एक आदर्श राज्य की कल्पना तभी संभव है जब राज्य में रहने वाले नागरिकों के समान अधिकार हों. ऐसा राज्य ही आदर्श राज्य कहलाता है जहां राजा से लेके रंक तक सब समान तरीके से रह रहे हों. कह सकते हैं आदर्श राज्य में यदि किसी एक व्यक्ति को छूट दी जा रही है तो दूसरे को भी दी जाए. यदि एक तबके को छूट मिल रही है और दूसरा तबका बेबसी से उस तबके को देख रहा हो, जिसे छूट मिली है तो ये आदर्श राज्य की परिभाषा के अंतर्गत बेमानी है.
अब उपरोक्त इंगित बात को जानवरों के नजरिये से देखिये, मुर्गी से लेकर बकरी तक और गाय से लेकर भैंस तक सबके समान अधिकार हैं. किसी भी जानवर का किसी से छोटा या बड़ा महत्त्व नहीं है. देश की अर्थव्यवस्था में जितनी निर्णायक भूमिका मुर्गियों और बकरियों की है उतनी ही गाय और भैंस की. आज जो हालात हैं उनके मद्देनजर सारी सुख सुविधा गायों के लिए है. आज न कहीं बकरी की पूछ है न कहीं मुर्गी की. ऐसे में भैंसों की बात ही क्या करनी, ताजा माहौल में सरकार ने भैंसों को अल्पसंख्यक मान लिया है.
कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया के इस दौर में सबसे ज्यादा शोषण भैंसों का ही हो रहा है. लोग शायद भूल चुके हैं यदि गाय मां है तो भैंस भी मौसी से कम नहीं है. असली मां के बाद ये भैंस ही है जो इस देश के बच्चों की एक बड़ी संख्या का भरण पोषण करती है.
हाल फिलहाल जो खबर आ रही है उसके बाद हमारे लिए ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि भैंसों की स्थिति बड़ी दयनीय है. खबर है कि देश के अंदर पशु मंडियों में वध के लिए जानवरों की खरीद-फरोख्त पर प्रतिबंध के बाद मचे बवाल के मद्देनजर सरकार अपने रुख पर नरमी दिखा सकती है. बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार मामले को ठंडा करने के लिए कानून के अंतर्गत मवेशी शब्द की...
एक आदर्श राज्य की कल्पना तभी संभव है जब राज्य में रहने वाले नागरिकों के समान अधिकार हों. ऐसा राज्य ही आदर्श राज्य कहलाता है जहां राजा से लेके रंक तक सब समान तरीके से रह रहे हों. कह सकते हैं आदर्श राज्य में यदि किसी एक व्यक्ति को छूट दी जा रही है तो दूसरे को भी दी जाए. यदि एक तबके को छूट मिल रही है और दूसरा तबका बेबसी से उस तबके को देख रहा हो, जिसे छूट मिली है तो ये आदर्श राज्य की परिभाषा के अंतर्गत बेमानी है.
अब उपरोक्त इंगित बात को जानवरों के नजरिये से देखिये, मुर्गी से लेकर बकरी तक और गाय से लेकर भैंस तक सबके समान अधिकार हैं. किसी भी जानवर का किसी से छोटा या बड़ा महत्त्व नहीं है. देश की अर्थव्यवस्था में जितनी निर्णायक भूमिका मुर्गियों और बकरियों की है उतनी ही गाय और भैंस की. आज जो हालात हैं उनके मद्देनजर सारी सुख सुविधा गायों के लिए है. आज न कहीं बकरी की पूछ है न कहीं मुर्गी की. ऐसे में भैंसों की बात ही क्या करनी, ताजा माहौल में सरकार ने भैंसों को अल्पसंख्यक मान लिया है.
कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया के इस दौर में सबसे ज्यादा शोषण भैंसों का ही हो रहा है. लोग शायद भूल चुके हैं यदि गाय मां है तो भैंस भी मौसी से कम नहीं है. असली मां के बाद ये भैंस ही है जो इस देश के बच्चों की एक बड़ी संख्या का भरण पोषण करती है.
हाल फिलहाल जो खबर आ रही है उसके बाद हमारे लिए ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि भैंसों की स्थिति बड़ी दयनीय है. खबर है कि देश के अंदर पशु मंडियों में वध के लिए जानवरों की खरीद-फरोख्त पर प्रतिबंध के बाद मचे बवाल के मद्देनजर सरकार अपने रुख पर नरमी दिखा सकती है. बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार मामले को ठंडा करने के लिए कानून के अंतर्गत मवेशी शब्द की परिभाषा को बदलने पर विचार कर रही है.
साथ ही सरकार भैंस को मवेशी की परिभाषा से बाहर का रास्ता दिखा सकती है. यदि ऐसा होता है तो मीट और चमड़े के लिए भैंसों को बेधड़क काटा जा सकता है.
गौरतलब है कि यदि सरकार भैंस को भी नो 'स्लॉटर' लिस्ट में रखती तो स्थिति गंभीर थी और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका बुरा असर देखने को मिलता. आपको बताते चलें कि बीती 23 मई को पर्यावरण मंत्रालय ने जानवरों के खिलाफ क्रूरता रोकने के तहत पशु बाजार नियमन कानून 2017 की अधिसूचना जारी की थी. इसके बाद से ही सम्पूर्ण देश में जगह-जगह इस कानून का विरोध हुआ था.
अंत में हम अपनी बात खत्म करते हुए यही कहेंगे कि अब सरकार को गाय और भैंसों के बदले देश की जानता के हित और विकास के विषय में सोचना चाहिए साथ ही उसे देश की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर गौर करना चाहिए. ध्यान रहे कि 21 वीं सदी का भारत शिक्षा, सुरक्षा और रोजगार चाहता है न कि गाय भैंस और बकरी. साथ ही अगर सरकार पशुओं के विषय पर इतनी ही गंभीर है तो वो सभी जानवरों का साथ देते हुए उनके विकास की योजनाएं बनाए.
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