दिल्ली विधानसभा का चुनाव (Delhi Election 2020) 2015 में BJP के लिए अगर जीरो रिस्क वाला लगा होगा तो 2020 में वो 100 हो चुका है. 2014 के बाद बीजेपी ने दिल्ली से पहले हुए तीनों विधानसभा चुनाव जीत लिये थे, लेकिन पांच साल बाद दोहराने में चूक चुकी है.
पहले हरियाणा और महाराष्ट्र में कम सीटें हासिल कर पाने और अभी अभी झारखंड चुनाव हार जाने के बाद बीजेपी के लिए दिल्ली चुनाव जीतना बहुत जरूरी हो गया है. अगर दिल्ली में कुछ गड़बड़ होता है तो ये ब्रांड मोदी के जादू और शाह की चाणक्य चुनावी चतुरायी के लिए बहुत ही बड़ा घाटे का सौदा साबित हो सकता है. ऐसे भी समझा जा सकता है कि दिल्ली के नतीजे बीजेपी के पश्चिम बंगाल और केरल में सरकार बनाने की तैयारियों पर भी असर डालने वाला हो सकता है.
बीजेपी के लिए हाल के तीन राज्यों और दिल्ली चुनाव में बड़ा फर्क ये है कि बीजेपी को अपने खिलाफ ही सत्ता विरोधी फैक्टर से जूझने की जरूरत नहीं है. महज ये बात ही बीजेपी के लिए सबसे बड़ी राहत वाली है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रामलीला मैदान की रैली के भाषण से दिल्ली चुनाव को लेकर बहुत सारी चीजें साफ हो गयी थीं. आगे की तस्वीर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और उनके दिल्ली कमांडर मनोज तिवारी (Modi-Shah and Manoj Tiwari) ने साफ कर दी है - हार के सबक के साथ ही बीजेपी नेतृत्व ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को घेरने की धमाकेदार तैयारी कर ली है.
मनोज तिवारी का डबल धमाका
दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ने जिस धमाकेदार पैकेज की तरफ इशारा किया है - वो दिल्ली में कांग्रेस को नेस्तनाबूद करने वाला और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पैरों तले जमीन खिसका देने वाला हो सकता है.
मनोज तिवारी की ताजा डिमांड केजरीवाल और कांग्रेस दोनों के खिलाफ बड़ा राजनीतिक कदम हो सकता है. चुनावी मौसम का काफी करीब तक पूर्वानुमान लगाते हुए मनोज तिवारी ने 14 नवंबर की जगह आगे से 26 दिसंबर को बाल दिवस मनाये जाने की घोषणा किये जाने की मांग की है. दरअसल,...
दिल्ली विधानसभा का चुनाव (Delhi Election 2020) 2015 में BJP के लिए अगर जीरो रिस्क वाला लगा होगा तो 2020 में वो 100 हो चुका है. 2014 के बाद बीजेपी ने दिल्ली से पहले हुए तीनों विधानसभा चुनाव जीत लिये थे, लेकिन पांच साल बाद दोहराने में चूक चुकी है.
पहले हरियाणा और महाराष्ट्र में कम सीटें हासिल कर पाने और अभी अभी झारखंड चुनाव हार जाने के बाद बीजेपी के लिए दिल्ली चुनाव जीतना बहुत जरूरी हो गया है. अगर दिल्ली में कुछ गड़बड़ होता है तो ये ब्रांड मोदी के जादू और शाह की चाणक्य चुनावी चतुरायी के लिए बहुत ही बड़ा घाटे का सौदा साबित हो सकता है. ऐसे भी समझा जा सकता है कि दिल्ली के नतीजे बीजेपी के पश्चिम बंगाल और केरल में सरकार बनाने की तैयारियों पर भी असर डालने वाला हो सकता है.
