योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार की उपलब्धियों में अब एक नयी चीज भी जोड़ दी गयी है - और वो है 'जेल में हत्या'. ये उपलब्धि बीजेपी की तरफ से ही जारी एक वीडियो (BJP Campaign Video) में पेश की गयी है.
वैसे तो पुलिस एनकाउंटर भी कानून की नजर में ठीक नहीं माने जाते. जम्मू-कश्मीर या ऐसे किसी आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र में होने वाली मुठभेड़ और पुलिस एनकाउंटर में काफी फर्क होता है. मानवाधिकार की बातें तो आतंकवादियों के केस में भी होती हैं, लेकिन पुलिस एनकाउंटर तो हमेशा ही सवालों के घेरे में रहे हैं.
गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर तो यूपी चुनाव (P Election 2022) से पहले ही सियासत शुरू हो गयी थी. बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा तो पूरे ब्राह्मण सम्मेलन में खुशी दुबे केस का जोर शोर से जिक्र करते रहे. विकास दुबे गैंग के अमर दुबे की पत्नी खुशी दुबे जेल में बंद है - और बीजेपी के विरोधी नेता पूछते रहे हैं कि उसका कसूर क्या है?
अब सुनने में आ रहा है कि खुशी दुबे की मां को कांग्रेस ज्वाइन कराया गया है. साथ ही, प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात का भी दावा किया जा रहा है. बताते हैं कि सब ठीक रहा तो खुशी की मां गायत्री तिवारी को कानपुर से कांग्रेस का प्रत्याशी बनाया जा सकता है. वैसे ये सब भी अचानक हुआ है क्योंकि स्थानीय स्तर पर पहले खुशी दुबे को ही समाजवादी पार्टी का टिकट दिलाने के प्रयास चल रहे थे.
अगर वाकई ऐसा होता है तो, देखना होगा कि कैसे प्रियंका गांधी वाड्रा, उन्नाव से कांग्रेस उम्मीदवार आशा सिंह और आशा वर्कर पूनम पांडेय की तरह गायत्री तिवारी की संघर्ष गाथा पेश करती है. गायत्री तिवारी को टिकट देने में विकास दुबे का अपराध आड़े नहीं आता, लेकिन जब कांग्रेस अगर ऐसे ही अपना ब्राह्मण कार्ड पेश करेगी तो दावा बीएसपी जैसा ही लगेगा - विकास के साथी अमर दुबे की पत्नी होना खुशी को गुनहगार तो नहीं बनाता, लेकिन कांग्रेस के बाकी उम्मीदवारों से बराबरी करना बेमानी होगा.
बाकी चीजें अपनी जगह हैं, लेकिन सबसे अजीब ये है कि...
योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार की उपलब्धियों में अब एक नयी चीज भी जोड़ दी गयी है - और वो है 'जेल में हत्या'. ये उपलब्धि बीजेपी की तरफ से ही जारी एक वीडियो (BJP Campaign Video) में पेश की गयी है.
वैसे तो पुलिस एनकाउंटर भी कानून की नजर में ठीक नहीं माने जाते. जम्मू-कश्मीर या ऐसे किसी आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र में होने वाली मुठभेड़ और पुलिस एनकाउंटर में काफी फर्क होता है. मानवाधिकार की बातें तो आतंकवादियों के केस में भी होती हैं, लेकिन पुलिस एनकाउंटर तो हमेशा ही सवालों के घेरे में रहे हैं.
गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर तो यूपी चुनाव (P Election 2022) से पहले ही सियासत शुरू हो गयी थी. बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा तो पूरे ब्राह्मण सम्मेलन में खुशी दुबे केस का जोर शोर से जिक्र करते रहे. विकास दुबे गैंग के अमर दुबे की पत्नी खुशी दुबे जेल में बंद है - और बीजेपी के विरोधी नेता पूछते रहे हैं कि उसका कसूर क्या है?
