अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) जिस तरह कदम कदम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज कर रहे हैं, लगता है कांग्रेस मुक्त भारत का बीजेपी का मिशन पूरा होने को है. तभी तो बीजेपी की चुनावी रणनीति कांग्रेस को छोड़ कर केजरीवाल को ही घेरने पर फोकस है.
गुजरात से दिल्ली तक हर तरफ अरविंद केजरीवाल ही दो-दो हाथ करते नजर आ रहे हैं. हां, कांग्रेस अपनी भारत जोड़ो यात्रा में शिद्दत से जुटी हुई है - और राहुल गांधी में भी पहले के मुकाबले थोड़ी गंभीरता महसूस की जा सकती है. हालांकि, ऐसी चीजों की वैलिडिटी तभी तक होती है जब तक कि राहुल गांधी गले मिल कर आंख मार देने जैसी कोई नयी हरकत न कर दें.
गुजरात चुनाव की बात हो या फिर दिल्ली में हो रहे एमसीडी चुनाव की, कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारने में कोई कोताही भी नहीं बरती है, लेकिन लड़ाई के मोर्चे पर तो अरविंद केजरीवाल और उनके साथी ही चप्पे चप्पे पर नजर आ रहे हैं. हो सकता है, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का एक छोटा सा मकसद ये भी हो. हालिया चुनावों से कांग्रेस को दूर रखने की.
एमसीडी चुनाव में भी अरविंद केजरीवाल 2020 के विधानसभा चुनावों की तरह ही संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अभी तक ये तो नहीं लगा है कि दिल्लीवासी फिर से उनको 'आई लव यू दिल्ली' बोलने का मौका देने वाले हैं.
नतीजे जो भी हों, अरविंद केजरीवाल ने दिल्लीवालों को वैसी ही चुनौती दी है जैसे 2017 के एमसीडी चुनाव में दी थी. तब अरविंद केजरीवाल का कहना था कि अगर अपने बच्चों को डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियां देनी है तो दिल्लीवाले बीजेपी को वोट दे दें, वरना आम आदमी पार्टी को मौका दें.
जेल में बंद सत्येंद्र जैन का नया वीडियो आने के बाद अब आप नेता का कहना है कि एमसीडी चुनाव में जनता को ये तय करना है कि 'अरविंद केजरीवाल के दस काम चाहिये या बीजेपी के दस वीडियो.'
बीजेपी नेताओं के भाषण और बयानों में भले ही ये लग रहा हो कि वो कांग्रेस को दुश्मन नंबर 1 समझ रही है, लेकिन जिस तरह से समान नागरिक संहिता (niform Civil Code) पर जोर देखा जा रहा है निशाने पर तो अरविंद केजरीवाल ही हैं. हाल में आये केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के कई इंटरव्यू देख कर तो यही लगता है जैसे सारा जोर यूनिफॉर्म सिविल कोड पर ही हो.
और ये भी एक इंटरव्यू में सवालों के जवाब से ही मालूम होता है कि असल में ये अरविंद केजरीवाल के हिंदुत्व की राजनीति की तरफ बढ़ते कदमों में राजनीतिक बेड़ियां पहनाने की ही कोशिश है - और गुजरात चुनावों के लिए बीजेपी के संकल्प पत्र ने तो इस पर मुहर ही लगा दी है.
थोड़ा अलग हट कर सोचें तो समान नागरिक संहिता असल में बीजेपी का दूसरा मंदिर मुद्दा है - और अमित शाह या बीजेपी के और नेता इसे वैसे ही पेश कर रहे हैं जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश दूसरी पारी के लिए इराक युद्ध को मंजिल तक पहुंचाने के लिए वोट मांग रहे थे.
गुजरात में भी समान नागरिक संहिता
गुजरात में बीजेपी ने जो संकल्प पत्र जारी किया है, ऐसा भी नहीं है कि समान नागरिक संहिता का वादा कोई सबसे ऊपर हो. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को भी तो पहले इतनी ही जगह मिला करती थी - और लागू करने के तरीके को भी ठीक वैसे ही समझाया जा रहा है.
अरविंद केजरीवाल के उभरते विपक्ष के नेता को तौर पर बीजेपी ने मुहर लगा दी है
एक टीवी इंटरव्यू में सीनियर बीजेपी नेता अमित शाह कहते हैं, 'मैं अब भी कहना चाहता हूं देश की जनता को... भारतीय जनता पार्टी यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने के लिए अडिग है... और हम लाकर रहेंगे पर सारी लोकतांत्रिक चर्चाओं की समाप्ति के बाद.
'लोकतांत्रिक चर्चाओं की समाप्ति के बाद' ये बिलकुल वैसा ही क्लॉज है, जैसा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर हुआ करता था - और ध्यान देने वाली बात ये भी है कि समान नागरिक संहिता को एक अधूरे काम के रूप में पेश करते हुए राम मंदिर निर्माण का वादा पूरे होने की मिसाल भी दी जा रही है.
गुजरात की ही तरह बीजेपी ने उत्तराखंड में भी समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा किया था. हालांकि, अभी तक कोई तारीख नहीं बतायी गयी है कि कब से उत्तराखंड में इसे लागू किया जाएगा. एक बार भोपाल में बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कहा था कि जहां जहां भी बीजेपी की सरकारें हैं समान नागरिक संहिता लागू किया जाएगा. बिहार में अमित शाह के बयान पर खासी प्रतिक्रिया हुई थी. तब नीतीश कुमार बीजेपी के साथ हुआ करते थे लेकिन समान नागरिक संहिता लागू करने से इनकार कर दिया था - और फिर बीजेपी की तरफ से सुशील मोदी की सफाई आयी थी कि बीजेपी किसी भी गठबंधन साथी पर दबाव नहीं बनाएगी.