बीजेपी के लिए हाल के तीन राज्यों और दिल्ली चुनाव में बड़ा फर्क ये है कि बीजेपी को अपने खिलाफ ही सत्ता विरोधी फैक्टर से जूझने की जरूरत नहीं है. महज ये बात ही बीजेपी के लिए सबसे बड़ी राहत वाली है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रामलीला मैदान की रैली के भाषण से दिल्ली चुनाव को लेकर बहुत सारी चीजें साफ हो गयी थीं. आगे की तस्वीर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और उनके दिल्ली कमांडर मनोज तिवारी (Modi-Shah and Manoj Tiwari) ने साफ कर दी है - हार के सबक के साथ ही बीजेपी नेतृत्व ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को घेरने की धमाकेदार तैयारी कर ली है.
मनोज तिवारी का डबल धमाका
दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ने जिस धमाकेदार पैकेज की तरफ इशारा किया है - वो दिल्ली में कांग्रेस को नेस्तनाबूद करने वाला और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पैरों तले जमीन खिसका देने वाला हो सकता है.
मनोज तिवारी की ताजा डिमांड केजरीवाल और कांग्रेस दोनों के खिलाफ बड़ा राजनीतिक कदम हो सकता है. चुनावी मौसम का काफी करीब तक पूर्वानुमान लगाते हुए मनोज तिवारी ने 14 नवंबर की जगह आगे से 26 दिसंबर को बाल दिवस मनाये जाने की घोषणा किये जाने की मांग की है. दरअसल, 26 दिसबंर 1705 को सिखों के दशम गुरु गुरुगोविंद सिंह के साहबजादों की शहादत के लिए याद किया जाता है.
26 दिसंबर को ही लिखे अपने पत्र में मनोज तिवारी कहते हैं - "हमारे देश में बच्चों ने भी अनेक बलिदान दिये हैं और उनमें से सर्वोत्कृष्ट बलिदान सिखों के दशम गुरु साहिब श्री गुरुगोविंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों, साहिबजादा जोराबर सिंह जी और साहिबजादा फतेह सिंह जी की है - जिन्होंने सरहिंद, पंजाब में 1705 के पौष माह में कड़कती सर्दी में फतेहगढ़ साहिब के ठंडे बुर्ज पर प्रतिपूर्ण साहस दिखाते हुए धर्म की रक्षा के लिए अपनी शहादत दी थी."
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में मनोज तिवारी याद दिलाते हैं कि 14 नवंबर को बाल दिवस मनाने की परंपरा 1956 से चली आ रही है और उसकी वजह ये है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को बच्चे बेहद प्रिय थे.
साहिबजादों की शहादत के जिक्र के साथ मनोज तिवारी की मांग है कि बहादुर बच्चों के बलिदान और साहस को ध्यान में रखते हुए उनकी शहादत का दिन बाल दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की जाये.
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में 1984 के सिख दंगे कांग्रेस की सबसे कमजोर कड़ी रहे हैं. ऐसे कई मौके आये हैं जब राहुल गांधी को इस मुद्दे पर बचाव की मुद्रा में देखा और महसूस किया गया है. अरविंद केजरीवाल भी 84 के सिख दंगों का राजनीतिक फायदा उठाने का कोई भी मौका नहीं चूकते.
नवंबर, 2015 में सिख विरोधी दंगों की बरसी पर एक कार्यक्रम में अरविंद केजरीवाल ने कहा था, 'अगर 84 के दंगा पीड़ितों को न्याय मिला होता, तो 2002 के गुजरात दंगे और दादरी जैसी हिंसक घटनाएं नहीं होतीं.' दादरी की घटना के बाद देश में असहिष्णुता पर बहस चल पड़ी थी जब एखलाक को भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला था. केजरीवाल कहते रहे हैं कि बीजेपी दंगों से राजनीतिक फायदे उठाने की कोशिश करती है.
देखा जाये तो बाल दिवस को लेकर मनोज तिवारी की दलील भी डबल बैरल फायर जैसी है - एक, बाल दिवस कांग्रेस मुक्त हो जाएगा और दो, सिख समुदाय का सपोर्ट लेने की बड़े फायदे वाली कोशिश है.
