नकल के लिए हमेशा अक्ल की जरूरत होती है. नकल की जरूरत पड़ती भी तभी है जब आइडिया का अकाल पड़ जाये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास तो आइडिया का भंडार भरा रहता है. ये बात अलग है कि कुछ आइडिया अमल में नहीं आ पाते तो बीजेपी घिर जाती है, लेकिन अध्यक्ष अमित शाह उससे पार्टी को उबारते देर नहीं लगाते - बवाल जल्दी थमे इसलिए जुमला बता डालते हैं.
2019 में दूसरों के सहारे अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश में कांग्रेस कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहती. जब कुछ नहीं मिलता तो उधार का आइडिया भी उठा लेती है, लेकिन उसमें भी ऐसा लोचा हो जाता है कि लेने के देने पड़ जाते हैं. यही हाल कांग्रेस के संपर्क फॉर समर्थन का हुआ है. सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने लगे हैं - और रुकने का नाम भी नहीं ले रहे.
नकल तो बीजेपी भी करती है, लेकिन उसकी पैकेजिंग बेहतरीन होती है. साथ ही साथ उसके हर प्रोडक्ट के अपडेटेड वर्जन भी मोदी लांच करते रहते हैं. बस कीवर्ड बदल बदल कर इस्तेमाल करते हैं - कभी जेल तो कभी जमानत.
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इसी बात से परेशान हैं कि मोदी और योगी आदित्यनाथ उनके शासन के कामों का पूरा क्रेडिट ले ले रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी भी लगातार ऐसी तीर छोड़ रहे हैं कि शब्दभेदी बाण की तरह कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों को कॉमन जख्म देकर तरकश में लौट भी आये.
नकल करके फंसी कांग्रेस
अब तक कांग्रेस बीजेपी पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाती रही, और बीजेपी कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का. अब सब कुछ उल्टा-पुल्टा नजर आ रहा है. जो बात कांग्रेस बीजेपी के लिए कहती थी अब उसी अंदाज में बीजेपी कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर रही है. अब कांग्रेस बीजेपी को नहीं, बीजेपी कांग्रेस को देश को बांटने वाली पार्टी बता रही है. ये मुस्लिम तुष्टिकरण से आगे की राजनीतिक रणनीति है. बीजेपी के इस कदर आक्रामक होने का मौका भी कांग्रेस ने खुद दिया है.
ऐसा भी नहीं है कि राहुल गांधी बीजेपी पर हमले का कोई मौका चूक रहे हैं. अब भी वो प्रधानमंत्री मोदी पर...
नकल के लिए हमेशा अक्ल की जरूरत होती है. नकल की जरूरत पड़ती भी तभी है जब आइडिया का अकाल पड़ जाये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास तो आइडिया का भंडार भरा रहता है. ये बात अलग है कि कुछ आइडिया अमल में नहीं आ पाते तो बीजेपी घिर जाती है, लेकिन अध्यक्ष अमित शाह उससे पार्टी को उबारते देर नहीं लगाते - बवाल जल्दी थमे इसलिए जुमला बता डालते हैं.
2019 में दूसरों के सहारे अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश में कांग्रेस कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहती. जब कुछ नहीं मिलता तो उधार का आइडिया भी उठा लेती है, लेकिन उसमें भी ऐसा लोचा हो जाता है कि लेने के देने पड़ जाते हैं. यही हाल कांग्रेस के संपर्क फॉर समर्थन का हुआ है. सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने लगे हैं - और रुकने का नाम भी नहीं ले रहे.
नकल तो बीजेपी भी करती है, लेकिन उसकी पैकेजिंग बेहतरीन होती है. साथ ही साथ उसके हर प्रोडक्ट के अपडेटेड वर्जन भी मोदी लांच करते रहते हैं. बस कीवर्ड बदल बदल कर इस्तेमाल करते हैं - कभी जेल तो कभी जमानत.
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इसी बात से परेशान हैं कि मोदी और योगी आदित्यनाथ उनके शासन के कामों का पूरा क्रेडिट ले ले रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी भी लगातार ऐसी तीर छोड़ रहे हैं कि शब्दभेदी बाण की तरह कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों को कॉमन जख्म देकर तरकश में लौट भी आये.
