सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया तक 'वॉर एंड पीस' चर्चा में है. कारण है भीमा कोरेगांव हिंसा मामले को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट में चली सुनवाई और उस सुनवाई के दौरान हुई गलत रिपोर्टिंग. दिन भर सोशल मीडिया पर चर्चा में रहे इस मामले में चक्र घूम गया है. चक्र अब जहां आकर रुका है उसमें एक ऐसी चूक निकल कर सामने आई है जिसने न सिर्फ मीडिया की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाए हैं. बल्कि ये तक बता दिया है कि जज की बातों के विश्लेषण में जल्दबाजी की गई है ताकि लगातार नक्सलवाद की रोकथाम की दिशा में काम कर रही देश की सरकार और उसकी कार्यप्रणाली को आलोचना के धागे में पिरोया जा सके.
तो आइये जानें कि इस मामले में क्या हुआ और कैसे एक ऐसे विवाद ने जन्म लिया जिसका कोई औचित्य नहीं था.
लियो टॉलस्टॉय
लियो टॉलस्टॉय इस कहानी के मुख्य पात्र हैं. दरअसल हुआ कुछ ये था कि भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में वर्नोन गोन्जाल्विस को मुख्य आरोपी बनाया गया. केस मजबूत दिखे इसलिए पुलिस ने भी सबूत जुटाए और बॉम्बे हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस सारंग कोतवाल की पीठ के सामने रखे. पुलिस ने जो सबूत पेश किये उसमें एक किताब War & Peace In Junglemahal : People, State, and Maoists और जय भीमा कॉमरेड डॉक्यूमेंट्री की सीडी थी. वर्नोन गोन्जाल्विस पर माओवाद को बढ़ावा देने और हिंसा फैलाने का आरोप है. कोर्ट ने उनसे पूछा कि आखिर ये किताब उनके घर में क्या कर रही है?
सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया तक 'वॉर एंड पीस' चर्चा में है. कारण है भीमा कोरेगांव हिंसा मामले को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट में चली सुनवाई और उस सुनवाई के दौरान हुई गलत रिपोर्टिंग. दिन भर सोशल मीडिया पर चर्चा में रहे इस मामले में चक्र घूम गया है. चक्र अब जहां आकर रुका है उसमें एक ऐसी चूक निकल कर सामने आई है जिसने न सिर्फ मीडिया की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाए हैं. बल्कि ये तक बता दिया है कि जज की बातों के विश्लेषण में जल्दबाजी की गई है ताकि लगातार नक्सलवाद की रोकथाम की दिशा में काम कर रही देश की सरकार और उसकी कार्यप्रणाली को आलोचना के धागे में पिरोया जा सके.
तो आइये जानें कि इस मामले में क्या हुआ और कैसे एक ऐसे विवाद ने जन्म लिया जिसका कोई औचित्य नहीं था.
लियो टॉलस्टॉय
लियो टॉलस्टॉय इस कहानी के मुख्य पात्र हैं. दरअसल हुआ कुछ ये था कि भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में वर्नोन गोन्जाल्विस को मुख्य आरोपी बनाया गया. केस मजबूत दिखे इसलिए पुलिस ने भी सबूत जुटाए और बॉम्बे हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस सारंग कोतवाल की पीठ के सामने रखे. पुलिस ने जो सबूत पेश किये उसमें एक किताब War & Peace In Junglemahal : People, State, and Maoists और जय भीमा कॉमरेड डॉक्यूमेंट्री की सीडी थी. वर्नोन गोन्जाल्विस पर माओवाद को बढ़ावा देने और हिंसा फैलाने का आरोप है. कोर्ट ने उनसे पूछा कि आखिर ये किताब उनके घर में क्या कर रही है?
बात इतनी थी और मीडिया ने रिपोर्ट कर दिया कि कोर्ट ने War And Peace पर आपत्ति जताई है और इसके बाद मामले को लेकर बेकार का शोर मच गया. आपको बताते चले कि War And Peace को लियो लियो टॉलस्टॉय ने लिखा है और इस किताब का शुमार साहित्य के क्लासिक उपन्यासों में है.
आपको बताते चलें कि इस किताब की पूरी रूपरेखा रूस के परिदृश्य में है. साथ ही इसमें बोल्कोन्स्की, रोस्तोव और बेज़ूख़ोव कुलनामों वाले कुलीन परिवारों तथा नेपोलियन बोनापार्ट और सम्राट अलेक्सान्द्र प्रथम के समय की घटनाओं के इर्द-गिर्द खाका खींचा गया है.
बिस्वजीत रॉय
बिस्वजीत रॉय इस कहानी के दूसरे पात्र हैं. जो किताब पुलिस ने कोर्ट के सामने रखी वो बिस्वजीत रॉय की किताब है. जिस किताब को लेकर मीडिया ने झूठी रिपोर्टिंग की वो लियो टॉलस्टॉय की किताब है. इन दोनों ही किताबों में कोई समानता नहीं है और जो कुछ भी हुआ इत्तेफाकन हुआ. ध्यान रहे कि लियो टॉलस्टॉय की किताब रूस के परिदृश्य में है. हां मगर जो किताब बिस्वजीत रॉय ने लिखी है, जिसे पुलिस द्वारा वर्नोन गोन्जाल्विस के खिलाफ कोर्ट में पेश किया गया है. वो पूरी तरह भारतीय है और इसमें प्रचुर मात्रा में नक्सलवाद और सरकार विरोधी बातों का जिक्र है.
