जैसे 'अपने अपने राम' वैसे ही अपना अपना हिंदुत्व भी है! शिवसेना और बीजेपी में तो अपने अपने हिंदुत्व (Hindutva Debate) की जंग पहले से ही चल रही थी, बाद में राहुल गांधी भी उसे हिंदुत्ववाद के तौर पर पेश कर दावेदारी पेश कर दिये.
महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के मौके पर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने हिंदुत्व पर अपनी पुरानी थ्योरी ही दोहरायी है, लेकिन शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत (Sanjay Raut) ने उसी बहस को मोहम्मद अली जिन्ना से जोड़ कर काफी आगे बढ़ा दिया है.
राहुल गांधी अपने हिंदुत्व सिद्धांत को गांधी बनाम गोडसे के रूप में पेश कर रहे थे, संजय राउत ने उसमें धीरे से जिन्ना को भी जोड़ दिया है - और जिन्ना को लेकर यूपी में जो चुनावी बयार बह रही है, ये मुद्दा कहीं ज्यादा प्रासंगिक हो गया है.
जिन्ना यूं ही चुनावी माहौल में जिंदा हो जाते हैं. उत्तर प्रदेश तो वैसे भी जिन्ना विमर्श के लिए पहले से ही बेहद उपजाऊ जमीन है. चुनावों से पहले समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने आजादी के आंदोलन में नेहरू और गांधी के योगदान के साथ जिन्ना को उनके अध्ययन काल से जोड़ते हुए पेश किया था - और अब तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बार बार जिन्ना बनाम सरदार पटेल के रूप में पेश करते हुए वोट मांगते जा रहे हैं.
राहुल गांधी ने तो वही बात दोहरायी है जो कांग्रेस की जयपुर रैली में सुनने को मिली थी, लेकिन शिवसेना ने कांग्रेस नेता के बयान का सपोर्ट नहीं किया है. संजय राउत की बातों से ऐसा लगता है जैसे उनको नाथूराम गोडसे के लिए राहुल गांधी का हिंदुत्ववादी कहना हजम नहीं हो रहा है.
संघ और बीजेपी के रुख को देखें तो गांधी को महज एक 'चतुर बनिया' और गोडसे को हीरो की तरह पेश किया जाने लगा है - संसद में गोडसे पर बयान के लिए बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह...
जैसे 'अपने अपने राम' वैसे ही अपना अपना हिंदुत्व भी है! शिवसेना और बीजेपी में तो अपने अपने हिंदुत्व (Hindutva Debate) की जंग पहले से ही चल रही थी, बाद में राहुल गांधी भी उसे हिंदुत्ववाद के तौर पर पेश कर दावेदारी पेश कर दिये.
महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के मौके पर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने हिंदुत्व पर अपनी पुरानी थ्योरी ही दोहरायी है, लेकिन शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत (Sanjay Raut) ने उसी बहस को मोहम्मद अली जिन्ना से जोड़ कर काफी आगे बढ़ा दिया है.
राहुल गांधी अपने हिंदुत्व सिद्धांत को गांधी बनाम गोडसे के रूप में पेश कर रहे थे, संजय राउत ने उसमें धीरे से जिन्ना को भी जोड़ दिया है - और जिन्ना को लेकर यूपी में जो चुनावी बयार बह रही है, ये मुद्दा कहीं ज्यादा प्रासंगिक हो गया है.
जिन्ना यूं ही चुनावी माहौल में जिंदा हो जाते हैं. उत्तर प्रदेश तो वैसे भी जिन्ना विमर्श के लिए पहले से ही बेहद उपजाऊ जमीन है. चुनावों से पहले समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने आजादी के आंदोलन में नेहरू और गांधी के योगदान के साथ जिन्ना को उनके अध्ययन काल से जोड़ते हुए पेश किया था - और अब तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बार बार जिन्ना बनाम सरदार पटेल के रूप में पेश करते हुए वोट मांगते जा रहे हैं.
राहुल गांधी ने तो वही बात दोहरायी है जो कांग्रेस की जयपुर रैली में सुनने को मिली थी, लेकिन शिवसेना ने कांग्रेस नेता के बयान का सपोर्ट नहीं किया है. संजय राउत की बातों से ऐसा लगता है जैसे उनको नाथूराम गोडसे के लिए राहुल गांधी का हिंदुत्ववादी कहना हजम नहीं हो रहा है.
संघ और बीजेपी के रुख को देखें तो गांधी को महज एक 'चतुर बनिया' और गोडसे को हीरो की तरह पेश किया जाने लगा है - संसद में गोडसे पर बयान के लिए बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की माफी, दरअसल, तकनीकी मामला रहा.
