कुछ दिन में शिवसेना करती है हमला
महाराष्ट्र में पिछली सरकार में रहते हुए भी शिवसेना ने अक्सर ही भाजपा के खिलाफ बयानबाजी की. बल्कि 2014 का तो चुनाव भी दोनों पार्टियों ने अलग-अलग लड़ा था क्योंकि सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों में कोई समझौता नहीं हो सका था. भाजपा ने तब भी सत्ता के लिए शिवसेना के साथ हाथ तो मिला दिया, लेकिन शिवसेना वो दोस्त निकला जो पूरे कार्यकाल गले की हड्डी बना रहा. खैर, भाजपा भी कम नहीं है. इतना कुछ होने के बावजूद भाजपा ने फिर से उसी शिवसेना के साथ गठबंधन कर लिया, जिसकी नतीजा ये हुआ कि भाजपा को मिली सीटों में गिरावट आई. पिछली बार जहां भाजपा ने सिर्फ अपने दम पर 122 सीटें हासिल की थीं, इस बार वह सिर्फ 105 के आंकड़े तक ही पहुंच सकी. पिछली बार शिवसेना के साथ मिलकर सरकार चलाने में जो दिक्कतें आईं, उनसे भाजपा ने सबक नहीं लिया और अब शिवसेना फिर से भाजपा को सबक सिखाने में लगी हुई है. ऐसे एक-दो नहीं, बल्कि कई वाकये हैं, जिन्हें देखकर ये साफ होता है कि भाजपा को शिवसेना के साथ गठबंधन करने का अफसोस हो रहा होगा.
1- 50-50 फॉर्मूला बना गले की फांस
अभी चुनावी नतीजे आए ही थे कि शिवसेना ने सीएम पद का राग अलापना शुरू कर दिया. सीटों के मामले में भाजपा काफी आगे है, जबकि शिवसेना के पास इससे करीब आधी ही सीटें हैं. बावजूद इसके शिवसेना चाहती है कि 50-50 फॉर्मूला अपनाया जाए, जिसके तहत आधे समय यानी ढाई साल शिवसेना का मुख्यमंत्री होगा. शिवसेना की मांग है कि पहले उसका मुख्यमंत्री (Maharashtra CM) बने, फिर बाकी के ढाई साल भाजपा का. शिवसेना दावा करती है कि भाजपा ने चुनाव से पहले इसका वादा किया था, जबकि भाजपा कहती है कि सीएम पद को लेकर ऐसा कोई वादा नहीं किया गया था. हां, भाजपा ये मानती है कि उन्होंने जिम्मेदारियां और पद बांटने की बात की थी, लेकिन सीएम पद की कोई बात नहीं हुई. अब शिवसेना सीएम पद लेने पर अड़ी है. भाजपा ये देखकर पछता तो जरूर रही होगी.
2- शिवसेना बोली- 'हमारे विधायक खरीद रही भाजपा'
जब बात सरकार बनाने की आती है तो भाजपा की ओर से दूसरी पार्टियों में तोड़-फोड़ करना कोई नई बात नहीं है. ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें सबसे ताजा उदाहरण हरियाणा ही है. भाजपा ने तोड़-फोड़ तो नहीं मचाई, लेकिन जेजेपी और निर्दलीयों को अपने साथ जरूर मिला लिया. अब महाराष्ट्र में सरकार बनाने का संकट आ गया है. ऐसे में शिवसेना ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि वह शिवसेना के विधायकों को खरीदने की कोशिश कर रही है. महाराष्ट्र के सीएम पद (Maharashtra CM) के लिए शिवसेना भी अपने विधायकों को टूटने से बचाने के तमाम इंतजाम करने में लगी है. खैर, सच जो भी हो, लेकिन शिवसेना की तरफ से खुलेआम ऐसा बयान देना उसकी छवि को खराब करने वाला तो है ही. अभी तो सरकार भी नहीं बनी है और शिवसेना इस तरह से हमलावर है, जरा सोचिए सरकार बनने के बाद दोनों मिलकर कैसे चलाएंगे सरकार को.
3- कश्मीर पर दिया बयान भाजपा के खिलाफ गया
अक्टूबर महीने के अंत में यूरोपियन यूनियन का 28 लोगों का एक दल जम्मू-कश्मीर के दौरे पर आया था, जिस पर शिवसेना ने हमला बोला था. शिवसेना के मुखपत्र सामना में छपे संपादकीय में लिखा गया था कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद अब जब कश्मीर घाटी की परिस्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है तो ऐसे समय में यहां यूरोपियन समुदाय के दल के आने का क्या प्रयोजन है? कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने भी भाजपा पर निशाना साधा था. ऐसे में शिवसेना का ये बयान भाजपा के खिलाफ गया, जबकि भाजपा ने शिवसेना के साथ गठबंधन में महाराष्ट्र चुनाव लड़ा है.
4- संजय राउत ने भाजपा को अंहकारी कहा
शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने हाल ही में एक ट्वीट किया था, जिसका अंदाज बेहद तंज भरा था. वह ये जताना चाहते थे कि सीएम शिवसेना (Maharashtra CM) का ही बनना चाहिए. संजय राउत ने चेतावनी देते हुए ट्वीट किया- 'साहिब, मत पालिए अहंकार को इतना, वक्त के सागर में कई सिकंदर डूब गए.'
साथ ही वह ये भी कह चुके हैं कि शिवसेना अपने दम पर भी महाराष्ट्र में सरकार बना सकती है. यानी उन्हें भाजपा की भी जरूरत नहीं है. इसके बाद इस बात की चर्चा भी तेज हो गई कि कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर भी शिवसेना सरकार बनाने के विकल्प के लिए तैयार है. सहयोगी तो साथ देता है, लेकिन शिवसेना वो सहयोगी है जो साथ रहने की कीमत मांग रही है, वो बहुत भारी.
5- अर्थव्यवस्था पर किया तंज भी भाजपा के खिलाफ ही गया
कुछ समय पहले शिवसेना की ओर से सामना में एक संपादकीय लिखा गया था और 'इतना सन्नाटा क्यों है भाई?' डायलॉग के जरिए देश की आर्थिक सुस्ती की बात करते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा गया था. ये सबको दिख रहा है कि जीडीपी गिर गई है, आर्थिक सुस्ती है, बेरोजगारी है, लेकिन ऐसे मुद्दों पर विपक्ष सरकारों को घेरता है, ना ही खुद सरकार की सहयोगी पार्टियां ऐसे तंज कसती हैं. अगर सहयोगी ही विरोधी जैसी बातें करें तो ऐसे सहयोगी के होने से तो ना होना ही अच्छा है. देखा जाए तो भाजपा का शिवसेना से गठबंधन ठीक वैसा है जैसे कोई शख्स बोले- 'आ बैल मुझे मार.'
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