... और एक अफवाह, देश के मुसलमानों की वतनपरस्ती को पहले पाएदान पर ले आयी है. ये अफवाह हानिकारक और घातक रही पर दूसरी ओर ये अफवाह मुस्लिम समाज को सशक्त बना रही है. NRC-CAA का विरोध (Muslim community opposing CAA and NRC) और इससे जुड़ी गलत फहमियों ने बुरी ही नहीं कुछ अच्छी तस्वीरें भी पेश की हैं. NRC को लेकर मुस्लिम समाज में बेचैनी और वतनपरस्ती की पराकाष्ठा नजर आयी. वोटर लिस्ट से लेकर तमाम दस्तावेजों को मुकम्मल और दुरुस्त करने के लिए अशिक्षित मुसलमान भी एकाएकी जागरुक हो गये. जिनके नाम छूटे हैं वे वोटर लिस्ट में अपना नाम जुड़वा रहे हैं. NRC-CAA भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान (Rumours Muslim going Pakistan after CAA and NRC) पंहुचा देगी. ये झूठ, अफवाह या इस गलतफहमी ने साबित कर दिया कि भारतीय मुसलमान पाकिस्तान से कितनी नफरत और अपने वतन हिन्दुस्तान से कितनी मोहब्बत करते हैं.
ऐसी अफवाह ने देश की सबसे विशाल अल्पसंख्यक वर्ग को बेचैन कर दिया और वो हाथों में तिरंगा लेकर सड़कों पर उतर आये. NRC के खिलाफ आंदोलन में बहुसंख्यक समाज के आंदोलनकारी सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे थे जबकि प्रदर्शनकारियों की भीड़ में पाकिस्तान मुर्दाबाद. हिन्दुस्तान जिन्दाबाद. हिन्दु-मुस्लिम, सिख-ईसाई आपस में हैं भाई-भाई. नारे लगाने वाले मुस्लिम आंदोलनकारी थे. पाकिस्तान भेजे जाने की गलतफहमी/अफवाह का शिकार एक मुस्लिम आंदोलनकारी हाथ में एक तख्ती लिये दिखा था जिसमें लिखा था- 'हम पाकिस्तान को दुनिया का जहन्नुम और भारत को दुनिया की जन्नत मानते हैं. हमें कोई जन्नत से जहन्नुम नहीं भेज सकता'.
मालूम हो कि देश के बुरे आर्थिक हालात में NRC को ग़ैर जरुरी समझने वाले देश...
... और एक अफवाह, देश के मुसलमानों की वतनपरस्ती को पहले पाएदान पर ले आयी है. ये अफवाह हानिकारक और घातक रही पर दूसरी ओर ये अफवाह मुस्लिम समाज को सशक्त बना रही है. NRC-CAA का विरोध (Muslim community opposing CAA and NRC) और इससे जुड़ी गलत फहमियों ने बुरी ही नहीं कुछ अच्छी तस्वीरें भी पेश की हैं. NRC को लेकर मुस्लिम समाज में बेचैनी और वतनपरस्ती की पराकाष्ठा नजर आयी. वोटर लिस्ट से लेकर तमाम दस्तावेजों को मुकम्मल और दुरुस्त करने के लिए अशिक्षित मुसलमान भी एकाएकी जागरुक हो गये. जिनके नाम छूटे हैं वे वोटर लिस्ट में अपना नाम जुड़वा रहे हैं. NRC-CAA भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान (Rumours Muslim going Pakistan after CAA and NRC) पंहुचा देगी. ये झूठ, अफवाह या इस गलतफहमी ने साबित कर दिया कि भारतीय मुसलमान पाकिस्तान से कितनी नफरत और अपने वतन हिन्दुस्तान से कितनी मोहब्बत करते हैं.
