बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) , वह शख्स जिसका आत्मसम्मान ही उसकी ताकत रहा. वह जिस बात पर अड़ जाते थे, उसे पूरा कर के ही दम लेते थे. एक जिद थी उनके अंदर, जो उनके स्वभाव को सबसे अलग करती थी. चाहे कुछ भी हो जाए, वह अपना एटिट्यूड नहीं बदलते थे, लेकिन उनके बेटे और शिवसेना के नए सुप्रीमो उद्धव ठाकरे (dhav Thackeray) ने इस बार महाराष्ट्र चुनाव (Maharashtra Assembly Election) में कुछ ऐसा किया है, जिसके चलते वह सबके टारगेट पर हैं. आज बालासाहेब ठाकरे की सातवीं पुण्य तिथि (Balasaheb Thackeray Death Anniversary) है और इस मौके पर भाजपा ने उद्धव ठाकरे पर ताना मारा है. बल्कि यूं कहिए कि भाजपा ने शिवसेना से उसका अभिमान, मान-सम्मान, आत्म-सम्मान कहे जाने वाले बालासाहेब ठाकरे को ही छीन लिया है. देवेंद्र फडणवीस ने ट्वीट किया है- 'बालासाहेब ने हमें आत्म-सम्मान की अहमियत सिखाई.' शिवसेना का मुख्यमंत्री (Maharashtra CM) बनाने की गरज से उद्धव ठाकरे कांग्रेस-एनसीपी की उन नीतियों को लागू करने पर राजी हुए हैं, जिनका बाल ठाकरे हमेशा विरोध करते रहे. बाल ठाकरे की पुण्यतिथि पर बीजेपी ने शिवसेना संस्थापक को याद करके उद्धव ठाकरे को ताना मारा है.
भले ही उद्धव ठाकरे कुछ भी कहें, लेकिन ये बात तो तय है कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी की ओर से मिला ये ताना चुभेगा खूब. आखिर, ये आत्मसम्मान ही तो था जिसके चलते चुनाव से पहले शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन किया, ना कि कांग्रेस और एनसीपी के साथ, लेकिन बाजी हाथ से जाती देख उन्होंने अपना पाला बदल लिया और आत्मसम्मान दाव पर लगा दिया. अब जब शिवसेना ने कांग्रेस से हाथ मिलाकर कांग्रेस होने का फैसला कर लिया है, तो भाजपा इस मौके को भी हाथ से जाने देना नहीं चाहती है. इस समय महाराष्ट्र में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है. अगर इस बार भी भाजपा ने चुनाव अकेले लड़ा होता तो बेशक उसे अधिक सीटें मिली...
बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) , वह शख्स जिसका आत्मसम्मान ही उसकी ताकत रहा. वह जिस बात पर अड़ जाते थे, उसे पूरा कर के ही दम लेते थे. एक जिद थी उनके अंदर, जो उनके स्वभाव को सबसे अलग करती थी. चाहे कुछ भी हो जाए, वह अपना एटिट्यूड नहीं बदलते थे, लेकिन उनके बेटे और शिवसेना के नए सुप्रीमो उद्धव ठाकरे (dhav Thackeray) ने इस बार महाराष्ट्र चुनाव (Maharashtra Assembly Election) में कुछ ऐसा किया है, जिसके चलते वह सबके टारगेट पर हैं. आज बालासाहेब ठाकरे की सातवीं पुण्य तिथि (Balasaheb Thackeray Death Anniversary) है और इस मौके पर भाजपा ने उद्धव ठाकरे पर ताना मारा है. बल्कि यूं कहिए कि भाजपा ने शिवसेना से उसका अभिमान, मान-सम्मान, आत्म-सम्मान कहे जाने वाले बालासाहेब ठाकरे को ही छीन लिया है. देवेंद्र फडणवीस ने ट्वीट किया है- 'बालासाहेब ने हमें आत्म-सम्मान की अहमियत सिखाई.' शिवसेना का मुख्यमंत्री (Maharashtra CM) बनाने की गरज से उद्धव ठाकरे कांग्रेस-एनसीपी की उन नीतियों को लागू करने पर राजी हुए हैं, जिनका बाल ठाकरे हमेशा विरोध करते रहे. बाल ठाकरे की पुण्यतिथि पर बीजेपी ने शिवसेना संस्थापक को याद करके उद्धव ठाकरे को ताना मारा है.
