पाँच राज्यों के चुनावी नतीजे आने के बाद बीजेपी मुख्यालय पर जमकर जश्न मनाया गया. बीजेपी के लिए असम की जीत बहुत बड़ी है, क्योंकिं उत्तर पूर्व में बीजेपी की सरकार बने ये जनसंघ के जमाने से बीजेपी का सपना था. असम जैसे बड़े राज्य में सरकार बनाकर आखिरकार वह सपना पूरा हुआ. असम में बीजेपी की जीत कई मायनो में बहुत महत्वपूर्ण इसलिए भी है दिल्ली और बिहार में बीजेपी की आक्रामक रणनीति चारों खाने चित हो गई. बिहार के चुनावी पोस्टर में मोदी के साथ अमित शाह का चेहरा स्थानीय लोगो ने ख़ारिज कर दिया और दिल्ली में बाहर से आयत की गई किरण बेदी को खुद बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओ ने मिलकर हरा दिया.
इस बार असम चुनाव में रणनीति की कमान बीजेपी महासचिव राम माधव के पास थी और राम माधव ने असम में भी जम्मू-कश्मीर जैसे नतीजे पार्टी को दिये और यही उनसे उम्मीद थी. असम में बीजेपी ने गलती नहीं की और सर्वानंद सोनोवाल को अपना चेहरा बनाया जिसका फायदा मिला. असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ बयानबाजी हुई मगर ये ध्यान रखा गया कि किसी एक तरफ ना खिसके. पीएम मोदी और शाह की तुलना में सर्वानंद सोनवाल और हेमंतो विश्व शर्मा को प्रचार में आगे रखा गया.
बद्दरुद्दीन अजमल, एआईयूडीएफ |
एक तरफ राम माधव ने गठबंधन को लेकर बीजेपी का लचीला रुख अपनाये रखा. लेकिन वह कभी भी अपने सहयोगियों की माँग के सामने झुके नहीं और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) और असम गण परिषद (एजीपी) से तालमेल बिठाते हुए बीजेपी ने कॉंग्रेस के खिलाफ बड़ा गठबंधन तैयार कर लिया. वहीं कॉंग्रेस का मौलाना बद्दरुद्दीन अजमल की ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रैटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) से गठबंधन नहीं हो पाना बीजेपी के...
पाँच राज्यों के चुनावी नतीजे आने के बाद बीजेपी मुख्यालय पर जमकर जश्न मनाया गया. बीजेपी के लिए असम की जीत बहुत बड़ी है, क्योंकिं उत्तर पूर्व में बीजेपी की सरकार बने ये जनसंघ के जमाने से बीजेपी का सपना था. असम जैसे बड़े राज्य में सरकार बनाकर आखिरकार वह सपना पूरा हुआ. असम में बीजेपी की जीत कई मायनो में बहुत महत्वपूर्ण इसलिए भी है दिल्ली और बिहार में बीजेपी की आक्रामक रणनीति चारों खाने चित हो गई. बिहार के चुनावी पोस्टर में मोदी के साथ अमित शाह का चेहरा स्थानीय लोगो ने ख़ारिज कर दिया और दिल्ली में बाहर से आयत की गई किरण बेदी को खुद बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओ ने मिलकर हरा दिया.
इस बार असम चुनाव में रणनीति की कमान बीजेपी महासचिव राम माधव के पास थी और राम माधव ने असम में भी जम्मू-कश्मीर जैसे नतीजे पार्टी को दिये और यही उनसे उम्मीद थी. असम में बीजेपी ने गलती नहीं की और सर्वानंद सोनोवाल को अपना चेहरा बनाया जिसका फायदा मिला. असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ बयानबाजी हुई मगर ये ध्यान रखा गया कि किसी एक तरफ ना खिसके. पीएम मोदी और शाह की तुलना में सर्वानंद सोनवाल और हेमंतो विश्व शर्मा को प्रचार में आगे रखा गया.
बद्दरुद्दीन अजमल, एआईयूडीएफ |
एक तरफ राम माधव ने गठबंधन को लेकर बीजेपी का लचीला रुख अपनाये रखा. लेकिन वह कभी भी अपने सहयोगियों की माँग के सामने झुके नहीं और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) और असम गण परिषद (एजीपी) से तालमेल बिठाते हुए बीजेपी ने कॉंग्रेस के खिलाफ बड़ा गठबंधन तैयार कर लिया. वहीं कॉंग्रेस का मौलाना बद्दरुद्दीन अजमल की ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रैटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) से गठबंधन नहीं हो पाना बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद रहा.
जम्मू-कश्मीर में बीजेपी की जीत में बड़ी भूमिका निभाने के बाद और अब असम में बीजेपी को इतनी बड़ी जीत दिलाकर राम माधव बीजेपी के एक कुशल चुनावी रणनीतिकार बन चुके हैं. राम माधव ने पीडीपी के साथ साझा एजेंडे पर दो महीने की मशक़्क़त के बाद अपने को मंझे हुए रणनीतिकार के तौर पर पेश किया. मुफ़्ती मोहम्मद सईद की मृत्यु के बाद महबूबा मुफ्ती के दबाव में न झुककर भी उन्होंने एक अच्छे रणनीतिकार होने का सबूत दिया था. असम में पार्टी के संगठन को मज़बूत करना, अलग-अलग दलो को साथ लेना, प्रचार कैसे किया जाये और किसे टिकट दिया जाये इन सब में राम माधव की निर्णयक भूमिका रही.
असम चुनाव के नतीजो के बाद सर्वानंद सोनेवाल और हेमन्ता शर्मा ही नहीं, ऐजीपी के प्रफुल महन्ता भी असम के पूरे चुनाव में राम माधव की रणनीति की दिल खोल कर तारीफ कर रहे हैं. सर्वानंद सोनेवाल का कहना है जिस तरह राम माधव सब को एक साथ लेकर चले और सभी की भावनाओं का ध्यान रखते हुए रणनीति बनाई, वो बेजोड़ थी. उनकी रणनीति असम की जीत में सबसे कारगर साबित भी हुई. वहीं कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए हेमन्त विश्व शर्मा का कहना है कि राम माधव ने पिछले डेढ़ साल में कांग्रेस से नाराज हुए लोगो से संपर्क साधा और उन्हें पार्टी में शामिल कराकर 15 साल से शाषन कर रही कांग्रेस को हार का स्वाद चखाया. इसी तरह ऐजीपी अध्यक्ष प्रफुल महंता का भी मानना है कि राम माधव एक मंझे हुए चुनावी रणनीति हैं.
अब बीजेपी के सामने चुनौती अगले साल यूपी के चुनाव की सबसे बड़ी चुनौती है. लिहाजा अब देखना ये होगा की राम माधव को क्या यूपी में चुनाव की कमान दी जाती है या नहीं. पुरानी कहावत है पूरे देश की राजनीति एक तरफ और यूपी-बिहार पॉलिटिक्स दूसरी तरफ क्योंकि यहाँ के नेता और कार्यकर्ता कहते कुछ है और करते कुछ है. यहाँ बड़े से बड़े मुद्दे पर जाति की राजनीति सिर चढ़ कर बोलती है. शायद इसीलिए यूपी में प्रमोद महाजन और अरुण जेटली जैसे रणनीतिकार फेल हुए है.
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