प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को, अपनी कैबिनेट में जगह देने के लिए उत्तर प्रदेश से जिन तीन चेहरों को चुना है उसमें सबसे ज्यादा ध्यान जाति के गणित पर दिया गया है. महेन्द्र नाथ पांडे चंदौली से सांसद हैं और ब्राह्मण हैं. शाहजंहापुर की सांसद कृष्णा राज दलित हैं और बीजेपी की सहयोगी रही अपना दल का बीजेपी में विलय कराकर मोदी मंत्री मंडल में जगह पाने वाली अनुप्रिया पटेल, ओबीसी हैं. वे मिर्जापुर की सांसद हैं.
देश को सबसे ज्यादा 80 सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश में कुछ ही महीनों बाद चुनाव होने हैं और इस चुनाव को मोदी की लोकप्रियता का सबसे बडा बैरोमीटर माना जा रहा है. बिहार का चुनाव बुरी तरह हारने के बाद, यूपी जीतना बीजेपी के लिए जीने मरने का सवाल बन गया है.
एक ब्राहमण, एक दलित और एक ओबीसी को मंत्री बनाकर कोशिश की गयी है कि सबका साथ, सबका विकास के नारे को को चुनावी बिसात पर भी बिछा दिया जाए. लेकिन जातियों की क्यारियों में बीजेपी ने जो बीज बोये हैं, क्या उसकी फसल चुनाव के समय सचमुच लहलहाएगी? क्या मंत्री चुनने में जातिओं के जिस गणित का सहारा लिया गया है वो बीजेपी की झोली वोटों से भर सकेगी ? आइए समझने की कोशिश करते हैं कि जातियों के इस गणित के पीछे का खेल आखिर है क्या?
नरेंद्र मोदी |
क्या महेन्द्र नाथ पांडे दिला पाएंगे बीजेपी को बाह्मणों का आशीर्वाद
उत्तर प्रदेश में लगभग 12 फीसदी ब्राह्मण वोटर हैं और बीजेपी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के चंदौली से पहली बार सांसद बने महेन्द्र नाथ पांडे को राज्यमंत्री बनाकर इस वोट बैंक को रिझाने की कोशिश की है.
मूलत: गाजीपुर के पखापुर गांव के रहने...
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को, अपनी कैबिनेट में जगह देने के लिए उत्तर प्रदेश से जिन तीन चेहरों को चुना है उसमें सबसे ज्यादा ध्यान जाति के गणित पर दिया गया है. महेन्द्र नाथ पांडे चंदौली से सांसद हैं और ब्राह्मण हैं. शाहजंहापुर की सांसद कृष्णा राज दलित हैं और बीजेपी की सहयोगी रही अपना दल का बीजेपी में विलय कराकर मोदी मंत्री मंडल में जगह पाने वाली अनुप्रिया पटेल, ओबीसी हैं. वे मिर्जापुर की सांसद हैं.
देश को सबसे ज्यादा 80 सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश में कुछ ही महीनों बाद चुनाव होने हैं और इस चुनाव को मोदी की लोकप्रियता का सबसे बडा बैरोमीटर माना जा रहा है. बिहार का चुनाव बुरी तरह हारने के बाद, यूपी जीतना बीजेपी के लिए जीने मरने का सवाल बन गया है.
एक ब्राहमण, एक दलित और एक ओबीसी को मंत्री बनाकर कोशिश की गयी है कि सबका साथ, सबका विकास के नारे को को चुनावी बिसात पर भी बिछा दिया जाए. लेकिन जातियों की क्यारियों में बीजेपी ने जो बीज बोये हैं, क्या उसकी फसल चुनाव के समय सचमुच लहलहाएगी? क्या मंत्री चुनने में जातिओं के जिस गणित का सहारा लिया गया है वो बीजेपी की झोली वोटों से भर सकेगी ? आइए समझने की कोशिश करते हैं कि जातियों के इस गणित के पीछे का खेल आखिर है क्या?
नरेंद्र मोदी |
क्या महेन्द्र नाथ पांडे दिला पाएंगे बीजेपी को बाह्मणों का आशीर्वाद
उत्तर प्रदेश में लगभग 12 फीसदी ब्राह्मण वोटर हैं और बीजेपी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के चंदौली से पहली बार सांसद बने महेन्द्र नाथ पांडे को राज्यमंत्री बनाकर इस वोट बैंक को रिझाने की कोशिश की है.
मूलत: गाजीपुर के पखापुर गांव के रहने वाले महेन्द्र नाथ पांडे का ज्यादा जीवन बनारस में बीता है. वहीं से उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा और 1978 में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के महामंत्री भी बने. काफी शुरूआत से ही वो आरएसएस से जुड गए थे और राममंदिर आंदोलन में उनके खिलाफ रासुका तक लगाई गई थी. एमए, पीएचडी और पत्रकारिता में मास्टर की डिग्री रखने वाले महेन्द्र पांडे की छवि एक जुझारू नेता की है. वो 1991 में पहली बार विधायक बने और फिर उत्तर प्रदेश में मंत्री भी रहे.
