मुख्यधारा की राजनीति में लेफ्ट अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. जेएनयू छात्रसंघ के नतीजे लेफ्ट के लिए संजीवनी नहीं कहे जा सकते. फिर भी ये नतीजे थोड़ी राहत महसूस करने का मौका जरूर मुहैया कराते हैं.
वैसे बीजेपी के लिए ये नतीजे कितना मायने रखते हैं? इस सवाल का जवाब मुश्किल होता अगर अंतिम रिजल्ट आने से पहले ही कैलाश विजयवर्गीय ने ट्वीट न किया होता. हालांकि, अब वो ट्वीट उनके टाइमलाइन से डिलीट किया जा चुका है.
वे बधाईवाले ट्वीट
वोटों की गिनती के दौरान रुझान अक्सर खुशी और गम की वजह बनते हैं. कई बार ऐसा होता भी है कि रुझानों के पक्ष में आते ही कुछ लोग पटाखे फोड़ना भी शुरू कर देते हैं. दो साल पहले बिहार विधानसभा चुनाव के बाद आये शुरुआती रुझानों ने कुछ देर के लिए ऐसा ही माहौल बना दिया था. जेएनयू छात्रसंघ के लिए पड़े वोटों की गिनती हो रही थी और फाइनल रिजल्ट आने में देर थी. तभी बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने धड़ाधड़ दो ट्वीट पोस्ट कर डाले. अपने ट्वीट के जरिये बीजेपी नेता ने एबीवीपी की जीत की घोषणा और राष्ट्रवाद की जीत भी बता डाली. लेकिन बाद में मजबूरन उन्हें अपना ब्रेकिंग न्यूज डिलीट भी करना पड़ा. अब सिर्फ उनके ट्वीट के स्क्रीन शॉट कुछ मीडिया रिपोर्ट और सोशल मीडिया पर देखे जा सकते हैं.
छात्रसंघ की चारों सीटों पर यूनाइटेड लेफ्ट पैनल का कब्जा हो जाने से एबीवीपी को सीटें तो नहीं मिलीं लेकिन सभी सीटों पर उसके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर जरूर रहे. सबसे बुरा हाल कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई का रहा जिसे नोटा से भी कम वोट मिले. नोटा पर कुल 1512 वोट डाले गये जबकि एनएसयूआई को सभी सीटों पर कुल मिलाकर 728 वोट ही मिल पाये.
जुलाई महीने की ही बात है जेएनयू के वाइस चांसलर एम. जगदीश कुमार ने कैंपस में खास जगहों पर टैंक लगवाने में केंद्र सरकार से मदद मांगी थी. वीसी का मानना रहा कि टैंक देख कर...
मुख्यधारा की राजनीति में लेफ्ट अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. जेएनयू छात्रसंघ के नतीजे लेफ्ट के लिए संजीवनी नहीं कहे जा सकते. फिर भी ये नतीजे थोड़ी राहत महसूस करने का मौका जरूर मुहैया कराते हैं.
वैसे बीजेपी के लिए ये नतीजे कितना मायने रखते हैं? इस सवाल का जवाब मुश्किल होता अगर अंतिम रिजल्ट आने से पहले ही कैलाश विजयवर्गीय ने ट्वीट न किया होता. हालांकि, अब वो ट्वीट उनके टाइमलाइन से डिलीट किया जा चुका है.
वे बधाईवाले ट्वीट
वोटों की गिनती के दौरान रुझान अक्सर खुशी और गम की वजह बनते हैं. कई बार ऐसा होता भी है कि रुझानों के पक्ष में आते ही कुछ लोग पटाखे फोड़ना भी शुरू कर देते हैं. दो साल पहले बिहार विधानसभा चुनाव के बाद आये शुरुआती रुझानों ने कुछ देर के लिए ऐसा ही माहौल बना दिया था. जेएनयू छात्रसंघ के लिए पड़े वोटों की गिनती हो रही थी और फाइनल रिजल्ट आने में देर थी. तभी बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने धड़ाधड़ दो ट्वीट पोस्ट कर डाले. अपने ट्वीट के जरिये बीजेपी नेता ने एबीवीपी की जीत की घोषणा और राष्ट्रवाद की जीत भी बता डाली. लेकिन बाद में मजबूरन उन्हें अपना ब्रेकिंग न्यूज डिलीट भी करना पड़ा. अब सिर्फ उनके ट्वीट के स्क्रीन शॉट कुछ मीडिया रिपोर्ट और सोशल मीडिया पर देखे जा सकते हैं.
