एमके स्टालिन और अलागिरी में डीएमके चीफ बनने को लेकर जंग छिड़ी हुई है. तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके चीफ एम करुणानिधि के निधन के कुछ ही दिन बाद पार्टी की कमान को लेकर घमासान शुरू हो गया है. डीएमके की अहम बैठक 14 अगस्त को हुई थी, जिसमें एमके स्टालिन को गद्दी सौंपने की रणनीति पर विचार किया गया. बैठक के दौरान कई सीनियर नेताओं ने स्टालिन को पार्टी का प्रमुख बनाए जाने का समर्थन किया. डीएमके ने 28 अगस्त को आम परिषद की बैठक बुलाई है और ये उम्मीद की जा रही है की इसमें औपचारिक रूप से स्टालिन को पार्टी अध्यक्ष घोषित किया जा सकता है.
दूसरी और करुणानिधि के बड़े बेटे एमके अलागिरी ने भी कमर कस ली है. वे पार्टी में अपनी वापसी चाहते हैं. 2016 में करुणानिधि ने अपने छोटे बेटे एमके स्टालिन को अपना सियासी वारिस घोषित किया था. इससे पहले 2014 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए एमके अलागिरी को डीएमके से निष्कासित कर दिया गया था. अलागिरी 5 सितंबर को चेन्नई में एक बड़ी रैली करने जा रहे हैं जिसमें वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगे. उन्होंने कहा कि अब वह राजनीति में पूरी तरह से वापस आ गए हैं, अब उनका अगला लक्ष्य पार्टी कैडर को तैयार करना है. उन्होंने स्टालिन पर ये आरोप भी लगाए कि वे उन्हें डीएमके में वापस नहीं लेना चाहते हैं. ये दिलचस्प होगा कि वे अपनी राजनीतिक कार्य योजना के बारे में क्या खुलासा करते हैं.
स्टालिन और कनिमोझी पहली बार 23 अगस्त को चेन्नई में बीजेपी ऑफिस गए थे अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने के लिए. डीएमके 1999-2004 के बीच केंद्र में बीजेपी का अलायन्स पार्टनर था, जब वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे. लेकिन हाल के वर्षो में डीएमके और बीजेपी बिलकुल विपरीत धड़े में खड़े हैं. हाल के कुछ...
एमके स्टालिन और अलागिरी में डीएमके चीफ बनने को लेकर जंग छिड़ी हुई है. तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके चीफ एम करुणानिधि के निधन के कुछ ही दिन बाद पार्टी की कमान को लेकर घमासान शुरू हो गया है. डीएमके की अहम बैठक 14 अगस्त को हुई थी, जिसमें एमके स्टालिन को गद्दी सौंपने की रणनीति पर विचार किया गया. बैठक के दौरान कई सीनियर नेताओं ने स्टालिन को पार्टी का प्रमुख बनाए जाने का समर्थन किया. डीएमके ने 28 अगस्त को आम परिषद की बैठक बुलाई है और ये उम्मीद की जा रही है की इसमें औपचारिक रूप से स्टालिन को पार्टी अध्यक्ष घोषित किया जा सकता है.
दूसरी और करुणानिधि के बड़े बेटे एमके अलागिरी ने भी कमर कस ली है. वे पार्टी में अपनी वापसी चाहते हैं. 2016 में करुणानिधि ने अपने छोटे बेटे एमके स्टालिन को अपना सियासी वारिस घोषित किया था. इससे पहले 2014 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए एमके अलागिरी को डीएमके से निष्कासित कर दिया गया था. अलागिरी 5 सितंबर को चेन्नई में एक बड़ी रैली करने जा रहे हैं जिसमें वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगे. उन्होंने कहा कि अब वह राजनीति में पूरी तरह से वापस आ गए हैं, अब उनका अगला लक्ष्य पार्टी कैडर को तैयार करना है. उन्होंने स्टालिन पर ये आरोप भी लगाए कि वे उन्हें डीएमके में वापस नहीं लेना चाहते हैं. ये दिलचस्प होगा कि वे अपनी राजनीतिक कार्य योजना के बारे में क्या खुलासा करते हैं.
स्टालिन और कनिमोझी पहली बार 23 अगस्त को चेन्नई में बीजेपी ऑफिस गए थे अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने के लिए. डीएमके 1999-2004 के बीच केंद्र में बीजेपी का अलायन्स पार्टनर था, जब वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे. लेकिन हाल के वर्षो में डीएमके और बीजेपी बिलकुल विपरीत धड़े में खड़े हैं. हाल के कुछ दिनों में डीएमके के कुछ वरिष्ठ लीडर और राजनीतिक समीक्षक ये आरोप लगाते रहे हैं कि बीजेपी इस द्रविड़ पार्टी को कमजोर करने में लगी है. कुछ का तो यहां तक कहना है कि दोनों भाइयों की लड़ाई में सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को ही होगा.
कई समीक्षकों का मानना है कि बीजेपी तमिलनाडु में पैर पसारने में लगी है. वो अलागिरी को स्टालिन के खिलाफ लड़ाई में साथ दे रहे हैं. स्टालिन से नाराज डीएमके समर्थकों को एकजुट करने के लिए ही बीजेपी अलागिरी को हवा दे रही है. आने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी की रणनीति ये भी है कि अगर डीएमके को दो भागो में बांट दिया गया तो पार्टी कमजोर पड़ेगी और वोटों का डिवीज़न हो जायेगा जिससे सीट बीजेपी-एआईएडीएमके के पक्ष में जा सकती है. बीजेपी की मंशा ये है कि तमिलनाडु में एआईएडीएमके, अलागिरी धड़ा, रजनीकांत के साथ मिलकर एक फ्रंट बनाकर 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा जा सके. अगर अलागिरी उनसे नहीं भी जुड़ते हैं तब भी ऐसा परिदृश्य बनाया जा सके जिससे दोनों भाइयों में कटुता बरकरार रहे और सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को हो. वैसे भी बीजेपी को लगता है कि जो नुकसान उसे उत्तर भारत के राज्यों में हो सकता है उसकी कुछ भरपाई दक्षिण भारत के राज्य कर सकते हैं.
तमिलनाडु में लोकसभा की 39 सीट हैं. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी यहां से 1 सीट ही जीत पायी थी और उसे करीब 5.5 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे. 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सहयोगी के रूप में एआईएडीएमके को देखा जा रहा है. 2014 चुनाव में उसे 37 सीटें मिली थीं. बीजेपी को इस राज्य में संभावना नजर आ रही है और वो तभी संभव हो पायेगा जब डीएमके कैडर विभाजित रहे और भाइयों में दूरियां बरकरार रहे.
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