महाराष्ट्र चुनाव नतीजों (Maharashtra Election Results) के बाद से राज्य में शुरू हुआ सियासी नाटक खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. हर गुजरते दिन के साथ कहानी में एक नया मोड़ आता है, जो अपने साथ कोई न कोई सस्पेंस लाता है. अभी एक दिन पहले ही भाजपा नेता रामदास अठावले ने शिवसेना (Shiv Sena) और भाजपा (BJP) में गठबंधन का एक फॉर्मूला सुझाया था, क्योंकि कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन के साथ भी शिवसेना किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही है, जिसके चलते सरकार नहीं बन सकी है. अठावले ने कहा था कि शिवसेना 2 साल अपना मुख्यमंत्री रख ले, बाकी तीन साल भाजपा का रहेगा, हालांकि उस पर कोई बात आगे नहीं बढ़ी है. अब शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना (Saamna) के जरिए एक बार फिर से भाजपा पर हमला बोला है. सामना में पीएम मोदी की तुलना मोहम्मद गौरी से की गई है और उन्हें तानाशाह बताया है. साथ ही, ये भी कहा है कि शिवसेना अब भाजपा को और अधिक ताकतवर नहीं बनने देगी. वैसे तो इसे शिवसेना का घमंड भी कहा जा सकता है, लेकिन एनडीए (NDA) से निकाली गई शिवसेना के संदर्भ में ये घमंड कम और मजबूरी ज्यादा लग रहा है. शिवसेना बेचारी करे भी क्या, उसका हर मुद्दा तो भाजपा ने छीन लिया है. बात हिंदुत्व की हो, या राष्ट्रवाद की. कभी जिन मुद्दों पर शिवसेना और बाला साहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) बोला करते थे, आज वह भाजपा की आवाज हैं. हर गुजरते दिन के साथ भाजपा ताकतवर होती जा रही है और यही बात शिवसेना को सबसे ज्यादा अखर रही है.
पहले जानिए क्या कहा है सामना में
शिवसेना के मुखपत्र सामना में कहा गया है कि बाला साहेब ठाकरे ने एनडीए की स्थापना अन्य दलों के साथ मिलकर उस वक्त की थी, जब हिंदुत्व और...
महाराष्ट्र चुनाव नतीजों (Maharashtra Election Results) के बाद से राज्य में शुरू हुआ सियासी नाटक खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. हर गुजरते दिन के साथ कहानी में एक नया मोड़ आता है, जो अपने साथ कोई न कोई सस्पेंस लाता है. अभी एक दिन पहले ही भाजपा नेता रामदास अठावले ने शिवसेना (Shiv Sena) और भाजपा (BJP) में गठबंधन का एक फॉर्मूला सुझाया था, क्योंकि कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन के साथ भी शिवसेना किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही है, जिसके चलते सरकार नहीं बन सकी है. अठावले ने कहा था कि शिवसेना 2 साल अपना मुख्यमंत्री रख ले, बाकी तीन साल भाजपा का रहेगा, हालांकि उस पर कोई बात आगे नहीं बढ़ी है. अब शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना (Saamna) के जरिए एक बार फिर से भाजपा पर हमला बोला है. सामना में पीएम मोदी की तुलना मोहम्मद गौरी से की गई है और उन्हें तानाशाह बताया है. साथ ही, ये भी कहा है कि शिवसेना अब भाजपा को और अधिक ताकतवर नहीं बनने देगी. वैसे तो इसे शिवसेना का घमंड भी कहा जा सकता है, लेकिन एनडीए (NDA) से निकाली गई शिवसेना के संदर्भ में ये घमंड कम और मजबूरी ज्यादा लग रहा है. शिवसेना बेचारी करे भी क्या, उसका हर मुद्दा तो भाजपा ने छीन लिया है. बात हिंदुत्व की हो, या राष्ट्रवाद की. कभी जिन मुद्दों पर शिवसेना और बाला साहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) बोला करते थे, आज वह भाजपा की आवाज हैं. हर गुजरते दिन के साथ भाजपा ताकतवर होती जा रही है और यही बात शिवसेना को सबसे ज्यादा अखर रही है.
पहले जानिए क्या कहा है सामना में
शिवसेना के मुखपत्र सामना में कहा गया है कि बाला साहेब ठाकरे ने एनडीए की स्थापना अन्य दलों के साथ मिलकर उस वक्त की थी, जब हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के बारे में लोग बहुत कम ही बात करते थे. बाला साहेब ठाकरे की पुण्य तिथि के दिन ही शिवसेना को एनडीए से बाहर करने का मुहुर्त निकालना बेहद निंदनीय है. आज जो लोग एनडीए चला रहे हैं, तब इनका कहीं अता पता नहीं था. शिवसेना से बात किया बगैर ही उसे एनडीए से बाहर करना तानाशाही रवैये को दिखा रहा है. शिवसेना ने आगे लिखा है कि ये लड़ाई भाजपा ने महाराष्ट्र के खिलाफ शुरू की है और हम चुप नहीं बैठेंगे. भाजपा की तुलना मोहम्म्द गौरी से करते हुए शिवसेना ने लिखा है- हमने वही गलती की है, जो पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को 17 बार हराने के बावजूद जिंदा छोड़कर की थी, उसी ने 18वीं बार पृथ्वीराज चौहान को जेल में डाल दिया था. हमें उन लोगों ने ही धोखा दिया है, जिनके साथ हम तब खड़े हुए थे, जब कोई खड़ा नहीं हो रहा था. महाराष्ट्र की पीठ में छुरा घोंपा गया है. एनडीए से बाहर निकाले जाने से पहले सेना को कोई कारण बताओ नोटिस तक नहीं दिया गया.