छात्रसंघ की चारों सीटों पर यूनाइटेड लेफ्ट पैनल का कब्जा हो जाने से एबीवीपी को सीटें तो नहीं मिलीं लेकिन सभी सीटों पर उसके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर जरूर रहे. सबसे बुरा हाल कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई का रहा जिसे नोटा से भी कम वोट मिले. नोटा पर कुल 1512 वोट डाले गये जबकि एनएसयूआई को सभी सीटों पर कुल मिलाकर 728 वोट ही मिल पाये.
जुलाई महीने की ही बात है जेएनयू के वाइस चांसलर एम. जगदीश कुमार ने कैंपस में खास जगहों पर टैंक लगवाने में केंद्र सरकार से मदद मांगी थी. वीसी का मानना रहा कि टैंक देख कर छात्रों के मन में राष्ट्रवाद की भावना जगेगी. मगर, अफसोस जेएनयू की पूर्व छात्रा के देश का रक्षा मंत्री बन जाने के बाद भी अब तक ऐसा न हो सका.
कन्हैया का करिश्मा काम न आया
फरवरी 2016 में जेएनयू कैंपस में देश विरोधी नारे लगाये जाने को लेकर तब के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को जेल जाना पड़ा था. उस घटना के बाद जगह जगह लोग देशद्रोही और राष्ट्रवादी खेमे में बंटे नजर आने लगे थे. फिर जेएनयू छात्रसंघ चुनाव हुए तो आइसा और एसएफआई ने मिल कर चुनाव लड़ा और उन्होंने सेंट्रल पैनल की सारी सीटें जीत लीं.
इस बार लेफ्ट पैनल में आइसा (ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन) और एसएफआई (स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया) के साथ ही डीएसफ (डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन) भी शामिल हो गया था. हालांकि, एआईएसएफ (आल इंडिया स्टुडेंट फेडरेशन) इस पैनल से अलग रहा और उसने सीपीआई नेता डी राजा की बेटी अपराजिता राजा को मैदान में उतारा था.
छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने अपराजिता के लिए खूब चुनाव प्रचार भी किया था. सोशल मीडिया पर भले ही कन्हैया के वीडियो धूम मचा रहे हों, लेकिन लगता है कैंपस में अब उनका वो करिश्मा नहीं बचा. अपराजिता को सिर्फ 416 वोट मिले जो प्रेसिडेंशियल डिबेट में अपनी छाप छोड़ने वाले निर्दलीय उम्मीदवार फारूक आलम से भी कम रहे. फारूक आलम को 419 वोट मिले हैं.
एबीवीपी की नैतिक जीत का दावा!
इस छात्रसंघ चुनाव की एक खास बात ये भी रही कि अध्यक्ष पद पर सभी संगठनों ने छात्राओं को ही मैदान में उतारा था. चुनाव में लेफ्ट पैनल की गीता कुमारी ने एबीवीपी की निधि त्रिपाठी को 464 वोटों से हराया. गीता को कुल 1506 वोट मिले, जबकि निधि को 1042 वोट. छात्र संघ अध्यक्ष पद के लिए सात उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे.
हरियाणा के पानीपत की रहने वाली गीता ने जेएनयू से फ्रेंच में बीए फिर आधुनिक इतिहास में एमए किया है - और फिलहाल मॉडर्न हिस्ट्री में ही एमफिल कर रही हैं. गीता के पिता सेना के आर्डिनेंस विभाग में जेसीओ के पद पर हैं.
छात्रसंघ के चारों पदों पर दूसरे नंबर पर आने वाली एबीवीपी ने साइंस स्कूल और स्पेशल सेंटर्स में इस बार भी बेहतरीन प्रदर्शन किया. बीजेपी नेता नकुल भारद्वाज इसे एबीवीपी की नैतिक जीत बता रहे हैं. नकुल भारद्वाज का कहना है कि अगर वामपंथी छात्र संगठन अलग अलग चुनाव लड़े होते तो एबीवीपी की जीत निश्चित थी.
अगर एबीवीपी का दूसरे नंबर पर रहना बीजेपी के लिए नैतिक जीत है तो लेफ्ट नेताओं के लिए जीत के मायने क्या हो सकते हैं? फिर तो कांग्रेस को भी गंभीरता से नतीजों के बारे में सोचना चाहिये.
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