पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममत बनर्जी को सियासी पटखनी देने के लिए भाजपा तमाम रणनीतियां बना रही है. तृणमूल कांग्रेस के बागियों को अपनाने से लेकर बंगाल के मशहूर फिल्मी सितारों को साथ में लाने तक की जुगत भगवा दल ने भिड़ा ली है. इन सबके बावजूद भी भाजपा का पश्चिम बंगाल की सत्ता में आने का सपना एक 'दिवास्वप्न' ही नजर आ रहा है. कहने को तो राज्य में मुकाबला त्रिकोणीय है, लेकिन स्थिति ठीक इसके उलट दिख रही है. ओपिनियन पोल्स में कांग्रेस-वाम दलों का गठबंधन पश्चिम बंगाल के इस सियासी समर में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के सामने दूर-दूर तक कहीं नजर ही नहीं आ रहा है. यही बात भाजपा के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक होती जा रही है.
पश्चिम बंगाल में सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने के भाजपा द्वारा किए जा रहे तमाम दावे त्रिकोणीय संघर्ष पर ही टिके हैं.
पश्चिम बंगाल में सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने के भाजपा द्वारा किए जा रहे तमाम दावे त्रिकोणीय संघर्ष पर ही टिके हैं. भाजपा के सियासी गुणा-गणित में ममता बनर्जी के वोटबैंक में सेंध की अहम भूमिका है. कहा जा सकता है कि भाजपा विरोधी वोटों का जितना ज्यादा बिखराव होगा, पार्टी के लिए यह उतना ही फायदेमंद होगा. कांग्रेस-वाम दलों के गठबंधन में अब्बास सिद्दीकी के जुड़ जाने से यह गठबंधन मजबूत हुआ है. लेकिन, कांग्रेस के अन्य राज्यों के सहयोगी दल (शिवसेना, एनसीपी और आरजेडी) पार्टी के साथ खड़े न होकर तृणमूल कांग्रेस को समर्थन देते नजर आ रहे हैं. यह गठबंधन के लिए चिंता का विषय हो सकता है. कांग्रेस-वाम दलों और अब्बास सिद्दीकी की तिकड़ी तृणमूल कांग्रेस के वोटबैंक में सेंध लगाएगी, ये तय है. लेकिन, जब तक यह सेंध व्यापक नहीं होगी, भाजपा का चुनावी गणित फेल ही माना जाएगा.
कांग्रेस-वाम दलों और अब्बास सिद्दीकी की तिकड़ी तृणमूल कांग्रेस के वोटबैंक में सेंध लगाएगी.
अब तक के चुनाव प्रचार में कांग्रेस-वाम दलों के गठबंधन के खिलाफ भाजपा बिल्कुल भी हमलावर नहीं रही है. सरल शब्दों में कहें, तो भाजपा ने अपने फायदे के लिए गठबंधन को वॉकओवर दे दिया है. भाजपा के निशाने पर केवल ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस ही हैं. भाजपा की कांग्रेस-वाम दलों के गठबंधन को बढ़ावा देने की यह चुनावी रणनीति कारगर रहती है, तो पार्टी को काफी फायदा मिल सकता है. पश्चिम बंगाल में भाजपा ने मुस्लिम तुष्टिकरण और हिंदुत्व के सहारे वोटों के ध्रुवीकरण में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है.
ममता बनर्जी के गढ़ पश्चिम बंगाल में 2016 के विधानसभा चुनाव में केवल 3 सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा के लोकसभा चुनाव 2019 में प्रदर्शन और वोट शेयर को देखकर ये बात आसानी से कही जा सकती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 43.3 फीसदी और भाजपा को 40.3 फीसदी वोट मिले थे. इसी आंकड़े ने पश्चिम बंगाल को लेकर भाजपा के हौंसले बुलंद कर रखे हैं. आंकड़ों की इस सियासी गणित में थोड़ा सा भी उलटफेर ममता बनर्जी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है.
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के बागियों के सहारे भाजपा काफी मजबूत हुई है.
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के बागियों और अपने कार्यकर्ताओं के सहारे संगठन को मजबूत स्थिति में ला चुकी भाजपा के लिए दक्षिण बंगाल की हिस्सा बहुत महत्वपूर्ण है. 294 विधानसभा सीटों वाले राज्य में सबसे ज्यादा सीटें दक्षिण बंगाल के हिस्से में ही आती हैं. दक्षिण बंगाल में फुरफुरा शरीफ दरगाह को काफी प्रभावशाली माना जाता है. कांग्रेस-वाम दलों के गठबंधन से जुड़े आईएसएफ के नेता अब्बास सिद्दीकी इसी दरगाह के पीरजादा हैं. इस स्थिति में कहा जा सकता है कि दक्षिण बंगाल में ममता बनर्जी के लिए गठबंधन बड़ी चुनौती खड़ी कर सकता है.
भाजपा के चुनावी रणनीतिकार यही चाहेंगे कि पश्चिम बंगाल में गठबंधन अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करे, ताकि भगवा दल के विरोधी वोटों में व्यापक बंटवारा हो. इस बंटवारे से भाजपा की सीटों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ सकती है. वोट शेयर और लोकसभा चुनाव के नतीजों को विधानसभा सीट के लिए आधार के तौर पर देखने से भाजपा और तृणमूल कांग्रेस में बहुत ज्यादा अंतर नजर नहीं आता है. पश्चिम बंगाल में कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी. कुल मिलाकर ये कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा को बंगाल की सत्ता तक पहुंचाने का सारा दारोमदार कांग्रेस-वामदलों और अब्बास सिद्दीकी की तिकड़ी पर है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.