पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार होकर भारतीय जनता पार्टी ने अपना सियासी उद्देश्य पूरा कर लिया था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को नया उद्देश्य और नया मिशन चाहिए. उसने दलितों को साधने के लिए अंबेडकर का सहारा लिया है, तो पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह फूंकने के लिए अटल जी के नाम का.
भारतीय जनता पार्टी की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक रविवार को अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में समाप्त हुई. 2019 चुनावों के सुगबुगाहट के बिच इस बैठक की अहमियत कई मायनों में काफी अहम थी. एक तो इस बैठक से भाजपा के 2019 की चुनावी रणनीति की एक झलक मिलनी तय थी, तो वहीं अनुसूचित जाति- जनजाति कानून को लेकर देश भर में अगड़ी जातियों के रोष को कम करने को लेकर भी भाजपा को एक रणनीति तय करनी थी.
भाजपा की बैठक के लिए जिस जगह का चयन किया गया था वो अपने आप में एक सन्देश देता नजर आया. भाजपा ने अपनी बैठक के लिए अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर का चयन किया था जिसका उद्घाटन पिछले ही साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. अनुसूचित जातियों को अपने पाले में लाने के भाजपा के हालिया प्रयासों के बीच इस आयोजन स्थल के भी अपने मायने निकाले जा सकते हैं. वैसे भी हाल के वर्षों में भारतीय जनता पार्टी भीम राव आंबेडकर को केंद्र में रखकर अनुसूचित जातियों के बीच अपनी पकड़ बनाने को लेकर काफी कुछ करती नजर आयी है.
और भाजपा कार्यकारणी की बैठक में भी भाजपा आंबेडकर के सहारे यही सन्देश देती नजर आयी कि SC/ST एक्ट में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलट कर भाजपा जिस रणनीति पर आगे बढ़ चली उसमें किसी तरह के बदलाव के संकेत फिलहाल नहीं हैं.
भाजपा की रणनीति की एक झलक इस...
पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार होकर भारतीय जनता पार्टी ने अपना सियासी उद्देश्य पूरा कर लिया था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को नया उद्देश्य और नया मिशन चाहिए. उसने दलितों को साधने के लिए अंबेडकर का सहारा लिया है, तो पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह फूंकने के लिए अटल जी के नाम का.
भारतीय जनता पार्टी की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक रविवार को अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में समाप्त हुई. 2019 चुनावों के सुगबुगाहट के बिच इस बैठक की अहमियत कई मायनों में काफी अहम थी. एक तो इस बैठक से भाजपा के 2019 की चुनावी रणनीति की एक झलक मिलनी तय थी, तो वहीं अनुसूचित जाति- जनजाति कानून को लेकर देश भर में अगड़ी जातियों के रोष को कम करने को लेकर भी भाजपा को एक रणनीति तय करनी थी.
भाजपा की बैठक के लिए जिस जगह का चयन किया गया था वो अपने आप में एक सन्देश देता नजर आया. भाजपा ने अपनी बैठक के लिए अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर का चयन किया था जिसका उद्घाटन पिछले ही साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. अनुसूचित जातियों को अपने पाले में लाने के भाजपा के हालिया प्रयासों के बीच इस आयोजन स्थल के भी अपने मायने निकाले जा सकते हैं. वैसे भी हाल के वर्षों में भारतीय जनता पार्टी भीम राव आंबेडकर को केंद्र में रखकर अनुसूचित जातियों के बीच अपनी पकड़ बनाने को लेकर काफी कुछ करती नजर आयी है.
और भाजपा कार्यकारणी की बैठक में भी भाजपा आंबेडकर के सहारे यही सन्देश देती नजर आयी कि SC/ST एक्ट में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलट कर भाजपा जिस रणनीति पर आगे बढ़ चली उसमें किसी तरह के बदलाव के संकेत फिलहाल नहीं हैं.
भाजपा की रणनीति की एक झलक इस बैठक में लगे पोस्टरों को देख कर भी मिली. भाजपा ने इस बैठक के लिए भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी के 'सदैव अटल" लिखे बड़े बड़े कटआउट्स लगा कर यह संकेत दे दिया है कि अटल 2019 के भाजपा के चुनावी तरकश के महत्वपूर्ण तीर होने वाले हैं. हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी की मृत्यु के बाद से ही जिस प्रकार भाजपा अटल को लेकर आक्रामक दिखी उससे इस बात का अंदाजा तो हो ही गया था कि 2019 के चुनावों में एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी काफी प्रासंगिक होने वाले हैं. और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के आखिरी दिन अपने सम्बोधन में खुद प्रधानमंत्री ने इस बात पर मुहर भी लगा दी. प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन में 'अजेय भारत-अटल भाजपा' का नारा दिया और बहुत संभव है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में यह नारा भाजपा के प्रमुख नारों में से एक हो.
बेशक इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अटल बिहारी वाजपेयी आज भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं और इसकी झलक अटल की अंतिम यात्रा के दौरान भी दिखी थी. मगर अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थियों की देश भर में कलश यात्रा निकालने का भाजपा का फैसला लोगों को कुछ खास रास नहीं आया, और इसके खिलाफ लोगों की नाराजगी सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म्स पर देखने को भी मिली. साथ ही जिस प्रकार भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर चौक- चौराहों के नाम रखने शुरू किये उसमें भी लोगों को राजनीति की बू आयी. भाजपा के इन दो फैसलों के बाद लोगों में जो सन्देश गया वो यह रहा कि भाजपा वाजपेयी जी के माध्यम से भी राजनैतिक हित साधने की कोशिश कर रही है, तो वहीं एक तबके को इस दौरान लाल कृष्ण आडवाणी की अनदेखी भी खली. ऐसे में सवाल यही उठता है कि क्या वाकई अटल का आभामंडल 2019 में भी भाजपा को लाभ पहुंचाने की स्थिति में है?
अगर वर्तमान दौर में देखें तो इसकी संभावना कम ही लगती है कि अटल का आभामंडल भाजपा को कोई चुनावी लाभ पहुंचा सके. हालांकि यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि भाजपा की थिंकटैंक इसको लेकर किस तरह की रणनीति पर काम करती है. और वह जानने के लिए अभी कुछ इंतजार करना होगा, मगर यह देखना जरूर दिलचस्प होगा कि 2004 में अपनी सरकार के हार को टालने में नाकाम रहे अटल बिहारी वाजपेयी क्या 2019 में मोदी सरकार को जीत दिलाने में कुछ मदद कर सकते हैं या नहीं.
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