बिहार में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं. फिर भी सवाल अपनी जगह बना हुआ है कि एनडीए की बतायी जा रही ये सरकार चलेगी कब तक - और कैसे? जैसे चार बार चली थी वैसे, या फिर शपथ लेने के बाद तीन बार नीतीश कुमार का जो हाल हुआ वैसा ही एक बार और होने वाला है? बिहार चुनाव से पहले भी एनडीए की ही सरकार रही - और 2013 में नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ने तक. लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जब बीजेपी नेतृत्व बार बार प्रचारित कर रहा है कि ये एनडीए की सरकार है जिसमें नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने बड़ा दिल दिखाया है.
ये तो मानना ही पड़ेगा कि बीजेपी नेतृत्व (Modi and Shah) ने पहला चुनावी वादा पूरा कर दिया है. नीतीश कुमार को जेडीयू की कम सीटें आने पर भी बिहार में एनडीए का मुख्यमंत्री बनाने का. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नीतीश कुमार को एनडीए की सरकार (NDA Government) की तरफ ध्यान दिलाते हुए बधाई दी है - और ढेरों उम्मीदें भी जतायी हैं. बिहार की नयी एनडीए कैबिनेट को देख कर ये तो साफ हो चुका है कि चुनावों से पहले बीजेपी ने नीतीश कुमार के खिलाफ बदले की जो कार्रवाई शुरू की थी, उसी पर आगे बढ़ी चली जा रही है - सवाल ये है कि बीजेपी क्या ऐसा करने भर से बिहार में वो सब हासिल कर पाएगी जिसकी अरसे से उसे जरूरत महसूस हो रही है.
बिहार की बिसात पर चिराग पासवान के जरिये शह और अपने ही सुशील मोदी के जरिये शिकस्त की तरफ एक कदम और बढ़ाकर बीजेपी ने अपने इरादों को लेकर शक शुबहे की सारी गुंजाइश पूरी तरह खत्म भी कर दी है - लेकिन बीजेपी नेतृत्व ये क्यों नहीं समझ पा रहा कि सिर्फ बदले की कार्रवाई से नहीं काम चलने वाला, बिहार में अगर सत्ता में आगे भी बने रहना है तो तत्काल प्रभाव से नीतीश कुमार का विकल्प खोज लेना होगा और अभी तक तो ऐसा कोई लक्षण देखने को नहीं मिला है.
बिहार को बदलापुर बनाने से बीजेपी को मिलेगा क्या?
बिहार में नयी सरकार के गठन में बीजेपी ने कदम कदम पर अपनी हनक का खुला प्रदर्शन किया है....
बिहार में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं. फिर भी सवाल अपनी जगह बना हुआ है कि एनडीए की बतायी जा रही ये सरकार चलेगी कब तक - और कैसे? जैसे चार बार चली थी वैसे, या फिर शपथ लेने के बाद तीन बार नीतीश कुमार का जो हाल हुआ वैसा ही एक बार और होने वाला है? बिहार चुनाव से पहले भी एनडीए की ही सरकार रही - और 2013 में नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ने तक. लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जब बीजेपी नेतृत्व बार बार प्रचारित कर रहा है कि ये एनडीए की सरकार है जिसमें नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने बड़ा दिल दिखाया है.
ये तो मानना ही पड़ेगा कि बीजेपी नेतृत्व (Modi and Shah) ने पहला चुनावी वादा पूरा कर दिया है. नीतीश कुमार को जेडीयू की कम सीटें आने पर भी बिहार में एनडीए का मुख्यमंत्री बनाने का. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नीतीश कुमार को एनडीए की सरकार (NDA Government) की तरफ ध्यान दिलाते हुए बधाई दी है - और ढेरों उम्मीदें भी जतायी हैं. बिहार की नयी एनडीए कैबिनेट को देख कर ये तो साफ हो चुका है कि चुनावों से पहले बीजेपी ने नीतीश कुमार के खिलाफ बदले की जो कार्रवाई शुरू की थी, उसी पर आगे बढ़ी चली जा रही है - सवाल ये है कि बीजेपी क्या ऐसा करने भर से बिहार में वो सब हासिल कर पाएगी जिसकी अरसे से उसे जरूरत महसूस हो रही है.
