गुजरात चुनाव में लगता है जैसे बीजेपी के भाग्य से छींके टूट रहे हों. चुनाव में बीजेपी के राजनीतिक विरोधी जो भी मुद्दे उठा रहे हैं, या जिन मुद्दों की वजह वे खुद बन जा रहे हैं, वे सारे ही बीजेपी के पक्ष में चले जा रहे हैं - ऐसा एक भी मौका मिल जाये तो अमित शाह (Amit Shah) जैसे नेता के लिए राजनीतिक हवा का रुख मोड़ना तो जैसे कोई काम ही नहीं होता.
गुजरात को लेकर बीजेपी पहले से ही काफी डरी हुई थी. 2017 के चुनाव में जीत के लिए संघर्ष तो बीजेपी को कभी नहीं भूलने वाला. कहने को तो यूपी चुनाव में भी आखिरी दौर में बनारस और आस पास की सीटों को लेकर बीजेपी डर ही गयी थी - और उबर भी तभी पायी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रोड शो गली मोहल्ले तक पहुंच गया.
लेकिन यूपी चुनाव के नतीजे आने के अगले ही दिन मोदी के अहमदाबाद रोड शो के पीछे बीजेपी का डर सिर्फ पांच साल पुराना वाला ही नहीं था. यूपी के साथ ही तो पंजाब चुनाव के भी नतीजे आये थे. यूपी ने तो आगे के लिए भी बेफिक्र कर दिया था, लेकिन पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत ने टेंशन तो बढ़ा ही दी थी.
और बीजेपी के शक को अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने मोदी के रोड शो के अगले ही दिन, एमसीडी चुनावों की तारीख को लेकर बीजेपी पर हमला बोल कर साफ कर दिया था - अब अगर बीजेपी और आम आदमी पार्टी की तभी की रणनीतियों से जोड़ कर देखें तो तार अभी के हालात से सीधे जुड़ जाते हैं.
कहने को तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो से पहले ही, विधानसभा चुनावों के नतीजे आने से भी पहले, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) गुजरात जाकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हौसलाअफजाई कर आये थे, लेकिन उसके बाद क्या हुआ? बाद में एक दिन के लिए गये और जिग्नेश मेवाणी के सामने ही हार्दिक पटेल से मुंह फेर कर बीजेपी में उनके जाने का इरादा पक्का कर दिया -...
गुजरात चुनाव में लगता है जैसे बीजेपी के भाग्य से छींके टूट रहे हों. चुनाव में बीजेपी के राजनीतिक विरोधी जो भी मुद्दे उठा रहे हैं, या जिन मुद्दों की वजह वे खुद बन जा रहे हैं, वे सारे ही बीजेपी के पक्ष में चले जा रहे हैं - ऐसा एक भी मौका मिल जाये तो अमित शाह (Amit Shah) जैसे नेता के लिए राजनीतिक हवा का रुख मोड़ना तो जैसे कोई काम ही नहीं होता.
गुजरात को लेकर बीजेपी पहले से ही काफी डरी हुई थी. 2017 के चुनाव में जीत के लिए संघर्ष तो बीजेपी को कभी नहीं भूलने वाला. कहने को तो यूपी चुनाव में भी आखिरी दौर में बनारस और आस पास की सीटों को लेकर बीजेपी डर ही गयी थी - और उबर भी तभी पायी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रोड शो गली मोहल्ले तक पहुंच गया.
लेकिन यूपी चुनाव के नतीजे आने के अगले ही दिन मोदी के अहमदाबाद रोड शो के पीछे बीजेपी का डर सिर्फ पांच साल पुराना वाला ही नहीं था. यूपी के साथ ही तो पंजाब चुनाव के भी नतीजे आये थे. यूपी ने तो आगे के लिए भी बेफिक्र कर दिया था, लेकिन पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत ने टेंशन तो बढ़ा ही दी थी.
और बीजेपी के शक को अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने मोदी के रोड शो के अगले ही दिन, एमसीडी चुनावों की तारीख को लेकर बीजेपी पर हमला बोल कर साफ कर दिया था - अब अगर बीजेपी और आम आदमी पार्टी की तभी की रणनीतियों से जोड़ कर देखें तो तार अभी के हालात से सीधे जुड़ जाते हैं.
कहने को तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो से पहले ही, विधानसभा चुनावों के नतीजे आने से भी पहले, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) गुजरात जाकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हौसलाअफजाई कर आये थे, लेकिन उसके बाद क्या हुआ? बाद में एक दिन के लिए गये और जिग्नेश मेवाणी के सामने ही हार्दिक पटेल से मुंह फेर कर बीजेपी में उनके जाने का इरादा पक्का कर दिया - जो अल्पेश ठाकोर और हार्दिक पटेल पांच साल पहले पूरे चुनाव कांग्रेस के लिए खंभे की तरह खड़े रहे, फिलहाल बीजेपी के मंच से कांग्रेस के खिलाफ मोर्चे पर तैनात हो चुके हैं.