भाजपा ने छीना हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का एजेंडा
जिस हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के दम पर शिवसेना अपनी राजनीति करती रही है, उसे धीरे-धीरे भाजपा ने छीन लिया है. जिन तमाम मुद्दों को लेकर शिवसेना अपना मतदाताओं को लुभाती थी, पिछले 5 साल में भाजपा ने सभी पर खुलकर काम किया है. शिवसेना राम मंदिर के मुद्दे पर भी खूब आक्रामक रहती थी, लेकिन 9 नवंबर को शिवसेना के उस मुद्दे को भी भाजपा ने पूरी तरह छीन लिया. सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन पर राम मंदिर बनाने का फैसला सुना दिया है और ये सब जानते हैं कि यह सिर्फ भाजपा के प्रयासों की वजह से मुमकिन हो सका है. वैसे भी, भाजपा ने 2014 का लोकसभा चुनाव तो राम मंदिर के दम पर ही लड़ा था. वहीं राष्ट्रवाद की बात करें तो मोदी सरकार में राष्ट्रवाद की जितनी बात हुई है, शायद ही किसी सरकार में ऐसा कुछ देखने को मिला. पाकिस्तान को भी भारतीय सेना ने बार-बार धूल चटाई है. यानी शिवसेना के हिंदुत्व और राष्ट्रवाद दोनों ही मुद्दे भाजपा ने लगभग पूरी तरह से छीन ही लिए हैं.
भाजपा ने तो शिवसेना से बाल ठाकरे को भी छीन लिया
शिवसेना का मुख्यमंत्री (Maharashtra CM) बनाने की गरज से उद्धव ठाकरे कांग्रेस-एनसीपी की उन नीतियों को लागू करने पर राजी हुए हैं, जिनका बाल ठाकरे हमेशा विरोध करते रहे. इसका फायदा उठाते हुए बाल ठाकरे की पुण्यतिथि पर बीजेपी ने शिवसेना संस्थापक को याद करके उद्धव ठाकरे को ताना मारा. देवेंद्र फडणवीस ने ट्वीट किया है- 'बालासाहेब ने हमें आत्म-सम्मान की अहमियत सिखाई.' यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि बालासाहेब ठाकरे की सातवीं पुण्य तिथि (Balasaheb Thackeray Death Anniversary) पर भाजपा ने शिवसेना से उसका अभिमान, मान-सम्मान, आत्म-सम्मान कहे जाने वाले बालासाहेब ठाकरे को ही छीन लिया.
शिवसेना के नेता भी भाजपा के हो गए
शिवसेना के दिल को सबसे अधिक चुभने वाली बात ये है कि उसने न सिर्फ उसके मुद्दे छीने हैं, बल्कि उसके नेता भी छीन लिए. नारायण राणे को ही ले लीजिए. आज वह भाजपा के साथ हैं, लेकिन कभी वह शिवसेना में रहते हुए बाल ठाकरे के बेहद करीबी माने जाते थे. यहां तक कि शिवसेना-भाजपा की गठबंधन वाली सरकार में वह शिवसेना की ओर से मुख्यमंत्री भी बने थे. शिवसेना के लिए नारायण राणे का पार्टी से जाना बहुत नुकसानदायक रहा है, क्योंकि मराठा नेता नारायण राणे की कोंकण में तगड़ी पकड़ थी. जिस कोंकण में पहले वह शिवसेना के लिए लड़ते थे, अब वहीं से शिवसेना के खिलाफ लड़ते हैं. शिवसेना छोड़कर भाजपा में जाने वाले सुरेश प्रभु को भी मत भूलिएगा. मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में वह न सिर्फ सरकार का हिस्सा थे, बल्कि रेल मंत्रालय भी उनके हवाले कर दिया गया था.
जरा सोचिए, जिस पार्टी के साथ मिलकर कोई सरकार बनाए, वही आपके नेता छीन ले, तो बुरा तो लगेगा ही. यही बात उद्धव ठाकरे को गठबंधन धर्म के खिलाफ लगती है, क्योंकि आमतौर पर गठबंधन वाली पार्टियां एके दूसरे के नेताओं के अपनी पार्टी में शामिल नहीं करते. खैर, अब शिवसेना भी गठबंधन धर्म की बात ना ही करे तो अच्छा है. सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने के लिए वह अपनी विचारधारा, हिंदुत्व, राष्ट्रवाद सब कुछ दाव पर लगाने को तैयार है और विरोधी विचारधारा वाली सेकुलर पार्टियों कांग्रेस-एनसीपी के साथ गठबंधन तक करने से नहीं हिचक रही है.
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