जब वित्त मंत्री अरुण जेटली एक फरवरी को आम बजट पेश करेंगे तो मोदी सरकार का यह पांचवां और अंतिम पूर्ण बजट होगा जिसमें वह सभी वर्गों को साधने की कोशिश कर सकती है. चूंकि मोदी सरकार की सोलहवीं लोकसभा का यह अंतिम बजट है इसलिए यह चुनौतीपूर्ण और महत्वपूर्ण दोनों है. महत्वपूर्ण इसलिए भी क्योंकि यह जीएसटी के बाद देश का पहला बजट है. इसके साथ ही यह 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले का पूर्ण बजट है. एक तरफ जहां वित्त मंत्री अरुण जेटली के लिए आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने का दबाव है तो वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दबावों के परिणामस्वरूप लोकलुभावन योजनाओं को शामिल करने का दबाव भी उनपर है. हालांकि प्रधानमंत्री पहले ही ये साफ़ कर चुके हैं कि इस साल का बजट लोकलुभावन बजट नहीं होगा.
लेकिन प्रश्न ये कि क्या वित्त मंत्री उन आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने के क्रम में अपना बजट पेश करेंगे जिसमे प्रधानमंत्री मोदी का ज़ोर था. मसलन अर्थव्यवस्था की गति तेज़ करना और सिस्टम से भ्रष्टाचार एवं काला धन समाप्त करने के लिए आर्थिक सुधारों की पहल या फिर इस साल आठ राज्यों के विधान सभा और उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए लोकलुभावन बजट?
बजट चाहे जैसा भी हो. वित्त मंत्री के सामने कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं. जैसे राजकोषीय घाटे के लक्ष्य तक सीमित रखने की, कृषि सेक्टर में सुधार की- क्योंकि फसलों की सही कीमत न मिलने से देश में कई जगह किसानों के आंदोलन होते रहे हैं, मध्यम वर्ग को टैक्स राहत की, घर के सपनों को पूरा करने की, महंगाई को काबू में रखने की या फिर नए रोजगार के मौके बढ़ाने की.
नए रोजगार पैदा करना सबसे बड़ी चुनौती : 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी...
जब वित्त मंत्री अरुण जेटली एक फरवरी को आम बजट पेश करेंगे तो मोदी सरकार का यह पांचवां और अंतिम पूर्ण बजट होगा जिसमें वह सभी वर्गों को साधने की कोशिश कर सकती है. चूंकि मोदी सरकार की सोलहवीं लोकसभा का यह अंतिम बजट है इसलिए यह चुनौतीपूर्ण और महत्वपूर्ण दोनों है. महत्वपूर्ण इसलिए भी क्योंकि यह जीएसटी के बाद देश का पहला बजट है. इसके साथ ही यह 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले का पूर्ण बजट है. एक तरफ जहां वित्त मंत्री अरुण जेटली के लिए आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने का दबाव है तो वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दबावों के परिणामस्वरूप लोकलुभावन योजनाओं को शामिल करने का दबाव भी उनपर है. हालांकि प्रधानमंत्री पहले ही ये साफ़ कर चुके हैं कि इस साल का बजट लोकलुभावन बजट नहीं होगा.
लेकिन प्रश्न ये कि क्या वित्त मंत्री उन आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने के क्रम में अपना बजट पेश करेंगे जिसमे प्रधानमंत्री मोदी का ज़ोर था. मसलन अर्थव्यवस्था की गति तेज़ करना और सिस्टम से भ्रष्टाचार एवं काला धन समाप्त करने के लिए आर्थिक सुधारों की पहल या फिर इस साल आठ राज्यों के विधान सभा और उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए लोकलुभावन बजट?
बजट चाहे जैसा भी हो. वित्त मंत्री के सामने कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं. जैसे राजकोषीय घाटे के लक्ष्य तक सीमित रखने की, कृषि सेक्टर में सुधार की- क्योंकि फसलों की सही कीमत न मिलने से देश में कई जगह किसानों के आंदोलन होते रहे हैं, मध्यम वर्ग को टैक्स राहत की, घर के सपनों को पूरा करने की, महंगाई को काबू में रखने की या फिर नए रोजगार के मौके बढ़ाने की.
नए रोजगार पैदा करना सबसे बड़ी चुनौती : 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी ने हर साल एक करोड़ नौकरियां पैदा करने का वादा किया था. लेकिन इसमें मोदी सरकार दूर-दूर तक लक्ष्य पूरा करते नज़र नहीं आई. श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार साल 2014 में 4.21 लाख और 2015 में 1.35 लाख नई नौकरियों का सृजन हुआ. अगर हम बात 2016 की करें तो आखिरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर 2016) में 1.22 लाख नई नौकरियां ही तैयार हुई थीं
कृषि क्षेत्र का हालत गंभीर : पिछले साल के बजट में सरकार ने अगले पांच वर्षों में किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा था. लेकिन नोटबंदी और इसके बाद जीएसटी लागू होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था की हालत और खराब हो गई. किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत नहीं मिलने से वो अपने फसलों को सड़क पर फेंकने और आत्महत्या करने पर मज़बूर हो गए. साथ ही कृषि विकास दर में कमी से लक्ष्य के पूरा होने पर ही सवालिया निशान लग गया.
लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जहां की एक बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है और इसी साल इन राज्यों में विधान सभा चुनाव भी हैं ऐसे में मोदी सरकार का लक्ष्य होगा - बजट में किसानों एवं कृषि से जुड़ी ऐसी योजनाओं की घोषणा करने की जिससे वह मजबूती के साथ विधानसभा चुनावों में जाए और किसानों के सामने अपनी योजनाओं का बखान कर सके ताकि अपनी सरकारें बचाने में कामयाब हो सके.
इस प्रकार से 2018 -19 का आम बजट मोदी सरकार के किए चुनौतियों से भरा होगा. जो मोदी सरकार अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने, बेरोज़गारों को नौकरियां दिलाने का वादा और किसानों की आय बढ़ाने के वादे के साथ सत्ता में आयी थी लेकिन इन 4 सालों में दूर-दूर तक खरा उतरते नज़र नहीं आ रही है उसके लिए यह बजट काफी चुनौतीपूर्ण होगा.
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