आम चुनाव में तो बीजेपी 2014 पहले के मुकाबले बड़ी जीत हासिल कर ही चुकी है, हरियाणा को लेकर भी इरादा वैसा ही कुछ है. आम चुनाव में हरियाणा कांग्रेस मुक्त तो हो ही चुका है - कुछ पुराने किले बचे हैं जो सूबे की फेमिली पॉलिटिक्स के मजबूत गढ़ रहे हैं. बीजेपी इस बार विरासत बचाने के लिए जूझ रहे ऐसे किलों को समतल करने में जुट गयी है.
हरियाणा की 90 सीटों में से 47 पर जीत हासिल कर बीजेपी ने 2014 में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब रही. तब INLD को 19, कांग्रेस को 15 सीटें मिली थीं. यही वजह है कि इस बार बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बड़ा लक्ष्य रख दिया है. वैसे आम चुनाव में 300 पार का टारगेट तो पूरा हो ही चुका है.
हरियाणा में भी बीजेपी 'मोदी सरकार 2.0' की तरह 'मनोहर सरकार 2.0' बनाने की तैयारी चल रही है और इसी हिसाब से दो स्लोगन चल रहे हैं - ‘इस बार-75 पार’ और ‘फिर एक बार - मनोहर सरकार’.
बीजेपी का जोर तो इस बार भी गैर-जाट राजनीति पर ही है, लेकिन टिकट बंटवारे में सोशल इंजीनियरिंग का भी पूरा ख्याल रखा गया है. गैर-जाट मनोहरलाल खट्टर को सीएम बनाकर बीजेपी ने पैर जमाया और अब भी सबसे ज्यादा भरोसा उसे पंजाबी कम्युनिटी पर ही है जिसे पार्टी का मजबूत वोट बैंक समझा जाता है. खट्टर के अलावा इस समुदाय से अनिल विज, घनश्याम दास अरोड़ा, कृष्ण मिड्ढा, मनीष ग्रोवर, विनोद भयाना और सीमा त्रिखा को भी उसी अंदाज में उतारा गया है.
2014 में बीजेपी हरियाणा की 17 में से 8 सुरक्षित सीटें जीतने में सफल हुई थी. इस बार बीजेपी का इरादा पूरा झटकने का है. बीजेपी ने इस बार दलित समुदाय से कृष्ण बेदी, रवि तारनवाली, भगवान दास कबीरपंथी, राजवीर बरादा, बलवंत सिंह, कृष्ण पंवार, संतोष धनोदा, लक्ष्मण नापा, बलकौर सिंह, आशा खेदड़, विश्वंभर वाल्मीकि, राम अवतार वाल्मीकि, डॉ. राकेश कुमार, डॉ. बनवारी लाल, सत्य प्रकाश जरावता, जगदीश नायर और नौकसम चौधरी को उम्मीदवार बनाया है.
बीजेपी खट्टर को भी बिलकुल मोदी की तरह ही हरियाणा में पेश कर रही है
हरियाणा में करीब 19 फीसदी दलित मतदाता हैं, जबकि जाट समुदाय से करीब 28 फीसदी. कांग्रेस ने भी दलित और जाट नेतृत्व के मेल पर भरोसा किया है. सोनिया गांधी ने दलित नेता कुमारी शैलजा को PCC अध्यक्ष और जाट नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा को चुनाव अभियान समिति का मुखिया बनाया हुआ है. बीजेपी ने अपने जाट नेताओं के साथ साथ INLD से आकर भगवा अपनाने वाले नेताओं का भी इस मामले में पूरा ख्याल रखा है.
लालों के गढ़ पर बीजेपी की तीखी नजर
हरियाणा का तोशाम विधानसभा क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन बीजेपी ने पहले ही सेंध लगा ली है. तोशाम से ही बंसीलाल 1967 में पहली बार हरियाणा विधानसभा पहुंचे थे और तब से सिर्फ तीन बार ये सीट बंसीलाल परिवार के हाथ से फिसल गयी थी.
अगर नतीजे आम चुनाव की तरह रहे तो ये सीट भी इस बार बंसीलाल परिवार के हाथ से निकल सकती है. कांग्रेस ने इस बार भी मौजूदा विधायक किरण चौधरी को तोशाम से उम्मीदवार बनाया है. किरण चौधरी कांग्रेस विधानमंडल दल की नेता भी रहीं लेकिन उन्हें हटाकर कांग्रेस नेतृत्व ने भूपिंदर सिंह हुड्डा को आगे कर दिया. किरण चौधरी 2005 से लगातार तोशाम का प्रतिनिधित्व करती रही हैं.
किरण चौधरी का मुकाबला इस बार बीजेपी के शशिरंजन परमार और INLD की कमला रानी से है. बीजेपी ने राजपूत समाज से आने वाले शशिरंजन परमार को उम्मीदवार बनाया है जो 2000 में INLD से विधायक रह चुके हैं. करीब तीन दशक से राजनीति में सक्रिय शशिरंजन एजुकेशनल ट्रस्ट चलाते हैं और कई समाजसेवी संस्थाओं से जुड़े हुए हैं.