बिहार की बिसात पर चिराग पासवान के जरिये शह और अपने ही सुशील मोदी के जरिये शिकस्त की तरफ एक कदम और बढ़ाकर बीजेपी ने अपने इरादों को लेकर शक शुबहे की सारी गुंजाइश पूरी तरह खत्म भी कर दी है - लेकिन बीजेपी नेतृत्व ये क्यों नहीं समझ पा रहा कि सिर्फ बदले की कार्रवाई से नहीं काम चलने वाला, बिहार में अगर सत्ता में आगे भी बने रहना है तो तत्काल प्रभाव से नीतीश कुमार का विकल्प खोज लेना होगा और अभी तक तो ऐसा कोई लक्षण देखने को नहीं मिला है.
बिहार को बदलापुर बनाने से बीजेपी को मिलेगा क्या?
बिहार में नयी सरकार के गठन में बीजेपी ने कदम कदम पर अपनी हनक का खुला प्रदर्शन किया है. दो-दो डिप्टी सीएम होने के अलावा बीजेपी के मंत्रियों की संख्या भी ज्यादा है - और स्पीकर की कुर्सी भी बंटवारे में बड़े भाई ने अपने हिस्से में रख ही ली है. बीजेपी के तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को बिहार में डिप्टी सीएम बनाया गया है.
सवाल ये है कि बीजेपी ने सुशील मोदी को हटाने और मंत्रिमंडल में भी नीतीश कुमार को जेडीयू की 43 सीटों के मुकाबले अपनी 74 सीटों का एहसास कराते हुए नीतीश कुमार के अगल बगल दो-दो डिप्टी सीएम बिठाने और सामने कड़ी नजर रखने के लिए एक स्पीकर बिठाने के बाद - नीतीश का विकल्प खड़ा करने के बारे में क्यों नहीं सोच रही है.
हाल फिलहाल दिल्ली के बाद बिहार चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए काफी महत्वपूर्ण हो जा रहे हैं. दिल्ली विधान सभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद संघ के मुखपत्र में प्रकाशित एक लेख में बीजेपी नेतृत्व का बचाव करते हुए दिल्ली बीजेपी के नेताओं को फटकार लगायी गयी थी. लेख में सलाह दी गयी थी कि स्थानीय स्तर पर नेताओं को तैयार करने की जरूरत है. हमेशा चुनावी जीत के लिए मोदी-शाह का मुंह देखना ठीक नहीं है. आखिर कब तक मोदी-शाह बीजेपी को जीत दिलाते रहेंगे?
चुनाव बाद बीजेपी नेतृत्व ने प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी को बदल दिया. दिल्ली के पुराने दिग्गजों को तो पहले ही किनारे लगाया जा चुका था, लेकिन अब तक ऐसा कोई नेता उभर कर तो सामने नहीं ही नजर आ रहा है जो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को चुनौती देने की स्थिति में हो. जब भी कुछ होता है तो ले देकर वही मनोज तिवारी और आप से आये कपिल मिश्रा ही भड़ास निकालते देखे जा सकते हैं. दिल्ली के अरविंद केजरीवाल के तेजी से हिंदुत्व की राजनीतिक लाइन पर बढ़ते देख कर बीजेपी को चिंता तो हो ही रही होगी. आखिर कोरोना वायरस के बहाने कब तक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, अरविंद केजरीवाल को आगे पीछे घुमाते रहेंगे?
बिहार में तो बीजेपी के लिए ये चीज सबसे ज्यादा जरूरी है. दिल्ली में तो पुलिस पर केंद्र के कंट्रोल और अपने मन के उप राज्यपाल की बदौलत बीजेपी काफी चीजें काबू में कर लेती है, लेकिन बिहार का राजनीतिक भूगोल तो बिलकुल अलग है.
बिहार में नीतीश कुमार को कमजोर करने के मकसद से बीजेपी ने सुशील मोदी को तो उनके पास से हटा लिया - क्योंकि बीजेपी नेतृत्व को लगता था कि सुशील मोदी की पिछलग्गू प्रवृति के चलते ही बीजेपी बिहार में आगे नहीं बढ़ पा रही है. सुशील मोदी को हटाकर नीतीश कुमार के पर कतरते हुए बीजेपी ने मंत्रियों और दो-दो डिप्टी सीएम के साथ अब स्पीकर भी अपना ही बिठाने की तैयारी में है - लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि बीजेपी को बिहार में नेतृ्त्व कौन देने वाला है?
हो सकता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार के लिए कोई सरप्राइज छिपा रखा हो और उसे प्रदर्शित करने के लिए किसी खास मौके का इंतजार हो. दो-दो डिप्टी सीएम तो सरप्राइज गिफ्ट बिहार को मिल ही गये - अब क्या बीजेपी का अगला मुख्यमंत्री भी सरप्राइज ही होगा? या संघ से किसी को उठा कर लाया जाएगा या फिर यूपी की तरह ही बिहार में भी योगी आदित्यनाथ की तरह संघ की मदद से कोई सीएम बनेगा?
