शुक्रवार को उपचुनाव के नतीजे आते-अाते शाम तक कई न्यूज चैनलों ने घपला किया. कई ने तो यहां तक बता दिया कि बीजेपी लोकसभा में एक अल्पमत में पहुंच गई है. किसी ने तो यह भी कह दिया कि 2014 में 282 सीट हासिल करने वाली भाजपा 270 तक आ गई है. खैर, ऐसा तो कुछ नहीं है. लेकिन जो कुछ भाजपा के पास बचा है, वह चिंता का कारण जरूर है.
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 543 में से 282 सीटों पर कब्ज़ा करके अपनी प्रतिद्वंदी पार्टियों को सकते में डाल दिया था. यानी सदन में बहुमत के लिए जरूरी आंकड़े से पूरे 10 ज़्यादा. लेकिन 4 साल बीत जाने के बाद भाजपा के पास लोकसभा स्पीकर की सीट छोड़कर 273 सीटें ही बची हैं. कारण 2014 के लोकसभा के चुनाव के बाद हुए उप-चुनावों में इसे 8 सीटें गंवानी पड़ी हैं. अभी तक लोकसभा के 27 उप-चुनाव हुए हैं जिसमें भाजपा के पास 13 सीटें थीं जिसमें से वह केवल 5 सीटें ही बचा पायी और 8 सीटें दूसरे दलों के खाते में चली गईं. हालांकि इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि भाजपा को उप-चुनाव में तो हार मिलती है, लेकिन मुख्य चुनाव में वह जीत जाती है.
भाजपा का उप-चुनावों में हार का सिलसिला साल 2015 में मध्य प्रदेश की रतलाम लोकसभा सीट से आरम्भ हुआ था जो मई 2018 तक आते-आते पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश होते हुए महाराष्ट्र तक पहुंच गया. ये वो राज्य हैं जिसे भाजपा का गढ़ माना जाता है और उसका प्रदर्शन 2014 के लोकसभा चुनावों में बेहतरीन रहा था. ये वही 5 राज्य हैं जहां भाजपा ने अकेले दम पर लोकसभा की 148 सीटें जीतीं थीं. यही नहीं राजस्थान और मध्य प्रदेश में तो इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. और अभी तक जो सर्वे हुए हैं उसके अनुसार इन...
शुक्रवार को उपचुनाव के नतीजे आते-अाते शाम तक कई न्यूज चैनलों ने घपला किया. कई ने तो यहां तक बता दिया कि बीजेपी लोकसभा में एक अल्पमत में पहुंच गई है. किसी ने तो यह भी कह दिया कि 2014 में 282 सीट हासिल करने वाली भाजपा 270 तक आ गई है. खैर, ऐसा तो कुछ नहीं है. लेकिन जो कुछ भाजपा के पास बचा है, वह चिंता का कारण जरूर है.
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 543 में से 282 सीटों पर कब्ज़ा करके अपनी प्रतिद्वंदी पार्टियों को सकते में डाल दिया था. यानी सदन में बहुमत के लिए जरूरी आंकड़े से पूरे 10 ज़्यादा. लेकिन 4 साल बीत जाने के बाद भाजपा के पास लोकसभा स्पीकर की सीट छोड़कर 273 सीटें ही बची हैं. कारण 2014 के लोकसभा के चुनाव के बाद हुए उप-चुनावों में इसे 8 सीटें गंवानी पड़ी हैं. अभी तक लोकसभा के 27 उप-चुनाव हुए हैं जिसमें भाजपा के पास 13 सीटें थीं जिसमें से वह केवल 5 सीटें ही बचा पायी और 8 सीटें दूसरे दलों के खाते में चली गईं. हालांकि इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि भाजपा को उप-चुनाव में तो हार मिलती है, लेकिन मुख्य चुनाव में वह जीत जाती है.
भाजपा का उप-चुनावों में हार का सिलसिला साल 2015 में मध्य प्रदेश की रतलाम लोकसभा सीट से आरम्भ हुआ था जो मई 2018 तक आते-आते पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश होते हुए महाराष्ट्र तक पहुंच गया. ये वो राज्य हैं जिसे भाजपा का गढ़ माना जाता है और उसका प्रदर्शन 2014 के लोकसभा चुनावों में बेहतरीन रहा था. ये वही 5 राज्य हैं जहां भाजपा ने अकेले दम पर लोकसभा की 148 सीटें जीतीं थीं. यही नहीं राजस्थान और मध्य प्रदेश में तो इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. और अभी तक जो सर्वे हुए हैं उसके अनुसार इन दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार को हारते हुए दिखाया गया है. ऐसे में आने वाले लोकसभा चुनावों में इसका विपरीत असर भाजपा के प्रदर्शन पर पड़ना तय है.
लोकसभा सीट (राज्य) |
2014 में विजेता |
उपचुनाव का विजेता |
उपचुनाव का वर्ष |
वडोदरा (गुजरात) |
BJP |
BJP |
2014 |
बीड (महाराष्ट्र) |
BJP |
BJP |
2014 |
रतलाम (मप्र) |
BJP |
INC |
2014 |
शहडोल (मप्र) |
BJP |
BJP |
2016 |
लखीमपुर (असम) |
BJP |
BJP |
2016 |
गुरदासपुर (पंजाब) |
BJP |
INC |
2017 |
अलवर (राज.) |
BJP |
INC |
2018 |
अजमेर (राज.) |
BJP |
INC |
2018 |
गोरखपुर (यूपी) |
BJP |
SP |
2018 |
फूलपुर (यूपी) |
BJP |
SP |
2018 |
भंडारा-गोंदिया (महाराष्ट्र) |
BJP |
NCP |
2018 |
नगालैंड (नगालैंड) |
NPF |
NDPP |
2018 |
कैराना (यूपी) |
BJP | RLD | 2018 |
पालघर (महाराष्ट्र) |
BJP |
BJP |
2018 |
अब ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि ये सारे उप-चुनावों के परिणाम किस तरफ इशारे कर रहे हैं? क्या इन राज्यों में भाजपा पिछले लोकसभा चुनावों की तरह अपना प्रदर्शन दोहरा पाएगी? क्या प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का 'मैजिक' इस बार भी बरकरार रह पायेगा? क्या इन उपचुनावों के नतीजों को भाजपा के 4 साल के काम-काज पर जनता का मूड माना जाए, क्योंकि अगले लोकसभा चुनावों का आगाज़ होने ही वाला है?
भाजपा के सामने संयुक्त विपक्ष का सामना करना मुश्किल होता दिख रहा है. इसका उदाहरण हमने पहले उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और फूलपुर के उप-चुनावों में देखा और अब कैराना में भी. कहा जा सकता है कि आने वाले समय में भाजपा के लिए 2019 का लोक सभा चुनाव इतना आसान नहीं होने वाला है और उसे वापसी के लिए अपनी रणनीतियों पर फिर से विचार करना होगा, उसके विखरते सहयोगी दलों को मनाने के साथ ही साथ और दलों को एनडीए में जोड़ना होगा वरना अमित शाह का यह बयान कि भाजपा अगले 50 साल तक सत्ता में बनी रहेगी, एक दुःस्वप्न की तरह होगा.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.