दिल्ली में पानी की बात और बार बार जिक्र
बिजली, पानी और सड़क - ये तीनों बुनियादी चीजें जो किसी भी सरकार के कल्याणकारी कामों में पहले नंबर पर आते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए रामलीला मैदान की रैली नागरिकता कानून और NRC पर मचे बवाल के बाद कुछ बोलने का पहला मौका था, लिहाजा जो कुछ भी उन्होंने कहा वो राष्ट्र के नाम संदेश जैसा ही था - और उनके भाषण के बड़े हिस्से में इस बात का पूरा अहसास भी हुआ. फिर वो दिल्ली के लिए चुनावी हिसाब से महत्वपूर्ण मुद्दे पर लौट आये - और पानी का मुद्दा उठाया.
अमित शाह भी उसी बात को आगे बढ़ाते हुए केजरीवाल सरकार पर निशाना साधते हैं, 'मोदी जी ने कहा है कि देश के हर घर में नल से पीने का पानी पहुंचाने का काम भाजपा की सरकार करने वाली है. केजरीवाल जी विज्ञापन देकर इस योजना का यश लेने का प्रयास कर रहे हैं. जब मोदी जी ने देश के हर घर को पानी पहुंचाने का वादा किया है, तो दिल्ली भी तो उसमें आता है.'
रामलीला मैदान की रैली के तीन दिन बाद प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली के विज्ञान भवन में अटल भूजल योजना की शुरुआत की. प्रधानमंत्री मोदी ने बताया, '70 साल में सिर्फ 3 करोड़ घरों में ही पीने का पानी पहुंचा है, लेकिन हमें अगले पांच सालों में तेज रफ्तार से काम करना है. आज दिल्ली में पीने के पानी को लेकर काफी हंगामा हो रहा है और लोग जागरूक बने हैं.'
अमित शाह ने पेश किया स्थानीय राष्ट्रवाद!
अभी ये सीधे सीधे तो नहीं माना जा सकता कि बीजेपी दिल्ली चुनाव में बिलकुल लोकल होने जा रही है क्योंकि राष्ट्रवाद और बड़े मुद्दे उठाकर वो हालिया चुनाव में झटके खा चुकी है - लेकिन ये तो लगने लगा है कि वो अब स्थानीय चीजों को नजरअंदाज नहीं करने वाली.
बेशक अमित शाह जो भी मुद्दे उठा रहे हैं वे दिल्ली पर ही फोकस हैं, लेकिन उसमें भी राष्ट्रवाद का पुट पर्याप्त है - 'टुकड़े टुकड़े गैंग...' अमित शाह का कहना है अब टुकड़े टुकड़े गिरोह को हराने का समय आ गया है.
अमित शाह कहते हैं, 'नागरिकता संशोधन कानून पर दिल्ली की जनता को गुमराह कर, दिल्ली की शांति को भंग किया गया है. कांग्रेस के नेतृत्व में टुकड़े- टुकड़े गैंग... जो दिल्ली की अशांति के लिए जिम्मेदार है... उसे दिल्ली की जनता ने दंड देना चाहिए.'
अमित शाह के बयान को समझना ज्यादा मुश्किल भी नहीं है. जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को लेकर दिल्ली में पुलिस एक्शन के बाद एक गुस्सा देखा गया था. आम चुनाव में बेगूसराय से बीजेपी के गिरिराज सिंह से चुनाव हार चुके कन्हैया कुमार के खिलाफ अदालत में देशद्रोह का केस चल रहा है और उसमें दिल्ली सरकार की तरफ से रिपोर्ट देने में केजरीवाल सरकार के हीलाहवाली भरे रवैये की ओर बीजेपी नेतृत्व ध्यान दिलाना चाहता है. ये भी डबल बेनिफिट पैकेज है जिसमें बीजेपी के स्थानीय समर्थकों में गुस्सा तो है ही, उसके साथ देशभक्ति की भावना भी जुड़ी हुई है - यानी अमित शाह ने चुनाव में एक मुद्दा स्थानीय राष्ट्रवाद भी खोज लिया है.
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