अमेज़न पर उपलब्धता
भले ही बिस्वजीत रॉय की किताब को लेकर खूब हो हल्ला मचाया जा रहा हो और इसे आपत्तिजनक माना जा रहा हो मगर बात जब इस किताब की उपलब्धता पर हो तो ये किताब अमेज़न पर मौजूद है. बात अगर इस किताब के कंटेंट की हो तो इसमें वामपंथ से जुड़े कार्यकर्ताओं,शिक्षाविदों और मध्यस्थों के ऐसे निबंध हैं जिसमें सरकार की विकासवादी नीतियों, संसदीय दलों के दोगलेपन और माओवादियों की गुंडागर्दी के संदर्भ में विफल शांति पहलों का जिक्र है. किताब को भले ही कोर्ट में माओवादी हिंसा का जनक माना जा रहा हो मगर अमेज़न पर जकार इसे आसानी से खरीदा जा सकता है.
किताब की कीमत
ये अपने आप में दिलचस्प है कि लियो टॉलस्टॉय की वो किताब जिसका शुमार विश्व के क्लासिक उपन्यासों में है उसकी कीमत सिर्फ 250 रुपए के आस पास है. वहीं बात जब बिस्वजीत रॉय द्वारा लिखी गई किताब War & Peace In Junglemahal : People, State, and Maoists की हो तो इसकी कीमत को प्रकाशकों द्वारा 2500 रुपए रखा गया है.
जज का नजरिया
ये इस पूरी कहानी का सबसे अहम पहलू है. बात आगे बढ़ाने से पहले बता दें कि जब जस्टिस सारंग कोतवाल को मीडिया द्वारा मामले को लेकर की गई गलत रिपोर्टिंग की जानकारी हुई तो इससे उन्हें गहरा आघात लगा. जस्टिस कोतवाल के अनुसार उन्हें लियो टॉलस्टॉय के क्लासिक उपन्यास वॉर एंड पीस की पूरी जानकारी है. उनका मतलब यह बताना नहीं था कि एल्गर परिषद-कोरेगांव भीमा मामले में पुणे पुलिस द्वारा जब्त की गई सभी किताबें गुप्त थीं.
गोन्जाल्विस के वकील ने उनकी पैरवी करते हुए कोर्ट को बताया था की जो भी किताबें पुलिस ने गोन्जाल्विस के घर से गत वर्ष बरामद की थीं उन्हें सीआरपीसी प्रावधानों के अनुसार प्रतिबंधित नहीं किया गया है. ध्यान रहे कि गोन्जाल्विस के ऊपर भीमा कोरेगांव मामले के तहत हिंसा फैलाने के गंभीर आरोप हैं. ऐसे में जो साहित्य उनके घर से बरामद हुआ उसपर कोर्ट का पूछना इतना भर था कि आखिर वो इसे पढ़ क्यों रहे हैं. गोन्जाल्विस ने जो भी जवाब दिया हो, उसपर जस्टिस कोतवाल का आरोपी से कहना था कि, आपने अपना पक्ष रखा कि किताबें प्रतिबंधित नहीं हैं. इसके अलावा, कल, मैं चार्जशीट से पूरी सूची पढ़ रहा था. वो ख़राब लिखावट में लिखा गया था. मुझे लियो टॉलस्टॉय द्वारा रचित वॉर एंड पीस के बारे में जानकारी है. मैं उस सूचि पर सवाल कर रहा था जिसका उल्लेख पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में किया है.
युग चौधरी, जो कि सह-अभियुक्त सुधा भारद्वाज के वकील हैं, ने तब अदालत को बताया कि बीते दिन जिस War And Peace को अदालत ने संदर्भित किया था, वह बिस्वजीत रॉय द्वारा संपादित निबंधों का एक संग्रह था, और उसका टाइटल War and Peace in Junglemahal: People, State and Maoists था.
प्रधानमंत्री मोदी हैं टार्गेट
पीएम मोदी भी इस पूरी कहानी के अहम पात्र हैं. ध्यान रहे कि देश की सरकार और खुद प्रधानमंत्री मोदी माओवाद के लिए खासे गंभीर हैं और इस दिशा में लगातार काम कर रहे हैं. भीमा कोरेगांव मामले के बाद जिस तरह से अर्बन नक्सल का मुद्दा उठा और उस मुद्दे पर लगातार कार्रवाई हुई उसने उन लोगों को बेचैन कर दिया जो लेफ्ट के समर्थक थे और सरकार की नीतियों का विरोध करते थे. इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ.
कह सकते हैं कि जस्टिस कोतवाल तो व्यर्थ में ही इस जाल में फंसे. असल मुद्दा तो इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को घेरना और फिर उनकी आलोचना करना था.
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