अमित शाह बताते हैं, जहां-जहां बीजेपी का शासन है, अब तक तीन राज्यों हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के अलावा गुजरात में पैनल बनाये गये हैं. ये पैनल सुप्रीम कोर्ट के रिटायर हो चुके जज और हाई कोर्ट के अवकाश प्राप्त चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में बने हैं.
और अब तो गुजरात को लेकर जारी अपने संकल्प पत्र में भी बीजेपी ने बोल दिया है - 'गुजरात में समान नागरिक संहिता समिति की सिफारिशों का पूर्ण कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाएगा.'
बीजेपी नेता शाह का दावा है, भाजपा के अलावा आज कोई भी पार्टी यूनिफॉर्म सिविल कोड के पक्ष में नहीं है... हां, हिम्मत नहीं होगी तो विरोध नहीं करेंगे... लेकिन ये नहीं कहेंगे कि आप लागू कीजिये हम आपके साथ खड़े हैं.
गुजरात का संकल्प पत्र आने से पहले ही, टाइम्स नाउ के साथ इंटरव्यू में अमित शाह से पूछा जाता है - '2024 के मेनिफेस्टो में समान नागरिक संहिता रहेगी?'
अमित शाह का जवाब होता है, 'देखिये... वो तो समय तय करेगा... पहले ही हो सकता है देश के दो तिहाई से ज्यादा अपने यहां CC लगा दें... बाकी बचा तो फिर संसद को भी सोचना पड़ेगा... नहीं हुआ तो आप चिंता मत करो, 2024 में हम ही आने वाले हैं - 2024 में हम करके दिखाएंगे.'
अब तो ये भी साफ हो गया कि 2024 के आम चुनाव के संकल्प पत्र में बीजेपी का सबसे ज्यादा जोर समान नागरिक संहिता लागू करने पर ही होगा, जैसे 2019 में जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने पर रहा.
क्या ये केजरीवाल के हिंदुत्व के एजेंडे की काट है
2020 के दिल्ली चुनावों के बाद से ही देखा जा रहा है कि किस तरह अरविंद केजरीवाल का हिंदुत्व की राजनीति पर जोर है - और लोगों को दिल्ली से अयोध्या भेजने के साथ साथ वो अयोध्या पहुंच कर जय श्रीराम के नारे भी लगाने लगे हैं.
हाल ही में गुजरात की एक चुनावी रैली में भी अरविंद केजरीवाल लोगों को समझा रहे थे कि अगर आम आदमी पार्टी सत्ता हासिल करती है तो दिल्ली की तरह उनको भी अयोध्या की सैर कराएंगे. लोगों को भरोसा दिलाने के लिए केजरीवाल कह रहे थे कि जब लोग अयोध्या रवाना होते हैं तो छोड़ने भी वो खुद जाते हैं, और जब लौटते हैं तो रिसीव करने के लिए भी पहले से ही मौके पर मौजूद रहते हैं.
हाल ही के एक इंटरव्यू में अरविंद केजरीवाल के हिंदुत्व की राजनीति के एजेंडे की तरफ अमित शाह का ध्यान दिलाया गया तो कहने लगे कि लोग इतने भी भोले नहीं हैं. अमित शाह की बातों से लगा जैसे वो अरविंद केजरीवाल के हिंदुत्व एजेंडे से बेफिक्र हो चुके हैं.
अमित शाह का कहना रहा, 'कोई किसी का भी कार्ड खेले लेकिन भारत की जनता... विशेषकर गुजरात की जनता इतनी भोली नहीं है कि एक दो बयानों से किसी ओर बह जाये... राजनीति में हर व्यक्ति का अपना इतिहास होता है, जिसके आधार पर विश्वसनीयता बनती है... लंबा करियर होता है. आप किस तरह की बात करते हो? आपकी विचारधारा क्या है? इसके मायने क्या हैं? लक्ष्य क्या हैं? और इसके लिए आपने क्या किया?
बीजेपी नेता की समझाइश है कि कैसे जनसंघ के जमाने से लेकर बीजेपी के बनने तक वो कहते रहे कि धारा 370 हटाएंगे... एक देश में दो निशान, दो प्रधान और दो संविधान नहीं चल सकते.
और एक मौके पर अमित शाह धारा 370 और समान नागरिक संहिता में बुनियादी फर्क भी बता चुके हैं. अमित शाह कहते हैं, 'जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल ने हमें दरख्वास्त भेजी थी, जिसके आधार पर हमने ये निर्णय लिया था... आर्टिकल 370 और CC को आप एक तराजू में नहीं तौल सकते... दोनों में बुनियादी फर्क है.'
अरविंद केजरीवाल के मुकाबले बीजेपी की विश्वसनीयता की तुलना करते हुए धारा 370 को लेकर अमित शाह एक इंटरव्यू में समझाते हैं, 'हमने हटाकर दिखाया... इससे विश्वसनीयता बढ़ती है... हमने साफ कहा था कि उसी जगह पर राम मंदिर बनना चाहिये... अब जब देश की जनता प्रधानमंत्री मोदी को भूमि पूजन करते हुए देखती है तो जनता का भरोसा बढ़ता है... हमने 1950 में कहा था कि समान नागरिक संहिता लाएंगे. हमने कहा था कि तीन तलाक को खत्म करेंगे और ऐसा करके दिखाया है.'
और फिर कहते हैं, 'विश्वसनीयता सिर्फ बोलने से नहीं बनती है - काम से बनती है' - जाहिर है निशाने पर अरविंद केजरीवाल और 2024 का आम चुनाव ही तो है.
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