अब सुनने में आ रहा है कि खुशी दुबे की मां को कांग्रेस ज्वाइन कराया गया है. साथ ही, प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात का भी दावा किया जा रहा है. बताते हैं कि सब ठीक रहा तो खुशी की मां गायत्री तिवारी को कानपुर से कांग्रेस का प्रत्याशी बनाया जा सकता है. वैसे ये सब भी अचानक हुआ है क्योंकि स्थानीय स्तर पर पहले खुशी दुबे को ही समाजवादी पार्टी का टिकट दिलाने के प्रयास चल रहे थे.
अगर वाकई ऐसा होता है तो, देखना होगा कि कैसे प्रियंका गांधी वाड्रा, उन्नाव से कांग्रेस उम्मीदवार आशा सिंह और आशा वर्कर पूनम पांडेय की तरह गायत्री तिवारी की संघर्ष गाथा पेश करती है. गायत्री तिवारी को टिकट देने में विकास दुबे का अपराध आड़े नहीं आता, लेकिन जब कांग्रेस अगर ऐसे ही अपना ब्राह्मण कार्ड पेश करेगी तो दावा बीएसपी जैसा ही लगेगा - विकास के साथी अमर दुबे की पत्नी होना खुशी को गुनहगार तो नहीं बनाता, लेकिन कांग्रेस के बाकी उम्मीदवारों से बराबरी करना बेमानी होगा.
बाकी चीजें अपनी जगह हैं, लेकिन सबसे अजीब ये है कि योगी सरकार की प्रमुख उपबल्धियों विकास दुबे और मु्न्ना बजरंगी के केस को एक ही फ्रेम में दिखाया गया है. ये दोनों ही अपराध के खात्मे का सही तरीका तो कतई नहीं है - विकास दुबे के मामले में तो बेनिफिट ऑफ डाउट एक पल के लिए मुमकिन भी है, लेकिन मुन्ना बजरंगी के मामले में तो हरगिज नहीं.
जेल में हत्या तो सरकार की नाकामी है
हो सकता है बीजेपी की तरफ से बतायी जा रही योगी आदित्यनाथ सरकार की उपलब्धियों की ताजातरीन लिस्ट देख कर आपको हैरानी हो रही हो - क्योंकि जेल में हर कैदी की सुरक्षा की जिम्मेदारी जेल प्रशासन की ही होती है.
अगर जेल में किसी कैदी की हत्या हो जाती है तो ये समझना मुश्किल नहीं है कि नियमों का कितना पालन हो रहा है - किसी कैदी के किसी अन्य कैदी की हत्या को भी तब तक बहुत गंभीर नहीं माना जा सकता जब तक उसमें किसी हथियार का इस्मेमाल न हुआ है. लेकिन अगर कोई कैदी किसी और कैदी को गोली मार दे तो तब क्या कहा जाएगा - जुलाई, 2018 में यूपी की बागपत जेल में ऐसी ही एक हत्या हुई थी.
जेल में हत्या सरकार की उपलब्धि कैसे: बीजेपी की तरफ से जारी वीडियो में कानपुर के बिकरू गांव के गैंगस्टर विकास दुबे के समानांतर एक कॉनट्रैक्ट किलर मु्न्ना बजरंगी उर्फ प्रेम प्रकाश सिंह को पेश किया गया है - अगर अपराध के खात्मे के लिए योगी सरकार यही प्रमुख उपलब्धि है तो ये काफी अजीब बात है.
यूपी में ब्राह्मण पॉलिटिक्स की कोशिश में विकास दुबे एनकाउंटर केस काफी चर्चा में रहा है - और उसके बाद से यूपी में पुलिस एनकाउंटर के लिए गाड़ी पलटने का जुमला भी इस्तेमाल होने लगा है. विकास दुबे ने उज्जैन में मध्य प्रदेश पुलिस के सामने सरेंडर किया था, लेकिन यूपी के दावे के अनुसार रास्ते में ही गाड़ी पलट गयी और फिर उसका एनकाउंटर हो गया.