गुजरात की रणनीतियां तैयार करने से पहले बीजेपी नेता अमित शाह को थोड़ा सा डर कांग्रेस से तो था ही, और थोड़ा सा केजरीवाल से भी. बल्कि आप नेता अरविंद केजरीवाल की भावी चाल भांप कर वो थोड़े परेशान भी लग रहे थे. अमित शाह की ये चिंता गुजरात चुनाव की तैयारियों से जुड़ी बीजेपी नेताओं की मीटिंग में भी देखने को मिली थी.
लेकिन जैसे जैसे चुनाव की तारीख आ रही है, ऐसा लगता है जैसे बीजेपी की मुश्किलें उसके राजनीतिक विरोधी ही कम करते जा रहे हैं. कांग्रेस और केजरीवाल की आपसी में बीजेपी फायदे में लगने लगी है. अमित शाह तो ऐसे मौकों की तलाश में घात लगाकर बैठे ही रहते हैं.
राहुल गांधी की टीम और अरविंद केजरीवाल के साथी नेताओं ने थोड़ा आपस में लड़ कर और थोड़ी गलतियां करके बीजेपी की राह आसान कर दी है - जो चुनाव कल तक बीजेपी के लिए मुश्किल का पहाड़ लग रहा था, बीजेपी के लिए करीब करीब एकतरफा लगने लगा है - ऐसा इसलिए क्योंकि जैसे 2017 में कांग्रेस से बीजेपी को कदम कदम पर टक्कर मिल रही थी, अब वो बात कहीं भी नजर नहीं आ रही है.
यहां तक कि बीजेपी के संसदीय बोर्ड ने मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने का फैसला पहले ही कर लिया था, लेकिन अब तो लगता है कि ऐसी कोई जरूरत नहीं थी. बाकी राज्यों में आने वाले चुनावों की बात और है लेकिन गुजरात में तो बीजेपी के लिए अभी सब अच्छा अच्छा ही लग रहा है.
जो माहौल बन रहा है, ये भी नहीं समझ आ रहा है कि राहुल गांधी गुजरात गये ही क्यों थे? अगर हिमाचल प्रदेश की तरह गुजरात नहीं भी जाते तो क्या फर्क पड़ जाता? और अब एक दिन जाकर हो भी आये तो कोई फर्क पड़ेगा, ऐसा तो किसी को भी नहीं लगता.
जिस कांग्रेस नेता अनंत पटेल के लिए राहुल गांधी वोट मांगने गये थे, वो तो अपनेआप में काफी सक्षम हैं. कुछ दिन पहले उन पर हुए हमले से उनके समर्थक पहले से ही गुस्से में हैं, और तोहमत लगने के कारण बीजेपी भी थोड़ी सहमी हुई है. अनंत पटेल के बुलाने पर राहुल गांधी का भारत जोड़ो यात्रा बीच में छोड़ कर गुजरात में चुनाव प्रचार के लिए चले जाना भी गुजरात कांग्रेस नेता की हैसियत ही बता रहा है.
ऐसा भी होता है!
महीना भर पहले दाहोद में एक चुनावी रैली के बाद कांग्रेस के चुनाव पर्यवेक्षक अशोक गहलोत मीडिया से बात कर रहे थे और तभी बीजेपी के खिलाफ सत्ताधारी लहर की बात की थी. तब अशोक गहलोत का कहना रहा, 'बीजेपी गुजरात में पिछले 27 साल से सत्ता में है... और मैं कह सकता हूं कि इस बार बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर सबसे ज्यादा है... लोग बीजेपी की मौजूदा गौरव यात्रा का विरोध कर रहे हैं, जबकि चुनाव अभियान के दौरान कांग्रेस का स्वागत कर रहे हैं.'
अशोक गहलोत पिछले चुनाव में भी राहुल गांधी के साथ गुजरात में लगे रहे. तब कांग्रेस के मिशन में सोनिया गांधी के सबसे भरोसेमंद राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल भी हुआ करते थे. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट अशोक गहलोत के ऐसे सारे ही दावों की पोल खोल रही है.