गोडसे पर राहुल गांधी का रुख तो सीधे सीधे समझ में आ जाता है. वैसे भी राहुल गांधी के खिलाप आरएसएस मानहानि केस में अब रोजाना सुनवाई होने जा रही है. ऐसे में ये मामला लंबा चलने वाला है - क्योंकि संघ और बीजेपी के खिलाफ राहुल गांधी को ये मुद्दा 'सूट बूट की सरकार' जैसा ही सूट करता है.
बड़ा सवाल ये है कि क्या शिवसेना गोडसे-विमर्श पर बीजेपी की दावेदारी से परेशान हो रही है - और क्या गोडसे में शिवसेना को हिंदुत्व के साथ साथ मराठी मानुष की राजनीति भी दिखायी देने लगी है?
अपने अपने गोडसे
राहुल गांधी को तो बस मौके की तलाश रहती है. दिसंबर, 2021 में जयपुर में कांग्रेस की महंगाई पर रैली हो रही थी और वो हिंदू, हिंदुत्व और हिंदुत्वादी की परिभाषा उदाहरण के साथ पेश करने लगे - तब भी वो गांधी बनाम गोडसे की बहस में संघ और बीजेपी को खड़ा करने की कोशिश कर रहे थे, ठीक वही काम अब भी किया है.
राहुल गांधी ने तो 30 जनवरी की तारीख देख कर ट्वीट कर दिया, लेकिन शिवसेना का रिएक्शन बाकायदा गौर फरमाने वाला है - क्योंकि संजय राउत ने राहुल गांधी के बयान कुछ कुछ उसी अंदाज में सोचते-समझते और गंभीर होकर प्रतिक्रिया दी है जैसे रामलीला मैदान से उनके भाषण में विनायक दामोदर सावरकर के जिक्र पर देखने को मिला था.
ट्विटर पर पुराना टेप चलाया गया: राहुल गांधी ने राजघाट जाकर महात्मा गांधी की समाधि पर श्रद्धांजलि भी दी और उनका एक वक्तव्य लिख कर उनको याद भी किया.
कांग्रेस नेता ने ट्विटर पर लिखा, 'एक हिंदुत्ववादी ने गांधी जी को गोली मारी थी... सब हिंदुत्ववादियों को लगता है कि गांधी जी नहीं रहे - जहां सत्य है, वहां आज भी बापू जिंदा हैं.'
राहुल गांधी ने अभी जो ट्वीट किया है, पहले वही विचार कांग्रेस की रैली में व्यक्त किये थे. वो भी एक तरीके से सलमान खुर्शीद की किताब में हिंदुत्व को निशाना बनाने के बचाव जैसा ही था. थोड़ा विस्तार से. उदाहरण देकर समझाने जैसा.
कांग्रेस की रैली में भी राहुल गांधी ने समझाया था, 'महात्मा गांधी ने पूरे जीवन सत्य की खोज की, लेकिन हिंदुत्ववादी गोडसे ने उनके सीने में तीन गोलियां मार दीं.'
आगे की दलील रही, "महात्मा गांधी हिंदू थे और गोडसे हिंदुत्ववादी."
और आखिर में, जैसे आत्मकथ्य भी जोड़ दिया - "मैं हिंदू हूं, लेकिन हिंदुत्ववादी नहीं."
राहुल गांधी के खिलाफ एक मानहानि का केस चल रहा है. ये केस ठाणे के ही एक आरएसएस कार्यकर्ता की तरफ से दर्ज कराया गया था. ये केस 2014 में राहुल गांधी के भाषण को लेकर है. भिवंडी में राहुल गांधी ने अपने भाषण में गांधी की हत्या में आरएसएस का हाथ बताया था. आरएसएस कार्यकर्ता राजेश कुंटे ने ये कहते हुए कोर्ट में याचिका दायर कर दी कि राहुल गांधी की बातों से आरएसएस की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है.
ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था और कांग्रेस नेता के सामने दो ऑप्शन थे - या तो अदालत से बाहर माफी मांग कर समझौता कर लें या फिर ट्रायल फेस करें. राहुल गांधी ने ट्रायल फेस करने का फैसला किया. सुप्रीम कोर्ट के ही हाल के एक आदेश का हवाला देते हुए ठाणे की अदालत मामले की 5 फरवरी से रोजाना सुनवाई का आदेश दिया है.
शिवसेना की नजर में गोडसे हिंदुत्ववादी नहीं: ऐसे में जबकि राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि केस में रोजाना सुनवाई होने जा रही है, जब भी पेशी पर जाना होगा राहुल गांधी की तरफ से ऐसी टिप्पणियां सुनने को मिलेंगी ही - और ये भी हो सकता है कि शिवसेना की तरफ से भी नयी नयी बातें सुनने को मिलें.
शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने एक तरीके से राहुल गांधी के दावे पर सवाल ही उठा दिया है, ये कह कर कि अगर गोडसे वास्तव में हिंदुत्ववादी होता तो वो गांधी की जगह जिन्ना को गोली मारता.
दलील भी दमदार है. ऐसी दलील संजय राउत के मुंह से कम ही सुनने को मिलती हैं क्योंकि अक्सर तो उनका अंदाज शेरो-शायरी वाला ही रहता है. ध्यान देने वाली बात है कि संजय राउत हाल फिलहाल राहुल गांधी का बचाव करते ही देखे गये हैं.
ममता बनर्जी की यूपीए पर टिप्पणी के बाद तो संजय राउत ने राहुल गांधी से मिल कर यूपीए को और मजबूत करने की सलाह दी थी. साथ में ये भी कहा था कि वो शिवसेना नेतृत्व उद्धव ठाकरे से भी सिफारिश करेंगे कि वो भी यूपीए का हिस्सा बनने पर विचार करें. हालांकि, संजय राउत के इस बयान का रिमोट भी एनसीपी नेता शरद पवार के हाथ में ही नजर आ रहा था.
गोडसे को लेकर राहुल गांधी के ट्वीट पर संजय राउत कहते हैं - 'अगर असली हिंदुत्ववादी होता तो जिन्ना को गोली मारता, गांधी को क्यों गोली मारता...
संजय राउत याद दिलाते हैं कि पाकिस्तान की जो मांग थी वो जिन्ना की मांग थी - और फिर सवालिया लहजे में कहते हैं, 'आप मर्द थे तो मैं मानता हूं कि पाकिस्तान की मांग करने के बाद उनको जाकर गोली मारते... वो देशभक्ति का काम होता.'
नवंबर, 2019 में भोपाल से कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को शिकस्त देकर लोक सभा पहुंची बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने संसद में गोडसे को 'देशभक्त' बताया था. बाहर साध्वी प्रज्ञा ने ये बात न जाने कितनी बार कही होगी क्योंकि ये उनकी राजनीतिक लाइन, जो संघ और बीजेपी का स्टैंड रहा है, को मैच करता है - लेकिन माफी इसलिए मांगनी पड़ी क्योंकि ये बात संसद के भीतर बोल दी थी.
'आप मर्द थे...' बोल कर शिवसेना प्रवक्ता ने गोडसे को लेकर संघ और बीजेपी की दावेदारी पर निशाना साधने की कोशिश की है. कहते हैं, 'गांधी जी जैसे फकीर को, निःशस्त्र को गोली मारना ठीक नहीं था... इसका दुख पूरे विश्व को है.'
गोडसे पर शिवसेना का स्टैंड क्या है
संसद में गोडसे पर मचे बवाल के कुछ ही दिन बाद राहुल गांधी ने रामलीला मैदान की रैली में कहा था - 'मेरा नाम सावरकर नहीं, राहुल गांधी है'. साध्वी की ही तरह राहुल गांधी से भी उनके एक बयान पर माफी की मांग हो रही थी, लेकिन राहुल गांधी ने साफ साफ बोल दिया कि वो माफी नहीं मांगेंगे - सावरकर का नाम लेकर राहुल गांधी ने कांग्रेस के स्टैंड की तरफ इशारा किया था. कांग्रेस सावरकर के अंग्रेजों से माफी मांगने को लेकर संघ और बीजेपी को टारगेट करती रही है.
गोडसे पर शिवसेना कन्फ्यूज तो नहीं: राहुल गांधी के बयान पर तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए संजय राउत सावरकर को नेहरू-गांधी जैसा ही देवता बताया था. ये महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के साथ महाराष्ट्र में शिवसेना के गठबंधन सरकार बनाने के कुछ ही दिन की बात है. तभी संजय राउत ने ट्विटर पर भी लिखा था, 'वीर सावरकर सिर्फ महाराष्ट्र के ही नहीं, देश के देवता हैं, सावरकर नाम में राष्ट्र अभिमान और स्वाभिमान है... नेहरू-गांधी की तरह सावरकर ने भी देश की आजादी के लिए जीवन समर्पित किया... देवता का सम्मान करना चाहिए... उसमें कोई भी समझौता नहीं होगा.'
गोडसे को लेकर संजय राउत का रिएक्शन सावरकर जैसा तो नहीं, लेकिन कहीं न कहीं शिवसेना के भ्रम की स्थिति की तरफ इशारा कर रहा है - आखिर शिवसेना हिंदुत्ववादी किसे मानती है?