9 जुलाई, 2018 को बागपत जेल में मु्न्ना बजरंगी की हत्या के बाद सनसनी मच गयी थी. रिपोर्ट के अनुसार उस पर दस गोलियां चलायी गयी थीं. सभी गोलियां उसके सिर को टारगेट करके दागी गयीं और छह उसके शरीर में लगी थीं.
तभी ये भी खबर आयी थी कि मुन्ना बजरंगी ने एक सुरक्षाकर्मी से बातचीत में अपने ऊपर हमले की आशंका जतायी थी. ड्यूटी पर तैनात सुरक्षाकर्मी से मुन्ना ने कहा था कि अगर उसे नींद आ जाये तो भी बाकी कैदियों के उठने से पहले ही वो उसे जगा देगा.
ये समझना मुश्किल है कि हाई सिक्योरिटी वाली जेल में हथियार कैसे पहुंचा? और बैरकों की चेकिंग के दौरान जेल प्रशासन को हथियार मिला क्यों नहीं?
जांच पड़ताल की बातें अपनी जगह है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि सरकार और जेल प्रशासन की एक नाकामी को भला बीजेपी योगी आदित्यनाथ सरकार की उपलब्धि के तौर पर कैसे पेश कर सकती है?
क्या ये भी वैसा ही नहीं लगता जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह योगी सरकार को कानून-व्यवस्था सहित सभी मामलों में देश में बेस्ट बताते हैं - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना काल में योगी आदित्यनाथ की सरकार के कामकाज को भी गुड वर्क का सर्टिफिकेट दे देते हैं. अगर ऐसा वाकई था तो कोविड कंट्रोल का जिम्मा पूर्व नौकरशाह अरविंद शर्मा को देने की क्या जरूरत रही - और अगर योगी सरकार का काम इतना ही बढ़िया रहा तो वाराणसी मॉडल कैसे तारीफ के काबिल हुआ?
आखिर बांदा जेल में क्या है: अगर बागपद जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या योगी सरकार की उपलब्धियों में शुमार किया जाता है तो, ये कोई अकेला मामला नहीं है.
मुन्ना बजरंगी की ही तरह मेराज भी माफिया डॉन विधायक मुख्तार अंसारी के लिए काम करता था और उसकी भी हत्या वैसे ही जेल में ही हुई थी. चित्रकूट जेल में मुकीम काला और अंशु दीक्षित की हत्या भी ऐसे ही मामले हैं.
मुख्तार अंसारी को भी अपनी हत्या की आशंका रही है. पहले तो वो पंजाब की रोपड़ जेल से यूपी नहीं आना चाहता था - क्योंकि उसे डर था कि रास्ते में भी विकास दुबे की तरह उसकी भी गाड़ी पलट सकती है - और दूसरी दहशत ये कि जेल में भी मु्न्ना बजरंगी की तरह ही हत्या की जा सकती है.
आखिर कार अप्रैल, 2021 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यूपी पुलिस मुख्तार अंसारी को पंजाब से यूपी ला सकी और तब से उसे बांदा जेल में रखा गया है - लेकिन अब बांदा जेल से भी बड़ी अजीब सी खबर आ रही है.
हाल ये है कि बांदा जेल में कोई अफसर जाना नहीं चाहता. सुनने में आया है कि जब भी किसी अफसर को बांदा जेल में तैनात किये जाने की चर्चा होती है, वो कहता है - भले ही सस्पेंड कर दो, लेकिन बांदा जेल मत भेजो.
बांदा जेल मंडलीय कारागार है, लिहाजा उसका प्रभारी सीनियर सुपरिंटेंडेंड रैंक के अफसर को बनाया जाता है, लेकिन काफी दिनों से ये जेल एक जेलर और दो डिप्टी जेलर के भरोसे है.
आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्तार को बांदा जेल शिफ्ट किये जाने के बाद यूपी सरकार ने तीन अफसरों को जेल अधीक्षक के पद पर तैनात किया लेकिन एक ने भी ज्वाइन नहीं किया है.