नकल करके फंसी कांग्रेस
अब तक कांग्रेस बीजेपी पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाती रही, और बीजेपी कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का. अब सब कुछ उल्टा-पुल्टा नजर आ रहा है. जो बात कांग्रेस बीजेपी के लिए कहती थी अब उसी अंदाज में बीजेपी कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर रही है. अब कांग्रेस बीजेपी को नहीं, बीजेपी कांग्रेस को देश को बांटने वाली पार्टी बता रही है. ये मुस्लिम तुष्टिकरण से आगे की राजनीतिक रणनीति है. बीजेपी के इस कदर आक्रामक होने का मौका भी कांग्रेस ने खुद दिया है.
ऐसा भी नहीं है कि राहुल गांधी बीजेपी पर हमले का कोई मौका चूक रहे हैं. अब भी वो प्रधानमंत्री मोदी पर चीन के सामने झुकने का इल्जाम लगा रहे हैं. फर्क बस ये है कि मोदी के राहुल पर इल्जाम भावनाओं से भरे हुए होते हैं और राहुल गांधी के मोदी पर करीब करीब भावशून्य होते हैं. राहुल चीन की बात करते हैं तो मोदी पाकिस्तान की कर देते हैं - और राहुल गांधी के सलाहकार उसमें भी उनको उलझा देते हैं. तभी तो सर्जिकल स्ट्राइक के माहौल में राहुल गांधी 'खून की दलाली' बोल कर कुल्हाड़ी पर पैर ही दे मारते हैं.
जब कुछ नया नहीं सूझा तो कांग्रेस ने भी बुद्धिजीवियों की ओर वैसे ही रुख कर लिया जैसे बीजेपी अपना 'संपर्क फॉर समर्थन' अभियान चला रही है. कांग्रेस की पहली बैठक में मुस्लिम स्कॉलर बुलाये गये. मुस्लिम विद्वानों ने भी मौके का पूरा फायदा उठाया. पहली ही मुलाकात में मुस्लिम विद्वानों ने राहुल गांधी से सारे सवाल पूछ डाले जो अंदर ही अंदर खाये जा रहे थे - 'आखिर राहुल गांधी को मंदिर मंदिर घूमने की क्या जरूरत पड़ गयी?'
सवाल उठे तो जवाब तो देने ही थे. लिख कर भाषण देने और सवाल जवाब में बड़ा फर्क होता है. राहुल गांधी ने मंदिर दर्शन को बढ़ा चढ़ा कर पेश करने का ठीकरा मीडिया पर फोड़ कर पल्ला झाड़ना चाहा, लेकिन बात नहीं बन पायी. कहते हैं, मीडिया में आई खबरों के अनुसार, राहुल गांधी ने मान लिया कि कांग्रेस से कुछ गलतियां हुई हैं और वो अपनेआप में सुधार लाएगी. तभी एक उर्दू अखबार में खबर आयी कि राहुल गांधी ने कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी बताया है. फिर बीजेपी कहां छोड़ने वाली थी.
रक्षा मंत्री और बीजेपी नेता निर्मला सीतारमण ने मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए सवाल पूछ डाला, ‘‘हम कांग्रेस अध्यक्ष से पूछना चाहते हैं कि क्या वो मानते हैं कि कांग्रेस एक मुस्लिम पार्टी है?"
बीजेपी मांगे मोर...
अपने मासिक दौरे की पहली कड़ी में आजमगढ़ पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने सीतारमण के सवाल को ही अपने तरीके से पूछा, लेकिन राहुल गांधी का नाम नहीं लिया. सिर्फ श्रीमान नामदार कहा. मोदी का सवाल था, "मैंने अखबार में पढ़ा कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष श्रीमान नामदार ने ये कहा कि कांग्रेस मुस्लिमों की पार्टी है. पिछले दो दिन से चर्चा चल रही है. मुझे आश्चर्य नहीं हो रहा है. पहले जब मनमोहन सिंह जी की सरकार थी तब स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने कह दिया था कि देश के प्राकृतिक संसाधनों पर सबसे पहला अधिकार मुसलमानों का है."