राहुल गांधी संघ और बीजेपी नेताओं से लेकर गोडसे तक को हिंदुत्ववादी बताते हैं - कहीं ऐसा तो नहीं कि शिवसेना राहुल गांधी की थ्योरी से इत्तफाक न रखते हुए बीजेपी की तरह खुद को भी उसी कैटेगरी में शामिल मानती है?
क्या इसीलिए शिवसेना गोडसे को हिंदुत्ववादी कैटेगरी से बाहर करने की कोशिश कर रही है - या फिर संजय राउत बीजेपी और राहुल गांधी दोनों को ही एक ही तराजू में तौलने की कोशिश में गोडसे को लेकर कन्फ्यूज हो जाते हैं?
गोडसे को हथियाने की कोशिश तो नहीं: ये तो साफ है कि गोडसे की विरासत पर पूरी दावेदारी संघ और बीजेपी के पास ही है - और यही वजह है कि मुकाबले में गांधी को लाकर राहुल गांधी को हमला बोल देने का बहाना मिल जाता है.
गोडसे को लेकर शिवसेना को कांग्रेस या राहुल गांधी नहीं बल्कि बीजेपी से समस्या है. चूंकि गोडसे के बहाने राहुल गांधी ने हिंदुत्व का मुद्दा छेड़ दिया है, लिहाजा शिवसेना को बीजेपी के खिलाफ धावा बोल देने का मौका मिल गया है - और ये सब ऐसे दौर में होने लगा है जब हिंदुत्व की राजनीति में शिवसेना को बीजेपी की तरफ से बेदखल किये जाने की कोशिश हो गयी है.
बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने के बाद से शिवसेना नेतृत्व महसूस करने लगा है कि हिंदुत्व की राजनीति से उसे दरकिनार करने की रणनीति पर काम चल रहा है - ये संकेत तो तभी मिल गये थे जब उद्धव ठाकरे अपनी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर अयोध्या गये और संसद में कई बिलों पर बीजेपी का साथ भी दिया.
हाल ही में बाल ठाकरे की जयंती के मौके पर उद्धव ठाकरे ने ये जताने की कोशिश की कि कैसे बीजेपी को शिवसेना ने सपोर्ट किया जिसकी बदौलत बीजेपी के केंद्र तक का सफर पूरा हो सका.
उद्धव ठाकरे ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि शिवसेना का सपोर्ट नहीं मिला होता तो बीजेपी की राजनीति नहीं चमक पाती, लेकिन वो ये भी भूल जा रहे हैं कि बीजेपी से हाथ मिलाने से पहले शिवसेना मराठी मानुष पर फोकस हुआ करती थी - ये बीजेपी ही है जिससे हाथ मिलाने के बाद दोनों हिंदुत्व की राजनीतिक राह पर बढ़ चले.
बीजेपी और शिवसेना ने 1984 में पहली बार हाथ मिलाया जरूर था, लेकिन दोनों की राजनीतिक लाइन अयोध्या आंदोलन से ही चमकी थी. बाबरी मस्जिद गिराये जाने को लेकर बीजेपी जरूर बचाव की मुद्रा में लगी, लेकिन तब बाल ठाकरे का राजनीतिक बयान काफी चर्चित रहा - अगर बाबरी मस्जिद शिवसैनिकों ने गिरायी है तो मुझे गर्व है.
लेकिन असल बात तो ये है कि उद्धव ठाकरे को अपनी हिंदुत्व की लाइन को बनाये रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. वैसे शिवसेना को कट्टर हिंदू पार्टी से उदारवादी हिंदू राजनीतिक पार्टी की शक्ल देने का क्रेडिट भी उद्धव ठाकरे को ही जाता है.
गोडसे को लेकर संजय राउत के बयान में एक कंफ्यूजन भी महसूस होता है - कहीं गोडसे के हिंदुत्ववादी होने की बात खारिज करने के पीछे कोई मराठी मानुष ऐंगल तो नहीं है?
बीजेपी महाराष्ट्र में शिवसेना को और कमजोर करने की कोशिश करे उससे पहले शिवसेना सतर्क हो गयी है. नाथूराम गोडसे का जन्म महाराष्ट्र के ही बारामती में हुआ था. हालांकि, उसी बारामती से आने वाले शरद पवार की आइडियोलॉजी अलग रही है - और कांग्रेस से अलग होने के बाद भी अपनी पार्टी के नाम में कांग्रेस ही रखा.
शिवसेना का स्टैंड ज्यादा साफ तभी होगा जब राहुल गांधी की तरफ से गोडसे बनाम गांधी बार बार दोहराया जाता रहेगा - और संजय राउत जिन्ना के सहारे उसे और आगे बढ़ाएंगे!
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