बीजेपी ने जब लक्ष्मीकांत वाजपेयी को हटाकर केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश बीजीपी की कमान सौंपी थी तभी से ये कसाय लगाए जा रहे थे कि इसकी भरपाई के लिए बीजेपी किसी बाह्मण को मंत्री बनाएगी. यूपी के 12 फीसदी बाह्मण वोटर समाज में भी काफी प्रभाव रखते हैं और कांग्रेस से लेकर बीएपी तक इस बार उन्हें अपना बनाने की कोशिश में लगी है. 2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने अपने दलित वोट बैंक के साथ बाह्मणोँ को जोड कर सफलता के झंडे गाड दिए थे. लेकिन अब बीजेपी मानती है कि बीएसपी से उनका मोह भंग हो चुका है और कांग्रेस का राज्य में राजनीतिक वजूद नहीं बचा है. लिहाजा वह इस जागरूक वोट बैंक को अपनी ओर खींच सकते हैं. इसलिए बीजेपी को पूरी उम्मीद है कि 2014 के लोकसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी बाह्मणों के वोट उसकी झोली में गिरेंगे. महेन्द्र पांडे की छवि तो साफ सुथरी तो जरूर है लेकिन उनका कद इतना बडा नहीं है कि पूरे उत्तर प्रदेश में उनका प्रभाव हो. उनकी पहचान पू्र्वी उत्तर प्रदेश तक ही सीमित है. इसलिए उन्हें मंत्री बनाना ही काफी नहीं होगा. इस बात पर लोगों की खास नजर होगी कि बीजेपी कितने बाह्मण उम्मीदवारों को टिकट से नवाजती है.
कृष्णा राज क्या मायावती के वोट बैंक में सेंधमारी कर पाएँगी
उत्तर प्रदेश की सियासत में दलितों की हैसियत कितनी है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश की 403 सीटों में से 85 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं. राज्य में दलितों की आबादी 20 फीसदी है और सिर्फ इसी वोट बैंक पर मजबूत पकड रखने के कारण मायावती लम्बे समय से यूपी सियायत की एक धुरी बनी हुई हैं.
शाहजंहापुर से पहली बार सांसद बनी कृष्णा राज को मोदी कैबिनेट में जगह देकर बीजेपी मायावती को कमजोर करना चाहती है. बीजेपी के हौसले इसलिए भी बुलंद हैं कि ये खबरें लगातार आ रहीं हैं कि जाटव वोटरों को छोड़कर दूसरी दलित जातियों पर अब मायावती की पकड़ ढीली हो रही है. उनकी पार्टी से बगावत करके नेता लगातार जा रहे हैं. लोकसभा चुनाव में बीएसपी को शून्य पर पहुंचाने का कमाल बीजेपी कर चुकी है, लिहाजा वह एक बार फिर उसी सफलता को विधानसभा चुनाव में भी दोहराना चाहती है.
लेकिन जानकर मानते हैं कि कृष्णा राज को मंत्री बनाना दलित वोटरो के लिए महज एक प्रतीक हो सकता है. मायावती के वोट बैंक में दरार डालने के लिए बीजेपी को कई और मोर्चों पर काम करना होगा. मूलत फैजाबाद की रहने वाली कृष्णा राज पहले विधायक तो रह चुकी हैं लेकिन एक दलित नेता के तौर पर मायावती के सामने उनकी कोई पहचान नहीं है.
अनुप्रिया पटेल से रुकेगी नीतिश की आंधी
बिहार में मिली करारी हार को बीजेपी अभी भूली नहीं है. अब वह इस बात से चिंतिंत है कि देश में सबसे बडे कुर्मी नेता की पहचान रखने वाले नीतिश कुमार 2019 को देखते हुए यूपी में भी लगातार ताक झांक कर रहे हैं. कुर्मी, कुशवाहा, मौर्य राजनीतिक तौर पर पिछडों में यादवों से टक्टर लेने वाली मजबूत जातियां मानी जाती हैं. बीजेपी ने बडी उम्मीदें पाल रखी हैं कि इन पिछडी जातियों में मजबूत पकड बनाकर वो मुलायम सिहं के यादव वोट बैंक का मुकाबला कर पाएगी. इसी कोशिश के तहत ब्राह्मण प्रदेश अध्यक्ष को बदल कर केशव प्रसाद मौर्य को ये जिम्मेदार दी गयी थी.
अपना दल की तेज तर्रार नेता अनुप्रिया पटेल, मंत्री बनने के लिए अपनी पार्टी का विलय बीजेपी में कराने को तैयार हो हैं. लेकिन अपना पिछ़डा वोट बैंक बचाने के लिए समाजवादी पार्टी ने भी पूरी ताकत लगा दी है. इसीलिए, पुरानी बातों को भूलकर अनुभवी कुर्मी नेता बेनी प्रसाद वर्मा को फिर से पार्टी में लाया गया है और उन्हें राज्यसभा भी भेजा गया. उधर बीएपी से बगावत करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य भी नीतिश कुमार से लेकर बीजेपी और समाजवादी पार्टी सबको छका रहे हैं. लेकिन पिछडे वोट बैंक की इस खींच तान में अनुप्रिया पटेल को मंत्री बनाने से बीजेपी को कुछ फायदे की उम्मीद जरूर करनी चाहिए.
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