बंसीलाल की ही तरह बीजेपी की नजर भजनलाल के सियासी किले पर भी है. 9 बार विधायक रहे भजनलाल अपने राजनीतिक जीवन में कोई चुनाव नहीं हारने के लिए जाने जाते हैं - पंचायत में एक पंच से राजनीति शुरू करने वाले चौधरी भजनलाल तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री भी बने.
भजनलाल की राजनीतिक विरासत मुख्य तौर पर उनके दोनों बेटे कुलदीप बिश्नोई और चंद्रमोहन बिश्नोई संभाल रहे हैं और दोनों फिलहाल कांग्रेस में हैं. कुलदीप बिश्नोई अपने पिता की सीट आदमपुर से फिलहाल विधायक हैं और उनकी पत्नी रेणुका बिश्नोई हांसी सीट का प्रतिनिधित्व करती हैं - लेकिन कांग्रेस ने रेणुका का टिकट इस बार काट दिया है.
कुलदीप बिश्नोई के खिलाफ बीजेपी ने इस बार एक दमदार उम्मीदवार सोनाली फोगाट को टिकट दिया है जो टिक-टॉक सेलीब्रेटी के तौर पर मशहूर हैं. सोनाली फोगाट कह रही हैं कि अगर वो चुनाव जीत कर विधायक बन जाती हैं तो टिकटॉक ऐप का इस्तेमाल युवाओं में देश भक्ति की अलख जगाने में इस्तेमाल करेंगी.
पंचकूला से बीजेपी ने डिप्टी सीएम रह चुके चंद्रमोहन बिश्नोई के मुकाबले ज्ञानचंद गुप्ता को पार्टी का टिकट दिया है. हांसी से रेणुका बिश्नोई का टिकट काट कर कांग्रेस ने इस बार नये चेहरे पर दांव खेला है - ओमप्रकाश पंघाल कांग्रेस के उम्मीदवार बनाये गये हैं.
बीजेपी ने भजनलाल परिवार के पास रही हांसी सीट पर गैर-जाट नेता विनोद भयाना को चुनाव मैदान में उतारा है. हालांकि, बीजेपी कार्यकर्ता उन पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर विरोध कर रहे थे, लेकिन बीजेपी नेतृत्व ने उसे खारिज कर दिया. चर्चा है कि जिस वक्त बीजेपी के कार्यकर्ता विनोद भयाना का विरोध कर रहे थे, कुछ बीजेपी नेता दिल्ली में पार्टी के सीनियर नेताओं से मुलाकात कर टिकट कटवाने की कोशिश में थे - और ठीक उसी समय विनोद भयाना अंबेडकर चौक पर चुनाव कार्यालय का उद्घाटन कर रहे थे. टिकट पक्का है ये बात उन्हें पहले से ही मालूम रही होगी.
जहां तक देवीलाल के गढ़ का सवाल है तो चौटाला परिवार की राजनीति को पहले से ही ठिकाने लग चुकी है और INLD के तमाम नेता तो पहले ही बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं. काफी चर्चित रहे जींद उपचुनाव में तो बीजेपी ने INLD विधायक के बेटे को ही बीजेपी का टिकट दिया और सीट हथिया ली. जींद उपचुनाव में एक दावेदार कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला भी रहे जो सबसे पीछे रह गये थे.
अबकी बार 75 पार
2017 में जब राम रहीम को बलात्कार के जुर्म में सजा हुई और उसके समर्थक हिंसा फैलाने लगे तो मनोहर लाल खट्टर की छवि एक कमजोर मुख्यमंत्री की बनने लगी थी - क्योंकि उससे पहले रामपाल की गिरफ्तारी और जाट आंदोलन के दौरान उनकी बेबसी लोग देख चुके थे.
2019 का आम चुनाव आते-आते मनोहर लाल ने हरियाणा की सभी 10 सीटें बीजेपी की झोली में डालकर सारे सवालों का जवाब दे चुके हैं. यही वजह है कि खट्टर के विरोधी अब खामोश हो चुके हैं - और समर्थकों का तो हाल ये है कि वे 75 के टारगेट को भी लांघ जाने का दावा करने लगे हैं.
2014 में बीजेपी ने 34.7 फीसदी वोटों की हिस्सेदारी अपने पक्ष में करते हुए 8 सीटें जीती थी, लेकिन 2019 में ये आंकड़ा 58 फीसदी पहुंच गयीं और सीटें सभी 10 की दस. वोट शेयर के हिसाब से देखा जाये तो आम चुनाव में बीजेपी 90 में से 79 विधानसभा क्षेत्रों में विरोधियों के मुकाबले आगे रही - और यही वजह है कि पार्टी ने नारा दिया - अबकी बार 75 पार.
हरियाणा दशकों से 'लालों की राजनीति' के लिए जाना जाता रहा है - बंसीलाल, भजनलाल और देवीलाल. तब और अब में फर्क बस ये आया है कि सूबे की राजनीति का दायरा कुछ परिवारों की पकड़ से निकल कर बीजेपी की ओर बह चला है. फिर भी ये तो मानना ही पड़ेगा हरियाणा में 'लालों की राजनीति' नहीं बदली है - आखिर बीजेपी के पास भी मनोहर लाल तो हैं ही!
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