सौराष्ट्र और कच्छ के लोगों ने अखबार से बातचीत में जो कुछ भी कहा है वो कांग्रेस के खिलाफ जा रहा है, लिहाजा वो सब आम आदमी पार्टी के पक्ष में जा रहा है - और सीधा फायदा बीजेपी को मिल रहा है. लोगों की बातचीत से मालूम होता है कि वो बीजेपी को सत्ता से हटाने के पक्ष में तो नहीं हैं, लेकिन विपक्ष मजबूत रखना चाहते हैं.
ऐसे लोगों का कहना है कि अगर विपक्ष मजबूत रहेगा तो सत्ता पर काबिज लोगों पर नकेल कसी रहेगी. लोगों की बातचीत से, रिपोर्ट के मुताबिक, मालूम होता है कि बीजेपी के लगातार शासन में होने के बावजूद वे लोग कांग्रेस से ही खफा नजर आ रहे है - और यही वजह है कि ऐसे लोग अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के बारे में मन बना रहे हैं.
अखबार से बातचीत में एक अहमदाबाद का एक ऑटो ड्राइवर कांग्रेस विधायकों के बीजेपी के साथ चले जाने की याद दिला रहा है - और कहता है कि कांग्रेस विधायकों ने ये सब पैसे के लिए किया. बिक गये? उसके समझाने का अंदाज ऐसा ही होता है. एक और शख्स बातचीत में केजरीवाल के उम्मीदवार के पक्ष में दलील दे रहा है.
सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात तो भावनगर के रहने वाले अश्विन सोलंकी करते हैं. सवाल जब बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को लेकर होता है, अश्विन का जवाब मिलता है, 'बीजेपी के सत्ता में लौटने को लेकर किसी को भी शक नहीं है' - और थोड़ा रुक कर वो कहते हैं, 'उसके बजाय कांग्रेस ही सत्ता विरोधी लहर फेस कर रही है. कांग्रेस मौका गवां चुकी है और विपक्ष की जगह वो आम आदमी पार्टी को देने जा रही है.'
ये तो गजब की दलील और आकलन है! ऐसा कहीं होता है क्या? कहीं होता हो या न होता हो, गुजरात में तो ऐसा पहले से ही सबको लग रहा है - अगर अनंत पटेल की बात न होती तो राहुल गांधी भी नहीं जाते, मीडिया के सामने अशोक गहलोत जो भी दावा करें, राहुल गांधी को तो हकीकत बताते ही होंगे. गुजरात कोई राजस्थान थोड़े ही है कि असलियत समझने के लिए राहुल गांधी को सचिन पायलट के फोन कॉल का इंतजार करना पड़े.
कैसे मौके का फायदा उठा रही बीजेपी
राजनीति में त्रासदी को भी खूबसूरत कलेवर देने की कोशिश होती है. चुनावों से ऐन पहले हुए मोरबी पुल हादसे ने बीजेपी को बचाव की मुद्रा में ला दिया था, लेकिन अमित शाह ने तो जैसे खेल ही बदल दिया. अमित शाह ने जो तरीका अपनाया वो गुजरात से बाहर निकलने से पहले से करते रहे हैं - ऐसे प्रयोग अमित शाह के सत्ता विरोधी लहर की काट के तौर पर देखा जाता रहा है.
हादसे का भी फायदा उठा रही है बीजेपी: जिस हादसे के लिए बीजेपी निशाने पर हुआ करती थी, एक कदम ने पूरी कहानी ही बदल डाली है. बीजेपी ने मौजूदा विधायक का टिकट काट कर एक पूर्व विधायक को उम्मीदवार बना दिया है. जिसे उम्मीदवार बनाया है उसकी हादसे के वक्त लोगों की मदद के लिए काफी तारीफ हो रही थी - और अब उसके राहत और बचाव के काम का वीडियो चुनाव प्रचार के थीम सॉन्ग जैसा असर दिखाने लगा है.
'औकात' भी तो वक्त की ही बात होती है: बीजेपी ने ऐसा ही उलटफेर कांग्रेस नेता मधुसूदन मिस्त्री के प्रधानमंत्री मोदी को लेकर बयान और मेधा पाटकर के भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने को लेकर भी किया है - और अब तो लगता है जैसे पहले से ही बाजी भी पलट गयी हो.
2017 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने बहुत बाद में मोर्चे पर उतारा था, लेकिन इस बार पहले से ही तैयारी रही कि किसी भी तरह का जोखिम नहीं उठाना है. तभी तो प्रधानमंत्री मोदी शुरू से ही गुजरात के मोर्चे पर लग गये थे.