भले ही उद्धव ठाकरे कुछ भी कहें, लेकिन ये बात तो तय है कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी की ओर से मिला ये ताना चुभेगा खूब. आखिर, ये आत्मसम्मान ही तो था जिसके चलते चुनाव से पहले शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन किया, ना कि कांग्रेस और एनसीपी के साथ, लेकिन बाजी हाथ से जाती देख उन्होंने अपना पाला बदल लिया और आत्मसम्मान दाव पर लगा दिया. अब जब शिवसेना ने कांग्रेस से हाथ मिलाकर कांग्रेस होने का फैसला कर लिया है, तो भाजपा इस मौके को भी हाथ से जाने देना नहीं चाहती है. इस समय महाराष्ट्र में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है. अगर इस बार भी भाजपा ने चुनाव अकेले लड़ा होता तो बेशक उसे अधिक सीटें मिली होतीं. भाजपा भी ये बात समझती है, इसलिए उसने मुख्यमंत्री पद से कोई समझौता नहीं किया और महाराष्ट्र में अपनी पकड़ मजबूत करने में लग गई है. बालासाहेब ठाकरे का नाम लेकर वह शिवसेना पर ही निशाना लगा रही है. कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा ने शिवसेना से बालासाहेब ठाकरे को छीन लिया है.
पिता का सपना पूरा करने के चक्कर में उनका सबक भूले उद्धव
बालासाहेब ठाकरे का सपना था कि शिवसेना का मुख्यमंत्री बने. ये बात खुद उद्धव ठाकरे ही कई बार कह चुके हैं. उस सपने को लेकर पहले भाजपा से भिड़ते रहे और ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद बांटने को कहा और जब भाजपा नहीं मानी तो अपनी विरोधी विचारधारा वाली पार्टी कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन करने को तैयार हो गए. यानी सिर्फ मुख्यमंत्री पद के चक्कर में उद्धव ठाकरे ने पिता बालासाहेब ठाकरे का सबक भुला दिया. एक राजनीतिक पद के लिए उद्धव ठाकरे ने अपना, पार्टी का और यहां तक कि खुद बालासाहेब ठाकरे का आत्मसम्मान ताक पर रख दिया. आज बालासाहेब ठाकरे की सातवीं पुण्य तिथि है. अगर आज बालासाहेब जिंदा होते, तो किसी भी कीमत पर कांग्रेस-एनसीपी से हाथ नहीं मिलाते. वैसे भी, एक बार कांग्रेस से हाथ मिलाने का नतीजा ये हुआ था कि शिवसेना को मुंह की खानी पड़ी थी और एक ऐसा भी वाकया रहा था जब कांग्रेस-एनसीपी की सरकार ने ही उन्हें गिरफ्तार भी किया था.
महाराष्ट्र में चल क्या रहा है?
इन दिनों महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर संघर्ष चल रहा है. सारा मामला फंसा है मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर, वरना भाजपा-शिवसेना के गठबंधन ने चुनाव तो बहुमत से जीत ही लिया था. शिवसेना ने शर्त रखी कि आधे समय तक उनका मुख्यमंत्री होगा, जिसके बाद भाजपा ने शिवसेना से किनारा कर लिया है. अब मुख्यमंत्री पद की चाहत में शिवसेना ने कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं, लेकिन वह भी सिरे नहीं चढ़ सकी हैं. आखिरकार, हालात ऐसे हो गए हैं कि राज्यपाल की सिफारिश के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है. अब एक बार फिर से भाजपा कह रही है कि वह सरकार बनाएगी, जबकि शिवसेना दावा कर रही है कि मुख्यमंत्री तो शिवसेना का ही होगा और भाजपा सरकार नहीं बना पाएगी. देखना दिलचस्प रहेगा कि आने वाले समय में महाराष्ट्र में सीएम की कुर्सी पर कौन बैठता है.
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