आज आए उपचुनावों के नतीजे एक बार फिर बीजेपी के लिए अच्छी खबर लेकर नहीं आए. 10 विधानसभा और 4 लोकसभा सीटों के लिए हुए चुनावों में बीजेपी ज्यादातर सीटों पर पिछड़ती ही नजर आ रही है. बीजेपी अपने गढ़ उत्तर प्रदेश में जहां नूरपुर विधानसभा सीट हार गई है तो वहीं प्रतिष्ठा की सीट बन चुकी कैराना भी हारती दिख रही है.
बीजेपी के हाल के वर्षों में उपचुनाव दुखती रग बन गया है, भले ही पार्टी पिछले कुछ वर्षों में अपने सहयोगियों के साथ 20 राज्यों की सत्ता पर काबिज है, मगर इन वर्षों में उपचुनाव के नतीजे उसके लिए तकलीफदेह रहे हैं. बीजेपी 2014 से अब तक हुए 10 लोकसभा उपचुनावों में से 6 हार गई जिन सीटों पर 2014 में बीजेपी के उम्मीदवार जीते थे, साल 2017 और 2018 में हुए पांच लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी ने अपनी 5 सीटें गंवा दीं. इन पांच सीटों में पंजाब की 1, राजस्थान की 2 और उत्तरप्रदेश की 2 सीटों शामिल हैं. उत्तर प्रदेश में तो मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री अपनी सीट नहीं बचा सके. उपचुनावों के नतीजों का असर यह रहा कि साल 2014 में 282 सीटों के साथ सत्ता में आने वाली बीजेपी के पास आज 272 सीट ही रह गई हैं.
तो आखिर वजह क्या है कि राज्यों के विधानसभा चुनावों में बेहतरीन प्रदर्शन करने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी उपचुनावों में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पा रही है?
मोदी फैक्टर
2014 चुनावों से अब तक हर बार यह बात साबित हो चुका है कि भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े खिवैया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं. मोदी जहां भी चुनाव प्रचार के लिए जाते हैं वहां बहुत हद तक भाजपा को फायदा होता है. हालांकि नरेंद्र मोदी खुद को उपचुनावों में प्रचार से दूर रखते हैं जिसका असर...
आज आए उपचुनावों के नतीजे एक बार फिर बीजेपी के लिए अच्छी खबर लेकर नहीं आए. 10 विधानसभा और 4 लोकसभा सीटों के लिए हुए चुनावों में बीजेपी ज्यादातर सीटों पर पिछड़ती ही नजर आ रही है. बीजेपी अपने गढ़ उत्तर प्रदेश में जहां नूरपुर विधानसभा सीट हार गई है तो वहीं प्रतिष्ठा की सीट बन चुकी कैराना भी हारती दिख रही है.
बीजेपी के हाल के वर्षों में उपचुनाव दुखती रग बन गया है, भले ही पार्टी पिछले कुछ वर्षों में अपने सहयोगियों के साथ 20 राज्यों की सत्ता पर काबिज है, मगर इन वर्षों में उपचुनाव के नतीजे उसके लिए तकलीफदेह रहे हैं. बीजेपी 2014 से अब तक हुए 10 लोकसभा उपचुनावों में से 6 हार गई जिन सीटों पर 2014 में बीजेपी के उम्मीदवार जीते थे, साल 2017 और 2018 में हुए पांच लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी ने अपनी 5 सीटें गंवा दीं. इन पांच सीटों में पंजाब की 1, राजस्थान की 2 और उत्तरप्रदेश की 2 सीटों शामिल हैं. उत्तर प्रदेश में तो मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री अपनी सीट नहीं बचा सके. उपचुनावों के नतीजों का असर यह रहा कि साल 2014 में 282 सीटों के साथ सत्ता में आने वाली बीजेपी के पास आज 272 सीट ही रह गई हैं.
तो आखिर वजह क्या है कि राज्यों के विधानसभा चुनावों में बेहतरीन प्रदर्शन करने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी उपचुनावों में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पा रही है?
मोदी फैक्टर
2014 चुनावों से अब तक हर बार यह बात साबित हो चुका है कि भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े खिवैया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं. मोदी जहां भी चुनाव प्रचार के लिए जाते हैं वहां बहुत हद तक भाजपा को फायदा होता है. हालांकि नरेंद्र मोदी खुद को उपचुनावों में प्रचार से दूर रखते हैं जिसका असर पार्टी को मिलने वाले वोट्स पर भी दिख रहा है.
एकजुट विपक्ष
साल 2014 और उसके बाद जिस तरह कई क्षेत्रीय पार्टियों को नुकसान झेलना पड़ा है उसके बाद से विपक्ष ज्यादा एकजुट दिख रहा है. विपक्ष को यह अंदाजा हो गया है कि नरेंद्र मोदी और भाजपा से निपटने के लिए एकसाथ आना ही एकमात्र उपाय है. शायद यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में दो धुर विरोधी दल सपा और बसपा उपचुनावों में साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं और इसका बेहतर नतीजा भी इन पार्टियों को गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा उपचुनावों में देखने को मिला है.
सत्ता विरोधी लहर
अब जबकि नरेंद्र मोदी सरकार को सत्ता में 4 साल हो गए तो लोग अब सरकार के काम काज को लेकर भी ज्यादा सजग हो गए हैं. और कई मुद्दों पर सरकार की नाकामी का भी असर उपचुनावों के नतीजों में दिख रहा है.
उम्मीदवारों का चयन
अब लोग बेहतर ढंग से लोकसभा चुनाव और उपचुनावों में अंतर कर लेते हैं. जहां लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री का उम्मीदवार देखकर जनता वोट करती है तो वहीं उपचुनावों में पार्टी से इतर उम्मीदवार के आधार पर भी जनता वोट करती है.
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