ये ठाकुरवाद का काउंटर है, तो अजीब है
अपराधी तो अपराधी होता है: मुख्तार अंसारी के मामले में काफी दिनों तक कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा योगी आदित्यनाथ और बीजेपी नेताओं के निशाने पर रहीं. हालांकि, ये तब की बात जब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह हुआ करते थे.
मुन्ना बजरंगी और मुख्तार अंसारी में कॉमन बात ये है कि दोनों का नाम बीजेपी के तत्कालीन विधायक कृष्णानंद राय की हत्या से जुड़ा रहा है. ये बात अलग है कि सारे आरोपी लोअर कोर्ट से छूट भी गये थे.
पुलिस के मुताबिक, मुन्ना बजरंगी, मुख्तार अंसारी के लिए ही काम करता था और इसी के चलते दोनों को कृष्णानंद राय हत्याकांड में आरोपी बनाया गया था. कृष्णानंद राय की पत्नी और बीजेपी विधायक अलका राय ने प्रियंका गांधी को पत्र लिख कर अपने पति के हत्यारे को बचाने का आरोप लगाया था.
अब ये समझना जरूरी है कि बीजेपी के कैंपेन वीडियो में विकास दुबे के साथ भला मुन्ना बजरंगी को क्यों दिखाया गया है? क्या इसलिए क्योंकि वो बीजेपी विधायक की हत्या का आरोपी रहा है?
नहीं - दरअसल, विकास दुबे ब्राह्मण था और मु्न्ना बजरंगी उर्फ प्रेम प्रकाश सिंह क्षत्रिय यानी ठाकुर.
तो क्या ये यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर ठाकुरवाद की राजनीति को लेकर लगे आरोपों को काउंटर करने का बीजेपी का प्रयास है - लगता तो ऐसा ही है, लेकिन किसी अपराधी का कोई धर्म और कोई जाति भी होती है क्या?
जाति और धर्म पर गर्व होना भी चाहिये: हिंदुस्तान टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में योगी आदित्यनाथ ने अपने राजपूत होने पर गर्व जताया है - और दावा किया है कि भगवान भी क्षत्रिय के रूप में कई बार अवतार लिये थे.
अंग्रेजी अखबार का सवाल रहा - आप हिंदुत्व की बात करते हैं, लेकिन आप पर जातिवाद की राजनीति के आरोप लगते हैं - खासकर राजपूतों का फेवर लेने को लेकर.
योगी आदित्यनाथ का जवाब होता है, 'मुझे कोई तकलीफ नहीं होती. राजपूत परिवार में पैदा होना कोई अपराध नहीं है. देश में यही एक जाति है जिसमें भगवान ने भी अवतार लिया, एक बार नहीं बल्कि कई बार. सबको अपनी जाति पर गर्व होना चाहिये - मुझे भी राजपूत होने में गौरव की अनुभूति होती है.'
अपनी जाति और धर्म पर गर्व होना भी चाहिये. शायद ही किसी को ऐसी बातों से शिकायत हो, लेकिन बीजेपी का वीडियो अगर योगी आदित्यनाथ पर लग रहे ठाकुरवाद की तोहमत धोने का ये कोई तरीका है, तो सही नहीं ठहराया जा सकता.
चुनावों के दौरान ही हनुमान को दलित जाति का बता चुके योगी आदित्यनाथ के इस दावे पर दिलीप मंडल ने सवाल उठाया है. पत्रकार से जातीय राजनीतिक कार्यकर्ता बन चुके दिलीप मंडल अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं, 'मेरे पास इस बात के शास्त्रीय प्रमाण हैं कि राम कुशवाहा वंश में पैदा हुए... योगी आदित्यनाथ गलतबयानी कर रहे हैं कि राम क्षत्रिय पिता की संतान हैं... राम का बेटा कुश... कुश से कुशवाहा - तो राम ठाकुर कैसे हुए? हिम्मत है तो मेरे साथ शास्त्रार्थ करें...'
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