बीबीसी से बातचीत में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के सांसद रहे पूर्व नौकरशाह पवन वर्मा कहते हैं, 'नीतीश कुमार के लिए आने वाले समय में मुश्किलें बढ़ेंगी... इसलिए नहीं क्योंकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह ऐसा चाहते हैं, बल्कि बीजेपी के दूसरे नेता तो मिडिल लेवल के नेता हैं, चाहे वो प्रदेश के हों या फिर केंद्र के, उनके स्वर अब और प्रखर होंगे. वो बार बार कहेंगे कि नीतीश कुमार अपना पद बीजेपी को सौंप दें.'
सुशील मोदी के मन की बात वाली ट्वीट पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का रिएक्शन पवन वर्मा की आशंकाओं को ही मजबूती दे रहा है. ऐसे नेताओं ने ही चुनाव नतीजे आने के बाद से ही बीजेपी के मुख्यमंत्री की बातें वैसे ही शुरू कर दी थी जैसे चुनावों से पहले अमित शाह के बयान देने तक किया करते थे. अगर बीजेपी सिर्फ नीतीश कुमार को कमजोर कर बिहार पर राज करने की सोच रही है तो वो बिलकुल गलत सोच रही है - क्योंकि बिहार के लोगों ने बीजेपी को सत्ता तो सौंप दी है, लेकिन सामने पहाड़ सा मजबूत विपक्ष भी खड़ा कर रखा है.
ऑपरेशन लोटस जैसे प्रयोगों के तहत बीजेपी की तोड़-फोड़ चल गयी तो बात और है, वरना - तेजस्वी यादव के निशाने पर नाम तो नीतीश कुमार का होगा, लेकिन मुश्किलें बीजेपी की ही बढ़ने वाली हैं.
'मिस यू सुशील मोदी!'
नीतीश कुमार ने पहले ही कह दिया था - "मैं मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहता था, लेकिन बीजेपी नेताओं के आग्रह पर यह पद स्वीकार किया है." मान कर चलना होगा, ऐसा आग्रह करने वालों में सुशील कुमार मोदी सबसे आगे ही रहे होंगे, ये सब जानते हुए भी कि आगे उनके साथ कुछ भी ठीक नहीं होने वाला है.
मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नीतीश कुमार मीडिया के बीच पहुंचे तो पूछा गया कि वो सुशील मोदी को मिस करेंगे? नीतीश कुमार इस सवाल के जवाब में सिर्फ एक शब्द ही कहा - "येस".
ये एक शब्द सुशील मोदी को काफी सुकून पहुंचा रहा होगा. ठीक उसी वक्त बीजेपी नेतृत्व को मुस्कुराने का बहाना तो दे रहा होगा, लेकिन वे इसे नीतीश कुमार की अकड़ के साथ ही जोड़ कर देख रहे होंगे.
नीतीश को लेकर अब भी जो बीजेपी की बड़ी चिंता उसे उसके अंडरकवर मिशन चिराग पासवान ने सामने ला दिया है - और लगे हाथ अपना विजन डॉक्यूमेंट भी प्रेषित कर दिया है. शायद इसलिए ताकि आगे सवाल पूछने का कोई आधार तो हो?
सुशील मोदी के बारे में जब जेडीयू नेता अशोक चौधरी से सवाल हुआ तो वो दिल खोल कर तारीफ करने लगे - '' देखिए ऐसा है कि बतौर नेता एक बेहतरीन शख्स हैं और 15 साल में अगर बिहार का विकास हुआ है उसमें सुशील मोदी जी की बड़ी भूमिका है. 3.3 के विकास दर से 12.8 की विकास दर पर बिहार आया है तो इसमें वित्त मंत्री रहने वाले सुशील मोदी का अहम योगदान है."
नीतीश कुमार भले ही खामोश हों और मन मसोस कर रह गये हों, लेकिन उनके मन की बात अशोक चौधरी ने बीजेपी नेतृत्व को तो बता ही दी है - "हमको लगता है कि इस प्रदेश में कोई दूसरा सुशील मोदी नहीं हो सकता है.''
अगर बीजेपी ने नीतीश कुमार के विकल्प के तौर पर बिहार को कोई सरप्राइज नहीं दिया तो मुमकिन है किसी दिन सुशील मोदी को फिर से अपना डिप्टी सीएम बना कर नीतीश कुमार ही मोदी-शाह को बड़ा सरप्राइज दे देंगे!
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