सदाबहार इलेक्शन मोड में रहने वाली बीजेपी अब तक हिंदू एजेंडे पर ही फोकस रहा करती थी. 2017 यूपी चुनाव तक खुद मोदी और उनके साथी लोगों को कब्रिस्तान और श्मशान की बराबरी बताकर बड़ी चालाकी से बीच का फर्क समझा दिये. भारी मुनाफा भी हुआ. मालूम हुआ दलित-मुस्लिम को मिलाकर चुनाव लड़ने की मायावती की राजनीति खत्म हो गयी. मायावती के हाथ से दलितों का वोट छिटका और बीजेपी ने जितना भी संभव हुआ लपक लिया. बचे मुस्लिम वोट तो उसका जुगाड़ जारी है. याद कीजिए यूपी चुनाव के दौरान ही बीजेपी ने हल्के से तीन तलाक का जिक्र भर छेड़ा था. बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने तब समझाने की कोशिश की थी कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिलाने में कोई कसर बाकी नहीं रखेगी.
मुस्लिम पार्टी को लेकर सवाल पूछते पूछते मोदी ने आजमगढ़ में सीधे मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की. ये तो साफ है बीजेपी ने मुस्लिम समुदाय की आधी आबादी को अपने पक्ष में मोड़ने की तरकीब निकाल ली है.
मुस्लिम वोट बैंक की बीजेपी की नयी रणनीति ऐसी है कि एक ही चाल में कांग्रेस के साथ साथ समाजवादी पार्टी भी चपेट में आ जा रही है. किसी को समझने में मुश्किल हो रही हो तो उसमें मोदी बड़े आराम से परिवारवाद का तड़का भी लगा देते हैं. असल बात तो ये है कि बीजेपी की नजर यूपी के दो परिवारों के कब्जे की सात सीटों पर है. दो गांधी परिवार और पांच यादव परिवार के पास की. अमेठी और रायबरेली में अलख जगाने में तो अमित शाह पहले से ही जुटे हुए हैं - और अब आजमगढ़ पहुंच कर प्रधानमंत्री मोदी ने उसे तेजी से आगे बढ़ाने की कोशिश की है. आजमगढ़ का प्रतिनिधित्व फिलहाल मुलायम सिंह यादव कर रहे हैं. अमेठी से राहुल गांधी और रायबरेली से सोनिया गांधी सांसद हैं ये तो सबको पता ही है.
मोदी ने आजमगढ़ की रैली में कांग्रेस को मुस्लिम पुरुषों की पार्टी बतायी और बीजेपी को मुस्लिम महिलाओं को हक दिलाने के लिए लड़ रही पार्टी बताया. ये बीजेपी के मुस्लिम वोट बांटने की रणनीति का हिस्सा लगता है. बांटो और राज करो का फॉर्मूला अब भी उतना ही कारगर है जितना अंग्रेजों के जमाने में रहा. बीजेपी के सामने मुस्लिम वोटों की चुनौती उसकी एकजुटता है. हर चुनाव में यही देखने को मिलता है कि मुस्लिम समुदाय उसी पार्टी को वोट देता है जिसमें उसे बीजेपी को चैलेंज करने का दमखम दिखता है. बीजेपी ने लगता है इसका उपाय खोज लिया है. मुस्लिम समुदाय अगर अपने समाज में नहीं बंट सकता तो सीधे उसे घर में ही बांट डालो.
यही वजह है कि बीजेपी अब मुस्लिम तुष्टिकरण से आगे का प्लान करके चल रही है. अब तक सोनिया गांधी कहा करती थीं कि बीजेपी ने कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी का तमगा दे डाला और लोग उसे वैसे ही ट्रीट करने लगे. राहुल गांधी ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों से जो भी कहा हो या उनके कहने का कुछ भी आशय रहा हो, बीजेपी ने तो उसे मुद्दा बना ही दिया है. कांग्रेस की सफाई भी बेअसर साबित हो चुकी है. अभी तो बीजेपी कांग्रेस को देश तोड़ने वाली पार्टी ही बता रही है - वो दिन दूर नहीं जब बीजेपी डंके की चोट पर कांग्रेस को ही सांप्रदायिक पार्टी बताना शुरू कर देगी. अब ये बात कांग्रेस को समझ में आ भी रही है या नहीं, ये तो राहुल गांधी और उनके सलाहकार ही समझें.
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