ऐसी अफवाह ने देश की सबसे विशाल अल्पसंख्यक वर्ग को बेचैन कर दिया और वो हाथों में तिरंगा लेकर सड़कों पर उतर आये. NRC के खिलाफ आंदोलन में बहुसंख्यक समाज के आंदोलनकारी सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे थे जबकि प्रदर्शनकारियों की भीड़ में पाकिस्तान मुर्दाबाद. हिन्दुस्तान जिन्दाबाद. हिन्दु-मुस्लिम, सिख-ईसाई आपस में हैं भाई-भाई. नारे लगाने वाले मुस्लिम आंदोलनकारी थे. पाकिस्तान भेजे जाने की गलतफहमी/अफवाह का शिकार एक मुस्लिम आंदोलनकारी हाथ में एक तख्ती लिये दिखा था जिसमें लिखा था- 'हम पाकिस्तान को दुनिया का जहन्नुम और भारत को दुनिया की जन्नत मानते हैं. हमें कोई जन्नत से जहन्नुम नहीं भेज सकता'.
मालूम हो कि देश के बुरे आर्थिक हालात में NRC को ग़ैर जरुरी समझने वाले देश के करोड़ों बहुसंख्यक समाज के लोगों ने संभावित NRC के खिलाफ देशभर में आंदोलन शुरु कर दिया. संभावित NRC का विरोध इसलिए किया जा रहा था क्योंकि इसे आम और गरीब जनता के सामने जटिलता खड़ी करना बताया जा रहा था. वोटर आईडी और आधार कार्ड जैसे तमाम प्रमाण और डाटा होने के बावजूद नागा बाबाओं, आदिवासियों, बंजारों, ख़ानाबदोशों के देश की गरीब जनता से जटिल और नामुम्किन दस्तावेज मांगने का क्या मतलब?
जिस देश में करोड़ों लोग जमीन पर पैदा होते हैं और उसी जमीन पर मर जाते हैं, ऐसों के पास नागरिक सिद्ध करने वाले कागजात/दस्तावेज कैसे मिलेंगे?
यही नहीं सवाल ये भी उठने लगे कि अभी जब देश जब आर्थिक बदहाली से जूझ रहा है तो लम्बे खर्च वाले NRC पर बार-बार बल देने और इसे जल्द शुरु करने की बात करने वाले गृह मंत्री जी की मंशा और नियत क्या है? इस तरह के तमाम सवालों के रूप में शुरु हुए देशव्यापी आंदोलन के दौरान ही एनआरसी को लेकर आखिरकार सरकार बैकफुट पर आ गई. और सरकार ने कह दिया कि NRC हम अभी ला ही नहीं रहे हैं. और इसमें नागरिकों के समक्ष जटिलता या नागरिकता चली जानेवाली बातें झूठी हैं. अफवाह हैं.
ज्ञात हो कि आम और खास जनता वाले इस देशव्यापी आंदोलन का नेतृत्व ना किसी विपक्षी दल ने किया और ना ही किसी जातिविशेष या धार्मिक धार्मिक नेता ने इसका नेतृत्व किया. आगे आये देश के क्रीम विश्वविद्यालयों के लाखों छात्र-छात्राएं. इसके अतिरिक्त सैकड़ों बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सांस्कृतिक कर्मियों, लेखकों, इतिहासकारों, कलाकारों, प्रोफेसर्स, पूर्व अधिकारियों के आह्वान पर देश का बहुसंख्यक समाज धारा 144 के बावजूद सड़कों पर उतर आया. क्योंकि देश के अधिकांश मुस्लिम धार्मिक नेता (उलमा) इन दिनों भाजपा सरकारों के पक्ष में भगवा ब्रिगेड के रंग में डूबे हैं. इसलिए सरकार के किसी फैसले के खिलाफ आंदोलन में मुसलमानों के किसी भी मसलक का कोई भी मौलाना/धार्मिक गुरु NRC के खिलाफ बहुसंख्यक समाज के आंदोलन में शामिल नहीं रहा.
मुस्लिम लीडरशिप के बिना मुस्लिम समाज बहुसंख्यक समाज के इस आंदोलन में अपनी भागीदारी निभाने उतर आया. आंदोलन में मुस्लिम समाज की भागीदारी ने साबित कर दिया कि वो अब कट्टरता, साम्प्रदायिकता, हुकुमत परस्ती, चापलूसी, नफरत और अलगाव के प्रतीक उलमा/धार्मिक नेताओं के बजाय हिन्दू बुद्धिजीवियों के नेतृत्व को बेहतर विकल्प समझेंगे.
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