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव खत्म होते ही मोदी सदल बल अहमदाबाद में रोड शो करने पहुंच गये - और तब से लेकर अब तक सारे ही राजनीतिक विरोधियों को चुन चुन कर जवाब दे रहे हैं. मौका देख कर छेड़ भी देते हैं. और जरूरी नहीं कि ऐसा करने के लिए वो गुजरात के मैदान का ही इस्तेमाल करें. वरना, बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के मौके पर रेवड़ी कल्चर पर बहस छेड़ने की जरूरत ही क्या थी?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुजरात में बहुत पहले से ही प्रधानमंत्री मोदी को आगे कर सभी विरोधियों को उलझा दिया है - और बड़ी बुद्धिमानी से कांग्रेस और केजरीवाल दोनों की ही कमजोरियों का पूरा फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं.
बात पते की ये भी है कि कांग्रेस में भी एक ही मणिशंकर अय्यर तो हैं नहीं... मणिशंकर अय्यर न सही, उनके साथी ही सही. चायवाला और कमजोर हिंदी के बहाने 'नीच' कहना न सही - लेकिन 'औकात' बताने का दावा करने वाले पैदा तो हो ही जाते हैं.
अपने गुजरात में मोदी भी उसी अंदाज में खेल रहे हैं. जैसे वो इस तरह के राहुल गांधी के हमलों का जवाब देते रहे हैं - चौकीदार चोर है से लेकर दिल्ली के 'डंडा मार' बयान तक.
मेधा पाटकर कांग्रेस के लिए महंगा सौदा हो रही हैं: अपनी लोकप्रियता का फायदा उठाकर प्रधानमंत्री मोदी ने तो राजनीतिक विरोधियों की ही 'औकात' बतानी शुरू कर दी है - और बीजेपी को जरूरत से कहीं ज्यादा ही फायदा हो रहा लगता है.
सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर का भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होना, हो सकता है कांग्रेस के लिए आगे चल कर कहीं और फायदा पहुंचाये, लेकिन गुजरात में तो नुकसानदेह ही साबित हो रहा है. नर्मदा आंदोलन की याद दिलाकर खुद प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी नेताओं की तरफ से समझाया जाने लगा है कि कैसे गुजरात के विकास को रोकने की कोशिश करने वालों की कांग्रेस मदद ले रही है.
अश्लील सीडी से भी असरदार हैं सत्येंद्र जैन के वीडियो: चुनावों में अश्लील सीडी बीते दौर की बात हो चली है. अब तो मार्केट में अरविंद केजरीवाल के साथी मंत्री सत्येंद्र जैन का वीडियो ही सब पर भारी पड़ रहा है.
मनीष सिसोदिया के मामले में तो बीजेपी नेताओं और प्रवक्ताओं को काफी मेहनत भी करनी पड़ती थी, लेकिन सत्येंद्र जैन के वीडियो ने तो जैसे बीजेपी के लिए डबल फायदे की स्कीम ला दी है. एमसीडी चुनाव में तो फायदा मिलना पक्का ही है, गुजरात में भी कई मुश्किलें कम होती जा रही हैं.
सत्येंद्र जैन तो दिल्ली के मुख्यमंत्री को इतना उलझा दिया है कि लगता है वो कोई सेफ पैसेज तलाश रहे हों. ऐसी मुश्किलों में तो अरविंद केजरीवाल के कई मंत्री डाल चुके हैं और धीरे धीरे करके वो पीछा छुड़ाते हुए पल्ला झाड़ कर निकल भी चुके हैं - लेकिन सत्येंद्र जैन ने तो लंबा ही फंसा दिया है.
गुजरात तो हाथ से फिसल ही रहा है, एमसीडी को लेकर भी अरविंद केजरीवाल को जो उम्मीदें रही होंगी, निराश तो करने वाली हैं ही. हौसला पस्त नहीं तो कम तो पड़ ही गया है. कहां एमसीडी चुनाव गुजरात की ही तरह 2024 के लिए केजरीवाल के साथियों में जोश भरता, और कहां हर रोज नहीं मुसीबत में उलझाता जा रहा है.
अरविंद केजरीवाल जितनी मजबूती से पहले सत्येंद्र जैन का बचाव कर रहे थे, जेल के सीसीटीवी फुटेज ने केजरीवाल की उसी ढाल में ढेरों छेद कर दिये... कभी मसाज का वीडियो, तो कभी जेल में खाने पीने से लेकर तमाम ऐशो आराम के इंतजामों के सबूत पेश करते वीडियो - और ये सब सीधा फायदा तो बीजेपी को ही पहुंचा रहे हैं.
अब तो सवाल ये भी उठता है क्या गुजरात का ये चुनावी मॉडल ही 2024 में फिर से देखने को मिलेगा - विपक्ष यूं ही लड़ता रहेगा और बीजेपी जीतती रहेगी?
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गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और आप की सीटें कितनी होंगी? आपको क्या कहना है?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.